CWM (Hin) Set of 17 volumes
माताजी के वचन - III 450 pages 2009 Edition
Hindi Translation

ABOUT

The Mother's brief statements on various aspects of spiritual life including some conversations.

माताजी के वचन - III

The Mother symbol
The Mother

Part One consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the early 1930s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. There are also a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication. These reports are identified by the symbol § placed at the end. Part Two consists of thirty-two conversations not included elsewhere in the Collected Works. The first six conversations are the earliest recorded conversations of the 1950s' period. About three-fourths of these conversations were spoken in French and appear here in English translation.

Collected Works of The Mother (CWM) Words of the Mother - III Vol. 15 409 pages 2004 Edition
English
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The Mother symbol
The Mother

Part One consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the early 1930s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. There are also a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication. These reports are identified by the symbol § placed at the end. Part Two consists of thirty-two conversations not included elsewhere in the Collected Works. The first six conversations are the earliest recorded conversations of the 1950s' period. About three-fourths of these conversations were spoken in French and appear here in English translation.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' माताजी के वचन - III 450 pages 2009 Edition
Hindi Translation
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दर्शन-सन्देश

 

 

२४ अप्रैल, ११५०

 

शिष्य रूपों का मूल्यांकन गुरु से करते हैं ।

बाहर वाले गुरु का मूल्यांकन रूपों से करते हैं ।

 

 

*

 

१५ अगस्त, १९५०

 

 

        हमारी साधना अब एक ऐसे स्तर पर पहुंच गयी है जहां हम अधिकतर अवचेतना और निश्चेतना पर भी काम कर रहे हैं । इसके परिणामस्वरूप भौतिक नियतिवाद का पलड़ा भारी हो गया है और मार्ग की कठिनाइयां बढ़ गयी हैं, इनका सामना अधिक साहस और दृढ़ता के साथ करना होगा ।

 

       बहरहाल, जो भी हो, तुम जो भी करो, भय को अपने ऊपर आक्रमण न करने दो । उसके जरा-से स्पर्श पर भी सक्रिय हो जाओ और सहायता के लिए पुकारो ।

 

       तुम्हें यह सीखना होगा कि अपने- आपको शरीर के साथ एक न समझो, शरीर के साथ एक छोटे बच्चे का-सा व्यवहार करो जिसे यह विश्वास दिलाने की जरूरत है कि उसे डरना न चाहिये ।

 

       भय हमारे शत्रुओं में सबसे बड़ा है और यहां हमें उस पर अन्तिम रूप से विजय पानी ही चाहिये ।

 

*

 

        १ आश्रम में चार दर्शन के दिवस मनाये जाते हैं- २१ फरवरी-माताजी का जन्म दिवस, २४ अप्रैल-माताजी के दूसरी बार आने का दिवस, १५ अगस्त-श्रीअरविन्द का जन्म दिवस, २४ नवम्बर-सिद्धि-दिवस । इन अवसरों पर माताजी दर्शनार्थियों को कोई विशेष सन्देश दिया करती थीं । इनमें कभी माताजी के सन्देश होते थे, कभी श्रीअरविन्द के लेखों के उद्धरण ।

 

       इस विभाग में हमने केवल श्रीमाताजी के लिखे सन्देश ही दिये हैं श्रीअरविन्द के नहीं ।

२०२


 

 

२१ फरवरी, १९५२

 

 

      हमें वीर योद्धा बना बस यही हमारी अभीप्सा है । अतीत ज्यों-का-त्यों बना रहना चाहता है और उसके विरुद्ध भविष्य उत्पन्न होकर ही रहेगा--उसी भविष्य के महान् युद्ध को हम सफलता के साथ चलायें ताकि नवीन चीजें अभिव्यक्त हो सकें और हम उन्हें ग्रहण करने के लिए तैयार हो जायें ।

 

 

२४ नवम्बर, १९५२

 

 

     श्रीअरविन्द के पूर्णयोग के महान् साहसिक कार्य में उनका अनुसरण करने के लिए योद्धा होने की तो हमेशा ही जरूरत रही है लेकिन अब जब वे हमें शरीर से छोड़ गये हैं, उनका अनुसरण करने वाले का उदात्त वीर होना जरूरी है ।

 

*

 

२१ फरवरी, १९५४

 

      यदि तुम मृत्यु से डरते हो तो समझ लो कि उसने तुम्हें अभी से परास्त कर दिया हे ।

.

*

 

२४ अप्रैल, १९५६

 

 

      पृथ्वी पर अतिमानस की अभिव्यक्ति अब कोई आश्वासन की बात नहीं रही, बल्कि वह एक जीवन्त तथ्य और एक वास्तविक सत्य है ।

 

      अतिमानस यहां कार्य कर रहा है, और एक दिन आयेगा जब अत्यन्त अन्धे, अत्यन्त अचेतन और एकदम-से अनिच्छुक भी उसे स्वीकार करने के लिए बाधित होंगे ।

*

२०३


 

 

२४ नवम्बर, १९५६

 

 

      काल की परवाह न करते हुए, देश के भय से रहित होकर, अग्निपरीक्षा की ज्वालाओं में से शुद्ध पवित्र होकर उछलते हुए हम अपने लक्ष्य की सिद्धि, अतिमानसिक विजय की ओर बिना रुके उड़ते चलेंगे ।

