Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.
This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.
२४ फरवरी, १९७३
'क' : आज की शाम मैं आपको 'ट' का एक पत्र सुनाना चाहता हूं ! उसके पिछले पत्र के बारे में आपने जो कहा था यह उसी क्वे सिलसिले में है : 'हमने देखा है कि कुछ बच्चों मे बहुत जोरदार प्राणिक गति होती हैं जो भौतिक संकेतों का अनुसरण करती है दूसरों क्वे लिये यह केवल एक खेल होता है । एक लड़का तो बरामद में मार्चिय करता है और कहता है : 'मैं माताजी की सेना का सैनिक मांगा ' क्या सबके बारे में आप कोई यथार्थ निर्देश ?"
कहां मार्चिंग करता है?
'क' : बरामदे में मार्चिय करता है !
मुंडेर पर तो नहीं न?
'क' : जी नहीं और फिर वह दूत चक्कर लगता है सावधान होकर खड़ा हो जाता है और कहता ह्वै : ''मैं माताजी की सेना का सैनिक बनूंगा ''
यह तो बड़ी अच्छी बात है ।
'क' : तो मै आये पड' माताजी ?
हां, हां ।
'क' : ''रही बात नैतिक उठता की मेरी समझ मे नहीं नाता कि प्रकृति के किन तत्वों ले हमें हल्की संभावना का पता लय सकता है उदाहरण के लिये क्या बच्चे की रूठन की वृत्ति उसकी सनक पर रोक रहमानेवाली हर चीज के विरुद्ध विद्रोह की वृत्ति ले यह अंदाज लगाया जा सकता है या किसी और चीज से ? इस चीज को ठीक दिशा में मोड़ना के लिये क्या करना चाहिये ताकि अंत में उसका रूपांतर हो सके ?
मेरा ख्याल है कि तुम्हें बच्चों की इन छोटी-मोटी क्रियाओं को कोई महत्त्व नहीं देना चाहिये-इससे उन्हें प्रोत्साहन ही मिलता है तुम्हें उनकी ओर ध्यान न देना चाहिये,
इस तरह नजर न डालों मानों तुम उन्हें कोई महत्त्व दे रहे हो । उनसे पिंड छुटाते के लिये उन्हें महत्त्व देने की अपेक्षा यह ज्यादा अच्छा तरीका हैं । तुम्हें बिलकुल... तुम्हें अहंभाव की इन क्रियाओं की ओर जस भी ध्यान न देना चाहिये । यह भी न दिखाओ कि तुमने उन्हें देखा भी है-इससे उनका सारा मनोवैज्ञानिक सहारा हट जाता दूर । अगर कोई बच्चा रूठता है तो तुम उसकी ओर जरा मी ध्यान न दो । इससे रूसने का सारा प्रभाव हीं चला जाता है । समझे?
'क' : जी हां माताजी
तुम्हें बच्चों की इन छोटी-मोटी गतिविधियों को कोई महत्त्व न देना चाहिये... सबसे बढ़कर, कोई महत्त्व न दो ।
'क' : क्योंकि अगर बे देखें कि ईन चीजों को महत्व दिया जा खा है तो वे फिर ले वही करने को प्रेरित होगी !
निक्षय ही !
बच्चे सहज-ज्ञान से अपनी ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं । जैसे वह बच्चा जो छत पर सैनिक होने का ढोंग करता है... और ऐसी ही अन्य चीजें । तुम्है इन्हें कोई महत्त्व न देना चाहिये, उन्हें चलने दो । डांट-फटकार मत करो, सबसे बढ़कर, डांट-फटकार न करो... और उनकी ओर ध्यान न दो ।
बच्चे दुर्बल प्राणी होते हैं, और इसलिये बे सोचते हैं कि बेतुके बनकर बे अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर सकेंगे । उन्हें पता लगना चाहिये कि यह तरकीब काम नहीं करती ।
'क' : और '' डांटना नहीं चाहिये, है न ?
ओह, विशेष रूप से यह तो हरगिज नहीं! सबसे बढ़कर, उन्हें डांटो मत, डांटो मत । -तब अध्यापक उतना हीं बुरा हो जाता है जितना कि बिधार्थी । जब वह डाँटता है तो ऐसा लगता है कि... वह संयम खो बैठा हैं । इसका अर्थ है कि वह भी बिधार्थी के ही स्तर पर है । तुम्हें मुस्कराते रहना जानना चाहिये... हमेशा ।
'क' : यह बहुत जरूरी है !
