CWM (Hin) Set of 17 volumes
शिक्षा 401 pages 2000 Edition
Hindi Translation

ABOUT

Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.

शिक्षा

The Mother symbol
The Mother

This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.

Collected Works of The Mother (CWM) On Education Vol. 12 517 pages 2002 Edition
English Translation
 PDF     On Education
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The Mother

This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' शिक्षा 401 pages 2000 Edition
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भविष्य-दृष्टि

 

 भवितव्यता को पहले से जान लेना! कितनों ने इसके लिये प्रयास किया है, कितनी पद्धतियां बनी हैं, भविष्य-दर्शन की कितनी विधाएं रुचि गयी हैं, विकसित की गयी हैं और फिर झूठी पंडिताई और अंधविश्वास के आरोप के साथ नष्ट हों गयी हैं! पर भवितव्यता को पहले से जान लेना हमेशा इतना कठिन क्यों रहा है? जब कि यह साबित हो चुका है  कि प्रत्येक चीज अनिवार्य रूप सें पूर्व निर्दिष्ट है , तब क्या कारण है कि हम शिक्षित रूप से नियति को जानने मे सफल नहीं हो पाते?

 

  यहां भी समाधान योग मे ही मिलता है । यौगिक साधना के द्वारा हम केवल अपनी भवितव्यता को पहले से जान हीं नहीं सकते, बल्कि उसे बदल भी सकते हैं, प्रायः पूर्ण रूप से बदल सकते हैं । सबसे पहले, योग हमें यह सिखाता है कि हम एकमात्र सत्ता, एक सीधी-साद चीज नहीं हैं, जिसकी केवल एक हीं, सीधी-सदी और युक्त्तिसंगत भवितव्यता हो सकतीं हैं । हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि अधिकतर मनुष्यों की भवितव्यता जटिल, बहुविध होती है । उसमें इतनी जटिलता होती है जो कभी-कभी असंगत अंड बंड अवस्था तक पहुंच जाती है । क्या यह जटिलता ही वह चीज नहीं है जो अप्रत्याशित और अनिर्दिष्ट की छाप देकर कहती हैं कि उसके बारे मे पहले से कुछ नहीं जाना जा सकता?

 

  इस समस्या को हल करने के लिये हमें पहले यह जानना होगा कि सभी सजीव प्राणी, विशेषकर मनुष्य, कई सत्ताओं की समष्टि से बना है जो एक साथ दलबद्ध होती हैं, एक-दूसरी मे प्रवेश करती हैं, कभी-कभी अपने-आपको संगठित करती और एक- दूसरे को पूर्ण बनाती हैं और फिर अन्य समयों मे, एक-दूसरे का विरोध और खंडन करती हैं । इन सत्ताओं या सत्ता की अवस्थाओं मे सें प्रत्येक का अपना एक निजी लोक है और वह स्वयं अपने अंदर अपनी भवितव्यता को, अपनी नियति को वहन करती है । और इन सभी नियतियो का योगफल-जो कभी-कभी बड़ा ही बेढब होता है-वह चीज हैं जो व्यक्ति की भवितव्यता का निर्माण करता ३1 परंतु इन सभी सत्ताओं का संगठन और पारस्परिक संबंध व्यक्तिगत साधना और संकल्प-शक्ति के द्वारा बदला जा सकता है और नियति की विभिन्न धारणाएं अलग-अलग ढंग से, चेतना की एकाग्रता के अनुसार एक-दूसरे पर कार्य करती हैं और इसलिये उनका सम्मिश्रण हमेशा बदलता रहता है, इसलिये उसके विषय मे भविष्यवाणी करना संभव नहीं होता ।

 

  उदाहरणार्थ, किसी प्राणी की भौतिक या स्थूल भवितव्यता उसके पिता और माता के पूर्वजों से, उन बाह्य स्थूल अवस्थाओं, परिस्थितियों से आती है जिनमें वह जन्मा होता है; अतएव हम पहले च ही जान सकते हैं कि उसके भौतिक जीवन की क्या- क्या विशेष घटनाएं होगी, उसका स्वास्थ्य कैसा और शरीर की उम्र लगभग कितनी होगी । परंतु फिर आती है मैदान मे उसकी प्राणमय सत्ता की रचना (कामना-वासना,

 


