The Mother's brief statements on Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India and and nations other than India.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother about Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India, and nations other than India. Written over a period of nearly sixty years (1914-1973), the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. The majority (about sixty per cent) were written in English; the rest were written in French and appear here in translation. The volume also contains a number of conversations, most of them in the part on Auroville. All but one were spoken in French and appear here in translation.
'ऐस्पिरेशनं वालों के साथ वार्ताएं१
१० मार्च, १९७०
'ए ' : हम आपके साध '' में काम के बारे में बात करना ' चाहेंगे हम जो जानना ', हम खोज में ? वह उचित ब्रुती
मुश्किल क्या है ?
'ए': मुश्किल यह है कि...
हर एक अपनी दिशा में खींचता है... ।
'ए ' : हर एक अपनी दिशा में खींचता है । ऐसा कोई नहीं जो सत्य के साध संपर्क में हो।
हमें यह बात याद रखनी चाहिये कि हम मानवता की वर्तमान स्थिति से आरंभ कर रहे हैं । अतः तुम्हें सभी कठिनाइयों का सामना करना होगा; समाधान खोजना होगा ।
(ध्वन्यांकन यंत्र की ओर इशारा करके) यह क्या है ?
'बी' : मधुर मां मैं 'ओरोमॉडल' के लोगों के लिए ध्वन्याकित कर रहा हूं !
१९७० के मार्च और अगस्त के बीच, माताजी हर सप्ताह अपने कमरे में कुछ थोड़े-से ओरोवीलवासियों से, इक 'ऐस्पिरेशन कम्यूनिटी ' वालों से मिला करती थीं-इसीलिए इसका शीर्षक '' ' ऐस्पिरेशन ' वालों के साथ वार्ताएं '' रखा गया है । फूल अर्पण करने और नये लोगों का परिचय कराने के बाद कुछ बातचीत होती थी, यद्यपि कई बार वह होता था जिसे माताजी ''नीरवता का स्नान '' कहती थीं । ये वार्ताएं उन बाईस बैठकों के ध्वन्यांकन से संपादित की गयी हैं ।
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(माताजी हंसती हैं) तुम्हें मुझसे नहीं कहना चाहिये था!
'ए'. परंतु मधुर मां, हमारे सामने समाधान हो उदाहरण के , एक ओर ...
हर एक का अपना समाधान होता हैं, और यहीं बडी मुश्किल है । ' सत्य ' में पहुंचने के लिए, हर एक का अपना समाधान है । फिर भी हमें साथ मिलकर काम करने के लिए कोई रास्ता निकालना चाहिये ।
(मौन)
तो ढांचा विशाल होना चाहिये, बहुत लचीला, और हर एक की ओर से महान् सद्भावना : यह पहली शर्त है-पहली वैयक्तिक शर्त-सद्भावना । हर क्षण अच्छे-से- अच्छा कर सकने के लिए काफी नमनीयता ।
'ए ' : लेकिन, उदाहरण के, हमसे कहा गया है कि हमारे यहां कारखाने होने चाहिये हमें उत्पादन करना चाहिये और हममें से कुछ लोगों में इस तरह के काम के रुझान ' नहीं है ! हम खोज ज्यादा पसंद करेंगे जो...
अधिक अंतर्मुखी ?
'ए ' : धन आदि के कारखाने काम उद्योग आरंभ करने के बजाय अधिक ' हो हम वैसा अनुभव नहीं करते इस समय हम ' शनि ' मे यह ' करना चाहते हम जानना चाहेने कि इस बारे ये आप क्या सोचती हैं !
