CWM (Hin) Set of 17 volumes
शिक्षा 401 pages 2000 Edition
Hindi Translation

ABOUT

Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.

शिक्षा

The Mother symbol
The Mother

This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.

Collected Works of The Mother (CWM) On Education Vol. 12 517 pages 2002 Edition
English Translation
 PDF     On Education
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The Mother

This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' शिक्षा 401 pages 2000 Edition
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छोटे-बढ़े विधार्थियों से

 

   धरती के इतिहास मे कुछ ऐसे संक्रांति काल आते हैं जब हज़ारों वर्षों से चली आयी चीजों को अपना स्थान ऐसी चीजों को देना पड़ता है जो अभिव्यक्त होने को हैं । ऐसे काल मे विश्व चेतना विशेष रूप से केंद्रित होती है, या यूं कहा जा सकता है, उसके प्रयास में तीव्रता आती है जो, जिस प्रकार की प्रगति करनी है, जिस प्रकार का रूपांतर सिद्ध करना है उसके अनुसार भिन्न-भिन्न होती है । हम विश्व इतिहास के ठीक ऐसे हीं मोड पर है । जैसे प्रकृति धरती पर पहले हीं एक मानसिक सत्ता को बना चुकी है, वैसे हीं अब इस मन में अतिमानसिक चेतना और व्यक्तिन्व लाने के लिये एकाग्र क्रिया हों रहीं है ।

 

  कुछ सत्ताएं, मैं यूं कह सकती हूं, देवताओं के रहस्य सें परिचित हैं । उन्हें घरती के जीवन की इस घड़ी के महत्त्व के बारे मे बतलाया गया है और उन्होंने जैसे हो सके वैसे अपनी भूमिका निभाने के लिये धरती पर जन्म लिया हैं । एक महान् ज्योतिर्मय चेतना पृथ्वी के अपर उठ रही है और उसने वातावरण में एक भंवर-सा पैदा कर दिया है । जो लोग खुले हैं उन सबको इस भंवर से एक लहर प्राप्त होती है , इस ज्योति से एक किरण मिलती है और हर एक अपनी क्षमता के अनुसार उसे रूप देने की कोशिश में है ।

 

  यहां हमें यह अनुपम सौभाग्य प्राप्त है कि हम विकिरणशील ज्योति के ठीक बीच में, रूपांतर की शक्ति के स्रोत में हैं ।

 

  श्रीअरविन्द ने मानव शरीर में अतिमानसिक चेतना को उतारा, उन्होंने हमें केवल पथ का स्वरूप हीं नहीं दिखाया, लक्ष्य तक पहुंचने के लिये उसके अनुसरण का तरीका हीं नहीं दिखाया, बल्कि अपनी निजी उपलब्धि के द्वारा हमारे आगे उदाहरण भी रखा है । हम कह सकते हैं कि उन्होंने यह प्रमाण दिया है कि यह किया जा सकता है और अब उसे करने का समय है ।

 

  अतः, हम यहां पर उसी को दोहराने के लिये नहीं हैं जिसे और लोग कर चुके हैं । हम यहां एक नयी चेतना और नये जीवन की अभिव्यक्ति के लिये अपने-आपको तैयार करने के लिये हैं । इसीलिये में तुमसे, विद्यार्थियों से, बात कर रही हू, अर्थात् उन सबसे जो सीखना चाहते हैं, अधिकाधिक सीखना चाहते हैं और ज्यादा अच्छा सीखना चाहते हैं, ताकि एक दिन तुम नयी शक्ति के प्रति खुल सको और उसकी भौतिक स्तर पर अभिव्यक्ति को संभव बना सको । क्योंकि यही हमारा कार्यक्रम है, तुम्हें यह न भूलना चाहिये । अगर तुम इसका सच्चा कारण जानना चाहो कि तुम यहां क्यों हो तो तुम्हें याद रखना चाहिये कि हमारा लक्ष्य है संसार मे भागवत संकल्प को अभिव्यक्त करनेवाला, जहांतक हो सके, अधिक-से-अधिक पूर्ण यंत्र बनना । और, अगर यंत्र को पूर्ण बनना हैं तो तुम्हें उसे साधना होगा, शिक्षण और