 

*

 

२४ अप्रैल, १९५७

 

 

      सृष्टि की अनन्त धारा के अन्दर प्रत्येक अवतार भविष्य की एक अधिक पूर्ण सिद्धि की घोषणा करने वाला अग्रदूत होता हे ।

 

*

 

२१ फरवरी, १९५८

 

 

       नित्य परिवर्तनशील शरीर का जन्मोत्सव मनाना हृदय की कुछ श्रद्धापूर्ण भावनाओं को सन्तुष्ट कर सकता है ।

 

      शाश्वत चेतना की अभिव्यक्ति का उत्सव विश्व इतिहास के प्रत्येक मुहूर्त में मनाया जा सकता है ।

 

      परन्तु एक नवीन जगत् के अतिमानसिक जगत् के आविर्भाव का उत्सव मनाना एक असाधारण और अद्‌भुत सौभाग्य की बात है ।

 

*

 

 

२४ अप्रैल, १९५८

 

 

      पृथ्वी पर मनुष्यों में होने वाली भगवत्कृपा की मुक्तिदायिनी क्रिया के दो रूप हैं जो एक-दूसरे के पूरक हैं । ये दोनों ही रूप हैं तो एक समान आवश्यक, पर एक समान मूल्य नहीं पाते ।

२०४


      परम अक्षय शान्ति, जो दुश्चिंता, तनाव और दुःख-कष्ट से मुक्त करती है ।

 

      सक्रिय, सर्वसम्पन्न प्रगति, जो शृंखलाओं, बन्धनों और तामसिकता से छुड़ाती है ।

 

      शान्ति तो विश्वभर में समादृत होती तथा दिव्य समझी जाती है, पर प्रगति का स्वागत केवल वे ही लोग करते हैं जिनकी अभीप्सा तीव्र और साहसपूर्ण होती है ।

 

*

 

 

१५ अगस्त, १९६१

 

 

       निश्चेतना की गहराई में भी भागवत चेतना चमक रही है, शाश्वत और देदीप्यमान ।

 

*

 

२१ फरवरी, १९६५

 

 

       तथाकथित मानवीय बुद्धिमत्ता की समस्त जटिलताओं से ऊपर भागवत कृपा की ज्योतिर्मयी सरलता विद्यमान है और वह कार्य करने के लिए तैयार है--यदि हम उसे करने दें ।

 

*

 

२१ फरवरी, १९६८

 

 

       भागवत प्रेम की अभिव्यक्ति को शीघ्रता से आगे बढ़ाने का सबसे उत्तम पथ है दिव्य सत्य की विजय में सहयोग देना ।

 

*

२०५


 

२१ फरवरी, १९६९

 

 

      अक्षय शान्ति ही जीवन की अमरता को सम्यव बना सकती है ।

 

 

*

 

 

२१ फरवरी, १९७०

 

 

      सत्य को जीतना बड़ा कठिन और दु:साध्य है । इस जीत के लिए मनुष्य को सच्चा योद्धा होना होगा-ऐसा योद्धा जो किसी चीज से भय नहीं करता, न तो शत्रुओं से और न मृत्यु से ही; क्योंकि यह संघर्ष सबके साथ और सबके विरुद्ध, शरीर के सहित और शरीर के बिना चल रहा है और इसका अन्त परम विजय में होगा ।

 

*

 

२१ फरवरी, १९७१

 

 

      एकमात्र वही जीवन जीने योग्य है जो भगवान् के साथ एकात्मता के लिये निवेदित हो ।

 

*

 

२४ अप्रैल, १९७१

 

 

       यह कहने की जरूरत नहीं कि जो सत्य के लिए अभीप्सा करते हैं उन्हें असत्य बोलने से बचना चाहिये ।

*

२०६


 

२१ फरवरी, १९७२

 

       समस्त सत्ता का चैत्य केन्द्र के चारों ओर पूर्णत: एकरूप हो जाना ही पूर्ण सचाई प्राप्त करने की आवश्यक शर्त है ।

 

*

 

१५ अगस्त, १९७२

 

      श्रीअरविन्द का सन्देश भविष्य के ऊपर विकीरित होता हुआ अमर सूर्यालोक है ।

.

*

 

२४ नवम्बर, १९७२

 

      सभी पसन्दों और सीमाओं के परे एक पारस्परिक समझ का क्षेत्र है जहां सब लोग मिलकर अपना सामञ्जस्य पा सकते हैं : वह है भागवत चेतना के लिए अभीप्सा ।

 

*

 

२१ फरवरी, १९७३

 

 

      हम मार्ग पर जितना आगे बढ़े भागवत उपस्थिति की आवश्यकता उतनी ही अधिक अनिवार्य और अपरिहार्य बन जाती है ।

 

*

 

२४ अप्रैल, १९७३

 

 

मनुष्य की चेतना के परे वाणी के परे

                                                                         वाणी के परे

 

२०७


हे परम चेतने

अनोखी, अद्वितीय दिव्य सद्वस्तु

दिव्य सत्य ।

 

*

 

