The Mother's brief statements on various aspects of spiritual life including some conversations.
Part One consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the early 1930s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. There are also a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication. These reports are identified by the symbol § placed at the end. Part Two consists of thirty-two conversations not included elsewhere in the Collected Works. The first six conversations are the earliest recorded conversations of the 1950s' period. About three-fourths of these conversations were spoken in French and appear here in English translation.
नींद और स्वप्न
नींद और विश्राम
मैं सो रहा था, ठीक कक्षा में जाने के समय उठ बैठो । क्या भगवान ने मुझे जगाया था ?
आवश्यक नहीं है । अवचेतना का एक भाग हमेशा जगा रहता है, और यह भाग तुम्हें जगाये, इसके लिए अमुक समय पर उठने का संकल्प ही पर्याप्त होता है ।
३ मार्च, १९३३
*
मैं यह जानना जानना चाहूंगा की सारी रात इतनी बेचैनी में क्यों बीती ?
स्पष्ट है सोने से पहले तुमने अपने विचारों को शान्त नहीं किया । लेटते समय तुम्हें हमेशा पहले अपने विचारों को शान्त करना चाहिये ।
२८ जनवरी, १९३५
मैं दर्शन से पहले की रात को कभी नहीं सो सकता । लोग कहते हैं कि यह सन्तुलन का अभाव है । लेकिन इसके विपरीत, मुझे लगता है कि आपकी जाग्रत् उपस्थिति के कारण ऐसा एोता है । मैं किसी तरह की अशान्ति का अनुभव नहीं करता । मेरे ख्याल से यह ठीक है । ऐसा नहीं है क्या ?
कभी-कदास, तीन-चार महीने में एक रात न सोने से बहुत फर्क नहीं पड़ता बशर्ते कि तुम बाकी समय अच्छी तरह सोओ ।
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मैं तुम्हें अच्छी तरह सोने और पर्याप्त विश्राम लेने की सलाह दूंगी । काम नियमित रूप से और निरन्तर अच्छी तरह कर सकने के लिए यह अनिवार्य है ।
मेरे आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ हैं ।
नींद ऐसा विद्यालय है जिसमें से मनुष्य को गुजरना पड़ता है अगर वह यह जानता है कि वहां अपने पाठ को कैसे सीखा जाये, ताकि आन्तरिक सत्ता भौतिक आकार से मुक्त, अपने अधिकार के बारे में सचेतन और अपने जीवन की स्वामिनी हो जाये । सत्ता के कुछ ऐसे पूरे-के-पूरे भाग हैं जिन्हें बाहरी यानी शरीर की सत्ता की इस निश्चलता और अर्ध-चेतना की आवश्यकता होती है ताकि वे अपना जीवन स्वतन्त्रता के साथ जी सकें ।
यह और एक परिणाम के लिए एक और विद्यालय है, लेकिन फिर भी है यह विद्यालय ही । अगर तुम अधिकाधिक सम्भव प्रगति करना चाहते हो तो तुम्हें अपनी रातों का उसी तरह उपयोग करना आना चाहिये, ठीक उसी तरह जिस तरह तुम अपने दिनों का उपयोग करते हो । बस, सामान्यत: लोगों को इसका पता बिलकुल नहीं होता कि इसे किया कैसे जाये; वे जगे रहने की कोशिश करते हैं और इससे जो कुछ मिलता है वह केवल भौतिक और प्राणिक असन्तुलन होता है, और कभी-कभी तो मानसिक असन्तुलन भी ।
शरीर की वर्तमान अवस्था में नींद अनिवार्य है । अवचेतना पर उत्तरोत्तर नियन्त्रण द्वारा ही नींद को अधिकाधिक सचेतन बनाया जा सकता है ।
२५ जनवरी, १९३८
मैं अनुभव से जानती हूं कि भोजन कम कर देने से नींद सचेतन नहीं हो जाती; शरीर बेचैन हो उठता है लेकिन यह चीज किसी भी तरह चेतना को नहीं बढ़ाती । अच्छी, गहरी और शान्त नींद में ही तुम अपने गभीरतर