 


प्रशिक्षण देना होगा । तुम उसे बंजर जमीन या अनगढ़ पत्थर की तरह नहीं छोड़ सकते । हीरा कलापूर्ण ढंग से तराशे जाने पर हीं अपना पूरा सौंदर्य दिखाता हैं । तुम्हारे बारे में भी यहीं बात हैं । जब तुम यह चाहते हों कि तुम्हारी भौतिक सत्ता अतिमानसिक चेतना को अभिव्यक्त करनेवाला पूर्ण यंत्र बने तो तुम्हें उसे साधना होगा, आकार देना होगा, शुद्ध करना होगा और उसमें जो कमी हो उसे पूरा करना होगा और जो कुछ उसमें पहले से हीं  है से पूर्ण बनाना होगा । इसीलिये तुम कक्षा में आते हो, मेरे बच्चे, चाहे तुम बड़े हो या छोटे, क्योंकि व्यक्ति हर अवस्था में सीख सकता है- और इसलिये तुम्हें कक्षा मे जाना होता है ।

 

  कभी-कभी जब तुम कुछ अनमने-से हो तो तुम कहते हो : ''यह कक्षा कितनी उबाऊ होगी!'' हां, हो सकता है कि कक्षा एक ऐसा अध्यापक लेता है जो तुम्हारा मनोरंजन करना नहीं जानता । वह एक अच्छा अध्यापक हो सकता है, फिर मी तुम्हारा मनोरंजन नहीं कर सकता, क्योंकि यह हमेशा आसान नहीं होता । ऐसे दिन होते हैं जब आदमी को मनोरंजन करने की इच्छा नहीं होती । तुम्हारे लिये और उसके लिये समान रूप से ऐसे दिन होते हैं जब तुम विद्यालय में रहने की जगह कहीं और रहना ज्यादा पसंद करोगे, फिर मी तुम कक्षा में जाते हो, तुम जाते हो क्योंकि जाना चाहिये, क्योंकि अगर तुम अपनी सब सनको के अनुसार चलने लोग तो कभी अपने अपर अधिकार न पा सकोगे; तुम्हारी सनकें हीं तुम्हें अपने वश में रखेगी । इसलिये तुम कक्षा में जाते हो । परंतु यह सोचते हुए न जाओ : '' ओह, कक्षा कितनी अरुचिकर और उबाऊ होगी, '' उसकी जगह यूं कहो : ''जीवन मे एक क्षण भी ऐसा नहीं होता, एक परिस्थिति भी ऐसी नहीं होती जो प्रगति का अवसर न हो । तो आज मै कौन-सी प्रगति करनेवाला हूं ? आज मैं जिस कक्षा में जा रहा हूं, वहां जो विषय पढ़ाया जायेगा उसमें मुझे रस नहीं है । लेकिन शायद मेरे अंदर हीं कुछ कमी है; शायद, मेरे मस्तिष्क के किसी कोने में, कुछ कोषाणुओं में विकार है । इसीलिये मुझे इस विषय में रस नहीं आता । अगर बात ऐसी है तो मैं कोशिश करुंगा, अच्छी तरह सुनूंगा, एकाग्र रहूंगा, और सबसे बढ़कर, अपने दिमाग से इस छिछोरपन को निकाल बाहर करुंगा । यह ऊपरी हलकापन हीं इस बात के लिये जिम्मेदार है कि जब कोई बात मेरी पकड़ मे नहीं आती तो मैं ऊब उठता हू । मैं इसलिये अब उठता हूं क्योंकि मैं समझने का कोई प्रयास नहीं करता, मेरे अंदर प्रगति के लिये संकल्प नहीं हे । '' जब तुम प्रगति नहीं करते तब सर्पा को तो ऊब आती है, चाहे वह जवान हो या छाछ, क्योंकि हम यहां धरती पर प्रगति करने के लिये हैं । अगर जीवन प्रगति न करता तो वह कितना थकानेवाला हो जाता! जीवन एकरस है, बहुधा सुखकर नहीं होता, वह सुंदर होने से बहुत दूर है । लेकिन अगर हम उसे प्रगति का क्षेत्र मान लें तो हर चीज बदल जाती हैं, हर चीज रुचिकर बन जाते है और ऊब के लिये कोई जगह हा नहीं रहती । काली बार जब तुम्हें अपना अध्यापक थकानेवाला लगे तो कुछ न करने में

