श्रीअरविंद आश्रम में स्थायी कई साधकों को श्रीअरविंद ने स्वयं नये नाम दिये थे। मिस होग्सन को नाम दिया ''दत्ता।'' एक फ्रेन्च साधक को नाम दिया था ''पवित्र'', के. डी. सेठना को नाम दिया था।''अमल किरण''। ये साधक की चेतना को निर्देश करते हुए नाम थे। चुनीभाई के मन में भी होता था कि मुझे भी साधक के रूप में नया नाम श्रीअरविंद या श्रीमाताजी के पास से मिले। आश्रम में आए लगभग एक वर्ष बीत गया पर श्रीअरविंद या श्रीमाताजीने उन्हें कोई नाम नहीं दिया था. इसलिए उन्होंने एक दिन श्री माताजी से प्रार्थना करते हुए कहा कि, ''माताजी, आप मुझे कोई नया नाम दीजिये न! '' तब माताजी ने कहा, ''मैं तुम्हें नया नाम तो दूँ पर वह फ्रेन्च नाम होगा। श्रीअरविंद ने मुझे कहा है कि मैं चुनीभाई को कोई वैदिक नाम देना चाहता हुँ। अभी मुझे वह नाम स्फुरित नहीं हो रहा है, कुछ समय प्रतीक्षा करो।''
श्रीअरविंद उन्हें कोई वैदिक नाम देना चाहते हैं, यह जानकर उन्हे बहुत प्रसन्नता हुई। उसी बीच २४ नवम्बर का दर्शन दिवस आया, तब चुनीभाई को लगा कि आज सिद्धि दिवस को श्रीअरविंद उन्हें नया नाम अवश्य देंगे। २४ तारीख निकल गई पर नूतन नाम नहीं मिला। इसलिये अब वे प्रतीक्षा करने लगे पर उन्हें लम्बी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। २६ तारीख को श्री माताजी ने उन्हें अचानक अपने
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कमरे में बुलाया और कहा, ''चुनीभाई, आज से तुम ''दयुमान'' हो। श्रीअरविंद ने आज तुम्हें यह नया नाम दिया है।
Dyuman - The Luminous One '' द्युमान'' अर्थात् जो प्रकाशवान है। यह नाम स्वयं ही प्रकाशवान है और श्रीअरविंद के द्वारा दिया गया होने से द्युमान का रोम-रोम प्रकाश का अनुभव कर रहा था। जैसे इस नाम के द्वारा श्रीअरविंद ने चुनीभाई का विसर्जन करके प्रकाशपूर्ण द्युमान का सर्जन कर दिया। श्रीअरविंद ने नाम देने में इतना विलम्ब क्यों किया, यह बाद में द्युमान को समझ में आया क्योंकि दयुमान की आंतरचेतना के अनुरूप और वैदिक विचारधारा को व्यक्त करते नाम की श्रीअरविंद शोध कर रहे थे। ''द्युमान'' के रूप में यह नाम उन्हें मिल ही गया। एम. पी पंडित ने इस नाम को स्पष्ट करते हुए बताया कि, ''बहुत ही कम लोगों को इसका ज्ञान है कि श्रीअरविंद ने ''द्युमान'' नाम किसलिये दिया था। वैदिक ऋषियों के युग से द्युमान भव्य भूतकाल को लेकर अवतरित होते आए हैं। इसलिए उन्हें ''वेद'' के लिये जन्मजात आकर्षण रहा है। ऐसे प्रसंग उनके जीवन में आये हैं, जब स्पष्टत: उन्होंने स्वयं को वैदिक ऋषियों के समकक्ष देखा है।''
नये नाम के साथ जैसे द्युमान का नया जीवन प्रारम्भ हुआ। इस जीवन में प्रकाश से अधिक प्रकाश की और प्रयाण करना था। इस जीवन में श्रीमाताजी के दिव्य माध्यम बनकर, सम्पूर्ण समर्पित भाव से अनेक प्रकार के कार्य करना था। इस जीवन में माताजी के साथ एकरूप होकर चेतना का दिव्य रूपांतर करना था। उनके नूतन जीवन की मार्गदर्शक थीं श्रीमाताजी।
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