प्रस्तावना
अतिमानस के अवतारक और दिव्य मानवजाति के आगमन को भूमिका तैयार करने के लिये इस युग में ४० वर्षों तक एक ही स्थान पर रहकर अतुल्य तपश्चर्या करने वाले महायोगी श्री अरविंद के साथ गुजरात का विशिष्ट सम्बन्ध है। यूं तो दे बंगाल में जन्मे, इंग्लैंड में विद्याभ्यास किया पर स्वतंत्रता संग्राम, योगसाधना और साहित्य सर्जन - उनके जीवन के इन तीन महत्वपूर्ण कार्यों का प्रारम्भ गुजरात में ही हुआ था। गुजरात में वे साढे तेरह वर्ष तक रहे। प्रोफेसर होने के नाते उस समय के युवकों पर उनका विशेष प्रभाव था, इसलिये जब राजनीति के क्षेत्र से निवृत्त होकर योग साधना करने के लिये वे पांडिचेरी गये और वहाँ स्थायी हो गये, तब गुजरात के कई तेजस्वी युवक उनकी योग साधना में जुड़ गये। अम्बुभाई पुराणी, चम्पकलाल पुराणी, बंसीधर पुराणी, चंदुलाल इन्जिनीयर, पूजालाल, के. डी. सेठना, सुंदरम्, चित्रकार कृष्णलाल, वासुदेव, ए. बी. पटेल, नगीन दोशी, जयंतीलाल पारेख आदि अलग-अलग क्षेत्र के अनेक प्रतिभा सम्पन्न युवक - अपना सर्वस्व छोड़कर श्री अरविंद और श्रीमाताजी के प्रति समर्पित हो गये। द्युमान भी उनमें से एक थे।
द्युमान का यह जन्मशताब्दी वर्ष है। उनके शताब्दी वर्ष में, १९२७ में जब वे पांडिचेरी गये तब से १९९२ अगस्त में जब उन्होंने देह छोड़ी, तब तक समर्पित भाव से किये सेवा कार्यों को कुछ झलक गुजरात को मिले इस आशय से सरदार पटेल युनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति और
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श्री अरविंद साधना केन्द्र, वल्लभ विद्यानगर के अध्यक्ष डा. दिलावरसिंहजी जाडेजा ने, उनकी संक्षिप्त जीवन को संजो ले ऐसी पुस्तिका प्रकाशित करने का विचार किया। उन्होंने मुझसे पूछा कि ऐसी पुस्तक मैं लिख कर दूंगी क्या ?' मैंने यह कार्य सहजता से स्वीकार किया क्योंकि जब भी पांडिचेरी जाना हुआ और मैं समाधि को प्रणाम करने गई तब द्युमानभाई का सौम्य, प्रसन्न, मधुर व्यक्तित्व हमेशा मेरे लिये पूज्य भाव का प्रेरक रहा। श्री माताजी के विभिन्न कार्यों के लिये सम्पूर्ण समर्पित द्युमानभाई श्री अरविंद और श्रीमाताजी के मूक सेवक थे। बोलना कम और श्रीमाताजी के कार्य जितना सम्भव हो उतना अधिक उत्तमोत्तम रूप से करना, उनका ध्येय था। इसलिये उनके सतह से नीचे गहराई और व्यापकता वाले जीवन के विषय में बहुत कम जानकारी अपने पास है। श्रीमाताजी द्द्वारा स्थापित आश्रम के सर्जन को नींव में वे रहे हैं। माताजी ने उन्हें पसंद करके प्रशिक्षित किया था। गुजरात के इस लाडले पुत्र ने अपनी कार्यनिष्ठा और भक्ति द्द्वारा कैसे-कैसे यादगार कार्य किये हैं, उसकी झलक गुजरात को मिले, उपरांत श्री अरविंद और श्रीमाताजी के शिष्यों के साथ सम्बन्ध, प्रत्येक शिष्य को उनकी प्रकृति के अनुसार सौंपा गया कार्य और उनका मार्गदर्शन, उनको शिक्षा देने को उनकी विशिष्ट पछीत, शिष्यों के प्रति उनका प्रेम और सबसे विशेष तो शिष्यों पर उनकी कृपा-करुणा और उदारता : ऐसे कितने ही प्रमाण में अज्ञात पहलुओं की भी हमें जानकारी मिले, प्रेरणा मिले यह भावना इस पुस्तक के पीछे रही है। पूर्ण समर्पण से किये गये कार्य, कैसे विशिष्ट बन जाते हैं, इसका विचार इस पुस्तक से मिले, यही आशय है। श्रीमाताजी और श्री अरविंद के प्रति अटूट और अनन्त श्रद्धा, विशुद्धता और सरलता, साथ ही कार्य पूरा करने के लिये अविचल संकल्प और परिश्रम पूर्ण लगातार पुरुषार्थ, इसका दूसरा नाम है द्युमान। ऐसे समर्पित जीवन
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को संक्षेप में लिखने का साहस मैंने किया है। मुझे विश्वास है कि यह प्रेरणादायी जीवन सभी पाठकों को श्री अरविंद तथा श्री माताजी की चेतना का सम्पर्क अनुभव करने में सहायक होगा।
गुजरात के लाड़ले पुत्र द्युमान के बारे में गुजरात से बाहर हिन्दी क्षेत्र में भी जिज्ञासुओं, मुमुक्षुओं को पता चले और वे प्रेरणा लें इस हेतु इसका हिन्दी अनुवाद श्रीमती अमिता भट्ट 'क्षमा'ने बड़े भाव से किया है वह आपके सम्मुख है। जो हिन्दी पाठकों को भी श्री अरविन्द एवं श्री माताजी की चेतना का सामीप्य प्रदान कर उनके जीवन का पथ प्रशस्त करेगा।
इस पुस्तक के लेखन कार्य के लिये डो. जाड़ेजा साहब ने मुझे आवश्यक सभी साहित्य दिया, इतना ही नहीं, समय-समय पर प्रत्यक्ष और फोन पर उनका मार्गदर्शन मिलता रहा, उसके लिये मैं उनका हार्दिक आभार मानती हूँ। इस पुस्तक के लेखन मैं सहायक रही लेख सामग्री के सभी लेखकों से में उपकृत हूँ। ग्रन्थमुद्रण में सक्रिय सहायता करनेवाले 'नवचेतन' के सम्पादक श्री मुकुन्दभाई शाह का तथा इस पुस्तक के प्रकाशन के लिये श्री अरविंद साधना केन्द्र, वल्लभविधानगर का आभार मानकर, श्रीमाताजी से प्रार्थना करती हूँ कि, 'सभी पाठकों को अपना कृपास्पर्श देकर उनके जीवन को दिव्यता के प्रति अभिमुख करें। '
ज्योति थानकी
७, स्टाफ क्वार्टर्स, गुरुकुल,
बोखीरा, पोरबंदर-३६० ५७५
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