The Mother's brief statements on various aspects of spiritual life including some conversations.
Part One consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the early 1930s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. There are also a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication. These reports are identified by the symbol § placed at the end. Part Two consists of thirty-two conversations not included elsewhere in the Collected Works. The first six conversations are the earliest recorded conversations of the 1950s' period. About three-fourths of these conversations were spoken in French and appear here in English translation.
सन्देश
नव वर्ष पर प्रार्थनाएं१
१९३३
नये वर्ष के जन्म के साथ-साथ हमारी चेतना का भी नया जन्म हो ! चलो , भूतकाल को बहुत पीछे छोड़कर हम ज्योतिर्मय भविष्य की ओर दौड़ चलें ।
*
१९३४
हे प्रभु, वर्ष का अन्त हो रहा है और हमारी कृतज्ञता तेरे सामने झुक रही हे ।
हे नाथ ! वर्ष का नया जन्म हो रहा है ओर हमारी प्रार्थना तेरी ओर उठ रही है ।
वर दे कि यह हमारे लिए भी एक नये जीवन की उषा हो ।
१९३५
हे प्रभु ! हमारे अन्दर जो कुछ बनावटी और मिथ्या है, जो कुछ ऊपरी दिखावा और अनुकरण करने वाला है, वह सब कुछ आज२ सन्ध्या समय हम तुझे समर्पित कर रहे हैं । वह सब कुछ समाप्त होने वाले वर्ष के साथ- साथ हमारे अन्दर से गायब हो जाये । जो कुछ पूरी तरह से सत्य, निष्कपट, ऋजु और पवित्र है वही आरम्भ होने वाले नये वर्ष में हमारे अन्दर बना रहे ।
१ हर वर्ष पहली जनवरी को दिये गये सन्देश ।
२ ३१ दिसम्बर, १९३४ की शाम को ।
१८२
१९३६
हे प्रभो ! यह वर्ष तेरी विजय का वर्ष हो ! हम ऐसी पूर्ण निष्ठा के लिए अभीप्सा करते हैं जो हमें उस विजय के योग्य बनाये ।
१९३७
तेरी जय हो प्रभो ! सब विघ्नों पर विजय पाने वाले नाथ ! तेरी जय हो ! ऐसी कृपा कर कि हमारे अन्दर कोई भी चीज तेरे कार्य में बाधक न हो ।
१९३८
हे प्रभो ! वर दे कि हमारे अन्दर की प्रत्येक चीज तेरी सिद्धि के लिए तैयार हो जाये ! इस नये वर्ष की देहली पर खड़े होकर हम तुझे नमस्कार कर रहे हैं, हे प्रभो ! हे परम सिद्धिदाता !
१९३९
यह शुद्धि का वर्ष होगा ।
हे प्रभो, भगवान् के काम में भाग लेने वाले सभी कार्यकर्ता तुझसे प्रार्थना करते है कि परम पवित्रीकरण द्वारा वे अहंकार के शासन से मुक्त हो जायें ।
१९४०
नीरवता और प्रत्याशा का वर्ष...
१८३
भगवान् ! हम एकमात्र तेरी कृपा पर पूरी तरह आश्रित रहें ।
१९४१
संसार अपने आध्यात्मिक जीवन की रक्षा करने के लिए युद्ध कर रहा है जिसे विरोधी और आसुरिक शक्तियों के आक्रमण ने संकट में डाल रखा है ।
हे प्रभो ! हम यह अभीप्सा करते हैं कि हम तेरे वीर योद्धा बनें ताकि तेरी महिमा इस पृथ्वी पर अभिव्यक्त हो ।
१९४२
तेरी जय हो, सब शत्रुओं पर विजय पाने वाले प्रभु ! तेरी जय हो ! हमें ऐसी शक्ति दे कि हम अन्त तक अचल- अटल बने रहें और तेरी विजय में भाग ले सकें ।
१९४३
वह समय आ गया है जब हमें एक चुनाव, मौलिक और सुनिश्चित चुनाव करना होगा ।
हे प्रभो ! हमें ऐसी शक्ति दे कि हम मिथ्यात्व का त्याग कर सकें, पवित्र और तेरी विजय के उपयुक्त पात्र बनकर तेरे सत्य में ऊपर उठ सकें ।
१९४४
हे प्रभो, समस्त मनुष्य जाति तुझसे प्रार्थना करती है कि तू उसे बार-
१८४
बार उन्हीं मूर्खताओं में जा गिरने से बचा ।
ऐसी कृपा कर कि जो भूलें पहचानी जा चुकी हैं, वे फिर से नये सिरे से दुहरायी न जायें ।
अन्त में, वर दे कि मनुष्यजाति के कर्म उन आदर्शों को ठीक-ठीक और सच्चे तौर पर प्रकट करें जिनकी उसने घोषणा की है ।
१९४५
यह पृथ्वी तब तक सजीव और स्थायी शान्ति का उपभोग नहीं कर सकती जब तक मनुष्य अपने अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहारों में भी पूर्ण रूप से सत्यपरायण होना नहीं सीख लेते ।
हे प्रभो ! हम इसी पूर्ण सत्यपरायणता के लिये अभीप्सा करते हैं ।
१९४६
हे प्रभो ! हम तेरी शान्ति चाहते हैं, शान्ति का व्यर्थ आभास नहीं; तेरी स्वतन्त्रता चाहते हैं, स्वतन्त्रता का दिखावा नहीं; तेरी एकता चाहते हैं, एकता की छायमूर्ति नहीं । कारण एकमात्र तेरी शान्ति, तेरी स्वतन्त्रता और तेरी एकता ही उस अन्धी हिंसा, छल-कपट और मिथ्यात्व को जीत सकती है जो अभी तक पृथ्वी पर राज्य कर रहे हैं ।
हे नाथ ! वर दे जिन लोगों ने तेरी विजय के लिए इतनी बहादुरी के साथ युद्ध किया है और दुःख झेला है, वे इस विजय के सच्चे और वास्तविक परिणामों को इस जगत् में चरितार्थ होते देखें ।
१८५
१९४७
जिस समय हर चीज बुरी से अधिक बुरी अवस्था की ओर जाती हुई प्रतीत होती है, ठीक उसी समय हमें अपनी महती श्रद्धा का परिचय देना चाहिये ओर यह जानना चाहिये कि भगवत्कृपा कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेगी ।
१९४८
बढ़ते चलो, निरन्तर बढ़ते चलो !