धरती पर अतिमानसिक अभिव्यक्ति के लिए सन्देश

 

२९ फरवरी १९५६

 

स्वर्णिम दिवस

 

अब से २९ फरवरी प्रभु का दिन होगा ।

 

 *

 

११६०

२१ फरवरी १९५६

बुधवार के सम्मिलित ध्यान के समय

 

       आज की शाम ठोस और भौतिक भागवत उपस्थिति तुम्हारे बीच उपस्थित थी । मेरा रूपाकार जीवन्त रूर्ह्या का हो गया था जो विश्व से बड़ा था, और मैं एक बृहत् तथा विशालकाय सोने के दरवाजे के सामने खड़ी थी जो जगत् को भगवान् से अलग कर रहा था ।

 

      जैसे ही मैंने दरवाजे की ओर देखा, मैंने चेतना की एक ही गति में जाना और संकल्प किया कि ''समय आ गया हे, '' और दोनों हाथों से एक बहुत बड़ा सोने का हथौड़ा उठाकर मैंने एक प्रहार किया, दरवाजे पर मात्र एक प्रहार और दरवाजा टुकड़े-टुकड़े हो गया ।

 

     तब अतिमानसिक ' प्रकाश' , 'शक्ति' और 'चेतना' तीव्र गति से धरती पर उतरीं और अबाध गति से बह निकलीं ।

 

१९५६ में लिखित

*

२०८


१९६८

 

     एकमात्र परम सत्य ही भागवत प्रेम को ग्रहण करने और अभिव्यक्त करने की शक्ति संसार को दे सकता है ।

 

*

 

१९७२

 

     जब अतिमानस देह-मन में अभिव्यक्त होगा केवल तभी उसकी उपस्थिति स्थायी हो सकती है ।

 

*

 

पॉण्डिचेरी में माताजी के प्रथम आगमन-दिवस

के लिए सन्देश

२१ मार्च १९१४

 

१९५०

 

      अगर मेरे अन्दर पूरी सचाई है तो मुझे अच्छा दीखने की जरूरत नहीं ।

      दिखायी देने से होना कहीं अधिक अच्छा हे ।

 

*

 

१९५२

 

       यह कभी मत भूलो कि तुम अकेले नहीं हो । भगवान् तुम्हारे साथ हैं

 

          १ पॉण्डिचेरी में माताजी के अन्तिम रूप से आगमन (२४ अप्रैल १९२०) के लिए सन्देश इस विभाग में ''दर्शन सन्देश'' के अन्तर्गत प्रकाशि हुए हैं ।

२०९


और तुम्हारी सहायता एवं पथ-प्रदर्शन कर रहे हैं । वे एक ऐसे साथी हैं जो कभी साथ नहीं छोड़ते, ऐसे मित्र हैं जिनका प्रेम सुकून और बल पहुंचाता है । श्रद्धा बनाये रखो और वे तुम्हारे लिए सब कुछ कर देंगे ।

 

*

 

१९५६

 

२९ फरवरी - २९ मार्च

 

       प्रभु, तूने चाहा और मैं चरितार्थ कर रही हूं ।

       धरती पर एक नया प्रकाश फूट रहा है ।

       एक नया जगत् जन्म ले चुका है ।

       जिन चीजों के लिए वचन दिया गया था वे चरितार्थ हो गयी हैं ।

 

*

 

 १९५८

 

       जब तुम्हें किसी बाहरी परिवर्तन की आवश्यकता हो तो इसका मतलब है कि तुम आन्तरिक रूप से प्रगति नहीं कर रहे हो । क्योंकि जो व्यक्ति आन्तरिक रूप से उन्नति करता है वह सर्वदा एक ही प्रकार की बाहरी अवस्थाओं में रह सकता है;  वे निरन्तर उसके सम्मुख नये-नये सत्यों को प्रकट करती रहती हैं ।

 

*

 

१९६१

 

हमारा पथ

 

      साधना-पथ पर चलने के लिए तुम्हारे अन्दर निर्भीक वीरता होनी चाहिये, तुम्हें कभी इस हीन, तुच्छ दुर्बल और कुत्सित वृत्ति अर्थात् भय

२१०


के कारण पीछे नहीं हटना चाहिये ।

 

       दुर्दमनीय साहस, पूर्ण सचाई सर्वांगपूर्ण आत्मदान-इस हद तक कि तुम कभी हिसाब या मोल-तोल न करो, तुम इसलिए न दो कि तुम पाओगे, तुम इस उद्देश्य से आत्मार्पण न करो कि तुम सुरक्षित रहोगे,  तुम ऐसी श्रद्धा न रखो जिसे प्रमाण की आवश्यकता हो,--इस पथ पर अग्रसर होने के लिए यह सब अनिवार्य है,--बस यही तुम्हें सब विपत्तियों से बचाने के लिए आश्रय प्रदान कर सकता है ।

 

*

 

पॉण्डिचेरी में श्रीअरविन्द के आगमन-दिवस के लिए सन्देश

४ अप्रैल १९१०

 

१९५०

 