(माताजी एकाग्र होती हैं और एक लंबा मौन )
व्यावहारिक होने के लिए, सबसे पहले तुम्हें अपने लक्ष्य की, तुम जहां जा
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रहे हो उसको, बहुत स्पष्ट धारणा होना चाहिये । इस दृष्टिकोण से, उदाहरण के लिए, धन को लो । एक आदर्श जो हो सकता है अपने समय से सैकड़ों वर्ष आगे है, पता नहीं : धन को एक ऐसी शक्ति होना चाहिये जो किसी का न हो ओर उसे वर्तमान की सबसे बडी वैश्व प्रज्ञा के नियंत्रण में होना चाहिये । पृथ्वी पर किसी ऐसे के हाथों में जिसे पर्याप्त विस्तृत अंतर्दर्शन प्राप्त हो ताकि वह पृथ्वी की आवश्यकताएं जान सके और ठीक-ठीक यह बताने में समर्थ हो कि धन कहां जाना चाहिये-तुम समझ रहे हो न, हम इस चीज से बहुत दूर हैं, हैं न? फिलहाल तो व्यक्ति अब भी कहता है : '' यह मेरा है,'' और अगर वह उदार हो, तो कहता है : ''मैं तुम्है देता हूं । '' इससे बात नहीं बनाती।
लेकिन हम जो हैं और हमें जो होना चाहिये उसके बीच बहुत लंबा रास्ता है । और उसके लिए हमें बहुत नमनीय बनना चाहिये, अपने लक्ष्य को दृष्टि से कभी ओझल न होने देते हुए यह भी जानना चाहिये कि एक ही छलांग मे तुम उस तक नहीं पहुंच सकते, कि तुम्हें रास्ता ढूंढना होगा । हां, यह अधिक कठिन है, आंतरिक खोज से भी अधिक कठिन । असल मे तो, यह यहां आने से पहले ही हो जाना चाहिये था ।
क्योंकि एक आरंभ बिंदु होता हैं : जब तुमने अपने अंदर उस निष्कर्ष प्रकाश को पा लिया हो, उस उपस्थिति को जो विश्वास के साध तुम्हारा पथप्रदर्शन कर सके, तब तुम इस बात से सचेतन हो जाते हो कि निरंतर, चाहे कुछ भी हो, हमेशा कुछ सीखा जा सकता है, और यह कि वर्तमान हालात मे हमेशा प्रगति करनी है । इसी तरह व्यक्ति को आना चाहिये, जो प्रगति करनी है उसे जानने के लिए वह हर क्षण उत्सुक हो । एक ऐसा जीवन हो जो बढ़ना और अपने-आपको पूर्ण बनाना चाहे, इसी को ओरोवील का सामूहिक आदर्श होना चाहिये : '' ऐसा जीवन जो बढ़ना और अपने- आपको पूर्ण बनाना चाहता है, '' और सबसे बढ़कर, हर एक के लिए एक ही तरीके से नहीं-हर एक के अपने हो तरीके से ।
हां तो, अब तुम तीस हों, यह कठिन है, है न ? जब तुम तीस हजार होओगे, तब यह ज्यादा आसान होगा, क्योंकि, स्वभावत:, तब बहुत अधिक संभावनाएं होंगी । तुम अग्रगामी हो, तुम्हारा काम सबसे कठिन है, परंतु मुझे लगता है कि यह सबसे ज्यादा मजेदार है । क्योंकि तुम्हें उस ठोस,
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स्थायी और प्रगतिशील मनोभाव को स्थापित करना है जो सच्चे ओरोवीलवासी होने के लिए जरूरी है । सच्चा ओरोवीलवासी होने के लिए जरूरी पाठ रोज-रोज सीखना है । हर रोज रोज का पाठ सीखना... । हर सूर्योदय एक खोज करने का अवसर हैं । तो, ऐसी मानसिक अवस्था के साथ, तुम पता लगाओ । हर एक यही करे ।
और शरीर को कामकाज की जरूरत होती है : अगर तुम उसे निष्किय रखो, तो वह बीमार पढ़कर या और कुछ ऐसा ही करके विद्रोह करना शुरू कर देगा । उसे किसी काम की जरूरत होती है, उसे सचमुच काम की जरूरत होती है, उदाहरण के लिए, फूलों के पौधे लगाने, मकान बनाने जैसी भौतिक चीजों की जरूरत होती हैं । तुम्हें उसे अनुभव करना चाहिये । कुछ लोग कसरत करते हैं, कुछ बाइसिकल चलाते हैं, असंख्य काम हैं, लेकिन तुम्हारे छोटे-से दल मे तुम्हें किसी समझौते पर पहुंचना चाहिये ताकि हर एक को ऐसा काम मिल जाये जो उसके स्वभाव