दिव्यता की तेजोमय किरण - द्युमान


आमुख

 

गत वर्ष श्री चम्पकलालजी की जन्मशताब्दी के निमित्त 'दिव्यता का पुष्प चम्पकलाल' पुस्तिका प्रकाशित की थी। इस वर्ष इसी परम्परा में द्युमानजी की जन्मशताब्दी के प्रसंग पर 'दिव्यता की तेजोमय किरण  - द्युमान' का जीवनचरित्र प्रकाशित हो रहा है। सुयोग से दोनों पुस्तिकाओं की लेखिका ज्योतिबहन थानकी हैं। ज्योतिबहन के मन में चम्पकलाल, द्युमान जैसे उच्च योगसाधकों के प्रति अंतर से आदर है, स्नेहभाव भी है ही। उनकी कलम में सरलता और प्रासादिकता है। जिन अध्यात्मविभूतियों का हमारे ऊपर ऋण है वह यतकिंचित भी उतारने का उनके दिल में कृतज्ञभाव है। आदरभाव, स्नेहभाव और - कृतज्ञता के कारण लिये गये विषय पर ज्योतिबहन तादात्म्यपूर्वक लिखती हैं। दादाजी और द्युमानजी के विषय में पुस्तिकाएँ लिखते समय उन्हें कैसा आनन्दानुभव हुआ, उसकी बात वह आप्तजनों से कहती हैं। ऐसी पुस्तिकाओं के माध्यम आग या इस निमित्त से, अध्यात्ममार्ग की पगडंडी पर वे प्रकाश डालती रहती हैं। ज्योतिबहन आध्यात्ममार्ग की यात्री हैं और सहयात्रियों के साथ में 'सर्वांगी शिक्षण', 'चलो चले भगवान से मिलने', चलो चम्पकलालजी और द्युमानजी की बातें करे, इस प्रकार की गोष्ठी करती रहती हैं।

'दिव्यता की तेजोमय किरण - द्युमान' प्रकाशित करने की प्रक्रिया में आप्तजनों का सहज सहयोग मिलता रहा। उन सबका हार्दिक आभार! पांडिचेरी से कलाबहन, चिन्मयि-अर्चना सहायक रहे। श्री अरविंद आश्रम के आर्काईब्ज की फोटोग्राफ के रूप में

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सहायता मिली। हिन्दी प्रकाशन के लिये अर्पण हर्षदभाई सोमाभाई पटेल (यु. एस. ए.) तथा श्रीमती कुसुमबहन एच. पटेल के माध्यम से प्राप्त हुआ। ज्योतिबहन और डॉ. अंजनाबहन मेहता का सद्भाव तो साथ था ही। मुखपृष्ठ तैयार करने में यहाँ के इप्कोवाला - संतराम कालेज ऑफ फॉरेन आर्टस के आचार्य अजितभाई पटेल की पूरी-पूरी सहायता मिली। पुष्पों के फोटोग्राफ की उचित पसंद में वनस्पतिशास्त्र के आध्यात्म मार्ग के प्रवासी प्रो. यश दवे का उत्साहपूर्ण सहयोग मिला! यह पुस्तक छप रही थी अमदावाद में, मेरा निवास वल्लभविधा- नगर, लेखिका पोरबन्दर में रहती हैं। अमदावाद से 'नवचेतन' के सज्जन और स्वजन जैसे सम्पादक श्री मुकुन्दभाई शाह की मुद्रण में उष्माभरी सहायता मिलती रही। इस पुस्तिका का लोकार्पण श्री अरविंद के पावन चरणों से पुनित और विभूषित वडोदरा के श्री अरविंद निवास में, आदरणीय मुरारीबापु के शुभ हाथों से हुआ। इस प्रकार पांडिचेरी वल्लभविधानगर, पोरबन्दर, अमदावाद, तलगाजरडा, अमेरिका और इंग्लैंड तक दृश्य और अदृश्य ताने-बाने जुड़ते रहे और श्रीमाँ - श्री अरविंद की उपस्थिति आरती की झनकार की तरह गूँजती रही। द्युमान की कितनी अधिक 'गुडविल' है, उसकी जानकारी मुझे पांडिचेरी के श्री मणिभाई (औरोफूड) तथा ललितभाई शाह की ओर, से मिली ही थी, उसकी प्रतीति भी होती रही।

ऋणानुबंधन की बात है। यूं तो बात सौ एक पृष्ठों की एक पुस्तिका छपवानी है, सीधी सादी! कोई कहेगा कि इतनी छोटी-सी बात का इतना महत्व। परंतु वस्तुएँ उसकी उपरी सतह पर दिखायी देती है उतनी सतही नहीं होती हैं। द्युमान का पालन-पोषण आणंद की भूमि पर हुआ, यह उनका मायका था, उसपर वे न्योछावर थे। आणंद