      सच्चे बनो, हमेशा सच्चे बनो, अधिकाधिक सच्चे बनो ।

      सचाई हर एक से यह मांग करती हे कि वह अपने विचारों अपने भावों, अपनी अनुभूतियों और अपने कामों में अपनी सत्ता के केन्द्रीय सत्य के सिवा और कुछ न प्रकट करे ।

 

*

 

१९५१

 

 

       एक नयी ज्योति पृथ्वी पर छायेगी, एक नया जगत् उत्पन्न होगा : जिन चीजों के लिए वचन दिया गया था वे पूरी होगी ।

 

*

२११


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१९५८

 

 

 

 

 

      निम्नमुखी त्रिकोण सत्-चित्- आनन्द को सूचित करता है ।

 

      ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण जीवन, ज्योति और प्रेम के रूप में जड़तत्त्व से आने वाले अभीप्सा रूपी उत्तर को परिलक्षित करता है ।

 

      दोनों कोणों का संयोगस्थल-केन्द्रीय वर्ग-पूर्ण अभिव्यक्ति का द्योतक है और उसके केन्द्र में विद्यमान है परमात्मा का अवतार-कमल ।

 

      वर्ग के अन्दर जो जल है वह बहुत्व का, सृष्टि का सूचक है ।

.

*

 

१९६२

 

      भौतिक रूप में, स्थूल रूप में, इस पृथ्वी पर, कृतज्ञता के अन्दर ही शुद्धतम आनन्द का स्रोत पाया जाता है ।

 

पूजा-सन्देश

 

लक्ष्मीपूजा १९५५

 

      हे मां भगवती ! तू हमारे साथ है, प्रत्येक दिन तू मुझे यही आश्वाशन देती है, और, अधिकाधिक पूर्ण और सतत बनने वाली एकात्मता के अन्दर घनिष्ठतापूर्वक युक्त होकर तथा नयी ज्योति के लिए एक महान् अभीप्सा रखते हुए हम विश्व के स्वामी और विश्व के परे विद्यमान दिव्य सद्व की ओर मुड़ रहे हैं ।

३१ अक्तूबर , १९५५

 

*

२१२


 

कालीपूजा १९५५

 

एक प्राचीन केल्डियन कहानी

 

      बात पुरानी है, बहुत पुरानी । एक रेगिस्तान में जहां अब अरब देश है, भगवान् ने परम प्रेम को जगाने के लिए धरती पर अवतार लिया था । जैसा कि हुआ करता है, मनुष्यों ने उन्हें गलत समझा, उन पर सन्देह किया, उन्हें कष्ट दिये और उनका पीछा किया । आततायियों के आघातों से वे बहुत बुरी तरह घायल हो गये । अपना काम पूरा करने के लिए वे शान्ति के साथ अकेले में मरना चाहते थे । आततायियों के पीछा करने पर वे दौड़े । उस बंजर भूमि में अचानक एक अनार की झाड़ी दिखायी दी । रक्षक देव ने शान्ति के साथ शरीर त्याग करने के लिए झुकी शाखाओं के नीचे शरण ली । तुरन्त चमत्कारिक रूप से झाड़ी फैल गयी, इसकी शाखाएं बड़ी, ऊंची, गहन और सघन हो गयीं और चारों ओर इस तरह छा गयीं कि पीछा करने वालों को यह पता ही न लगा कि वे जिसकी तलाश में हैं वह यहीं छिपा है । वे अपनी राह पर चलते गये ।

 

      बूंद-बूंद करके पवित्र रक्त धरती पर गिरता गया और उसे उपजाऊ बनाता गया । झाड़ी बहुत सुन्दर बड़े-बड़े गहरे लाल रंग की पंखुड़ियों से भरे हुए फूलों से लद गयी, मानों रक्त की असंख्य बूंदें हों ।...

 

      ये वही फूल थे जो हमारे लिए भागवत प्रेम का प्रतीक हैं ।

१४ नवम्बर, १९५५

 

*

दुर्गापूजा १९५७

 

महाष्टमी

 

      श्रीअरविन्द के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का इससे अच्छा उपाय और कोई नहीं हे कि उनकी शिक्षा की सजीव अभिव्यक्ति बना जाये ।

३० सितम्बर, १९५७

*

२१३


 

दुर्गापूजा १९५७

 

विजया-दशमी

 

      जो केवल स्थूल आंखों से ही देखते हैं, उनके लिए विजय तभी प्रत्यक्ष होगी जब वह सर्वांगपूर्ण अर्थात् भौतिक विजय हो ।

अक्तूबर,१९५७

 

*

 

महासरस्वती पूजा १९५८

 

 

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       केन्द्रीय वृत्त भागवत चेतना को सूचित करता है ।

       चार दल भगवती माता की चार शक्तियों के सूचक हैं ।

       बारह दल भगवती माता के कार्य के लिए अभिव्यक्त उनकी बारह शक्तियों के प्रतीक हे ।

२४ जनवरी, १९५८

 

*

 

पूजादिवसों पर टिप्पणियां

 

(दुर्गापूजा- १९५३ विजया- दशमी के बारे में)

 

     आज सचमुच विजय का दिन था, उस सब पर विजय जो भौतिक चेतना में अभी तक मानव रूप ही था ।

 