से, उसकी प्रकृति से और उसकी आवश्यकता से मेल खाता हो । लेकिन विचारों के साथ नहीं । विचार किसी काम के नहीं होते, वे तुम्हें पूर्वधारणा देते हैं, जैसे : '' वह काम अच्छा है, वह मेरे लायक नहीं है, '' और इसी प्रकार का बेहूदापन । कोई काम बुरा नहीं होता-बुरे होते हैं बस काम करने वाले । अगर तुम ठीक तरह से करना जानो तो सभी काम अच्छे होते हैं । सब कुछ । और यह एक तरह का सांपके स्थापित करना होता है । अगर तुम इतने भाग्यवान् हो कि अंदर की ज्योति के बारे में सचेतन होओ, तो तुम देखोगे कि अपने शारीरिक काम में, तुम मानों भगवान् को नीचे, वस्तुओं में बुला रहे हो; तब यह संपर्क बहुत ठोस हो जाता है, अन्वेषण के लिए एक पूरा जगत् सामने होता है । यह अद्भुत है ।
तुम युवा हो, तुम्हारे सामने बहुत समय है । और युवा होने के लिए, वास्तव मे युवा होने के लिए, हमें हमेशा, हमेशा बढ़ते रहना, विकसित होना और प्रगति करते रहना चाहिये । वृद्धि यौवन का लक्षण है और चेतना की वृद्धि की कोई सीमा नहीं । मैं बीस वर्ष के बूढ़ों और पचास, साठ, सत्तर के युवकों को जानती हूं । और अगर तुम शारीरिक काम करो, तो स्वस्थ रहते हो ।
तो अब तुम्हें समाधान पाना चाहिये ।
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'ए' : जी बहुत ठीका !
तुम सब कुछ कर सकते हो... सब तरह की चीजें हैं, सब तरह की । और तुम्है आपस मे देखना चाहिये कि इसकी व्यवस्था कैसे की जा सकती है । तुम आकर मुझे बतलाओगे, ठीक है?
'बी' : जी हां ,बिलकुल ठीक ।
तो, अब विदा । एक सप्ताह बाद आना ।
*
२४ मार्च, १९७०
आओ । (माताजी हंसती हैं)
(आनेवाले माताजी को मुल अर्पित करते हैं 'सेवा ' नामक मुल की ओर इशारा करते हुए माताजी हंसकर कहती हैं: )
ओरोवील की सेवा ।
(माताजी ' को सजाती ओर बांटती हो 'सेवा' और 'रूपांतर' के मुल देते हुए के कहती हैं:)
सेवा ही रूपांतर की ओर ले जाती है । मैं गंभीरता से कह रहीं हू ।
'ए'. मधुर मां क्या हम आपसे एक प्रश्न दूब सकते हैं ?
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'ए' : ऐस्पिरेशन '' की ओर से सबका प्रश्न है।
ओह !
'ए ' : 'ऐस्पिरेशन ' वाले यह जानना चाहते हैं कि क्या यह संभव है कि हर मंगलवार को आपके पास आने वाले हमेशा वही व्यक्ति न हों ?
देखो, मैं बिलकुल तैयार हूं, यह तुम्हारे ऊपर है । (माताजी हंसती हैं ) नहीं! मैं तुम में से चार से मिलने को तैयार हूं ।
( ' सी ' की तरफ मुड़कर) मैंने इसे आज पहली बार बुलाया है, लेकिन इसके स्थान पर दूसरे लोग बारी-बारी से आ सकते हैं । जो हो, मैं उससे मिलूंगी ही । लेकिन तुम तीनों के साथ, कोई चौथा व्यक्ति, हर बार कोई नया, बारी-बारी से आ सकता है ।
'ए': जी बहुत ठीक।
मैं केवल इसी की मांग करती हूं कि वे सच्चे हों, केवल उत्सुकतावश न आयें । अगर वे सच्चे हों, अगर वे सचमुच प्रगति करना चाहते हों, तो हर बार एक आ सकता है, थे बिलकुल सहमत हूं । मुझे उनके नाम जानने की भी जरूरत नहीं है । देखो, मेरे लिए उसका कोई महत्त्व नहीं है । केवल ग्रहणशीलता का गुण ही महत्त्व रखता है । अगर वे खुले हों और यह अनुभव करें कि इससे उन्हें लाभ होता है, तो अच्छा है, बहुत ही अच्छा है....
( ' सी ' से) तो तुम बग़ीचे के बारे में मुझे सूचना देने हफ़्ते में एक दिन आओगे... । तुम, तुम लोग ओरोवील से आओगे; यह, यह यहां काम करेगा... । क्या यह ठीक है?
'ए' : बिलकुल ठीक मधुर मां, !
