दिव्यता की तेजोमय किरण - द्युमान


७ गुजरात विधापीठ में अभ्यास

शांतिनिकेतन से आकर चुनीलाल  ने गुजरात विधापीठ में प्रवेश लिया। राष्ट्रीय आन्दोलन के भाग के रूप में राष्ट्रीय शिक्षण होना चाहिये, उस समय ऐसी मान्यता व्यापक थी। गांधीजी की प्रेरणा से १२२० में अमदावाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की गई और चुनीलाल को उसमें प्रथम दल के विद्यार्थी बनने का सौभाग्य मिला। यहाँ भी उन्होंने शांतिनिकेतन में प्रारम्भ किये प्राच्यविध्या के अध्ययन को आगे बढ़ाया।

इस विधापीठ के आचार्य थे विध्वान प्राध्यापक गिडवाणी। साथ ही राष्ट्रीय स्तर के कई विद्धान इस विधापीठ में अध्यापक के रुप में अपनी सेवा दे रहे थे। काकासाहेब कालेलकर, मुनि जिनविजयजी, धर्मानन्द कौसाम्बी, नरहरि परीख आदि देशभक्त विध्वानों के सम्पर्क में आने का अवसर चुनीलाल को विधापीठ के अभ्यासकाल में मिला।

यहाँ भी वह विधार्थी के लप में असाधारण ही रहे। सतत् पठन, नहीं तो काँतण (सूत कातना) या गहरा मनन चिंतन। इसी में उनका समय व्यतीत होता था। अब उन्होंने स्वयं के काँते गये सूतकी खादी के वस्त्र पहनना  प्रारम्भ कर दिया था। उपरांत प्राच्य विधा के भाग के रूप में 'योग' का भी गहरा अभ्यास करने लगे और योग में उन्हे रस आने लगा था। उन्होंने प्राकृत और पाणिनी के संस्कृत व्याकरण का अभ्यास भी शुरु किया। इन सब के अभ्यास से उनकी आत्मा को जो शिक्षण चाहिये था वह मानो मिलने लगा।

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चुनीलाल की अभ्यासपरायणता, मितभाषिता, परोपकारी और शांत, एकाकी स्वभाव के कारण आचार्य गिडवाणी का ध्यान उनके प्रति आकर्षित हुआ। कुछ ही समय में वह आचार्य के प्रिय विधार्थी बन गये। एक बार डी. एन. हाईस्कूल के वार्षिकोत्सव के समय आनंदशंकर ध्रुव अध्यक्ष के रूप में नहीं आ सके। तब चुनीलाल ने भीखाभाई साहब से बात करते हुए कहा कि 'गिडवाणीजी आएँ तो अच्छा रहेगा। ' फिर चुनीलाल ने सारी परिस्थिति गिडवाणी जी को समझा कर कहा कि, 'साहब, आपको आणंद आना है।' गिडवाणीजी ने अपने प्रिय विद्यार्थी की बात तुरंत स्वीकार कर ली। भीखाभाई साहेब ने तब उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा, 'चुनीलाल, आज तुमने मेरी लाज रख ली।' डी. एन. हाईस्कूल में उन्हें भीखाभाई साहब का स्नेह मिला था, इसी तरह शांतिनिकेतन मैं क्षितिमोहन सेन और दीनबन्धु एंड्रूज का और विद्यापीठ में गिडवाणीजी का स्नेह मिला। सभी का स्नेह सम्पादन करने की, विधार्थी काल में एन्ड्रूज में प्राप्त की गई कला जीवन पर्यन्त विकसित होती रही। इसके फलस्वरूप भविष्य में श्री अरविंद और श्रीमाताजी का भी उन्हे स्नेह प्राप्त हुआ।

विधापीठ के अभ्यासकाल में चुनीलाल का अनेक राष्ट्रभक्तो के साथ भी परिचय हुआ, उनमें स्थित राष्ट्रभक्ति के बीज तेजी से अंकुरित होने लगे और वे भी राष्ट्रभक्ति के रंग में रंगने लगे। दूसरी तरफ उनके अन्दर की सत्य प्राप्ति की आकांक्षा भी स्नातक कक्षा के अभ्यासकाल में अधिक प्रज्जवलित हुई। इस प्रकार इस समयावधि में एक तरफ राष्ट्रीय आन्दोलन के कार्य, दुसरी तरफ अपनी अंतर खोज और तीसरी तरफ विधापीठ में सेवाकार्य - इन तीनों स्तरों पर चुनीलाल का कार्य चलता रहा पर बाहर के लोगों को पता नहीं चला।

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