The Mother's brief statements on various aspects of spiritual life including some conversations.
Part One consists primarily of brief written statements by the Mother on various aspects of spiritual life. Written between the early 1930s and the early 1970s, the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. About two-thirds of them were written in English; the rest were written in French and appear here in English translation. There are also a small number of spoken comments, most of them in English. Some are tape-recorded messages; others are reports by disciples that were later approved by the Mother for publication. These reports are identified by the symbol § placed at the end. Part Two consists of thirty-two conversations not included elsewhere in the Collected Works. The first six conversations are the earliest recorded conversations of the 1950s' period. About three-fourths of these conversations were spoken in French and appear here in English translation.
व्यावहारिक बातें
सामान्य
किसी भी बहाने साइकिलें बाहर धूप में नहीं छोड़ी जानी चाहियें ।
२७ फरवरी, १९३३
*
फ्रेंच के बारे में चिन्ता न करो; तुम थोड़ी- थोड़ी करके सीख जाओगे ।
हाइड्रोजन पैरोक्साइड महंगा है । मैं यह जानना चाहूंगा कि क्या मैं नुस्खे में इसे लिख सकता हूं ?
तुम अभी के लिए दे सकते हो और बाद में जब 'क' ज्यादा अच्छा हो जाये तो पैरोक्साइड के स्थान पर पोटैशियम क्लोरेट का उपयोग करो ।
३१ मार्च, १९३५
सुब्बू हाउस में लगे पेड़ हमारे नहीं बल्कि मकान मालिक के हैं और उन्हें मकान मालिक की अनुमति के बिना नहीं काटा जा सकता ।
इससे भिन्न कुछ और करने से हम बहुत मुश्किल में पड़ सकते हैं ।
१९३७
चूंकि तुम चिमटियों (ट्वीजर्स) का ऑर्डर दे रहे हो, इसलिए ज्यादा अच्छा होगा कि एक ही साथ दूसरी चीजों का भी ऑर्डर दे दो जिनकी तुम्हें जरूरत हो । उनकी अचानक आवश्यकता पड़ सकती है और तब ऑर्डर देने का समय नहीं होता । इस तरह थोड़ा-थोड़ा करके खरीद लेने से, एक दिन हमारे पास समुचित सामान जुट जायेगा ।
आशीर्वाद ।
६ जुलाई १९३८
२९२
मैं तुम्हारे सितार सीखने की बहुत आवश्यकता नहीं देखती--लेकिन अगर तुम्हें मजा आता है तो तुम जारी रख सकते हो ।
मेरे आशीर्वाद सहित ।
२८ मार्च, १९४०
माताजी,
मैंने जो घर अपने लोगों के लिया है वह किसी यक्ष्मा के रोगी का था । इस बात का तब पता चला जब में घर के लिए पैसा दे चुका था । लकिन फिर हमने सारे घर को धुलवाया और कुछ कमरों में गन्धक जलाया । इस विचार ने परेशान नहीं किया कि यक्ष्मा का मरीज यहां रह चुका है, क्योंकि वह करीब ६ महीने पहले चला गया था ।
फिर भी वातावरण में संक्रमण का भय फेंका जा चुका है, अत: मैं आपसे उन सबकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता हूं जो वहां रहेंगे ।
चूंकि घर को अच्छी तरह साफ और रोगाणमुक्त किया जा चुका है, इसलिए किसी तरह का कोई खतरा नहीं है । उन लोगों को डरना नहीं चाहिये ।
मेरे आशीर्वाद ।
१९ फरवरी, १९४०
अगर आज रात को दर्द न चला जाये, तो कल आराम करना ज्यादा अच्छा होगा ।
मेरा प्रेम और आशीर्वाद ।
२७ जुलाई, १९३९
फरिश्ते कौन हैं ? विश्व में उनका क्या कार्य ई ? हम उनके साथ
२९३
किस तरह सम्बन्ध जोड़ सकते हैं ? क्या ऐसी किताबें प्राप्य हैं जो बता सकें कि आरम्भ कैसे करें ? कृपया मुझे इन चीजों के बारे में कुछ बताइये ।
संक्षेप में तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देना असम्भव है ।
मैं ऐसी कोई किताब नहीं जानती जो इस विषय पर कोई मूल्यवान् जानकारी दे ।
२ जून, १९४०
(दलाई लामा के पुनर्जन्म और उसकी खोज की कहानी के बारे में)
एक समय मैं उनकी कहानी जानती थी, लेकिन अब मैं भूल चुकी हूं, अत: मैं इस बारे में एक सामान्य वक्तव्य के सिवाय और कुछ नहीं कह सकती कि मनुष्य ऐसी किसी चीज की कल्पना नहीं कर सकता जो कम- से-कम एक बार भी न घटी हो; अत: वक्तव्य के पीछे हमेशा कोई सत्य होता है । भूल है उसे व्यापक बनाकर एक नियम गढ़ लेना ।
मेर माता-पिता प्राय: मुझसे जेबखर्च के कुछ रुपये रखने के लिए कहते हैं, लेकिन मैं इसलिए मना करता आया हूं कि मैं यह नहीं चाहता कि वे यह अनुभव करें कि मुझे यहां किसी चीज का अभाव है । आपके ख्याल से छोटे-मोटे खर्चों के लिए कुछ रुपये रखना मेरे वाच्छनीय है ?