सुरंग के अन्त में है ज्योति...
युद्ध के अन्त में है विजय !
१८६
१९४९
हे नाथ, नये वर्ष से पहले की शाम को मैंने तुझसे पूछा कि मुझे क्या कहना चाहिये । तूने मुझे दो चरम सम्भावनाएं दिखा दीं और चुप रहने का आदेश दिया ।
१९५०
बोलो मत, करो ।
घोषणा न करो, कार्यान्वित करो ।
१९५९
नाथ, हम धरती पर तेरा रूपान्तर का काम पूरा करने के लिए हैं । यही हमारा एकमात्र संकल्प और हमारी एकमात्र धुन है । वर दे कि यही
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हमारा एकमात्र कार्य हो और हमारे सब कर्म इसी एक उद्देश्य की ओर बढ़ने में सहायक हों ।
१९५२
हे नाथ, तूने हमारी श्रद्धा की गुणवत्ता की परीक्षा लेने और हमारी सच्चाई को अपनी कसौटी पर परखने का निश्चय किया है । वर दे कि हम इस अग्नि-परीक्षा में से अधिक विशाल और अधिक पवित्र होकर निकलें ।
१९५३
नाथ, तूने हमसे कहा है : हार न मानो, डटे रहो । जब सब कुछ डूबता हुआ लगता है तभी सब कुछ बचा लिया जाता है ।
१९५४
मेरे स्वामी, इस साल के लिए सबको तुम्हारी यही सलाह है :
'' किसी चीज के बारे में डीग न मारो । तुम्हारे कार्य ही तुम्हारे लिए बोलें ।''
१९५५
कोई मानवीय संकल्प भागवत संकल्प के सामने नहीं टिक सकता । आओ, हम अपने- आपको स्वेच्छा के साथ, अनन्य भाव से भगवान् के पक्ष में रखें, और अन्त में विजय निश्चित है ।
१८८
१९५६
बड़ी-सेबड़ी विजयें सबसे कम शोर मचाने वाली होती हैं ।
नये जगत् के प्रकट होने की घोषणा ढोल बजाकर नहीं की जाती ।
१९५७
विजय केवल वही शक्ति पा सकती है जो विरोधी अशुभ शक्ति से ज्यादा महान् हो ।
क्रूस पर चढ़ा हुआ शरीर नहीं, महामहिमान्वित शरीर ही संसार का उद्धार करेगा ।
१८९
१९५८
हे प्रकृति, हमारी पार्थिव मां ! तूने कहा हे कि तू सहयोग देगी और इस सहयोग की भव्य महिमा की कोई सीमा नहीं ।
१९०
निश्चेतना की एकदम तली में जहां वह बहुत कठोर, अनम्य, संकरी और दमघोंटू है मैं एक ऐसी सर्वसशक्त कमानी पर जा पहुंची जिसने तुरन्त मुझे निराकार, निःसीम ' बृहत्' में उछाल दिया जो एक नये जगत् के बीजों से स्पन्दित हो रहा था ।
१९६०
जानना अच्छा है,
जीना और भी अच्छा है,
होना, वह सबसे अच्छा है ।
१९६१
आनन्द की यह अद्भुत सृष्टि, धरती पर उतरने के लिए हमारी पुकार की प्रतीक्षा में हमारे द्वारे खड़ी है ।
१९६२
हमें पूर्णता की प्यास है । लेकिन उस मानव पूर्णता की नहीं जो अहंकार की पूर्णता है और दिव्य पूर्णता में बाधा देती है ।
लेकिन उस एकमात्र पूर्णता की जिसमें 'शाश्वत सत्य' को धरती पर प्रकट करने की शक्ति है ।
१९१
१९६३
चलो, भागवत मुहूर्त के लिए तैयारी करें ।
१९६४
क्या तुम तैयार हो ?