बहुत, बहुत, बहुत जरूरी ।
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'ख ' श्रीअरविन्द के ''सुप्रामेंटल मेनिफेस्टेशन अपॉन अर्थ' ' (' धरती
पर अतिमानसिक अभिव्यक्ति ') मे से एक अनुच्छेद पड़ता हैं :
'' 'अतिमन' अपने मूल तत्व मे सत्य-चेतना है ऐसी चेतना जो हमेशा उस '।. 'अज्ञान' से मुक्त खाती है जो हमारी वर्तमान स्वाभाविक या बिकसोनमुख सत्ता का आधार हैं हमारे अंदर की उसमें ले आत्म-ज्ञान और -ज्ञान और ज्ञता चेतना और विश्व में हमारे जीवन ले सच्चे उपयोम को पाने की चेष्टा कर रहीं हैं सूक्ति 'अनमन' सत्य-चेतना है इसलिये उसमें यह ज्ञान और सत्य सन की शक्ति नेसर्गिक छै उसका मार्च सीधा है और वह सीधा अपने लक्ष्य पर जा पहुंचता है उसका छेत्र विस्ट्रत है और असीम मी हो सकत? है इसका कारण यह है कि ज्ञान उसका निजी स्वभाव है : उसे ज्ञान प्रान्त नहीं करना होता वह स्वभाव से उसके अधिकार मे होता है; उसक्ते पग अविद्या और अज्ञान ये किसी अपूर्ण प्रकाश की ओर कति जाते बल्कि सत्य ले महत्तर सत्य की ओर बढ़ते हैं सत्य-दर्शन से गभीर दर्शन की ओर अंतर्मास ले अतर्मास की ओर प्रकाश से परम असीम ज्योति की ओर बढ़ते हुए विस्तार ले परम बृहत और स्वयं अनंतता तक बढ़ते हैं उसके शिखर पर उसके पास दिव्य सर्वशक्तिमत्ता होती है लेकिन उसकी क्रमानुगत आत्माभिव्यक्ति की गति मे मई जिसके द्वारा वह अंतत: अपने ऊंचे-से-ऊंचे शिखरों को प्रकट करेगी वहां मी उसे स्वभावत: अज्ञान और भ्रांति ले पूरी तरह मुक्त होना चाहिये : वह सत्य और प्रकाश से आरंभ करके हमेशा सत्य और प्रकाश मे गति करता है ' उसका ज्ञान हमेशा सत्य होता है इसलिये उसकी इच्छा मी हमेशा सच्ची होती हो वह चीजों के सक् व्यवहार करते हुए कमी घपले में नहीं पड़ता और न ही उसके कदम कमी ठोकर खाते हैं 'अतिमन' में भावना और संवेग कमी अपने सत्य से जुदा नहीं होते कोई मल नहीं करवे कमी फिसलते नहीं सत्य और वास्तविक ले उधर-उधर नहीं एतौ कमी सौंदर्य और आनंद का नहीं कर सकते और न ही दिव्य आर्जव से मधुकर छ हो सकते हैं 'अतिमन' मे संवेदन कमी गलत राह पर नहीं ले जा सकता और न महता की ओर छ सकता है जब कि ये दोनों यहां पर उसकी स्वाभाविक अपृर्णताएं उसके निंदा और अविश्वास क्वे कारण हैं और हमारा अज्ञान उनका करता है 'अतिमन' दुरा दिया क्या अधूरा विवरण मी एक सत्य है जो और आये के सत्य की ओर जाता है उसकी अकरी किया पूर्णता की ओर एक कदम है 'अतिमन' का समस्त जीवन और सभी क्रियाएं और उसका पक्ष-प्रदर्शन स्वभावत: मिथ्यात्व और अनिशितताओं से सुरक्षित है जब कि ये हमारे मान में हो वह सुरक्षा मैं अपनी पूर्णता की ओर गति करता हैं? एक बार
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यहां सत्य-चेतना अपने शिक्षित आधार पर स्थापित हो जाये तो दिव्य जीवन का विकल आनंद में क्रांति होगा प्रकाश में होते हूर आनंद की ओर यात्रा होगी!
यह बहुत, बहुत, बहुत महत्त्वपूर्ण है । बहुत महत्त्वपूर्ण ।
वे सब लोग जो 'अतिमन' को अभिव्यक्त करने का दावा करते हैं शांत हो जायेंगे ।
(मैंने)
'ख' : आज के लिये बस इतना हई मधुर मां !
यह अच्छा है । यह कहां छापेवाला हैं?
'ख' : मै युवाओं के लिये एक पुस्तक तैयार कर रहा हूं उसमो!
ओह ! यह इतना अच्छा है... और इतना महत्त्वपूर्ण हैं ।
ओरोवील मे ऐसे लोग हैं जो यह मानते हैं कि वे अभी से हीं ' अतिमन' को अभिव्यक्त कर रहे हैं । और जब तुम उनसे कहो कि बात. ऐसी नहीं हैं तो है विश्वास नहीं करते । उन्हें यह पढ़ना चाहिये । हर एक को यह पढ़ना चाहिये ।
'क' : माताजी अभी हाल मे उन्होने श्रीअरविन्द के बारे मे बोलने क्वे लिये निमंत्रण दिया है मैं इस अवसर का लाभ उठाकर उन्हें यह अनुच्छेद सुनाऊंगा!
ओहो, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा । तुम्हें इसे धीरे-धीरे पढ़ना चाहिये, ताकि उन्हें ठीक डग से सुनने का अवसर मिले ।
सेटिनरी वोल्यूम १६ !
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