(लंबा मौन)
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तुम वहां कितने हो ?
'ए'. करीब चालीस ।
(माताजी हंसती हैं ) अब मैं तुमसे एक अविवेकी प्रश्न पूछने जा रही हूं । कितने सच्चे हैं ? तुम केवल उन्हें देखकर यह पता नहीं कर सकते । चालीस के चालीस यहां नहीं आयेंगे! कितनों ने तुमसे यहां आने के लिए पूछा था ?
'बी'. जी पांच-छह ने ।
यह पर्याप्त है । किस-किसने ?
'बी ' : 'डी : ', ' एक ' थे- और वहां के बहुत- सी लोग आपके प्रति बहुत प्रेम का अनुभव करते हैं ।
मैं दो शर्तें रखूंगी । प्रगति की चाह-यह सचमुच साधारण शर्त हैं । प्रगति की चाह, यह जानना कि अभी सब कुछ करना बाकी है, अभी सभी चीजों को जीतना बाकी है । दूसरी शर्त कु : हर रोज कुछन-कुछ करना, कोई क्रिया-कलाप, कोई कर्म, कुछ भी, कोई ऐसी चीज जो अपने लिए न हो, और सबसे बढ़कर कोई ऐसी चीज जो सबके लिए सद्भावना की अभिव्यक्ति हो-तुम एक दल में हो, हो न ?-केवल यह दिखाने के लिए कि तुम केवल अपने लिए नहीं जीते मानों तुम विकास के केंद्र हो और सारे विश्व को तुम्हारे चारों ओर घूमना है । लोगों के विशाल समूह के लिए बात ऐसी हो हैं, और वे इसे जानते तक नहीं । हर एक को इसका भान होना चाहिये कि, सहज रूप से । व्यक्ति अपने- आपको विश्व के केंद्र में रख देता है और यह चाहता है कि सभी चीजें यूं ही, किसी-नकिसी तरीके से उसके पास आयें । लेकिन व्यक्ति को समग्र के अस्तित्व को पहचानने का प्रयास करना
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चाहिये, बस यही बात हैं । केवल अपनी चेतना को विस्मृत करना है, बस कुछ कम छोटा बनना है ।
तो जो मेरे कार्यक्रम का अनुसरण करना चाहते हैं वे बारी-बारी से हफ़्ते मे एक दिन आयेंगे । क्या यह ठीक है ?
( ' सी ' से ) तुम्हारे लिए, मैं तुम्हारी मां के लिए एक गुलाब दूंगी, क्योंकि उसे गुलाब बहुत पसंद हैं । तो तुम उसे यह दे देना । और तुम आओगे... तुम्हें इसी दिन नहीं आना चाहिये क्योंकि बहुत समय लग जाता हैं । कौन-सा दिन ?
'जी' : सोमवार ठीक दे शुक्रवार भी !
( ' सी ' से) तुम्हारे लिए किस दिन ज्यादा सुविधा रहेगी ?
सी : जी सोमवार, मधुर मां ।
सोमवार को तुम मुझे अपनी बागवानी की खबरें दोगे ।
बहुत अच्छा । हमारा बगीचा बहुत सुन्दर बगीचा होना चाहिये ।
हां, तो फिर, यह ठीक है न ? मैं तुमसे अगले मंगलवार मिलूंगी, किसी के साथ, कोई भी हो, मेरे लिए सब एक समान हैं, जब वह आये तो बस तुम मुझसे कह देना... । जो प्रगति करना चाहते हैं और यह सोचते हैं कि जगत् उनसे, उनकी अपनी चेतना से ज्यादा विस्मृत है ।
'जी ' : मधुर मां उन्होने वहां जुड़ों के गद्दे की व्यवस्था की हे है। ' बी ' जुड़ों सीखा रहा हे वह 'ब्राउन बैलट ' वाला है और वह सीखा सकता है ?
ओह! तुम 'ऐंच' से मिले हो ?
'बी '. जी हां मैंने का अभ्यास उनके साध किया है !
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('जी' से) उसकी इसके बारे में क्या राय है?
'बी' : हमने समान तरीके से नहीं सीखा हे; मेरे लिए यह कहना हे कि उनके बारे मे सें क्या सोचता हूं क्योंकि हमारी तकनीक एक नहीं है।
' जी '. इनकी तकनीक एक नहीं है, मधुर मां; इन्होंने एक ही तरीके ले नहीं सीखा ? इसने उनके साध जब तक यह यह ? आश्रम में था तीन महीने काम किया और फिर यह ओरोवील चला गया !
