३२. आपूर्ति
१ श्री चम्पकलाल का पत्र
श्री अरविंद आश्रम पांडिचेरी
१९-६-७७
द्युमानभाई
माताजी के कमरे में तुम्हारा आज का प्रवेश अलग ही था। जब तुम आज सवेरे ऊपर से माताजी के कमरे से बाहर निकले और मैंने सामने से नीचे जाते हुए देखा, उस समय तुम्हारा हावभाव और स्मित देखकर (तुम्हारे जाने के बाद) मुझे लगा कि यदि द्युमान सदैव ऐसे ही दिखायी दें तो कितना अच्छा हो।
तुम ऊपर आए तब आज के सुमंगल दिन का मुझे पता ही नहीं था। मेरा मन एकदम शांत और कोरा (रिक्त) रहता है। जिसे अनुभव हुआ हो, वही जान सकता है। इस स्थिति से बाहर आना अच्छा नहीं लगता है। आज के शुभ सुमंगल दिन को माताजी तथा श्री अरविंद के समक्ष मेरी यही प्रार्थना है -
सदा हँसते हुए, सबको हँसाते रही - यही आकांक्षा करता* चम्पक का
सप्रेम यथाघटित
मूल अमरेली के और आश्रमवासी के रूप में श्री अरविंद आश्रम, पांडिचेरी में स्थायी निवासी मनसुख जोशी से दिलावरसिह जाडेजा को पू चम्पकलाल का द्युमान को सम्बोधित उपर्युक्त पत्र मिला है। ई.स. (१९२३ से १९७३) तक श्रीअरविंद और श्री माँ के निकट के शिष्य के रूप में श्री चम्पकलाल (१९०३ - १९९२ ) को गुरु की प्रत्यक्ष और अहर्निश सेवा करने का अनन्य अवसर प्राप्त हुआ था।
इस पत्र में 'आज का सुमंगल दिन का जो उल्लेख है वह १९ जून के दिन आनेवाले द्युमान के जन्मदिन का निर्देश है।
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(पांडिचेरी के श्रीअरविंद आश्रम में श्री अरविंद और श्रीमाताजी की समाधि पर झुका हुआ 'सर्विस ट्री श्री माँ ने ई.स. १९३० में लगाया था। चमकते पीले फूलोंवाले इस वृक्ष का फोटोग्राफ इस पुस्तक के मुखपृष्ठ पर छापा गया है। इसका वनस्पति शास्त्र में नाम है pletophorum petrocarpum है। 'भगवान की सेवा करने के आनन्द से बड़ा कुछ नहीं है। 'ऐसा श्रीमाताजी ने कहा है। समाधि पर छाया करते हुए, झुका हुआ यह वृक्ष श्री अरविंद - श्री माँ की सेवा कर रहा है। श्री द्युमान की आंतरचेतना के साथ दिव्य गुरु का दिन- रात सेवा, फल प्राप्ति से निरासक्त आज्ञानुसार सेवा जुड़ी हुई है, इस संदर्भ में यह चित्र मुखपृष्ठ पर छापा गया है। यह वृक्ष पचास वर्ष का हुआ तब द्युमान ने १९८० में इस वृक्ष के फोटोग्राफ वितरित किये. थे - इसके साथ 'सावित्री' की निम्न पंक्तियाँ छापी थी, जिसमें द्युमान की पहचान भी परोक्ष रुप से संकलित है।
* 'To him who serves with a free equal heart obedience is his princely training's school.....'
२. 'सर्विस द्री'
१९८८ फरवरी के महीने में २ तारीख को द्युमान के साथ 'सर्विस ट्री' के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तरी आयोजित हुई थी। वह 'मधर इन्डिया' के जनवरी १९८९ के अंक में प्रकाशित हुई थी। उसे संक्षिप्त रुप से यहाँ साभार उदधृत किया गया है। 'सर्विस ट्री' के पास बैठकर श्रीअरविंद आश्रम की शाला के बालकों ने द्युमान से प्रश्न पूछे थे और द्युमान भाई ने उत्तर दिये थे :-
प्रश्न - आज जहाँ 'सर्विस ट्री' है वहाँ पहले क्या था?