      हे प्रकृति, मैं तुम्हारे लिए बल और प्रकाश, सत्य और शक्ति लायी हूं; इन्हें ग्रहण करना और इनका उपयोग करना तुम्हारा काम है । तुम ही अपनी सृष्टि के फल--मनुष्य--में ग्रहणशील बनोगी और उसकी समझ के

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द्वार खोलोगी; तुम ही उसे प्रगति करने की ऊर्जा और रूपान्तर का संकल्प दोगी; और सबसे बढ्‌कर तुम ही उसके द्वारा भागवत उपस्थिति को स्वीकार कराओगी और उससे परम उपलब्धि के लिए अभीप्सा करवाओगी ।

१८ अक्तूबर, १९५३

 

*

 

(दुर्गापूजा--१९५४, विजया-दशमी के बारे में)

 

      यह विजय दिवस है; वर दे कि यह आत्मा के अज्ञान और मिथ्यात्व पर सच्ची विजय हो ।

६ अक्तूबर, १९५४

 

*

 

(दुर्गापुजा- १९५५,  विजया- दशमी के बारे में)

 

      ध्यान के समय मैंने जिस अनुभूति को संचारित किया उसका शब्द- चित्र :

 

      दुर्गा का वार्षिक युद्ध और विजय उस परम भागवत चेतना के लयपूर्ण हस्तक्षेप का प्रतीक है जो वैश्व प्रगति को समय-समय पर नया आवेग प्रदान करता है ।

२६ अक्तूबर, १९५५

 

*

 

         (११५७ की दुर्गापूजा, विजया-दशमी के सन्देश में उल्लिखित ''विजय'' के बारे में)

 

        लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि इसे सिद्धान्त में जीता जा चुका है ।

२ अक्तूबर, १९५७

 

*

२१५


 

१९६०

कालीपूजा - १९५१

 

      ऊंचा उठाने वाले समान आदर्श वाले हम सब एक साथ होंगे, और इस ऐक्य में और इस ऐक्य के द्वारा हम अन्धकार और विध्वंस की विरोधी शक्तियों के प्रहारों का सामना कर उन पर विजय पायेंगे । एकता में बल है, एकता में शक्ति है, एकता में विजय की निश्चिति है ।

 

      मां काली इस दिन तुम्हारे साथ होंगी ।

३१ अक्तूबर, १९५१

 

*

 

बड़े दिन के सन्देश

 

 

१९५९

 

बड़ा दिन।

आशीर्वाद ।

 

*

 

 

बड़ा दिन शुभ हो !

आशीर्वाद ।

 

*

 

       १ माताजी ने बतलाया था कि बड़ा दिन (२५ दिसम्बर) 'प्रकाश' के पुनरागमन का उत्सव है ।

२१६



 

 १९६१

 

सभी के लिए बड़ा दिन शुभ हो !

सबको भागवत कृपा के आशीर्वाद सहित ।

 

*

 

१९६२

 

       'नया प्रकाश' तुम्हारे विचारों और तुम्हारे जीवन को प्रकाशित करे, तुम्हारे हृदयों पर राज करे और तुम्हारे कार्यों का मार्ग-दर्शन करे ।

       आशीर्वाद ।

 

*

१९६३

 

       आनन्दप्रद बड़ा दिन ।

       आओ हम प्रकाश को अपने अन्दर प्रविष्ट करके उसका उत्सव मनायें ।

 

*

 

१९६४

 

       अगर तुम धरती पर शान्ति चाहते हो तो पहले अपने हृदय में शान्ति स्थापित करो ।

       अगर तुम संसार में ऐक्य चाहते हो तो पहले अपनी सत्ता के विभिन्न भागों को एक करो ।

       आशीर्वाद ।

*

२१७


 

 

१९६५

 

सभी के लिए बड़ा दिन शुभ हो !

 

*

 

१९६६

 

       सभी को शान्ति और आनन्द में, बड़े दिन की शुभ कामनाएं !

       यह नया बड़ा दिन तुम्हारे लिये उच्चतर और अधिक शुद्ध एक नये प्रकाश का आगमन हो ।

 

*

 

१९६७

 

        धरती पर ऐक्य और सद्‌भावना ।

 

बाहरी समारोहों की रूढ़ियों के पीछे एक जीवित जाग्रत् प्रतीक होता है । यही है जिसे हमें याद रखना चाहिये ।

 

        सबके लिए शान्ति और सद्‌भावना ।

 

जब तक कि अतीत की आदतों और मान्यताओं से सम्बन्ध न तोड़ा जाये तब तक भविष्य की ओर तेजी से बढ़ने की सम्भावना न के बराबर है ।

 

*

 

१९६८

 

सत्य से प्रेम करो ।

 

तुम्हारी चेतना में प्रकाश का उदय हो ।

सबको आशीर्वाद ।

*

२१८


 

 

१९६९

 

नये प्रकाश की जय ।

वह सभी हृदयों में विकसित हो ।

आशीर्वाद ।

 

*

 

१९७०

 

बड़ा दिन शुभ हो !

 

*

१९७१

 

मिथ्यात्व के राज्य की समाप्ति का समय आ गया है ।

केवल सत्य में ही है मुक्ति

 

*

 

१९७२

 

       हम संसार को दिखाना चाहते हैं कि मनुष्य भगवान् का सच्चा सेवक बन सकता है ।

 

       कौन समस्त सचाई और निष्कपटता के साथ सहयोग देगा ?