उनकी तकनीक एक नहीं है?
'जी' : जी हां बे एक ही तरीके से काम नहीं करते।
('बी' से) तुमने कहां सीखा?
'बी' फांस मे ! मेरा ख्याल दे 'एक' ने अल्लीरिया में सीखा।
ओर फिर कुछ हैं जिन्होने जापान में सीखा और वे सचमुच जानते हैं ।
(सब हंस पड़े )
'बी'. हम लोग करीब दल हैं मधुर मां जो का अभ्यास कर रहे है।
उतनी तरह के जुड़ों हैं जितने लोग उसका अभ्यास करते हैं । दस ठीक हैं । पहली चीज है गिरना सीखना । (सब हंसते हैं) ठीक है । तो अब अगले मंगल को मिलेंगे । विदा ।
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३१ मार्च, १९७०
कोई समाचार?
'ए' : जी हां।
क्या समाचार हैं ?
'ए ' : अगर आपको आपत्ति न हो, तो प्रश्न पूछने है ! पहला 'एसोसिएशन' के पास, तमिल गांव के एक बच्चे के में है ! कुछ समय से वह 'एसोसिएशन ' के बग़ीचे में काम करने आ रहा है ; और हम उसे खाना देते है , और धीरे-धीरे उसने लैम्प के कार्या में भाग लेना रहन शुरू कर दिया है ! 'आई' ' जे ' ' के ' ने इस बच्चे का उत्तरदायित्व लेना स्वीकार कर लिया है, स्वभावत: पूरे दल के साथ लकिन ये तीन विशेष रूप से थाल करेंगे; और उन्होने सोचा कि बे काम्य के जीवन का बना लोंगो ! आपके विचार से क्या यह ठीक है ?
यह ठीक है, बशर्ते कि मां-बाप राजी हों । तुममें से कोई ऐसा होना चाहिये जो उसके मां-बाप से बात कर सके और उनसे कह सके, अगर वे राजी हैं तो उनसे पूछ सकें, उन्हें समझा सके । तुम किसी बच्चे को उसके मां- बाप की स्वीकृति के बिना, यूं ही नहीं ले सकते ।
' ए ': एल ' गांव के साध संबंधों को बारे में देखता है ! वह कोशिश करेगा कि उसके परिवार से मिल सके, उसके मां-बाप के संपर्क में आ सके यह जान सके कि यह संभव या नहीं ।
वह वहां जायेगा ?
'ए' : जी जी हां !
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यही मैं कह रही हूं । यही शर्त हैं । उसे वहां जाना चाहिये, मां-बाप से बातचीत करनी चाहिये, उन्हें बातें समझाती चाहिये, उनसे यह पूछना चाहिये कि क्या उन्हें स्वीकार है । अगर उन्हें स्वीकार हों, तो बहुत अच्छा है, बिलकुल ठीक है ।
' ए '. क्योंकि उसका अपने गांव के साध नाता तोड़ने का प्रश्न नहीं।
नहीं, नहीं ।
'ए' : बल्कि धीरे-धीरे..
इसके विपरीत...
'ए' : हमें नहीं
इसके विपरीत, उसे संबंध बनाये रखना चाहिये । तब बहुत अच्छा होगा । अब दूसरा प्रश्न ?
'ए ' : दूसरा प्रश्न अतिथियों के में 'एसोसिएशन' आने वालों के बारे में है । उनमें दो तरह के होते है' : एक जो वहां रहते है और खाना वहीं खाते है, और दूसरे जो वहां रात बिताना चाहते है, वहां रहने है ! हमें मालूम नहीं कि सामान्य रूप में उनके प्रति हमारी केसी ब्रुती होनी चाहिये ?
रात बिताना संभव नहीं है, है क्या ? तुम्हारे पास स्थान नहीं है ।
'ए ' : जी नहीं हमारे पास स्थान नहीं है ।
लेकिन वे कहां से आते हैं ? क्या वे ' श्रीअरविन्द सोसायटी ' दुरा भेजे
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जाते हैं या फिर वे ऐसे ही चले आते हैं ?