उत्तर - आज जहाँ 'सर्विस द्री' है उसके पास पानी की तीन टंकियों थी। आश्रम का प्रारम्भ हुआ तब माताजी ने वहाँ 'सर्विस द्री'
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पौधा लगाने की सूचना दी। बोटेनिकल गार्डन से पौधा लाया गया। सन् १९३० के मइं के महीने में एक मंगलवार को यह पौधा रोपा गया।
प्रश्न - माताजी ने ऐसा क्यों किया।
उत्तर - किसी को पता नहीं है कि माताजी ने ऐसा क्यों किया था।
प्रश्न - सर्विस ट्री का पौधा माताजी ने रोपा था?
उत्तर - नहीं, उन्होंने नहीं रोपा था। उन्होंने रोपने का आदेश दिया था।
प्रश्न - आपने टंकियों बाट दीं? उत्तर - श्रीअरविंद के देहोत्मर्ग के पहले हम लोगों ने (श्री माताजी की सूचना के अनुसार) टंकियों बाट दी थी, ऊपर फर्न डाला था।
प्रश्न - फिर क्या हुआ?
उत्तर - बताता हूँ। फिर श्रीअरविंद ने देहोत्मर्ग किया (१९५०), तब माताजी ने हमें कहा, 'मैं श्रीअरविंद के शरीर को यहाँ आश्रम के बीचोंबीच समाधि देना चाहती हूँ। '
प्रश्न - क्या उसी के अनुसार किया गया?
उत्तर -हाँ, देहोत्मर्ग (१९५० दिसम्बर) के बाद उसी के अनुसार किया गया। उसके बाद एक दिन माताजीने अपनी बात की, 'यदि मुझे कुछ हो (अर्थात् देहोत्मर्ग प्राप्त हो) तो मुझे श्रीअरविंद की समाधि के स्लेब के ऊपर के खाली भाग में रखना।' माताजी की इच्छानुसार वहीं उन्हें समाधि दी गई (१९७३ नवम्बर)! श्रीअरविंद का शरीर इस समाधि में एकदम नीचे है, उसके ऊपर पाँच फूट के अंतर में स्लेब है उसके ऊपर माताजी के शरीर को रखा गया है। हम समाधि के दर्शन करते हुए, स्पर्श करते हुए, या सिर से स्पर्श करते हुए ध्यान करते हैं
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तब श्रीअरविंद और श्रीमाताजी दोनो की भक्ति, सेवा करते हैं।
प्रश्न - सर्विस ट्री भी श्रीअरविंद और माताजी की सेवा कर रहे हैं, या नहीं?
उत्तर - हाँ दिनरात उभय की सेवा कर रहा है। माताजी और श्रीअरविंद हमें कहते थे कि हम सदा के लिये यहीं रहेंगे। वास्तव में वे यहीं हैं। इस समाधि में श्री अरविंद का शरीर है। माताजी का शरीर है। दोनों की चेतना सक्रिय है। समाधि विश्व का केन्द्र बन गई है। पूरा विश्व प्रभु के पास यहाँ आता है। नया जीवन प्राप्त करता है।
प्रश्न - आप सर्विस द्री को प्रतिदिन पानी देते थे?
उत्तर - हाँ। अम्बुभाई (श्री अम्बुभाई पुराणी नहीं) और मैं पानी देते थे। तुम अम्बुभाई को पहचानते हो? वे १२२८ में यहीं आए तब युवक थे। यहीं काम करने वालों की एक टुकड़ी थी। प्रश्न - सर्विस ट्री का बहुत तेजी से विकास हुआ, सच है न?