 

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अपना समय बरबाद करने की जगह, यह समझने की कोशिश करो कि वह ऐसा क्यों है । अगर तुम्हारे अंदर अवलोकन की क्षमता है और अगर तुम समझने के लिये प्रयास करो तो तुम शीघ्र देखोगे कि कैसा चमत्कार हो गया, अब तुम्हें अब नहीं आ रहीं ।

 

   यह इलाज प्रायः सभी अवस्थाओं में अच्छा होता है । कभी-कभी किन्हीं विशेष प्रकार की परिस्थितियों में तुम्हें हर चीज उदास, थकानेवाले और मूर्खता-भरी लगती है । इसका अर्थ है कि स्वयं तुम भी वैसे ही थकानेवाले और नीरस हो जैसी तुम्हारे परिस्थितियां, यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण वे कि तुम प्रगतिशील अवस्था मे नहीं हो । तुम्हारे ऊपर से अब और खिन्नता की एक लहर दौड़ गयी है । और इससे बढ़कर जीवन के उद्देश्य का विरोधी और नहीं है । ऐसे समय तुम प्रयास करके अपने-आपसे पूछ सकते हो : ''यह खिन्नता इस बात का प्रमाण है कि मुझे कुछ सीखना हैं, अपने अंदर कोई प्रगति करनी है, किसी तमस् को जीतना है, किसी दुर्बलता पर विजय पानी है । खिन्नता या अब चेतना का चपटा हो जाना है; अगर तुम अपने अंदर ही उपचार ढूंढ तो उसे तुरत गायब होते देखोगे । अधिक लोग ऊब की अवस्था मे अपनी चेतना मे एक कदम अपर उठने का प्रयास करने की जगह एक कदम नीचे आ जाते हैं । बल्कि जिस स्तर पर थे उससे भी नीचे उतर जाते हैं और अधिक-से-अधिक मूर्खता-भरी चीजें करते हैं । वे अपना मन बहलाने की आशा से एकदम भद्दी चीजें करते हैं । इसी तरह लोग पीना शुरू करते हैं, अपना स्वास्थ्य खराब कर लेते हैं और अपने मस्तिष्क को मृतप्राय बना देते हैं । अगर वह गिरने की जगह ऊपर उठे होते तो इस अवसर का लाभ उठाकर प्रगति कर लेते ।

 

  वास्तव में, यह बात उन सब परिस्थितियों मे समान रूप से सच्ची है जब जीवन तुम्हें कोई करारी चोट पहुंचता है , जिस चोट को मनुष्य ''महाविपत्ति '' कहता है । वह सबसे पहली चीज जो करना चाहते हैं वह है भुला देना, मानों वैसे ही वह बहुत जल्दी नहीं क्या जाते! और भूलने के लिये वह सब तरह की चीजें करते हैं । जब चीज बहुत कष्टदायक डोर उठे तो उन्त्रें मनबहलाव की तलाश होती हैं, जिसे वह 'मनबहलाव' कहते हैं, यानी मूर्खता-भरी चीजें करते हैं और अपनी चेतना को अपर उठाने की जगह, और भी नीचे घसीटते हैं । अगर तुम्हें बहुत कष्टप्रद अनुभव हो रहा हो वों कभी अपने-आपको सुन्न करने की, स्व जाने की, निकेतन में उतने को कोशिश न करो, बल्कि आगे बढ़े, अपने दुःख के हृदय मे पैठो । तुम वहां उस ज्योति, सत्य, शक्ति और आनंद को पाओगे जिन्हें पीड़ा छिपाती हैं । लेकिन उसके लिये तुम्है दृढ़ होना चाहिये और नीचे फिसलने से इनकार करना चाहिये ।