 

 

फादर क्रिसमस;

       आज में तुम्हारा आह्वान करती हूं !

       हमारी पुकार का उत्तर दो । अपने समस्त उपहार लिये हुए आओ ।

२१९


तुम सांसारिक सम्पत्तियों के महान् वितरक हो । तुम कभी न थकने वाले मित्र हो, हर निवेदन पर कान देते हो और उदारता के साथ उसे पूरा करते हो । हर एक को वे भौतिक वस्तुएं प्रदान करो जिनकी वह कामना करता है, और मेरे लिए मुझे पर्याप्त दो, मुझे बहुत कुछ दो ताकि मैं सबको खुलकर दे सकूं ।

 

*

.

 

(ईसामसीह के जन्म पर तीन ज्योतिषियों ( मैगी)  ने उन्हें कुछ उपहार दिये थे उन उपहारों का अर्थ)

 

सोना : संसार का धन और अतिमानसिक ज्ञान ।

लोबान : प्राण की शुद्धि ।

गंधरस या गुग्गुलु : शरीर की अमरता ।

 

जन्मदिन के सन्देश

 

      मेरे प्रिय बालक, मेरा प्रेम ओर मेरे आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं और सारे साल रहेंगे । ये तुम्हें भागवत लक्ष्य की ओर एक और प्रगति करने में सहायक हों ।

 

*

 

      यह वर्ष प्रगति और रूपान्तर का वर्ष हो- भागवत सिद्धि की ओर ले जाने वाला एक और पग ।

२ फरवरी, १९३०

 

*

 

        १ 'माताजी जन्मदिन को विशेष महत्व दिया करती थीं, इस अवसर को 'बॉन फेत' कहा जाता है । आशीर्वाद के साथ-साथ माताजी कुछ लोगों को छोटा-मोटा लिखित सन्देश भी देती थी । यहां ऐसे सन्देशों के कुछ नमूने दिये जा रहे हैं । - अनु०

२२०


      यह वर्ष तुम्हारे लिए पूर्ण उद्‌घाटन और सीमाओं को तोड़ने का वर्ष हो ।

२ फरवरी, १९४३

 

*

      यह वर्ष तुम्हारे अन्दर सच्ची श्रद्धा लाये-ऐसी श्रद्धा जिसे कोई भी अन्धकार धुंधला न बना सके ।

२ फरवरी, १९४४

 

 

*

 

      तुम्हारा यह जन्मदिन तुम्हारे लिए अपने- आपको जरा अधिक, जरा ज्यादा अच्छी तरह भगवान् को देने का अवसर हो । तुम्हारा उत्सर्ग अधिक पूर्ण हो, तुम्हारी भक्ति अधिक प्रबल और अभीप्सा अधिक तीव्र हो ।

 

       अपने- आपको 'नये प्रकाश ' की ओर खोलो और आनन्दभरे कदमों से मार्ग पर चलो ।

        इस दिन निश्चय करो कि ऐसा ही हो और दिन व्यर्थ न जायेगा ।

 

*

 

       त्ती- भर अभ्यास सिद्धान्तों के पहाड़ों के बराबर है ।

       '' प्रभो, मेरे जन्म की वर्षगांठ पर वर दे कि मेरे अन्दर जानने की शक्ति मुझे पूर्णतया रूपान्तरित करने की शक्ति में बदल जाये ।''

 

*

 

जन्म दिवस शुभ हो !

 

       नव जन्म भी, एक नयी चेतना में जन्म हो जिसमें तुम समस्त छोटी-मोटी व्यक्तिगत प्रतिक्रियाओं के ऊपर हो जाओगे क्योंकि तुम हमेशा अपने हृदय में भगवान् की उपस्थिति का अनुभव करोगे, यह तुम्हें ऐसी शक्ति दे कि तुम समस्त बाधाओं, समस्त तुच्छता, समस्त कठिनाइयों को पार कर सको ।

      मेरे प्रेम और आशीर्वाद सहित ।

८ जनवरी, १९६३

*

२२१


      आज के दिन हम सत्य की विजय की ओर एक निर्णायक पग उठाने का निश्चय करते हैं ।

 

      हर बीतता हुआ वर्ष एक नयी विजय हो, ओर ऐसा अनिवार्य रूप से होता हे ।

 

      इस वर्ष उनकी विजय की ओर एक निर्णायक कदम उठाया जाये ।

१३ जनवरी १९६३

 

*

 

     तुम्हारे लिए जो नया वर्ष शुरू हो रहा है इसके साथ तुम्हें नया जीवन शुरू करना चाहिये, इसमें फिर से एक नया दृढ़ निश्चय हो कि तुम अपनी चेतना और अपने कर्मों में से उस सबको निकाल बाहर करो जो उसे कुरूप बनाता, छोटा करता, धुंधला बनाता, और अन्तत: तुम्हारी प्रगति को रोक देता है और तुम्हारे स्वास्थ्य को बिगाड़ता है ।

 

     अपने आन्तरिक विकास के और पवित्रीकरण के प्रयास में विश्वस्त रहो कि मेरी शक्ति और मेरे आशीर्वाद तुम्हें सहारा देंगे ।

२७ जनवरी, १९६३

 

*

 

शुभ जन्म दिवस !