१९२
१९६५
सत्य के आगमन को नमस्कार ।
१९६६
आओ, हम सत्य की सेवा करें ।
१९६७
मनुष्यो, देशो और महाद्वीपो !
चुनाव अनिवार्य है :
सत्य या फिर रसातल ।
१९६८
हमेशा युवा बने रहो, पूर्णता प्राप्त करने का प्रयास कभी बन्द मत करो ।
१९६९
कथनी नहीं-करनी ।
१९३
१९७०
जगत् एक बहुत बड़े परिवर्तन की तैयारी कर रहा है ।
क्या तुम सहायता करोगे ?
१९७१
धन्य हैं वे लोग जो भविष्य की ओर छलांग मारते हैं ।
१९७२
आओ, हम सब श्रीअरविन्द की शताब्दी के योग्य बनने की कोशिश करें ।
१९७३
जब तुम एक ही साथ समस्त संसार के बारे में सचेतन होते हो तब तुम भगवान् के बारे में सचेतन हो सकते हो ।
नव वर्ष के सन्देशों पर टिप्पणियां
१९४
यह सामान्य सिद्धान्त का प्रश्न नहीं है; यह वस्तुओं की वास्तविकता से सम्बन्ध रखता है । असुर मिथ्यात्व की शक्ति है और भगवान् का विरोधी है । सारे भौतिक जगत् पर वह मानों एकछत्र राज करता है । उसका प्रभाव हर जगह, जड़ जगत् की हर चीज में अनुभव होता है । लेकिन अब समय आ गया है जब इन्हें अलग और शुद्ध किया जा सकता है, मिथ्यात्व और आसुरिक प्रभाव का वर्जन कर भागवत सत्य में अनन्य भाव से रहा जा सकता है ।
३ जनवरी, १९४३
यह प्रार्थना नहीं है बल्कि एक प्रोत्साहन हे ।
वह प्रोत्साहन और उसकी व्याख्या इस प्रकार हे :
'' जिस समय हर चीज बुरी से अधिक बुरी अवस्था की ओर जाती हुई प्रतीत होती है, ठीक उसी समय अपनी महती श्रद्धा का परिचय देना चाहिये और यह जानना चाहिये कि भगवत्कृपा कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेगी ।''
उषा से पहले की घड़ियां सदा ही घनघोर अंधकार से भरी होती हैं । स्वतन्त्रता आने से ठीक पहले की परतन्त्रता सबसे अधिक दुःखदायी होती है ।
परन्तु श्रद्धा से मण्डित हृदय में आशा की वह सनातन ज्योति जलती रहती हे जो निराशा के लिए कोई अवकाश नहीं देती ।
१९९
जाये । यह सच नहीं है ।
भागवत कृपा तुम्हारी अभीप्सा की चरितार्थता के लिए कार्य करती है और सबसे अधिक तत्पर, सबसे तेज चरितार्थता पाने के लिए सभी चीजों की व्यवस्था की जाती है-- अत: डरने की कोई बात नहीं ।
भय कपट से आता है । अगर तुम आरामदेह जीवन, अनुकूल परिस्थितियां इत्यादि चाहो, तो तुम शर्तों और सीमाओं को लगाते हो, और तब तुम भयभीत हो सकते हो ।
लेकिन इसका साधना के साथ कोई सम्बन्ध नहीं ।
२६ मई, १९६७
सहायता करोगे ?
नव वर्ष के सन्देश में आपने जिस महान् परिवर्तन के बारे में कहा है उसमें हम किस तरह सहायता कर सकते हैं ?
सहायता करने का सबसे अच्छा तरीका है--धरती पर जो परम चेतना उतरी है उसे अपने अन्दर रूपान्तर का कार्य करने देना ।
९ जनवरी, १९७०
'' भविष्य के लिए काम करने'' का क्या अर्थ है ?
आरम्भ करने के लिए, पुरानी व्यक्तिगत और राष्ट्रीय आदतों से चिपके न रहना ।
⁂
वर दे, यह वर्ष सच्ची दयालुता से--जो भागवत अनुकम्पा की मानव सन्तान है--आने वाले आनन्द की दीप्तिमान शान्ति का वर्ष हो ।
२००
हम यह आशा भी करें कि यह वर्ष हमें एक बार फिर से एक साथ लाये बिना न गुजरे ।
वर दे, नव वर्ष की उषा हमारे लिए भी एक नये ओर अधिक अच्छे जीवन की उषा हो ।
माताजी, नव वर्ष के सूर्यालोक की प्रथम किरण के साथ मेरे समस्त अज्ञान और अहं को दूर कर दीजिये ।
अपने प्रकाश को मेरे अन्दर प्रज्ज्वलित कीजिये और ऐसा हो कि यह प्रकाश मेरे अन्दर एक ऐसी चेतना को जन्म दे जो आपके परम आनन्द से भरपूर हो ।
हां नये वर्ष से अज्ञान के धुएं को दूर करना होगा ओर प्रकाश को प्रज्जलित करना होगा ।
मेरे आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं ।
२०१
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