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भाग के सम्पर्क में आ सकते हो ।
४ अगस्त, १९३७
मैं आशा करती हूं कि तुम जल्दी ही पूरी तरह ठीक हो जाओगे और थकान अनुभव न करोगे । लेकिन क्या तुम पर्याप्त मात्रा में खाते हो ? कभी-कभी भूख ही आदमी को सोने नहीं देती ।
साधना के लिए उचित विश्राम बहुत महत्त्वपूर्ण है ।
२ मार्च, १९४२
तुम्हें विश्राम करना चाहिये--लेकिन वह एकाग्र शक्ति का विश्राम हो, विरोधी शक्तियों के प्रति मन्द अप्रतिरोध का विश्राम नहीं । ऐसा विश्राम जो शक्ति हो, दुर्बलता का विश्राम नहीं ।
सोने से पहले विश्राम करना
स्वप्न में की जा सकने वाली खोजों का कोई अन्त नहीं । लेकिन एक चीज बहुत महत्त्वपूर्ण है : जब तुम बहुत थके हुए हो तो कभी सोने मत जाओ क्योंकि अगर तुम सोने जाते हो तो तुम एक तरह की अचेतना में जा गिरते हो और सपने तुम्हारे साथ मनमानी कर सकते हैं, और तुम उन पर जरा भी नियन्त्रण करने में असमर्थ होते हो । जैसे तुम्हें खाने से पहले हमेशा विश्राम करना चाहिये, उसी तरह मैं तुम सबको सलाह दूंगी कि सोने से पहले विश्राम किया करो । पर तुम्हें विश्राम करना आना चाहिये ।
इसे करने के कई तरीके हैं । एक यह है : सबसे पहले, अपने शरीर को ढीला छोड़ दो, आराम से या तो बिस्तर पर या आराम-कुर्सी पर लेट
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जाओ । फिर अपनी स्नायुओं को सबको एक साथ या एक-एक करके ढीला छोड़ते जाओ जब तक कि तुम पूरी तरह से शिथिल न हो जाओ । यह कर लेने के बाद, और जब तुम्हारा शरीर बिस्तर पर लत्ते की तरह पड़ा हो तो अपने मस्तिष्क को शान्त और स्थिर करो, यहां तक कि वह स्वयं अपने बारे में सचेतन न रहे । इसके बाद धीरे-धीरे , अलक्ष्य रूप से इसी अवस्था से नींद में चले जाओ । जब तुम अगली सुबह जागोगे तो ऊर्जा से भरपूर होगे । इसके विपरीत, अगर तुम एकदम थके हुए, बिना अपने-आपको शिथिल किये, सो जाओ तो तुम एक ऐसी भारी, जड़ और अचेतन नींद में जा गिरोगे जहां प्राण अपनी सारी ऊर्जा गंवा बैठेगा ।
यह सम्भव है कि तुम परिणाम तुरन्त न पा सको लेकिन लगे रहो ।
कृछ समय से मुझे आन्तरिक और बाह्य खलबली के कारण से नींद में परेशानी हो रही है । मैं आपसे सहायता के लिए प्रार्थना करता हूं ।
सोने से पहले, जब तुम सोने के लिए लेटो, तो भौतिक रूप से अपने-आपको शिथिल करना शुरू करो (मैं इसे कहती हूं बिस्तर पर लत्ता बन जाना) ।
फिर अपनी भरसक सचाई के साथ, अपने- आपको, पूर्ण शिथिलता में भगवान् के हाथों में समर्पित कर दो, और... बस इतना ही ।
जब तक तुम सफल न हो जाओ कोशिश करते रहो और फिर तुम देखोगे ।
आशीर्वाद ।
मार्च, १९६९
स्वप्न
साधारणत: मैं स्वप्नों को कोई अर्थ नहीं देती, क्योंकि हर एक के अपने प्रतीक होते हैं जिसका केवल उसी व्यक्ति के लिए अर्थ होता है ।
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जब हम अगली बार मिलेंगे तब मैं इस सन्दर्भ में कुछ ब्योरों के बारे में बतलाऊंगी । तब तक इन कागजों को मैं अपने पास ही रखूंगी । (केवल श्रीअरविन्द ओर मैं इन कागजों को देखेंगे ।)
पहले स्वप्न में हम रंगशाला को इस जगत् का प्रतीक मान सकते हैं जहां सब कुछ लीला है--किसी चीज का आभास है लेकिन चीज स्वयं नहीं है । यहां आन्तरिक और भागवत अधिकार द्वारा नहीं बल्कि परिस्थितियों और जन्म के सम्मिश्रण के परिणामस्वरूप राजा और रानी बनते हैं ।
मेरा ख्याल है मेरे साथ तुम्हारे मिलने के मार्ग में जो बाधाएं (आन्तरिक और बाह्य) थीं वे उन कठिनाइयों की प्रतिनिधि हैं जिन्हें सच्ची चेतना के साथ ऐक्य स्थापित करने के लिए पार करना होगा ।