 

  इस तरह तुम्हारे जीवन की सभी छोटी-बड़ी घटनाएं प्रगति का अवसर बन सकतीं हैं । अगर तुम उनसे लाभ उठाना जानी तो ब्योरे की नगण्य चीजें भी अंतरप्रकाश की ओर ले जा सकती हैं । जब कभी तुम किसी ऐसे चीज में लगे हो जो तुम्हारे पूरे-पूरे ध्यान की मांग नहीं करती तो अपनी अवलोकन-शक्ति को विकसित करने का लाभ


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उठाओ । तुम देखोगे कि तुम मजेदार खोजें कर पाओगे । मै क्या कह रहीं हूं यह समझाने के लिये मै तुम्हें दो उदाहरण दूंगी । जीवन की दो छोटी-छोटी घटनाएं हैं जो अपने-आपमें कुछ भी नहीं हैं, पर फिर भी गहरी और स्थायी छाप छोड़ जाती हैं।

 

  पहला उदाहरण है पैरिस की एक घटना का । तुम्हें इस महानगरी मे टहलना है । सब जगह शोर है, दीखने में सब कुछ अस्त-व्यस्त है , एक चूककरनेवाला। हलचल है । अचानक तुम एक स्त्री को देखते हो जो तुम्हारे आगे-आगे चल रहीं है; वह अन्य अधिकतर औरतों जैसी हीं है, उसके वेश मै ऐसी कोई चीज नहीं जो ध्यान खींच, लेकिन उसकी चाल अद्भुत हैं, लचीली, तालबद्ध सुरुचिपूर्ण और समस्वर । तुम्हारा ध्यान खिंचता हैं और तुम उसकी प्रशंसा करते हो । फिर, इतने लालित्य के साथ चलता हुआ यह शरीर प्राचीन यूनान के वैभवों की और उसकी संस्कृति द्वारा समस्त संसार' को दिये गये सुन्दरता के अनुपम पाठ की याद दिलाता है, और यह क्षण तुम्हारे लिये अविस्मरणीय हो उठता हैं- और यह सब एक ऐसी स्त्री के कारण जो चलना जानती थी!

 

  दूसरा उदाहरण संसार के दूसरे छोर, जापान से है । तुम अभी इस देश में, जो इतना अधिक सुंदर है, काफी समय रहने के लिये आये-हीं-आये हो । तुम्हें लगता हैं कि तुम यहां की भाषा का थोड़ा-बहुत परिचय न कर लो तो काम चलाना कठिन होगा । तुम जापानी भाषा सीखना शुरू करते हो और लोगों को बोलते हुए सुनने का कोई अवसर नहीं छोड़ते ताकि तुम उससे परिचित हो जाओ । उसी समय तुम दाम में, जिसमें तुम आकर बैठे हो, अपनी मां के साथ एक चार-पांच वर्ष के बच्चे को देखते हो । बच्चा शुद्ध स्पष्ट लहजे में बोलना शुरू करता है  । तुम सुनते हो और तुम्हें यह अनोखा अनुभव होता है कि जिन बातों को तुम्हें बड़े प्रयास के साथ सीखना पड़ता है  उन्हें वह बालक सहज रूप सें जानता है , और जहांतक जापानी भाषा का संबंध है , अपनी छोटी अवस्था के बावजूद वह तुम्हारा अध्यापक हो सकता है ।

 

  इस तरह जीवन जस्यपूर्ण बन जाता है और हर पग तुम्हें नया पाठ देता है । इस दिष्टि से देखा जाये तो जीवन सचमुच ज़ीने योग्य है ।

 

('बुलेटिन', नवम्बर १९५३)

 

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