आवेग-उत्तेजना आदि के साथ-ही-साथ संचालन-शक्ति और सक्रिय संकल्प की सत्ता) जो अपने साथ अपनी निजी भवितव्यता भी ले आती है । यह भवितव्यता भौतिक भवितव्यता पर अपना प्रभाव डालती है और उसे पूर्ण रूप से बदल सकतीं हैं, यहांतक कि बहुत बार उसे अधिक बुरी अवस्था मे पहुंचा देती हैं । उदाहरण के लिये मान लें कि एक आदमी बढ़ी अच्छी भौतिक स्थिति के साथ पैदा हुआ है और उसे बहुत स्वस्थ जीवन बिताना चाहिये । अब यदि उसका प्राण-पुरुष उसे सब प्रकार की ज्यादतियों, बुरी आदतों, यहांतक कि पापकर्मों की ओर धकेल दे तो वह इस तरह अपनी अच्छी भवितव्यता को अंशत: नष्ट कर सकता है और स्वास्थ्य और बल- सामर्थ्य के सामंजस्य को खो सकता है जिसे उसने इस हानिकारक हस्तक्षेप के न होने पर अवश्य प्राप्त किया होता । यह केवल एक उदाहरण है । परंतु समस्या इससे बहुत अधिक जटिल है, क्योंकि भौतिक और प्राणिक भवितव्यता के साथ फिर आ जुटती हैं मानसिक भवितव्यता, आतरात्मिक भवितव्यता और कितनी ही अन्य-अन्य भवितव्यताएं ।

 

  वास्तव मे, कोई जीवन मनुष्य- श्रेणी मे जितना ही ऊंचा खड़ा होता है उसकी सत्ता उतनी हीं अधिक जटिल होती है, उतनी ही अधिक विविध होती है उसकी भवितव्यता । और इसलिये उसके भाग्य को पहले से जानना उतना हा अधिक कठिन होता है । पर, जो हो, यह सब केवल ऊपर से देखने मे हीं ऐसा हैं । जब सत्ता की इन विभिन्न स्थितियों का और उनसे संबंधित आंतर जागतों का ज्ञान प्राप्त होता है तब साथ-ही- साथ, उस ज्ञान के फलस्वरूप, इन विभिन्न भवितव्यताओं को, उनके पारस्परिक सम्मिश्रण को और उनके सम्मिलित या सर्वप्रधान कार्य को पहचानने की क्षमता भी आ जाती है । भवितव्यता की उच्चतर धारणाएं स्पष्ट ही विश्व के केंद्रीय सत्य के बहुत समीप होती हैं, उससे मिलती-जुलती होती हैं और अगर उन्हें हस्तक्षेप करने दिया जाये, तो उनका कार्य निक्षय हीं लाभदायी होता है । इस तरह जीवन-यापन करने की कला-सर्वोत्तम विधि-यह होगी कि हम अपने को हमेशा अपनी उच्चतम चेतना के अंदर बनाये रखें और इस तरह अपने जीवन और कार्य मे अपनी उच्चतम भवितव्यता को ही अन्य भवितव्यता के अपर प्राधान्य स्थापित करने दें । इस तरह हम कह सकते हैं, और इसमें फल होने का कोई डर नहीं, कि हमेशा अपनी चेतना के शिखर पर रहो और तब तुम्हारे लिये वही होगा जो अच्छे-से-अच्छा होगा । परंतु यह एक ऐसी चरम अवस्था है जिसे प्राप्त करना आसान नहीं हैं । परंतु, फिर भी, जबतक यह आदर्श अवस्था न उपलब्ध हो, तबतक प्रत्येक व्यक्ति कम-से-कम इतना तो कर ही सकता हैं कि जब कोई खतरा या संगीन अवस्था सामने आये ता वह अभीप्सा, प्रार्थना तथा भागवत इच्छा के प्रति विश्वासपूर्ण आत्म-दान के दुरा अपनी उच्चतम भवितव्यता का आवाहन करे । ऐसा करने पर, व्यक्ति का आवाहन जितना सच्चा होता है  उसी अनुपात में यह उच्चतर भवितव्यता व्यक्ति की सामान्य भवितव्यता में

 

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अनुकूल हस्तक्षेप करती है , और घटना-चक्रों को, जहांतक उसका अपना व्यक्तिगत संबंध हो, एकदम परिवर्तित कर देती है । इसी तरह की घटनाएं हमारी बाह्य चेतना को चमत्कार, दिव्य हस्तक्षेप प्रतीत होती हैं ।

 

('बुलेटिन', फरवरी १९५०)

 

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