Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.
This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.
अनुशासन
नियंत्रण कक्षा का सर्वोत्तम या सबसे अधिक प्रभावशाली तत्त्व नहीं हैं । सच्ची शिक्षा को इन विकसनशील सत्ताओं में विद्यमान वस्तु को खोलना और व्यक्त करना चाहिये । जैसे फूल सूर्य के प्रकाश मे खिलते हैं ठीक वैसे हीं बच्चे आनंद मे खिलते हैं । स्पष्ट हैं कि आनंद का मतलब कमजोरी, अव्यवस्था और अस्तव्यस्तता नहीं है, -बल्कि एक प्रकाशमय और सौम्य भद्रता है जो अच्छे को प्रोत्साहित करती हैं और बुरे पर बहुत जोर नहीं देती । न्याय की अपेक्षा कृपा सत्य के ज्यादा नजदीक है ।
(१९६१)
माताजी जब कक्षा में कोई बच्चा अनुशासन के अनुसार चलने ले इकार करे तो क्या करना चाहिये? क्या उसे मनमानी करने दी जाये?
सामान्यतः, १२ वर्ष की उम्र के बाद सब बच्चों के लिये अनुशासन जरूरी होता हैं ।
कुछ अध्यापक मानते हैं कि आप अनुशासन क्वे विरूद्ध हैं ।
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उनके लिये अनुशासन एक मनमाना नियम है जिसे छोटे बच्चों पर लादा जाता है, वे अपने-आप उसके अनुसार नहीं चलते । मै इस प्रकार के अनुशासन के विरुद्ध हूं ।
तो अनुशासन ऐसा नियम पालन है जिसे बच्चा स्वयं अपने ऊपर लगाता है'' उसे इसकी आवश्यकता का मान कैसे कराया जाये? उसका अनुसरण करने मे सहायता कैसे की जाये?
उदाहरण सबसे अधिक प्रभावी प्रशिक्षक है। किसी बच्चे से ऐसे नियम-पालन के लिये कभी न कहो जिसका अनुसरण स्वयं तुम नहीं करते । स्थिर-शांत, समता, सुव्यवस्था, नियमितता, व्यर्थ के शब्दों का अभाव-ये ऐसी चीजें हैं जिनका अध्यापक को हमेशा अभ्यास करते रहना चाहिये, यदि वह चाहता है कि उसके विद्यार्थियों मे ये गुण पैदा हों ।
अध्यापक को हमेशा समय-पालन करना चाहिये । उसे हमेशा, ठीक वेशभूषा के साथ कक्षा शुरू होने से कुछ मिनट पहले, उस जाना चाहिये । और सबसे बढ़कर, उसे कभी झूठ न बोलना चाहिये ताकि उसके बिधार्थी झूठ न बोले; उसे कभी विद्यार्थियों पर गरम न होना चाहिये ताकि विद्यार्थी कभी क्रोध न करें; और यह कह सकने के लिये : ''उपद्रव का अंत प्रायः आंसुओं में होता हैं, '' उसे कभी उनमें सै किसी पर हाथ न उठाना चाहिये ।
ये बिलकुल प्रारंभिक और मौलिक बातें हैं जिनका अभ्यास बिना अपवाद के हर विद्यालय में होना चाहिये ।
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तुम बच्चों पर मनोवैज्ञानिक शासन तभी ला सकते हों जब तुम्हें स्वयं अपनी प्रकृति पर काबू हों ।
(१६-७-१९६३)
पहले, अच्छी तरह से जानो कि तुम्हें क्या पढ़ाना हैं । अपने बच्चों और उनकी विशेष आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझने की कोशिश करो ।
बहुत शांत रहो और बहुत धीरज रखो, कभी गुस्सा न करो; दूसरों का स्वामी बनने से पहले स्वयं अपने स्वामी बनो ।
(७-१२-१९६४)
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अगर तुम्हें दूसरों पर अधिकार का प्रयोग करना है तो पहले स्वयं अपने ऊपर अधिकार प्राप्त करो । अगर तुम बच्चों मे अनुशासन नहीं रख सकते तो मार-पीट न करो, चिल्लाओ मत, व्यग्र मत होओ-इसके लिये अनुमति नहीं दी जा सकतीं । अपर से स्थिरता और शांति को उतारों । उनके दबाव से चीजें सुधर जायेंगी !
माताजी छोटे बच्चों के लिये हमें क्या करना चाहिये?
ओह! छोटे बच्चे अद्भुत होते हैं! मैं बहुत-से छोटे बच्चों को देखती हू । लोगों को उन्हें मेरे पास लाने की आदत हो गयी है । उन बच्चों मे जो अभी दो वर्ष से मी कम के हैं उनमें अभी से जो चेतना होती है वह अद्भुत है । वे सचेतन होते हैं । उनके पास अपने-आपको अभिव्यक्त करने के लिये साधन नहीं होते, शब्द नहीं होते, परंतु वे बहुत सचेतन होते हैं । अतः बच्चे को डांटना, लगता है...!
