दिव्यता की तेजोमय किरण - द्युमान


१२. डी. एन. हाईस्कूल में शिक्षक

 

चुनीलाल के सामने प्रश्न था कि अब जब तक श्रीअरविंद आश्रम में रहने को वापस नहीं बुलाते तब तक क्या करें? गुजरात विधापीठ में भी वापस नहीं जा सकते थे। वे नापाड से सीधे आणंद डी. एन. हाईस्कूल में गये और अपने आदरणीय शिक्षक भीखाभाई साहब को सारा वृत्तांत बताकर पूछा कि ''अब मैं क्या करुं?'' ''अरे चुनीभाई, परेशान क्यों होते हो? डी. एन. हाईस्कूल में तुम्हारे जैसे शिक्षक की आवश्यकता है। आज से ही काम पर लग जाओ। '' अब वे डी. एन. हाईस्कूल में माध्यमिक विभाग में मैट्रिक तक की कक्षा को पढ़ाने लगे। डी. एन. हाईस्कूल का आदर्श विधार्थी अब आदर्श शिक्षक बन गया। उनके उच्च आदर्श, यौगिक जीवन, कार्यनिष्ठा और विधार्थी के प्रति प्रेम, इन सबके कारण वे विधार्थीयों में बहुत प्रिय बन गये। उनके उच्च जीवन का प्रभाव विधार्थियों पर पड़ने लगा।

इस समयावधि में पांडिचेरी जाने की उनकी आंतरिक तैयारी भी अविरत चलती ही रही। वे श्रीअरविंद को बार-बार पत्र लिखते रहते। योग के विषय में मार्गदर्शन और वहाँ आने के लिये अनुमति माँगते, पर प्रत्येक समय श्रीअरविंद की तरफ से ना ही आता। जैसे ही वहाँ से ना आता वैसे ही चुनीलाल की आंतरिक इच्छा अधिक बलवती बनती जाती... श्रीअरविंद को आर्त हृदय से वे लिखते कि मुझे आश्रम में आना ही है। तब एक बार श्रीअरविंद ने पत्र में लिखा

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''योग तुमको किसने दिया ?'' सान्निध्य में चुनीलाल ने लिखा, ''आप ही ने! आपके सान्निध्य में अब मुझे योग साधना करनी है। '' पर श्रीअरविंद ने उस समय भी अनुमति नहीं दी तब चुनीलाल ने स्पष्ट छप से लिख दिया कि, ''मुझे अस्वीकार करने के लिए आप स्वतन्त्र हैं, पर मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ क्योंकि मेरे तो आप ही हैं, दूसरा कोई नहीं है।'' श्रीअरविंद का प्रत्युत्तर आया कि जब समय आएगा, तब तुमको सूचना देंगे। अब चुनीलाल के पास प्रतीक्षा करने के अलावा कोई चारा नहीं था।

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