Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.
This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.
प्रतियोगिताओं के लिये संदेश
ऐथलेटिक्स प्रतियोगिता १९५९
भौतिक आंखें जिन दृश्यों को देख सकतीं हैं उनके पीछे एक बहुत अधिक ठोस और स्थायी वास्तविकता हैं । इस वास्तविकता में मैं आज तुम्हारे साथ हूं और सारे ऐथलेटिक्स काल में रहूंगा । बल, शक्ति, ज्योति और चेतना निरंतर तुम्हारे साथ रहेगी, ताकि हर एक को, उसकी ग्रहणशक्ति के अनुसार, उसके प्रयास में सफलता मिले और सभी सच्चे प्रयास को मिले. प्रगति का शीर्ष-मुकुट ।
(१९ -७ -१९५९)
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जिम्नास्टिक्स प्रतियोगिता १९५९
मैंने ऐथलेटिक्स की ऋतु के आरंभ में जो कहा था वह जिम्नास्टिक्स प्रतियोगिताओं के लिये भी ठीक हैं; मैं सारे समय तुम्हारे साथ रहूंगी, तुम्हारे प्रयास में सहायता करूंगी और तुम्हारे प्रदर्शन का आनंद लुंगी ।
मेरे आशीर्वाद सहित ।
(९६-१०-१९५९)
ऐथलेटिक्स प्रतियोगिता १९६०
सभी मेरी शक्ति, मेरी सहायता और मेरे आशीर्वाद के साथ, आनंद और विश्वास के साथ, अपना अच्छे-से-अच्छा करें ।
(२१-८-१९६०)
ऐथलेटिक्स प्रतियोगिता ११६२
पहला होने की महत्त्वाकांक्षा के स्थान पर यथासंभव अच्छे-से-अच्छा करने का संकल्प करो ।
सफलता की कामना के स्थान पर प्रगति के लिये उत्कंठा रखी ।
ख्याति के लिये उत्सुकता के स्थान पर पूर्णता के लिये अभीप्सा करो ।
शारीरिक शिक्षण उच्चतर ओर अधिक अच्छे जीवन के लिये आवश्यक सभी चीजें- चेतना और संयम, अनुशासन और प्रभुत्व, आदि, लाने के लिये हैं ।
ये सब बातें मन में रखो, सचाई के साध अभ्यास करो ओर तुम अच्छे ऐथलीट बन जाओगे; सच्चे मनुष्य होने के रास्ते पर यह पहला कदम है ।
आशीर्वाद ।
(१५ -७-१९६२)
ऐथलेटिक्स प्रतियोगिता १२६३
उन सबसे जो अपने शरीर को 'दिव्य जीवन' के लिये उपयुक्त बनाना चाहते हैं, मैं कहती हू, ऐथलेटिक्स प्रतियोगिता के इस अच्छे अवसर को न खोआ और यह कभी न मूलों कि हम जो कुछ करें उसमें पूर्णता के लिये अभीप्सा करते रहें । क्योंकि पूर्णता की यह चाह ही, सभी कठिनाइयों के बावजूद हमें 'लक्ष्य' तक ले जायेगी ।
(२१ -८ -१९६३)
ऐथलेटिक्स प्रतियोगिता १९६४
हम एक नयी दुनिया की नींव रखने के लिये यहां हैं ।
ऐथलेटिक्स में सफल होने के लिये जो गुण और कौशल चाहिये, है सब ठीक वही हैं जो नयी शक्ति को ग्रहण करने और अभिव्यक्त करने के लिये भौतिक मनुष्य मे होने चाहिये।
मैं आशा करती हूं कि तुम इस ज्ञान और इस भावना के साथ इस ऐथलेटिक्स प्रतियोगिता में उतरंग और उसे सफलता से पूरा करोगे ।
मेरे आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं ।
(२४-८-१९६४)
२५०
जिम्नास्टिक्स प्रतियोगिता १९६४
१८ अक्तूबर एक अच्छा दिन हैं ।
जिम्नास्टिक्स एक अच्छी कला हैं ।
और तुम एक अच्छे जिमास्ट होगे ।
(१८-१०-१९६४)
२५१
प्रतियोगिताएं ९९६६
तुम्हें यह याद दिलाना ज्यादा अच्छा रहेगा कि हम यहां एक विशेष काम के लिये हैं, एक- ऐसे काम के लिये जो और कहीं नहीं किया जाता ।
