Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.
This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.
८ फरवरी, १९७३
'क' : जबतक हम किसी नयी पद्धति को निशित कर ले तबतक अपने- आपको तैयार करने का सबसे अच्छा उपाय क्या हैं ?
स्वभावतः, वह है अपनी चेतना को विस्तृत और प्रबुद्ध करना- लेकिन यह कैसे किया जाये ? तुम्हारी अपनी चेतना... उसे विस्तृत और प्रबुद्ध करना । और, अगर तुम, तुममें सें हर एक, अपने चैत्य पुरुष को पा सके और उसके साथ एक हो सके तो सभी समस्याएं हल हो जायेंगी ।
चैत्य पुरुष मनुष्य में भगवान् का प्रतिनिधि है । तो यह बात हैं, समझे-भगवान् कोई छू की चीज या पहुंच के बाहर नहीं हैं । भगवान् तुम्हारे अंदर हैं परंतु तुम उनके बारे में सचेतन नहीं हो । बल्कि तुम... अभी वे एक प्रभाव की जगह 'उपस्थिति ' के रूप में काम कर रहे हैं । लेकिन होनी चाहिये एक सचेतन 'उपस्थिति', तुम्हें हर क्षण अपने-आपसे यह पूछ सकना चाहिये, क्या है... कैसे... भगवान् इसे किस तरह देखते हैं । यह ऐसा है : पहले भगवान् कैसे देखते हैं, और फिर भगवान् कैसे चाहते हैं, और फिर भगवान् कैसे कार्य करते हैं । और यह अगम्य देशों में जाकर नहीं, ठीक यहीं । केवल, अभी के लिये, समस्त पुरानी आदतें और व्यापक निश्चेतना एक प्रकार का ढक्कन रख देती हैं जो हमें देखने और अनुभव करने से रोकता है । तुम्हें... तुम्हें उसे उठाना, तुम्हें उसे ऊपर उठाना पड़ेगा ।
वस्तुतः, तुम्हें सचेतन यंत्र बनना पड़ेगा... सचेतन... भगवान् के बारे में सचेतन ।
साधारणत: इसमें पूरा जीवन लग जाता हैं, या कभी-कभी, कुछ लोगों को कई जीवन लगते हैं । यहां, वर्तमान अवस्था में, तुम इसे कुछ हीं महीनों में कर सकते हों । क्योंकि जो... जिनमें तीव्र अभीप्सा हैं वे कुछ महीनों में कर सकते हैं ।
(लंबा मौन)
क्या तुमने कुछ अनुभव किया है?
बिलकुल सच कहो । क्या तुमने कुछ अनुभव किया, या तुम्हारे लिये कोई फर्क नहीं पड़ा? पूरी सच्चाई के साथ कहो । हां तो? कोई उत्तर नहीं देता । (माताजी हर एक से बारी-बारी से पूछती हैं और सब अपनी प्रतिक्रिया बताते हैं ।)
'ख' : मधुर मई मैं जानना चाहता हू कि कोई विशेष अवतरण हुआ था?
कोई अवतरण नहीं होता । यह एक गलत विचार हैं : कोई अवतरण नहीं होता । यह
एक ऐसी चीज है जो हमेशा यहां है लेकिन तुम उसे अनुभव नहीं करते । कोई अवतरण नहीं होता : यह बिलकुल गलत विचार है ।
क्या तुम जानते हो कि चौथा आयाम क्या होता हैं? जानते हो वह क्या है? 'रख' : हमने उसके बारे में सुन? है...
तुम्हें अनुभव है?
' 'ख' : नहीं मधुर मां
आह! लेकिन वास्तव मे आधुनिक विज्ञान का यह सबसे अच्छा प्रस्ताव है : चतुर्थ आयाम । हमारे लिये, भगवान् हीं चतुर्थ आयाम हैं... चतुर्थ आयाम के भीतर है । वह हर जगह हैं, है न, हर जगह हमेशा । वह आता-जाता नहीं है, वह हैं, हमेशा, हर जगह । यह तो हम, अपनी मूर्खता के कारण उसे अनुभव नहीं कर पाते । चले जाने की कोई जरूरत नहीं है, बिलकुल नहीं, बिलकुल नहीं, बिलकुल नहीं ।
अपने चैत्य पुरुष के बारे में सचेतन होने के लिये, तुम्हें चतुर्थ आयाम को अनुभव कर सकने के योग्य होना चाहिये, वरना तुम यह नहीं जान सकते कि वह क्या हैं?