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क्षेत्र से, वल्लभविधानगर से - कोई पांडिचेरी द्युमान से मिलने जाये तो उन्हें कितनी खुशी होती थी। द्युमान में एक ही नजर में दिखाई देता था ऐसा आत्मिक गुण एवं कृतज्ञता का भाव। 'अरे मेरे शिक्षक और आचार्य भीखाभाई साहब और यहाँ मुझे श्री अरविंद रूपी नित्य प्रकाशित प्रकाशस्तम्भ बताने वाली भक्तिबा.... उनके उपकार की क्या बात करूँ।' ऐसा द्युमान आर्द्रभाव से कहते थे। 'मेरे आणंद के अध्ययन काल में १९१५ के आसपास रोपे गये वृक्ष अच्छे तो हैं न ?' - ऐसा उन्होंने एक बार पूछा था। यह बात मैंने रिकार्ड की थी। इस पुस्तिका में इसका उल्लेख है। फिर मेरी बेटी चि. काश्मीरा ने उन वृक्षों के फोटोग्राफ लिये, ग्लोरिया फार्म में द्युमान बैठे हुए थे तब उन्हें वे सौंपे थे। उनके साथ क्रमश: मेरा निकट का सम्बन्ध बनता गया। एक समय तो प्रसन्न होकर उन्होंने मुझे अंग्रेजी में पत्र लिखा था : Let me have a joy in calling you my dear V. C. I am happy, dear V. C.' उस समय मुझे कुलपति पद प्राप्त नहीं हुआ था। यद्यपि अस्पष्ट सम्भावना थी। एक बार उन्होंने मुझे कहा था कि 'आणंद की भूमि के ऊपर युनिवर्सिटी बनेगी, ऐसा स्वप्न आबु की एक गुफा में (१९१५-२० के दौरान) रात्रिवास के समय उन्होंने देखा था।'

युनिवर्सिटी की बात आयी है तो बता दूं कि १९४८ - १९४९ के समय में वल्लभविधानगर और सरदार पटेल युनिवर्सिटी के दो आधस्थापक भाई काका और भीखाभाई दान लेने के लिये मद्रास गये थे। तब द्युमान के आमंत्रण से वे पहली बार श्री अरविंद - आश्रम, पांडिचेरी गये थे। द्युमान ने दोनों आदरणीयों से उस समय पूछा था कि आप आणंद के ग्रामविस्तार में कॉलेज स्थापित करके क्या करना चाहते हैं ? भाई काका ने कहा, हमें ग्रामविस्तार में उच्च शिक्षा को

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प्रवाहित करने के लिये युनिवर्सिटी की स्थापना करनी है। तब द्युमान ने और जानकारी मांगी 'युनिवर्सिटी बनाओगे तो युनिवर्सिटी में लाईब्रेरी तो होगी ही ?' 'हाँ। ' 'उसमें आप श्रीअरविंद के ग्रंथों का समावेश चाहते हैं या नहीं?' भाईकाका ने तुरंत कहा, 'हाँ।'भाईकाका के मन में श्रीअरविंद के लिये बहुत आदर था। वे वडोदरा कॉलेज में पढ़ते थे तब श्री अरविंद उनके प्रोफेसर थे।

श्रीमाताजी को प्रणाम करने के लिये भाईकाका, और भीखाभाई गये तब द्युमान ने कहा, 'ये लोग युनिवर्सिटी स्थापित करना चाहते हैं और इन्हें श्री अरविंद की पुस्तकें वहाँ रखनी है। ' श्रीमाताजी ने १९५० के पहले की श्री अरविंद की जो पुस्तकें उपलब्ध थीं उनके उपर इस संदर्भ में श्री अरविंद के हस्ताक्षर करवाकर, वे मूल्यवान पुस्तकें दोनों आधस्थापकों को दी। सरदार पटेल युनिवर्सिटी की स्थापना का एक्ट तो ३१-१०-१९५५ के दिन, सरदार श्री के जन्य दिवस, उस समय की मुम्बई धारासभा ने मंजूर किया था। परंतु जिस क्षण श्रीअरविंद ने 'द लाईफ डिवाईन' आदि ग्रंथों पर अपने हस्ताक्षर किये, तभी सरदार पटेल युनिवर्सिटी का बीजारोपण सूक्ष्मजगत में हो चुका था। चाहे ग्रामप्रदेश में युनिवर्सिटी की स्थापना की बात उस समय दिवास्वप्न जैसी लगती हो। उसकी सरकारी घोषणा १९५५ में हुई, पर श्री अरविंद की 'तथास्तु' की मुद्रा बहुत पहले ही पांडिचेरी में अंकित हो चुकी थी। श्री अरविंद के हस्ताक्षर वाला 'द लाईफ डिवाइन' ग्रन्थ आज भी भाईकाका युनिवर्सिटी लाईब्रेरी में सुरक्षित है।

कुछ समय पूर्व उज्जैन (मध्यप्रदेश)के श्री अरविन्द सोसायटी केन्द्र, उज्जैन ने श्री प्रेमशंकर भट्ट द्वारा ज्योतिबहन थानकी की गुजराती पुस्तक 'आपणा द्युमान' का हिन्दी अनुवाद करने की आज्ञा

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माँगी थी। सुश्री श्री अमिता भट्ट 'क्षमा' ने हिन्दी अनुवाद करने की तत्परता और सहमती दिखाई। हमारे विधानगर केन्द्र ने इस हिन्दी अनुवाद को प्रकाशित करने में रुचि ही नहीं ली बल्कि तत्परता भी दिखाई। ऐसे उत्तम प्रेरणादायक एवं धर्म कार्य में सहभागी बनने के लिए श्रीमती अमिता भट्ट 'क्षमा' एवं श्री अरविन्द सोसायटी केन्द्र, उज्जैन के हम आभारी हैं।

'अपने द्युमान' के प्रकाशन की समग्र प्रक्रिया के समय द्युमान के गणेश, लक्ष्मी और कुबेर के साथ मैत्री के संकेत वल्लभविधानगर के श्री अरविंद साधना केन्द्र को मिलते रहे। द्युमान को हम सभी की शताब्दीवंदना!

श्री अरविंद और श्री माताजी की जय हो!

 

श्री अरविंद साधना केन्द्र                                                                दिलावरसिंह जाडेजा

श्री अरविंद का सिद्धि दिन

वल्लभविद्यानगर-३८८ १२०.

दि. ५-१२-२००४

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