उत्तर - हाँ, उसे पर्याप्त पानी मिला, अच्छा उर्वरक मिला और माताजी की देखभाल मिली। इसके विकास का श्रेय माताजी को देना चाहिये। आँधी में सर्विस ट्री की शाखाएँ टूट जाती थी। तुम ध्यान से देखो। कितनी ही शाखाएँ कटी हुई हैं। सर्विस द्री की शाखाएँ जब गिरने की स्थिति में होती हैं तब हम उन्हें काट देते हैं ताकि वे समाधि को नुकसान न करे। श्रीअरविंद की समाधि की रचना हुई तब सर्विस ट्री की उस बीस वर्ष थी।
प्रश्न - सर्विस ट्री का कोई चित्र है?
उत्तर - १९८०में सर्विस द्री ने अपने आयुष्य की अर्धशताब्दी पूरी की तब उस में ढेरों फूल आए थे। हमने उसके फोटो खिंचवाये। फोटो की बहुत कापियाँ बनवायी और अर्धशताब्दी समारंभ के प्रसंग पर सबको एक एक प्रति दी थी।
अनुवाद - रणधीर उपाध्याय (द्युमानकी द्युति में से)
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(१) वनस्पतिशासत्रीय नाम - 'शेफ़लेरा एकीनो फायला।। श्रीमाताजी ने इस पुष्य का लक्षण 'सुव्यवस्थित भौतिक शक्ति' बताया है।
(२ ) नीचे के दूसरे पुष्य का नाम, 'लोसोनिया इनर्मीस!' श्री माताजी का बताया गया इसका आंतरिक लक्षण, 'भगवान की और झुकी हुई शक्ति। '
टीप्पणी - द्युमान की प्रबन्धन शक्ति तथा भगवान की सेवा करने की उनकी वृत्ति का आंतरिक साम्य उपर्युक्त दोनो पुष्पों के गुणलक्षणों के साथ देखने को मिलता है।
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४. सत्संग
(वल्लभविद्यानगर स्थित सरदार पटेल युनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के ग्रीष्मावकाश में प्रतिवर्ष पांडिचेरी में आयोजित युवाशिविर के संयोजक के कप में डी. दिलावरसिह जाडेजा साथ आए थे, तब ता. २०-६-१९८८ के दिन डी. जाडेजा ने दयुमानभाई से कई प्रश्न पूछे थे और उत्तर प्राप्त किये थे। यह सब एक कैसेट में उतारा गया है जो नीचे उद्घृत किया गया है।)
प्रश्न - आपको माताजी ने सेवा करने की शक्ति दी है?
उत्तर - हाँ, उन्होंने ही मुझसे कहा था - 'you come down to serve' यह धृव सत्य है! मैं उनकी सेवा के लिये जन्मा हूँ! 'लव मधर' इस वाक्य में सबकुछ आ जाता है। जैसे जैसे प्रेम का विकास होता है वैसे वैसे सभी वस्तुएँ उसमें आ जाती हैं। जब (प्रभु से) प्रेम नहीं करते हैं तब सभी दूर ताकना पड़ता है। ग्रन्थ पढ़ने पड़ते हैं। प्रयत्न करने पड़ते है। तुम प्रेम में कूद पड़ी। प्रेम में तो कूद पड़ना होता है सम्पूर्ण :।
प्रश्न - आपका जो कर्मयोग है, यह भक्ति का है एक स्वरूप है, क्या यह सच है?
उत्तर - हाँ, भक्ति का स्वरूप, ज्ञान का स्वरूप सभी एक दूसरे से जुड़ जाता है। परंतु कर्म मुख्य है। हमारा योग divine Manifestation के लिये हैI The Divine has to manifest and one has to transform it. और रूपांतर करना हो तो 'one has to work'.
प्रश्न - श्री अरविंद के योग को हम 'कलेकटीव योग' के रूप में पहचानते हैं तो कलेकटीव योग में - इस सामूहिक योग में, ऐसा नहीं होता है कि इसके काम में व्यक्तिगत स्वभाव के कारण मतभेद पैदा हो और मुश्किलें आएँ?