दूसरा स्वप्न तुम्हारी अवचेतना में पड़ा सामाजिक परिवेश और उन पर तुम्हारी प्रतिक्रियाओं के पुराने संस्कारों का मूर्त रूप लगता है ।
तीसरे में हमेशा की तरह, रेल रास्ते की और लक्ष्य की और यात्रा की रूपक है । व्यक्तियों का समुदाय विभिन्न दल (गुप्त समुदाय इत्यादि) हैं जो इस उद्देश्य के लिए बने हैं । जिस समुदाय में तुम्हें जाना था वह वह समुदाय था जिससे तुम सम्बद्ध हो गये थे--यह उन लड़कों से बना था जो तुम्हारे साथ तुम्हारे पहले ''विद्यालय'' में थे; चित्र स्पष्ट है लेकिन सम्बन्ध के बारे में तुमने यह अनुभव किया कि वह निश्चित न था ।
ये दोनों ही स्वप्न (क्या वे केवल रूाप्न हैं ?) पहले स्वप्नों की अपेक्षा कहीं अधिक विशिष्ट गुण वाले हैं ।
पहला, आन्तरिक अवस्था और क्रिया के उन प्रतीकात्मक प्रतिलेखों में से एक लगता है जिसे तुम बहुधा नींद में पाते हो । जो चीज मुझे बहुत स्पष्ट दीखती है वह यह कि तैरते समय जिस आशंका का तुमने अनुभव किया था (लक्ष्य तक न पहुंच पाने का भ्रम) उसमें किसी भी सच्चे आधार के अभाव को यह स्वप्न कितने मार्मिक रूप से दिखलाता है । क्योंकि तट तक पहुंचने के लिए तुम पर बरसायी गयी सुरक्षा तुम्हें वहां ले आती है जब कि प्रत्यक्ष अवस्थाओं और परिस्थितियों को देख कर लगता है कि वे तट से दूर खींचे ले जा रही हैं ।
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ब्योरों के अभाव में यह कहना कठिन है कि मोटरबोट ठीक-ठीक किसका प्रतीक है ।
दूसरा, निश्चय ही रूाप्न नहीं वास्तविकता है, भले वह बाहरी चेतना के आगे ढकी हुई हो । वह श्रीअरविन्द की सतत उपस्थिति और घनिष्ठ तथा सच्चे सम्बन्ध द्वारा दी गयी सहायता की वास्तविकता की आकर्षक अभिव्यक्ति है । यह एक अमूल्य अनुभूति है जो स्मृति के सबसे पवित्र कोने में संजोने योग्य है ।
छह सोफे : आसन, सृष्टि की शक्तियों के आधार (६) इनमें से एक अब तक दानवी शक्तियों के आधीन है (अन्तिम, सबसे अधिक जड़- भौतिक) ।
सेविका : जिसने हमें ''भूलभुलैया'' में से रास्ता दिखाया, हमें भोजन दिया और अन्धकार में रास्ता ढूंढने के लिए एक धुंधलकी रोशनी (बहुत ही धीमी टार्च) भी दी, निम्न प्रकृति थी; उसने यह कहते हुए अपनी सेवाओं का मूल्य मांगा कि ''दूसरा सज्जन '' (दानव) हमेशा मूल्य देता था ।
स्थान : भौतिक चेतना में कोई प्राणिक परत ।
२० फरवरी, १९३२
दर्शन का दिन था । आप श्रअरविन्द के साथ थीं। मैं दौड़कर श्रीअरविन्द की बांहों में चला गया । उन्होंने मुझे बहुत आनन्द के साथ यह कहते हुए सहलाया कि वे मुझे उठाने आये हैं । मैं उनकी गोदी में था । आपने भी मुझे धीमे से, आपको भेजी हुई मेरी प्रार्थनाओं में से एक प्रार्थना सुनाता हुए धीमे से सहलाया ।
स्वप्न चैत्य संस्कार का परिणाम है जो सोते समय सतह पर उठ आया ।
१९ मार्च, १९३६
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साधारणत: सोते समय मैं आपको कम-से-कम एक बार स्मरण करने की कोशिश करता हूं । मुझे आश्चर्य होता कि फिर ये कलुषित स्वप्न क्यों आते हैं जब कि मुझे स्वप्न आपके बारे में आना चाहिये । अशुभ को दूर करने के लिए आपके किसी भी पथ-प्रदर्शन का स्वागत है अगर उसका अनुसरण करने के लिए आप कृपापूर्वक मुझे पर्याप्त संकल्प और शक्ति दें ।
जीतने के लिए अपने अन्दर निरन्तर सच्चा संकल्प बनाये रखो ।
२० जुलाई, १९४७
अपने स्वप्नों को नियन्त्रण में रख कर व्यक्ति बहुत कुछ सीख सकता है ।
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