हम परम चेतना, वैश्व चेतना के संपर्क मे आना चाहते हैं, हम उसे अपने अंदर उतार लाना और अभिव्यक्त करना चाहते हैं । लेकिन उसके लिये हमारी नींव बहुत ठोस होनी चाहिये; हमारी नींव है हमारी भौतिक सत्ता, हमारा शरीर । इसलिये हमें एक ऐसा शरीर बनाना चाहिये जो ठोस, स्वस्थ, सहनशील, कुशल, फुरतीला और मजबूत, हर चीज के लिये तैयार हो । शरीर को तैयार करने के लिये शारीरिक व्यायाम से अच्छा और कोई तरीका नहीं हैं : खेलकूद, ऐथलेटिक्स, जिम्नास्टिक्स तथा अन्य क्रीड़ा शरीर को विकसित करने और मजबूत बनाने के लिये सबसे अच्छे उपाय हैं । इसलिये मै तुम्हें आज से शुरू होनेवाली प्रतियोगिताओं मे पूरे दिल से, पूरी ऊर्जा और पूरे संकल्प के साथ भाग लेने का निमंत्रण देती हूं ।
(१ -४ -१९६६)
प्रतियोगिताएं १९६७
शारीरिक प्रशिक्षण और खेलकूद के अवसर पर :
मुझे फिर से एक बार कहना चाहिये कि आध्यात्मिक जीवन का अर्थ 'भौतिक द्रव्य' का तिरस्कार नहीं, उसे दिव्य बनाना है । हम शरीर को त्यागना नहीं, उसका रूपांतर करना चाहते हैं । इसके लिये शारीरिक प्रशिक्षण सबसे अधिक सीधा प्रभाव करनेवाले साधनों में से एक हैं ।
इसलिये मैं आज से शुरू होनेवाले कार्यक्रम में उत्साह और अनुशासन के साथ भाग लेने के लिये निमंत्रण देती हूं- अनुशासन, इसलिये क्योंकि वह सुव्यवस्था की पहली अनिवार्य शर्त है; उत्साह, इसलिये क्योंकि वह सफलता की आवश्यक शर्त है ।
(१-४ -६९६७)
२५२
प्रतियोगिताएं १९६८
शक्ति पाने के लिये पहली शर्त हैं आज्ञाकारिता ।
शक्ति अभिव्यक्त करने से पहले शरीर को आज्ञा मानना सीखना चाहिये; और शारीरिक प्रशिक्षण शरीर के लिये सबसे बढ़िया अनुशासन है ।
अतः शारीरिक प्रशिक्षण के लिये उत्सुक और सच्चे होओ और तुम शक्तिशाली शरीर पा लोग ।
(१ -४ -१९६८)
प्रतियोगिताएं १९६९
इस वर्ष के आरंभ सें एक नयी चेतना, नयी सृष्टि, अतिमानव की तैयारी करने के लिये धरती पर काम में लगीं हैं । इस सृष्टि के संभव होने के लिये मानव शरीर को बनानेवाले पदार्थ मे एक बहुत बहा परिवर्तन जरूरी है, उसे चेतना के प्रति अधिक ग्रहणशील और उसकी क्रिया के आगे अधिक लचीला होना चाहिये ।
यहीं वे गुण हैं जिन्हें तुम शारीरिक शिक्षण के द्वारा पा सकते हो ।
तो, अगर हम इस तरह के परिणाम को नजर मे रखते हुए ऐसे अनुशासन का पालन करें तो शिक्षित हीं बहुत अधिक मजेदार परिणाम आयेंगे ।
सबको प्रगति और उपलब्धि के लिये मेरे आशीर्वाद ।
(१ -४ -१९६९)
प्रतियोगिताएं १९७०
हम भगवान् को अपने विकसित होते हुए शरीर के कौशल की भेंट से बढ़कर और कौन-सी भेंट दे सकते हैं?
आओ, पूर्णता के लिये किये गये प्रयासों को निवेदित कर दें, इससे शारीरिक शिक्षण हमारे लिये एक नया अर्थ और बहुत अधिक मूल्य पा लेगा ।
संसार एक नयी सृष्टि के लिये तैयारी कर रहा है, आओ, हम भौतिक रूपांतर के मार्ग पर अपने शरीर को अधिक बलवान अधिक ग्रहणशील और अधिक लचीला बनाकर शारीरिक प्रशिक्षण के द्वारा सहायता करें ।
(१ -४ -१९७०)
२५४
प्रतियोगिताएं ११७१
हम उन ''दिव्य मुहूर्तों' ' में से एक में हैं जब पुरानी नींवें हिल जाती हैं और बड़ी अस्त-व्यस्तता होती हैं; लेकिन जो आगे छलांग लगाना चाहते हैं उनके लिये यह एक अद्भुत अवसर हैं, प्रगति की संभावना अपवादित रूप से बहुत अधिक है ।
क्या तुम उनमें से न होंगे जो इसका लाभ उठायेंगे?
तुम्हारे शरीर इस महान परिवर्तन के लिये शारीरिक प्रशिक्षण द्वारा तैयार हों! सबको मेरे आशीर्वाद ।
(१ -४ -१९७१)
प्रतियोगिताएं ११७२
आओ, इस वर्ष हम अपने शरीर के सभी क्रिया-कलाप को श्रीअरविन्द के प्रति अर्पित कर ढे ।
(१-४-१९७२)
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