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उत्तर - यह होता है, यह-सभी होता है। जब तक सुपर माईंड पूरी तरह कब्जा नहीं कर ले और मनुष्य इसको रिस्पॉन्स नहीं दे, तब तक यह मानव - स्वभाव रहेगा ही। हम सभी इसमें से गुजरते है, कोई बचता नहीं हैं। पर अंदर के ह्रदय को कोई बात डिस्टर्ब नहीं करती है।
प्रश्न - मतभेद होते हैं काम में, प्रवृत्तियों में तो उसमें से आप मार्ग कैसे निकालते हो?
उत्तर - मैं मतभेद को आगे नहीं बढ़ने देता।
प्रश्न - फिर इसमें से कोई मार्ग?
उत्तर - हाँ, इसमें से कोई मार्ग निकल आता है। समय सब सम्भाल लेता है। समय उसका कार्य करता ही रहता है। मुझे इसका अनुभव है।
प्रश्न - आपने कल १९ जून १९८८ को अपने अर्थपूर्ण जीवन के ८५ वर्ष पूरे किये। यह ८५ वर्ष का समय बहुत महत्व का है। आपका जीवन योगमय है। समर्पित जीवन है तो इस प्रसंग पर आपके मन में कैसे विचार आते हैं?
उत्तर - सामान्य रूप से सभी जन्मदिन मनाते हैं। उत्सव करते हैं। मेरे मन में सब दिन एक समान है। जन्मदिन पर तो डिवाईन ग्रेस उतरता है, उसका काम करता है और भविष्य के लिये मार्ग अधिक खोल देता है। अबकी बार एक भिन्न बात हो गई। द्युमान नेचर जिसे कहते हैं उसके ऊपर हायर नेचर है। इसमें विकास होने लगा है। अभी है द्युमन नेचर, परंतु इट इज नोट हेव स्ट्रेंथ। मुझमें इस बार यह बन गया है।
प्रश्न - अर्थात् दयुमन से जो हायर है, वह प्लेन अब वर्क करता है?
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उत्तर - हां, देट प्लान इज वर्किंग अपान मी। अब भी ह्यूमन नेचर में हूँ। बट इट हैज नोट हयुमन स्ट्रेंथ। दी स्ट्रेंथ इज ओफ हायर नेचर।
प्रश्न - आपके जन्मदिन पर कोई विशेष अनुभव?
उत्तर - मेरा भाव अधिक से अधिक मदर की और चला गया है। यह अब इतना आगे बढ़ गया है कि कोई भी वस्तु मेरी इनर पीस को डिस्टर्ब नहीं कर सकती है।
प्रश्न - श्रीअरविंद और माताजी का जो संदेश है उसे ग्रहण करने (झेलने) के लिये अभी गुजरात, भारत और विश्व का वातावरण अनुकूल है क्या? आपको ग्रहणशील लगता है?
उत्तर - मैं इसमें नहीं पड़ता हूँ। मैं यह देखता हूँ कि मैं कितना ग्रहणशील हूं? मैं कहाँ हूँ। मैं श्रीअरविंद और माताजी के लिये क्या कर रहा हूँ? मैं इसी प्रकार सोचता हूँ। दूसरे क्या करते हैं? तुम क्या करते हो? यह मुझे नहीं देखना हैं। मुझे स्वयं क्या करना है, यही सोचता हूँ। यहाँ जो आते हैं वे मन्दिर में जाते हैं, जय माँ, जय माँ करते हैं, परंतु मुझे आशा है कि कोई तो इसमें से सच्चा साधक निकलेगा। इसी आशा से ही जी रहा हूँ..। यहाँ आने के बाद एक व्यक्ति का भी जीवन सुधर जाये, भले न सुधरे, एक घड़ी-भर भी उनके मन में अभीप्सा जागे तो यही मेरे लिये पर्याप्त है। प्रश्न - आश्रम की योग साधना में अब कोई नई गतिशीलता का, किसी नये मोड़ का अवसर है, ऐसा आपको दिखाई देता है क्या? उत्तर - यह सब व्यक्तिगत है। प्रत्येक व्यक्ति जैसे-जैसे स्वयं विकास करेगा वैसे-वैसे जो मोड़ लेना होगा, लेगा। यह सारा योग व्यक्तिगत है, सामूहिक होते हुए भी व्यक्ति के ऊपर उसका आधार है। प्रश्न - आपकी जीवन पद्धति?