' ए '. कुछ ' सोसायटी ' दुरा भेजे नाते है, पर सब नहीं । हम हमेशा यह ' जान पाते कि वे कहां से आ बे कहां से आ रहे है ।
कुछ ध्यान तो रखना चाहिये ।
' ए ' : क्याकि कभी- कभी इससे ग़लतफ़हमियाँ हो जाती हैं जो..
तुम्हारा एक दफ्तर होना चाहिये, यानी, वहां सारे समय कोई होना चाहिये, कोई ऐसा जो बाहर से आने वालों का स्वागत कर सके, बातचीत कर सकें, यह पता लगाये कि उन्हें किसने भेजा है, वे कहां से और क्यों आये हैं । यह कोई भारतीय हो होना चाहिये । यह एकदम अनिवार्य है, कोई ऐसा जो....
' ए ' : कुछ थोड़े- से भारतीय आते हैं लोइकन बहुत- से भी आते हैं- उदाहरण के लिए जर्मन ओर अंग्रेज अमरीकी फ़्रांसीसी भी आते हैं; वे यूं ही वहां से गुजर रहे होते हैं और...
वहां एक भारतीय और एक यूरोपीय होना चाहिये जो कम-से-कम अंग्रेजी और फ्रेंच बोल सकता हो । अगर वह जर्मन भी बोल सके तो और भी ज्यादा अच्छा होगा । लेकिन आजकल, अंग्रेजी से...
रात बिताना-मुझे स्वीकार नहीं है क्योंकि हम बिलकुल कुछ नहीं जानते कि वे किस तरह के हैं या वे क्या चाहते हैं या वे क्यों आये हैं । जो किसी की सिफारिश के साथ आये हों, कोई उन्हें जानता हो, उन्हें हमारे पास भेजा गया हो, तो बात अलग इ; लेकिन जो बस यूं ही आ जायें-कोई ऐसा होना चाहिये जो उनसे कह सके कि यह सारी चीज क्या है, और यह भी कि यह कोई उत्सुकता की चीज नहीं है ।
'ए '. लोइकन, मधुर मां, उदाहरण के लिए अगर कोई 'ऐस्पिरेशन '
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में पहले रह चुका हो और कहीं जगह काम करने के लिए छोड्कर चला गया हो अगर वह बीच- बीच में आना चाहे तो हमारा क्या रवैया होना चाहिये... इस हालत में क्या वह वहां रात बीता सकता है ?
क्या वह सज्जन है ?
'ए' : जी हां बह सज्जन है।
तो ठीक है । यह बिलकुल अलग बात है, यह भित्र है । मैं अजनबियों की बात कर रही हूं, ऐसे लोगों की जिन्हें हम नहीं जानते और जो यूं ही आ नाते हैं । उनसे कौन मिल सकता है ?
'ए ' : वास्तव में मालूम नहीं हमें आपस ये इस विषय पर बातचीत करनी चाहिये नहीं मालूम।
हां, शायद यह ज्यादा मजेदार न हो ।
'ए': जी हमेशा नहीं।
लेकिन यह उपयोगी होगा, बहुत उपयोगी होगा । बस, एक मेज़ और कुर्सी चाहिये-तुम उनका स्वागत करो और उनसे बातचीत करो । आवश्यक हो, तो उनके लिए एक स्कूल भी हो सकता है ।
'ए '. हम उन्हें पीने के लिए भी कुछ दे सकते हैं...
(माताजी हंसती है) ओह! यह बहुत ज्यादा है । '' तुम हमसे क्या आशा रखते हो, हमारे बारे में तुमसे किसने कहा, '' इत्यादि... । और फिर यह कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जिसमें मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि हो । अगर वह देखे कि व्यक्ति सच्चे और दिलचस्प हैं, तो ठीक है; लेकिन रात
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बिताना-ज्यादा अच्छा होगा कि नहीं ।
' ए '. बात निश्चय किया कि जो वहां खाना खायें हम उनसे पैसा लेंगे ।
हां, उनसे पैसा देने को कहो ।
'ए'. उनसे पैसा देने के कहें-क्या यह ठीक है ?
हां, हां, यह ठीक है । तुम्हें बस दर निश्चित करनी होगी । खाना कौन बनाता है ?
'ए ' : एक महीने से हमारे पास एक पाचक है, एक तमिल व्यक्ति जो पंद्रह साल क्रास में रहा और वहां खाना बनाना सीखा; ओर लोग ' जो में उसकी सहायता करते ' है लोइकन वह हमेशा रहता है ?