उस दिन परसों, एक बच्चा मेरे पास लाया गया था और वह बुदबुदा रहा था । और निश्चय हीं उसकी मां... । तो मैंने उसे एक गुलाब दिया और कहा : देखो, यह तुम्हारे लिये है !'' निश्चय हीं वह शब्द तो नहीं समझा, पर उसने गुलाब को इधर-उधर घुमाया और शांत हों गया । छोटे बच्चे अद्भुत होते हैं । यह काफी है कि उनके चारों ओर चीजें रख दो और उन्है छोड़ दो । जबतक कि बहुत हीं जरूरी न हो बीच मे मत पढ़ो । और उन्हें छोड़ दौ । और उन्हें कभी मत डांटो ।
(३१-७-१९६७)
तुम एक अच्छे अध्यापक हो परंतु बच्चों के साथ तुम्हारा व्यवहार आपत्तिजनक है !
बच्चों को प्रेम और मृदुता के वातावरण मे शिक्षा देनी चाहिये ।
मार-पीट नहीं, कभी नहीं ।
डांट-डपट नहीं, कभी नहीं ।
हमेशा मृदु सहृदयता, और अध्यापक को उन गुणों का जीता-जागता उदाहरण होना चाहिये जिन्हें बच्चों को प्राप्त करना है ।
बच्चों को विद्यालय जाते हुए खुश होना चाहिये, सीखते हुए खुश होना चाहिये, और अध्यापक को उनका पहला मित्र होना चाहिये जो उनके आगे उन गुणों का उदाहरण रखता है जो उन्हें प्राप्त करने चाहिये ।
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और यह सब ऐकांतिक रूप सें अध्यापक पर निर्भर करता हैं । इस पर कि वह क्या करता है और कैसे व्यवहार करता है ।
बच्चे कक्षा में इतना अधिक बोलते हैं कि प्रायः उन्हें डांटना पड़ता है
बच्चों को कड़ाई से नहीं, आत्मसंयम से वश में किया जाता हे ।
मुझे तुम्हें यह बतला देना चाहिये कि अगर कोई अध्यापक मान चाहता हैं तो उसे माननीय होना चाहिये । केवल ' क्ष' हीं नहीं जिसने मुझे बतलाया हैं कि तुम आज्ञा पालन कराने के लिये पीटते हो इससे कम माननीय चीज और कोई नहीं हैं । पहले तुम्हें आत्मसंयम करना चाहिये और अपनी इच्छा लादने के लिये कभी पाशविक बल का प्रयोग नहीं करना चाहिये ।
मैंने हमेशा यहीं सोचा हैं कि विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता के लिये अध्यापक के चरित्र की कोई चीज जिम्मेदार होती ।
मैं आशा करता हू, कि आप कुछ निशित आदेश देखी जो ५ कक्षा मे व्यवस्था रखने मे सहायता दें !
सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं आत्मसंयम और कभी गुस्सा न करना । अगर तुम्हें अपने अपर संयम न हों तो तुम दूसरों को वश मे करने की आशा कैसे कर सकते हो, और फिर बच्चे, जो तुरंत पहचान लेते हैं कि तुम आपे से बाहर हों?
बालकों की कक्षाओं के अध्यापकों से
एक ऐसा नियम जिसका कठोरता से पालन होना चाहिये :
बच्चों को पीटना सख्ती से मना हैं- सब प्रकार की मार निषिद्ध हैं, हल्का या तथाकथित मैत्रीपूर्ण घूंसा भी । किसी बच्चे को इसलिये मारना क्योंकि वह आज्ञा- पालन नहीं करता या नहीं समझता या औरों को तंग करता है , आत्मसंयम के अभाव का सूचक हैं, और यह अध्यापक तथा विद्यार्थी, दोनों के लिये हानिकर हैं ।
जरूरत हो तो अनुशासन की कार्रवाई की जा सकती है पर पूरी तरह स्थिर शांति के साध, किसी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया के कारण नहीं ।
कक्षा मे शांति का वातावरण रखने के लिये क्या करना चाहिये ?
अपने-आप पूरी तरह शांत रहो ।
अपने साथ एक बड़ा-सा, लगभग एक मीटर लंबा गत्ता लाओं जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों मे लिखा हो :
''शान्त रहो''
(इससे बहुत वडे-बड़े अक्षरों मे सफेद जमीन पर काले अक्षर हों), जैसे हीं बच्चे बोलना शुरू करें, यह गत्ता उनके सामने कर दो ।
आशीर्वाद ।
किसी बच्चे से ऐसी कोई बात न कहो जिसे सचमुच जानने के लिये भुलाना पड़े । किसी बच्चे के आगे ऐसा कोई काम न करो जो उसे बड़ा होकर न करना चाहिये ।
यह कभी न भूलो कि छ: वर्ष सें कम का छोटा बच्चा जितना व्यक्त कर सकता हैं उससे बहुत अधिक जानता है ।
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