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उत्तर - १९२३ से मैंने भाषण करना, लिखना बिल्कुल बन्द कर दिया है, केवल कार्य करता हूँ। कार्य बड़ा है या छोटा है, ऐसा प्रश्न नहीं करता हूँ। मुश्किल है या सरल, इसका विचार नहीं करता। कैसा भी हो, मदर जो काम सौंपती है, मैं करता हूँ।
प्रश्न - प्राणशक्ति को वश में रखना हो तो क्या करना चाहिये। प्राणशक्ति वश में न रहे तो मुश्किलें पैदा करती हैं। उसे किस प्रकार प्रशिक्षित कर सकते हैं?
उत्तर - प्राणशक्ति का, नेचर का कंट्रोल साइकिक बिईंग करता है। जब साइकिक बिईंग अग्रभाग में आता है तब किसी प्रयल की आवश्यकता नहीं होती। प्राण चाहे जितना कूदफाँद करे, तो भी यह उसे खिसकने नहीं देती। यह मैंने अपने समग्र जीवन में अनुभव किया है।
विश्वसनीयता, आज्ञाकारिता, कृतज्ञता - यह सब मेरे लिये स्वाभाविक हो गया है, मैंने इसके लिये प्रयास नहीं किये। यह मेरे लिये सहजसाध्य है। इसलिये मुझे जीवन में कोई मुश्किल नहीं पड़ी।
प्रश्न - अपने सम्बन्ध में कुछ कहेंगे?
उत्तर - भगवान सबको मिलाते हैं। सभी भगवान का कार्य करते हैं। भगवान कार्य करते हैं। वह सदा करेंगे। सभी के साथ मेरा सम्बन्ध 'उसी' ने जोड़ा है, वही निभाएगा।
प्रश्न - आपका प्रेरक बल क्या है?
उत्तर - माताजी। 'Love the Mother, She is forever'.
(सौजन्य - स्व. डो. रणधीर उपाध्याय कृत पुस्तक 'द्युमान की धुति'
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५. सन्दर्भ सूची
पुस्तक/सामयिक का नाम लेखक प्रकाशन वर्ष
१.. द्युमाननी द्युति' रणवीर उपाध्याय २१ फरवरी१९९३
(अमदाबाद)
. २. Service letter M.P.Pandit 1-11-1992 ओर
( No. 239 & No.240.) (Pondicherry) 1-12-1992
३. Recent Publications 'Sabda' (June 2003)
Pondicherry
Dyuman - The Luminous - Karmayogi.
by Krishna Chakrvarti
४. Bulletin of Shri Aurobindo international Centre of
Education (Quarterly issues from April 1996 to August 1998 Pondicherry)
Dyuman's Correspondence with the mother.'
५. श्रीअरविंद आश्रम, पांडिचेरी संचालित ग्लोरिया फार्म के संचालक श्री
मनीन्द्र को लिखे हुए दयुमान के पत्र -
(दयुमान के सैकडों अप्रकाशित पत्र अभी सम्पादित होना शेष है। )
'हम ध्यान द्द्वारा प्रगति कर सकते, यदि कार्य सच्चे भाव से
होता है तो इसके द्वारा हम दसगुणा प्रगति कर सकते हैं। '
- श्री माताजी
श्री माताजी के परम भक्त
सोमाभाई वल्लभभाई पटेल नडियाद को
श्रद्धांजलि
हर्षद सोमाभाई पटेल एवं कुसुमबहन हर्षदभाई पटेल
ओहियो, अमेरिका
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