 

      यह वर्ष तुम्हारे लिए कार्य की और उत्सर्ग की पूर्णता का, सचाई, ऊर्जा ओर शान्ति की पूर्णता का वर्ष हो ।

      मेरे आशीर्वाद सहित ।

१६ जनवरी, १९६४

 

*

शुभ जन्म दिवस !

 

      प्रेम और शान्ति में पूर्ण उत्सर्ग और समग्र प्रगति के वर्ष के लिए मेरे आशीर्वाद सहित ।

१६ जनवरी १९६५

*

२२२


शुभ जन्म दिवस !

 

      नीरव सहनशीलता में विजय की ओर शाश्वत प्रेम की सहायता के साथ एक और पग आगे ।

१३ जनवरी, १९६६

 

*

शुभ जन्म दिवस !

 

      शान्ति, प्रेम और आनन्द में भागवत सिद्धि की ओर ले जाने वाले ज्योतिर्मय मार्ग पर एक और पद अंकित करने के लिए ।

१३ जनवरी, १९६७

 

*

 

शुभ जन्म दिवस !

 

       सहयोग के जीवन के लिए मेरे प्रेम ओर इस सुखद सहयोग के लम्बे समय तक प्रेम ओर शान्ति में जारी रहने के लिए मेरे आशीर्वाद ।

१३ जनवरी, १९७१

 

*

 

शुभ जन्म दिवस !

 

      रूपान्तर के लिए मेरे प्रेम, मेरे विश्वास और मेरे आशीर्वाद सहित । सिद्धि की ओर आगे बढ़ो ।

१३ जनवरी, १९७३

२२३


 

केन्द्रों और संस्थाओं को सन्देश

 

(अध्ययन-केन्द्र के लिए प्रस्तावित कार्यक्रम)

 

     १. प्रार्थना

     (श्रीअरविन्द और माताजी-आपकी शिक्षा को समझने के हमारे प्रयास में, अपनी सहायता प्रदान कीजिये ।)

     २. श्रीअविन्द की पुस्तक का पाठ ।

     ३. क्षण भर के लिये मौन ।

     ४. जो कुछ पड़ा गया है उसके बारे में जो कोई कुछ पूछना चाहता है, वह एक प्रश्न कर सकता है ।

     ५. प्रश्न का उत्तर

      ६. कोई सामान्य चर्चा नहीं।

यह किसी दल की सभा नहीं है बल्कि श्रीअरविन्द की पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए सिर्फ एक कक्षा है ।

३१, अक्तूबर, १९४२

 

*

 

      मैंने 'क' का पत्र पढ़ लिया है । तुम उसे यह उत्तर दे सकते हो :

      १. मेरा ख्याल है कि शुरू में चक्र को महंगे आधार के बिना शुरू करना ज्यादा अच्छा होगा ताकि पैसे का प्रश्न हमेशा मुख्य रहकर तकलीफ न दे । बाद में जब चक्र सफल सिद्ध हो जाये तो वह ज्यादा महंगे मकान में जा सकता है ।

      २. सदस्यों के लिए वार्षिक चन्दा १० रुपये निश्चित किया जा सकता है लेकिन मेरा प्रस्ताव है कि जो लोग श्रीअरविन्द की पुस्तकें पढ़ने के लिए आना चाहें वे सदस्य हुए बिना भी, थोड़ा-सा शुल्क, उदाहरण के लिए दो रुपये देकर पढ़ सकते हैं ।

       ३. ज्यादा अच्छा है कि किताबों को चक्र के बाहर न जाने दिया जाये

       ४. मेरा प्रस्ताव है कि जो लोग नियमित रूप से यहां पैसा भेजते हैं उनसे वार्षिक चन्दे के अतिरिक्त और पैसा न मांगा जाये क्योंकि इससे

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उनकी यहां आने वाली राशि कम हो जायेगी ।

        ५. उसे ऐसे लोगों की समिति न बनानी चाहिये जिनसे वह पूरी तरह सहमत न हो सके और जो यहां मेरे और श्रीअरविन्द के द्वारा स्वीकृत न हो ।

        ६. उसे हमारी लिखित सहमति पाये बिना कुछ भी नहीं करना चाहिये । समय बचाने के लिये ज्यादा अच्छा है कि वह सीधा मुझे अंग्रेजी में, संक्षिप्त और ठीक-ठीक लिखे कि वह क्या कदम उठाना चाहता है ।

       अन्तत: तुम उसे मेरे आशीर्वाद इस आदेश के साथ भेज सकते हो कि सब झगड़ों दुर्भावनाओं और गलतफहमियों से बचे ।

       अन्त में एक बात और :

       केवल अहंकार ही दूसरों के अन्दर अहंकार देखकर अहंकार होता हे ।

अक्तूबर, १९४३

 

*

 

         (हांगकांग में 'श्रीअरविन्द फिलासाफिकल सर्कल' के उद्‌घाटन के समय दिया गया सन्देश)

 