तुम जेबखर्च के रूप में कुछ रुपये रख सकते हो ।
२५ सितम्बर, १९४०
२९४
जब तुम किसी से ''बोंजूर '' (फ्रेंच शब्द जिसका अर्थ है सुप्रभातम्) कहते हो, तो तुम उसके लिए अच्छे दिन की शुभाकांक्षा प्रकट करते हो । अगर तुम यह सचेतन रूप से, तुम जो कह रहे हो उसके बारे में सोच कर करो तो बोंजूंर '' शब्द में महान् शक्ति आ जाती है और वह दिन को अच्छा दिन बनाने में सहायता करती है ।
७ अक्तूबर, १९५१
( किसी ने माताजी को परिचित व्यक्ति के बारे में लिखा । अन्त में लिखा : )
१९५७ में जब मैं भारत आया तो मैंने स्पष्ट स्वप्न देखा कि यह आदमी मुझे ५०,००० डालर देगा- जो ''क'' के मकान का दाम है (जैसा कि मैं अब जानता हूं) क्या आप इसमें कोई मजेदार चीज देखती हैं ? आपके सम्पर्क करने के लिए मैंने एक स्पष्ट मानसिक चित्र देने का प्रयत्न किया है ।
तुम इसके बारे में उसे लिख सकते हो और परिणाम के लिए, जो निश्चय ही परम प्रभु के हाथों में है, अचञ्चल श्रद्धा के साथ प्रतीक्षा करो ।
प्रेम और आशीर्वाद सहित ।
१४ अप्रैल, १९६३
मुझसे कहा गया कि स्टूडियो की उत्तरी और दक्षिणी दीवारों पर केवल सादा कांच लगाया जायेगा | अगर ऐसा हुआ तो का विषय होगा। ये दोनों हिस्से पूरी तरह से कांच से ढके हैं जैसे-जैसे सूरज उत्तर में जाता है, उत्तर-पूर्व से तेज रोशनी अन्दर आती है । जब सूर्य दक्षिण में जाता तब भी यही होता है । कांच ऊंचे हैं कि उस ऊंचाई पर पर्दे भी नहीं लगाये जा सकते ।
सादे कांच को घिसे हुए कांच (ग्राउर्ड ग्लास) में बदलना कोई
२९५
मुश्किल काम नहीं है । केवल और एक दो महीने की बात है । कांच जुटाने में १८ महानने लगे हैं, और दो महीनों में कोई फर्क नहीं पहना चाहिये ।
मुझे विश्वास है कि अगर तुम सब जगह तुषारित कांच (फ्रॉस्टेड ग्लास) लगाओगे तो कमरे में इतना अंधेरा हो जायेगा कि वहां काम करना असम्भव होगा ।
इसीलिए मैंने "क'' को इस विषय में उत्तर नहीं दिया था ।
लेकिन अब मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से बता सकती हूं कि मैं क्या देखती हूं । बहरहाल, अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण होगा कि कांच पर हल्का स्प्रे किया जाये ताकि, अगर बहुत अंधेरा लगे तो स्प्रे निकाला जा सके ।
७ अगस्त, १९६३
मधुर मां,
'क' के नये किरायेदारों ने नीचे के सभी दरवाजों पर ताला लगा दिया है जिससे मैं अब स्नानागार आदि का उपयोग नहीं कर सकता । चूंकि मेरे कमरे के लिए स्नानागार आदि नहीं हैं, मैं क्या करूं ?