है भगवान्! सत्तर वर्ष से मैं जानती हूं कि चतुर्थ आयाम क्या है... सत्तर वर्ष से भी ज्यादा से!
(मौन)
अनिवार्य, अनिवार्य! जीवन वहीं सें शुरू होता है । अन्यथा तुम मिथ्यात्व मे, गड़बड़-आले में और भ्रांति में और अंधकार में रहते हों । मन, मन, मन, मन! अन्यथा, अपनी चेतना के बारे में सचेतन होने के लिये, तुम्हें उसे मानसिक रूप देना होगा । यह भयंकर है, भयंकर! लो बस ।
'क' : माताजी, नय जीवन पुराने का ही प्रवाह नहीं है, हैं न ? वह अंदर से उमड़ता है !
हां, हां,...
'क' : दोनों में कोई चीज समान नहीं है...
है, हैं, लेकिन तुम उसके बारे मे सचेतन नहीं हों । लेकिन तुम्है होना चाहिये, होना .चाहिये... । मन तुम्हें उसे अनुभव करने से रोकता है । तुस्तुंए होना चाहिये... । तुम हर चीज को मानसिक रूप दे लेते हो, हर चर्चों को... । तुम जिसे चेतना कहते हों वह चीजों के बारे मै सोच-विचार है, तुम उर्स। को चेतना कहते हो :चीजों के बोरे में
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सोच-विचार । लेकिन यह वह चीज बिलकुल नहीं हैं, यह चेतना नहीं हैं । चेतना को बिलकुल स्वच्छ और स्वादहीन होना चाहिये ।
वहां, हर चीज ज्योतिर्मय और ऊष्मा-भरी होती है... बलवान्! और शांति, सच्ची शांति, जो जड़ता नहीं है, जो निश्चेष्टता नहीं है ।
'क'. और माताजी क्या सब बच्चों को यह लक्ष्य के रूप मे बताया जा सकता है !
सबको... नहीं । वे सब एक हीं उम्र के नहीं हैं, चाहे भौतिक रूप से उनकी उम्र एक ही क्यों न हो । ऐसे बच्चे हैं जो... जो अभी प्राथमिक अवस्था में हैं । तुम्हें... । अगर तुम अपने चैत्य पुरुष के बारे में पूरी तरह सचेतन हो तो तुम्हें यह जान सकना चाहिये कि कौन-से बच्चों की अंतरात्मा ज्यादा विकसित है । ऐसे बच्चे हैं जिनमें चैत्य पुरुष अभी बिलकुल प्रारंभिक अवस्था में है । चैत्य पुरुष की उम्र समान नहीं है, नहीं, बिलकुल नहीं । साधारणत: चैत्य पुरुष को अपना पूरा गठन करने में कई जीवन लग जाते हैं, और वही एक शरीर से दूसरे शरीर में जाया करता है और इसीलिये हमें अपने पूर्वजन्मों का भान नहीं होता : क्योंकि हमें अपने चैत्य का भान नहीं होता लेकिन कभी-कभी, ऐसे क्षण होते हैं जब चैत्य पुरुष किसी घटना में भाग लेता है; वह सचेतन हो जाता है, और उसकी स्मृति रह जाती हैं । कभी-कभी व्यक्ति को... व्यक्ति को आशिक स्मृति होती है, किसी घटना या परिमिति की स्मृति, या किसी विचार या किसी क्रिया की स्मृति, इस तरह : यह चैत्य के सचेतन होने के कारण होता हैं ।
देखो यह कैसे होता है, अब मैं सौ के पास पहुंच रही हूं, बस, अब पांच वर्ष की देरी हैं । वत्स, मैंने पांच वर्ष की अवस्था से सचेतन होने का प्रयास शुरू कर दिया था । यह तुम्हें यह बताने के लिये है... । और अभी मैं चलती चली जा रहीं हूं, और यह प्रयास मी जारी है । केवल... । निक्षय हीं, मैं अब एक ऐसे बिंदु पर अ गयी हूं जहां मै शरीर के कोषाणुओं के लिये काम कर रही हूं, लेकिन फिर भी, काम बहुत पहले शुरू हो गया था ।
यह तुम्हें हतोत्साह करने के लिये नहीं, बल्कि... तुम्हें यह बताने के लिये है कि यह काम बस, यूं ही नहीं हो जाता!
शरीर... शरीर एक ऐसी पदार्थ का बना हुआ है जो अभीतक बहुत भारी हैं, और ' अतिमन' के अभिव्यक्त होने के लिये स्वयं पदार्थ को बदलना होगा ।
तो, यह बात हैं ।
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