CWM (Hin) Set of 17 volumes
माताजी के वचन - I 418 pages 2009 Edition
Hindi Translation

ABOUT

The Mother's brief statements on Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India and and nations other than India.

माताजी के वचन - I

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The Mother

This volume consists primarily of brief written statements by the Mother about Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India, and nations other than India. Written over a period of nearly sixty years (1914-1973), the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. The majority (about sixty per cent) were written in English; the rest were written in French and appear here in translation. The volume also contains a number of conversations, most of them in the part on Auroville. All but one were spoken in French and appear here in translation.

Collected Works of The Mother (CWM) Words of the Mother - I Vol. 13 385 pages 2004 Edition
English
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The Mother

This volume consists primarily of brief written statements by the Mother about Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India, and nations other than India. Written over a period of nearly sixty years (1914-1973), the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. The majority (about sixty per cent) were written in English; the rest were written in French and appear here in translation. The volume also contains a number of conversations, most of them in the part on Auroville. All but one were spoken in French and appear here in translation.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' माताजी के वचन - I 418 pages 2009 Edition
Hindi Translation
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३० मार्च, १९७२ की वार्ता

 

 चूंकि हमने सब परंपराओं को एक ओर कर दिया है, इसलिए हर एक झट यही सोचता है : '' आहा! हमारी कामनाओं की पूर्ति के लिए अच्छी जगह! '' और प्रायः सभी इसी इरादे से आते हैं ।

 

   और चूंकि मुझे जिन लोगों को आश्रम से भेज देना पड़ा था उनके बच्चों के लिए लेने प्रशइत-गह बनवाया, ताकि में प्रसव के लिए कोई जगह पा सकें, तो लोग समझने लगे कि प्रसूति-गृह सभी अवैध बच्चों के लिए है।

 

   मुझे वैधता की परवाह नहीं है, मुझे क़ानूनों ओर प्रथाओं की परवाह नहीं हैं । लेकिन मैं इतना अवश्य चाहती हूं कि वह एक अधिक दिव्य जीवन हो, पाशविक जीवन नहीं ।

 

   और लोग स्वाधीनता को स्वच्छन्दता में बदल देते हैं, वे उसका उपयोग अपनी कामनाओं की तुष्टि के लिए करते हैं । और जिन चीजों को वश में करने के लिए हमने सचमुच सारे जीवन काम किया है, वे उनमें, छितराव में रखे रहते हैं । मुझे एकदम विरक्ति-सी हो गयी है ।

 

    हम सब यहां कामनाओं को त्यागने के लिए, भगवान् की ओर मुड़ना के लिए और भगवान् के बारे में सचेतन होने के लिए हैं । हम जिस भगवान् को खोजते हैं वह सुदूर और अगम्य नहीं है । वह अपनी सृष्टि के हृदय में हैं ओर चाहता है कि हम उसे खोजें, और अपने निजी रूपांतर दुरा उसे जानने के योग्य बनें, उसके साथ एक होने और अंत में, सचेतन रूप से उसे अभिव्यक्त करने योग्य बनें । हमें अपने- आपको इसके लिए अर्पित करना चाहिये, हमारे जीवन का यही सच्चा प्रयोजन हैं । और इस उच्चतर उपलब्धि के लिए हमारा पहला कदम है अतिमानसिक 'चेतना ' की अभिव्यक्ति ।

 

    भगवान् को पाना और अपने जीवन में अभिव्यक्त करना ही इसका उपाय है, जानवर बनना ओर कुत्ते-बिल्ली का जीवन बिताना नहीं ।

 

    इसके बिलकुल विपरीत! ओरोवील की जनसंख्या के अधिकतर लोग अतिमानव नहीं, अवमानव हैं । हां तो, अब समय आ गया है जब इस सबको खतम होना चाहिये ।

 

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   ऐसे लोग हैं जो बस यूं हीं आ गये हैं, और अब जब मैं कहती हूं : '' यह नहीं चलेगा '', तो वे उत्तर देते हैं : '' ओह, हम उसके लिए नहीं आये थे ''!

 

    ओह, मैं कितना चाहती हूं कि जाकर उन सबके मुंह पर कह सकूं कि वे गलती पर हैं, कि चीजें इस तरह नहीं हैं लेकिन मेरा ख्याल हैं कि इसे लिखने का समय आ गया है ।

 

    कितनी सुन्दर है यह, कितनी सुन्दर है मानवजाति!

 

     लेकिन मधुर मां आपकी शक्ति अभी इस समय बहुत सक्रिय है।

 

 हां, मैं जानती हूं । मैं जानती हूं, जब मैं इस अवस्था में होती हूं मैं ' शक्ति ' को सारे समय देखती हूं-यह मेरी शक्ति नहीं है, यह ' भागवत शक्ति ' है । अपनी तरफ से मैं कोशिश करती हूं, मैं उसके जैसा बनने की कोशिश करती हूं । यह शरीर केवल... केवल यथासंभव पारदर्शक, यथासंभव निवैयक्तिक प्रेषक (ट्रांसमीटर) बनना चाहता है ताकि भगवान् जो चाहें कर सकें ।

 

 (मोन)

 

 कल, मुझे यहां पहली बार आये अट्ठावन साल हो गायें । अट्ठावन साल से थे इसके लिए काम करती आयी हूं कि शरीर यथासंभव पारदर्शक और अपार्थिव बने, दूसरे शब्दों में, जो शक्ति नीचे उतर रही है उसके मार्ग में बाधक न बने ।

 

अब, अब शरीर हीं, स्वयं शरीर ही उसे अपने सभी कोषाणुओं के साथ चाहता है । उसके अस्तित्व का यही एकमात्र कारण है । धरती पर शुद्ध रूप से एक ऐसे पारदर्शक, पारभासक तत्त्व को चरितार्थ करने की कोशिश करना जो ' शक्ति ' को बिना विकृत किये कार्य करने दे ।

 

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