शुरू से ही मैंने तुम्हारे व्यक्तिगत उपयोग के लिए, तुम्हारे दूसरे कमरे में एक कमोड और जिंक टब रखने के लिए कहा था ताकि तुम औरों से एकदम स्वतन्त्र रहो । मुझे मालूम है कि पानी की व्यवस्था हो गयी है । यह कैसी बात है कि कमोड और टब वहां नहीं लगाये गये ?
नीचे की व्यवस्था नीचे रहने वालों के लिए है, और वहां रहने वालों को उसे बन्द करने का पूरा अधिकार है ।
२३ अगस्त, १९६३
२९६
जो स्थान तुम्हारे लिए रखे गये हैं उनमें से किसी एक में मैं तुम्हें केवल कुछ समय के लिए जाने के लिए कह रही हूं ।
तुम्हारा इन्कार मुझे मुश्किल में डाल देगा क्योंकि मैं वचन दे चुकी हूं ।
ये कलकत्ते से आये हुए कुछ छापे के प्रूफ हैं । ये सारे बहुत अच्छे नहीं हैं । मैं कुछ सशोधन करने के लिए कह रहा हूं ।
ये प्रूफ अच्छे नहीं हैं । तुम उनसे और क्यों करवाना चाहते हो ? वे तो बस काम को खराब कर रहे हैं और यह समय और धन दोनों का बहुत बड़ा अपव्यय है । प्राय: ये सभी चित्र, जैसे वे हैं, अनुपयोगी हैं और इन्हें दुबारा करना होगा ।
मैं उन्हें और काम देने के बारे में सहमत नहीं हो सकती ।
१२ जनवरी, १९६६
क्या हमें अपनी कृषि-योजना रासेन्द्रन के बगीचे में फिर से बनानी चाहिये, या ऐनी हाउस में काम करना चाहिये, या फिर दोनों जगह करने का प्रयास करना चाहिये ?
अगर तुम्हारे अन्दर दोनों जगह अच्छी तरह करने की सामर्थ्य है तो दोनों करो । अगर तुम्हारी सारी ऊर्जा एक में ही लग जाती है तो ऐनी हाउस पर केन्द्रित होओ ।
४ मई, १९६६
२९७
आप संस्कृति के नये जीवन के बारे में जो चाहती हैं उसके लिए हम एक सन्देश चाहेंगे जिसकी एक झलक आपने अपने १९६७ के ११ नवम्बर के वार्तालाप में दी थी । हम इस सन्देश का अनुवाद करके आश्रम की पत्रिकाओं में छापना चाहें, क्योंकि कुछ शिष्य यह जानना चाहते हैं कि आपने इस विषय में क्या कहा है ।
मैं किसी सन्देश की कोई आवश्यकता नहीं देखती । सन्देश केवल उन्हें विश्वास दिलाते हैं जिन्हें पहले से ही विश्वास है ।
संस्कृत सीखना और उसे सचमुच जीवन्त भाषा बनाना अधिक अच्छा होगा ।
१६ अगस्त, १९६९
माताजी, मैं गनपावर राकेट के साथ करना चाहता हूं, इन विस्फोटक खतरनाक साधनों के साध कुछ करने से पहले ''क'' ने मुझसे के कहा है । क्या आप अनुमति देंगी ?
अनगढ़ और अविकसित स्वभाव शोर पसन्द करते हैं । विस्फोटक हमेशा खतरनाक होते हैं; ये सब उत्सुकता के विषय नहीं हो सकते ।
२ सितम्बर, १९७१
मुझे लिखने के लिए तुम्हें ऐसे कागज और लिफाफों का उपयोग नहीं करना चाहिये जिनमें पत्रशीर्षक छपे हों-यह अपव्यय है ।
विद्यालय को सूचित कर दो ।
२९८
बेकरी की दीवारों में बहुत चीटियां हैं । वे मजों पर आकर बेकिंग के डब्बों में घुस जाती हैं ।
तुम्हें इसका पता लगाना होगा कि ये कहां से आती हैं, किस छेद से बाहर निकल रही हैं, और वहां उस छेद के पास थोड़ी-सी चीनी रख दो । वे उसे ले जाने में व्यस्त रहेंगी और फिर तुम्हें परेशान न करेंगी ।
माताजी, आज मैंने मौलसिरी के पेड़ पर मधुमक्खी का एक छत्ता देखा । हम इस पेड़ की छाया में काम करते हैं । छत्ता बड़ा होता जायेगा ओर पेड़ बहुत ऊंचा नहीं है । क्या किया जा सकता है ?
अगर तुम उन्हें परेशान न करो तो मुझे नहीं लगता कि वे तुम्हें डंक मारेंगी । लेकिन अगर तुम्हें डर हो...