पूर्वी क्षितिज पर शाश्वत ज्योति का उदय हो ।

२६ जून, १९५४

 

*

 

           (श्रीअरविन्दाश्रम की दिल्ली शाखा के उद्‌घाटन के समय दिया गया सन्देश)

 

यह स्थान अपने नाम के योग्य हो और संसार के लिए श्रीअरविन्द की शिक्षा और उनके सन्देश के सच्चे भाव को अभिव्यक्त करे ।

            मेरे आशीर्वाद सहित ।

१२ फरवरी, १९५६

 

*

 

       श्रीअरविन्दाश्रम की दिल्ली शाखा में किसी ऐसे योग्य व्यक्ति की सख्त जरूरत है जो श्रीअरविन्द की शिक्षा पर भाषण दे सके और आश्रम विद्यालय

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में उच्चतर शिक्षा की व्यवस्था कर सके ।

 

        मुझे पूरा विश्वास है कि इस काम के लिए तुम सबसे अच्छे व्यक्ति हो । श्रीअरविन्द के लेखों के लिए तुम्हारी समझ स्पष्ट और गहरी है और साथ ही तुम्हारी व्याख्या बहुत आकर्षक और विचक्षण व बोधगम्य होती है ।

 

        कृपया मुझे बतलाओ कि क्या तुम्हें यह प्रस्ताव स्वीकार है, ताकि जरूरी व्यवस्था की जा सके ।

 

मुझे पूरा विश्वास है कि अपने परिवार के साथ इस विश्राम से तुम्हें पूरा लाभ हुआ है और अब तुम बिलकुल ठीक हो ।

 

          मेरे प्रेम सहित सबके लिए और तुम्हारे लिए मेरे आशीर्वाद ।

१३ जून, १९५८

 

*

 

           उन सबके लिए जो आश्रम की दिल्ली शाखा में काम करते और सीखते हैं मेरे आशीर्वाद ।

 

           हर एक शान्ति के साथ अपना अच्छे-से- अच्छा करे और परिणाम परम प्रभु के हाथों में छोड़ दे ।

२१ अगस्त, १९६०

 

*

 

             (शान्तिनिकेतन में श्रीअरविन्द निलय' , शान्तिनिकेतन के उद्‌घाटन के अवसर पर)

 

           केन्द्र खोलना अपने-आपमें काफी नहीं है । उसे भगवान् के प्रति पूर्ण निवेदन में पूर्ण सचाई की पवित्र वेदी होना चाहिये ।

 

           इस सचाई की ज्वाला संसार के समस्त मिथ्यात्वों और धोखे-धड़ी के ऊपर बहुत ऊपर उठे ।

आशीर्वाद सहित ।

२१ दिसम्बर,१९६२

*

२२६


 

 

श्रीअरविन्द ऐक्शन और  श्रीअरविन्द सोसायटी

 

        समान रूप से सन्निकट भविष्य में सत्य की अभिव्यक्ति के लिए कार्य करना  हैं ।  दोनों की समान रूप से सहायता करना इस उपलब्धि के लिए कार्य करना है ।

 

        मेरे आशीर्वाद समस्त सहायता और सद्‌भावना के साथ हैं ।

२ मई, १९७१

 

*

 

विभागों और व्यापार के लिए सन्देश

 

(श्रीअरविन्दाश्रम के 'आतलिये' नामक कारखाने केलिए )

 

उपकारी, यथोचित, नियमित ।

आशीर्वाद ।

*

 

 

('आरपागों' कारखाने के नाम)

 

यहां हमेशा शान्ति ओर सद्‌भावना छायी रहे ।

मेरे आशीर्वाद सहित ।

१७ सितम्बर, १९५२

 

*

 

('न्यू होराइज़न  शूगर मिल' के लिए )

 

सुखद आरम्भ

शुभ अविरल धारा

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अन्तहीन-

अनन्त प्रगति ।

१४ मई,  १९५७

 

*

 

 ('न्यू होराइज़न शुगर मिल' की आधार-शिला पर अंकित)

 

निष्ठा सफलता का निश्चित आधार है ।

१२ अप्रैल, १९५९

 

प्रकीर्ण सन्देश

 

(जयपुर, ओड़िसा में श्रीअरविन्द के पवित्र अवशेषों की प्रतिष्ठा के समय दिया गया सन्देश-- ८ दिसम्बर, १९७०)

 

हर एक में और सबमें उच्चतम चेतना को जीवन का शासक होना चाहिये ।

        आशीर्वाद ।

८ दिसम्बर, १९७०

 

*

 

("श्रीअरविन्दन्द ऐक्शन' के एक युवा शिविर के उद्‌घाटन के अवसर पर दिया गया सन्देश)

 

     हमारे जीवन पर सत्य के लिए प्रेम ओर प्रकाश के लिए प्यास का शासन होना चाहिये ।

     आशीर्वाद ।

२६ सितम्बर, १९७१

*

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(एक मकान के उद्‌घाटन पर दिया गया सन्देश)

 

      यह मकान भगवान् की उपलब्धि के लिए तीव्र अभीप्सा से भरा रहे और उसके उत्तर में भागवत उपस्थिति सदा वहां रहेगी ।

 

अक्तूबर, १९५१

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