The Mother's brief written statements on various aspects of spiritual life including some spoken comments.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the late 1920s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. The volume also contains a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication.
सत्य और वाणी
सत्य
सद्भावना रखनेवाले हर व्यक्ति में सत्य के लिए प्रयास होना चाहिये ।
*
हमारे जीवन को 'सत्य के लिए प्रेम' और 'प्रकाश' के लिए प्यास द्वारा शासित होना चाहिये ।
अगर व्यक्ति भगवान् के समीप रहना चाहता है तो उसके जीवन पर पूर्ण सत्यता का शासन होना चाहिये ।
केवल 'वे' ही जो पूर्ण रूप से सत्यवादी हों मेरे सच्चे बालक हो सकते हैं ।
१३ दिसम्बर, १९३३
आज से और हमेशा के लिए 'सत्य' का प्रकाश धरती पर जन्म ले ।
२१ फरवरी, १९५३
'सत्य' का 'प्रकाश' जगत् के ऊपर मंडरा रहा है ताकि उसमें व्याप्त होकर उसका भविष्य गढ़े ।
'सत्य' के ज्ञान द्वारा सभी चीजें रूपान्तरित होनी चाहियें ।
६ मई, १९५४
२१०
'सत्य' को अपनी शक्ति मानो, 'सत्य' को अपना आश्रय मानो ।
२८ अेप्रैल, १९५४
प्रेम और हर्ष के साथ भगवान् के सत्य का अनुसरण करना एकमात्र महत्त्वपूर्ण चीज है ।
९ मई, १९५४
सत्य हमारे अन्दर है, हमें केवल उसके बारे में अवगत होना है ।
१७ मई, १९५४
धन्य होगा वह दिन जब पृथ्वी 'सत्य' के प्रति जागकर, केवल भगवान् के लिए जियेगी ।
२८ अगस्त, १९५४
'सत्य' तुम्हारे अन्दर है--लेकिन उसे चरितार्थ करने के लिए तुम्हें उसकी चाह करनी होगी ।
२१ अगस्त, १९५४
भगवान् की 'इच्छा' है कि मन जाने और 'वे' कहते हैं, ''जागो और 'सत्य' के बारे में सचेत होओ ।''
२२ अक्तूबर, १९५४
'सत्य' के 'प्रभु' हमेशा तुम्हारे साथ रहें ।
१७ सितम्बर, १९५८
२११
'सत्य' का पुष्प तुम्हारे अन्दर खिले ।
हम सबको सत्य की एकनिष्ठ सेना होना चाहिये ।
३ नवम्बर, १९६५
हम 'सत्य' के लिए और अपनी सत्ता एवं अपने कार्य-कलाप में उसकी विजय के लिए अभीप्सा करते हैं ।
१६ दिसम्बर, १९६७
'सत्य' को अपना स्वामी और पथप्रदर्शक बनने दो ।
'सत्य' के प्रति अपने समर्पण को पूर्ण और स्थायी बनाओ ।
सफलता की अपेक्षा सत्य के लिए अधिक उत्सुक होओ ।
१२ फरवरी, १९६९
'सत्य' से चिपके रहो ।
हे शाश्वत 'सत्य' की 'भव्यता'
मैं 'तेरा' आवाहन करती हूं ।
मैं तुझे नमस्कार करती हूं, हे भावी कल के 'सूर्य' ।
जुलाई, १९७१
२१२
परम 'प्रभो' , 'शाश्वत सत्य'
हम केवल 'तेरी' ही आज्ञा मानें
और 'सत्य' के अनुसार जियें ।
जून १९७१
(उड़ीसा के 'रायगढ़ स्टडी सर्कल' के नाम सन्देश)
समय आ रहा है जब 'सत्य' दुनिया पर शासन करेगा ।
क्या तुम उसे जल्दी लाने के लिए कार्य करोगे ?
आशीर्वाद ।
१९७१
आओ, हम सब बढ़ती हुई सचाई और निष्कपटता के साथ 'भागवत सत्य' की अभिव्यक्ति के लिए कार्य करें ।
३ मई, १९७२
'सत्य' के आगमन को नमस्कार ।
२१३
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