पकाना और खाना
जब तुम तरकारियों में गेहूं का आटा मिलाना चाहो तो ज्यादा अच्छा होगा कि पहले उसे किसी अलग बर्तन में जरा से पानी में, या ज्यादा अच्छा होगा, सब्जी के रसे में घोल लो । पहले उसे बर्तन में उबालो और बहुत सावधानी के साथ गोल-गोल घुमाते हुए उसे सारे समय चलाते जाओ । जब वह उबल जाये तो तुम उसे तरकारियों में मिला सकते हो, फिर वह बर्तन की तली में नहीं चिपकेगा ।
८ फरवरी, १९३२
बहुत तेज आग खाने को जला देती है, बर्तन को खराब कर देती है और ईंधन को व्यर्थ में नष्ट करती है । धीमी आंच का अर्थ है खाना पकने में कुछ अधिक समय लगना लेकिन इसका अर्थ खाने में एक अधिक अच्छा परिणाम पाना भी है ।
२९९
जल्दबाजी में किया गया काम हमेशा खराब काम होता है; अगर तुम अच्छा परिणाम चाहते हो तो समय लगाना होगा ।
यह कहना कि तुम्हारा बनाया खाना खराब है, ठीक नहीं होगा । ज्यादा-से-ज्यादा मैं इतना कह सकती हूं कि वह हमेशा एक समान अच्छा नहीं होता, लेकिन खराब तो वह हर्गिज नहीं होता, और कुछ चीजें काफी सफल होती हैं । हो सकता है कि आन्तरिक कठिनाइयों का कोई काल तुम पर से गुजरा हो, लेकिन तुम्हें उसमें से पहले से अधिक मजबूत बनकर निकलना ही होगा । जब आन्तरिक कठिनाई चली जायेगी, तो खाना पहले की तरह सदा ही अच्छा होगा ।
२४ दिसम्बर, १९३७
मैंने भोजन, मसालों इत्यादि के प्रभाव के बारे में इतनी परस्पर-विरोधी बातें सुनी हैं कि तार्किक रूप से मैं इस निश्चय पर पहुंची हूं कि दूसरी चीजों की तरह, यह भी व्यक्तिगत मामला होना चाहिये और परिणामस्वरूप कोई व्यापक नियम नहीं बनाया जा सकता और उसे लागू करना तो और भी कम । मेरे ढील देने का यही कारण है ।
अल्युमीनियम के बर्तनों के बारे में मुझे कुछ नहीं बताया गया, उनके लिए मैं स्वीकृति नहीं देती क्योंकि, भोजन के लिए अल्युमिनियम अच्छा नहीं है । मैं अपने निजी अनुभव की बात कर रही हूं ।
तुम जानते हो कि इस बारे में मैं बिलकुल आग्रही नहीं हूं कि नौकर खाने-पीने की चीजों को हाथ लगायें--लेकिन ऐसा लगता है कि बहुतों को यह पसन्द है, मेरा ख्याल है आलस्य के कारण ! !
३००
रसोईघर में, सफाई सबसे अधिक अनिवार्य चीज है ।
खाने में बालों के गिरने को रोकने के लिए, ज्यादा अच्छा है कि खाना बनाते समय सिर को ढके रहो ।
बर्तनों में कीड़े न गिरने पाएं इसके लिए विशेष ख्याल रखना चाहिये ।
औरों के साथ खाते समय जो वातावरण बनता है अगर तुम्हें पसन्द न हो तो मैं इसका कोई कारण नहीं देखती कि तुम उनके साथ खाओ ।
१३ सितम्बर, १९४०
भोतिक दृष्टिकोण से, निश्चय ही बिना जल्दबाजी के, शान्ति के साथ खाना अधिक अच्छा है, ओर मुझे पूरा विश्वास है कि बहुधा तुम इसके लिये समय निकाल सकते हो । बात तो व्यवस्था की है ।
२७ सितम्बर, १९४३
जिस जगह खाना बनता है वहां किये गये सारे झगड़े खाने को अपाच्य बना देते हैं । खाना पकाने का काम शान्ति और सामञ्जस्य में होना चाहिये ।
मार्च, १९६९
एक बचकाना प्रश्न : क्या पशु पक्षियों को भोजन का स्वाद हमारे जैसा ही मिलता है ?
हां, लेकिन वे उसके बारे में हमारी तरह सोचते नहीं ।
३०१
Home
The Mother
Books
CWM
Hindi
Share your feedback. Help us improve. Or ask a question.