Compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education and 3 dramas in French: 'Towards the Future', 'The Great Secret' and 'The Ascent to Truth'.
This volume is a compilation of The Mother’s articles, messages, letters and conversations on education. Three dramas, written for the annual dramatic performance of the Sri Aurobindo International Centre of Education, are also included. The Mother wrote three dramas in French: 'Towards the Future' produced in 1949, 'The Great Secret' in 1954 and 'The Ascent to Truth' in 1957.
२
श्रीअरविन्दाश्रम का शारीरिक शिक्षण विभाग
इस विभाग की स्थापना मई १९४2 मे थी यह 'श्रीअरविन्द ' शिला- केंद्र' कै विद्यार्थियों अध्यापकों तथा अन्य आश्रम-वासियों क्वे लिये शारीरिक शिक्षण की व्यवस्था करता है हसके कार्य क्वे लिये प्रशिक्षकों का दल है जो कप्तान कहलाते हैं ऐथलेटिज्य जिम्नास्टिक्स तैराकी,,, आसन आदि सिखाते की व्यवस्था है वर्ष का कार्यक्रम बार विभागों मे बंटा है : पहत्हे तीन विभागों मै प्रशिक्षण की अवधि खै बाद प्रतियोगताएं होती हैं? वर्ष के अंत मे इसमें मान होनेवाले २ दिसम्बर को वार्षिकोत्सवों के रूप मे प्रस्तुत करने के लिये एक विशेष कार्यक्रम तैयार करते हैं यह कार्यक्रम आश्रम के ग्रमंड मे होता है इस विमान मैं ऐक्य अपना पुस्तकालय है जिम्नेजियम 'प्ले ग्रउंडः ' ग्राउंड: तैरने के लिये तालाब? टेनिस कोर्ट हाल आदि की व्यवस्था है
माताजी ने इस विभाग के निर्माण मे सक्रिय रूप ले नाग लिया था? हैं बरसों तक शाम के चारु साढ़े बार के बाद का समय शारीरिक शिक्षण के विभित्र कार्य-कत्थक में बिताया करती थीं !
यौवन
यौवन इस बात पर निर्भर नहीं है कि हम कितने छोटे हैं, बल्कि इस पर कि हम मे विकसित होने की क्षमता और प्रगति करने की योग्यता कितनी हैं । विकसित होने का अर्थ हैं अपनी अंतर्निहित शक्तियां, अपनी क्षमताएं बढ़ाना; प्रगति करने का अर्थ है अबतक अधिकृत योग्यताओं को बिना रुके निरंतर पूर्णता की ओर ले जाना । जस (बूढ़ापन) आयु बड़ी हों जाने से नहीं आती बल्कि विकसित होने और प्रगति करने की अयोग्यता के कारण अथवा विकसित होना और प्रगति करना अस्वीकार कर देने के कारण आती है । मैंने बीस वर्ष की आयु के वृद्ध और सत्तर वर्ष के युवक देखें हैं । ज्यों ही मनुष्य जीवन मे स्थित हो जाने और पुराने प्रयासों की कमाई खाने की इच्छा करता है, ज्यों हीं मनुष्य यह सोचने लगता हैं कि उसे जो कुछ करना था वह उसे कर चुका और जो कुछ उसे प्राप्त करना था वह प्राप्त कर चुका, संक्षेप में, ज्यों ही मनुष्य प्रगति करना, पूर्णता के मार्ग पर अग्रसर होना बंद कर देता है, त्यों ही उसका पीछे हटना, का होना शिक्षित हो जाता हैं।
शरीर के विषय में भी मनुष्य यह जान सकता हैं कि उसकी क्षमताओं की वृद्धि और उसके विकास की कोई सीमा नहीं, बशर्ते कि मनुष्य इसकी असली पद्धति और सच्चे कारण ढूंढ निकालने । यहां हम जो बहुत-से परीक्षण करना चाहते हैं उन्हीं में से एक यह शारीरिक विकास भी हैं और हम मानवजाति की सामूहिक धारणा को निर्मूल कर संसार को यह दिखा देना चाहते हैं कि मनुष्य में कल्पनातीत संभावनाएं निहित हैं !
(२ फरवरी, १९४९)
Home
The Mother
Books
CWM
Hindi
Share your feedback. Help us improve. Or ask a question.