Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.
This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.
भाग २
संदेश, पत्र, बातचीत
१
श्रीअरविन्द अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा-केंद्र
प्रस्तावना
१९२० और १९३० के दशकों मे माताजी कुछ लोगों को फ्रेंच सीखने के बारे मे कुछ निर्देश दिया करती थीं या अन्य विषयों के अध्ययन के बारे मे सामान्य परामर्श देती थीं । उन दिनों, आश्रम मे बच्चे नहीं लिये जाते थे । १९४० के बाद कुछ परिवारों को स्वीकृति मिली और उनके बच्चों के लिये शिक्षा की व्यवस्था की गयी । २ दिसम्बर, १९४३ को माताजी ने लगभग बीस बच्चों को लेकर बाकायदा विद्यालय का आरंभ किया । वे स्वयं भी पढ़ाती थीं । अगले सात वर्षों मे धीरे-धीरे विद्यार्थियों की संख्या बढ्ती गयी ।
२४ अप्रैल, १९५१ को माताजी की अध्यक्षता में एक सम्मेलन हुआ जिसमें एक अंतर्राष्ट्रीय विश्व-विद्यालय केंद्र स्थापित करने का निक्षय किया गया । ६ जनवरी, १९५२ को उन्होंने ' श्रीअरविन्द अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय केंद्र ' का उद्घाटन किया । कुछ वर्षों बाद इसका नाम बदलकर अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा-केंद्र कर दिया गया ।
आजकल इस शिक्षा-केंद्र में पूरा या आशिक समय देनेवाले लगभग १९५० अध्यापक और पांच सौ विद्यार्थी हैं जिनमें बालकक्ष से लेकर उच्चतर शिक्षातक कई छात्र हैं । पाठचक्रम में मानविकी, भाषाएं, ललित कलाएं, विज्ञान, इंजीनियरिग, उद्योग और व्यावसायिक शिक्षा आदि सम्मिलित हैं । पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कारखाने, रंगमंच, नाटक, संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि के अपने-अपने कक्ष भी हैं ।
शिक्षा-केंद्र केवल मानसिक शिक्षा पर केंद्रित न रहकर व्यक्ति के हर पहलू को विकसित करने का प्रयास करता हैं । उसमें 'फ्री प्रोग्रेस सिस्टम ' (मुक्त प्रगति-पद्धति) का प्रयोग होता है । माताजी के शब्दों मे : ''यह ऐसी प्रगति हैं जिसका निर्देशन अंतरात्मा करती हैं , जो अभ्यास, परिपाटी और पूर्वकल्पित विचारों पर आधारित नहीं हैं । '' विधाथीं को अपने-आप सीखने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है । वह विषयों का चुनाव अपने-.आप करता है और अपनी हीं गति से आगे बढ़ता है, और फिर, अपने विकास का दायित्व अपने अपर ले लेता है । अध्यापक इतना प्रशिक्षक नहीं होता जितना सलाहकार या सूचनाएं देनेवाला । कार्यक्षेत्र में अध्यापकों और विद्यार्थियों के स्वभाव के अनुसार इस पद्धति मै हैं -फेर भी कर लिये जाते हैं । कुछ हैं जो अब भी परंपरागत शिक्षा-पद्धति को ज्यादा पसंद करते हैं और निशित कार्यक्रम के अनुसार अध्यापक से पढ़ते हैं ।
गणित और विज्ञान की पढ़ाई फ्रेंच मे होती है और बाकी विषय अंग्रेजी मे पढाये
जाते हैं । हर विद्यार्थी से आशा की जाती है कि वह अपनी मातृभाषा पड़ेगा । उनमें से कुछ भारतीय यूरोपीय अन्य भाषाएं भी पढ़ते हैं ।
शिक्षा-केंद्र उपाध्याय नहीं दिया करता । वह बिधार्थी में सीखने का आनंद और प्रगति- के लिये अभीप्सा जगाने की कोशिश करता हैं जो इतर प्रयोजनों से मुक्त होती हैं !
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