( मजाक में ) तुम एक छोटा-सा रेस्तोरां खोल सकते हो !
क्या तुम 'एक' को जानते हों ?
उसकी चीजें बेचने की एक दूकान जैसी है ।
'ए' : जी हां एक स्थोरा !
हां, यहीं । लेकिन रात में उसकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं रहता, इसलिए छोरियाँ होती हैं । और ऐसा लगता है कि तुम्हारे यहां बहुत लोग हैं और रहने का स्थान पर्याप्त नहीं है । तो मैं सुझाव दे रही थी कि हर महीने कोई वहां. रात को जाकर सोये और सुबह वापिस आ जाया करे । अगर वह बहुत झ न हों तो ।
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'ए' . वह तीन किलोमीटर दूर है।
' जी '. मधुर मां तीन-चार किलोमीटर ?
ओह, यह कुछ नहीं है ।
' ए '. जी साइकिल से यह दूरी कुछ भी नहीं है ।
साइकिल से-तुम्हारे यहां बाइसिकल हैं ?
'ए'. जी हां ', पर काफी ' 'नहीं है । हमें कुछ और लेनी होंगी। हमारे पास काफी ' '' पर मिल सकती है।
तुम्हें बस इतना ही करना है कि शाम को, रात को वहां चले जाओ, और सवेरे लौट आओ । रात को ( ' ऐस्पिरेशन ' में ) साइकिल की जरूरत न होगी । लेकिन अगर तुम ' एक ' को जानते हो तो वह तुममें से एक को अपने साथ ले जा सकता है और उसे सब कुछ दिखा और समझा सकता है ।
'ए ' : जी अच्छा।
मेरा ख्याल है कि यह ठीक होगा... । मुझे पता नहीं वह कैसा है । मैं नहीं कह सकतीं लेकिन मुझे आशा है यह आरामदेह होगा ।
' ए '. और एक बड़ा- सा. बनाने के बारे में आपका क्या ख्याल है जिसमें बोसा- पच्चीस आदमी रह सकें ? यह ' एन ' का विचार था ।
मेरा ख्याल है कि जब तक सबके लिए काफी जगह न हो जाये । तब तक यह अनिवाय है । मैं यह नहीं कहती कि वह बहुत अधिक आरामदेह होगा, लेकिन यह बहुत अनिवाय है ।
वह छोटा बच्चा, वह तमिल बच्चा जो आता है-उसे तुम क्या सीखा रहे हो, अंग्रेजी या फ्रेंच ?
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'ए ' : ओह अभी हम उसे कुछ धी नहीं सीखा रहे !
ओह, वह बेचारा, छोटा-सा बच्चा, तुम उसे सिर्फ काम में लगा देते हो....
'ए' नौ नहीं केवल यही नहीं।
'जी' : उसे खिलाते भी हैं मधुर मां।
'ए '. धीरे- धीरे, जब वह ज्यादा आने लगेगा तो हम उसे फ्रेंच सिखाते की कुछ व्यवस्था करेंगे ।
तुम्हें उसे वहां के जीवन में सम्मिलित करना चाहिये, यह दिलचस्प रहेगा । जब बच्चे तुम्हें बोलते हुए सुनते हैं तो वे जानना चाहते हैं कि क्या कहा जा रहा हैं और वे भाषा सीख जाते हैं । भाषाएं सीखने में भारतीय माहिर होते हैं । वे खिचती बनाये बिना चार-पांच भाषाएं सीख सकते हैं । यह छोटा बच्चा अच्छी तरह सीख लेगा-यह बडी अच्छी बात होगी ।
अच्छा, ठीक है । तो... । फिर मिलेंगे ।
७ अप्रैल, १९७०
कुछ नहीं कहना ?
क्या तुमने व्यवस्था मे कुछ परिवर्तन किया है ? किसी ने मुझसे कहा कि कुछ बदला गया है ।
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'ए' : कुछ बदलने वाले हो ओह है !
ओह कुछ बदला नहीं ?
'ए ' : अभी नहीं बदलने वाले है।
अगर कोई '' नीरवता का स्नान '' चाहते हों तो वे आ सकते हैं, उसमें कोई हर्ज नहीं । अगर कोई कभी-कदास से ज्यादा ''नीरवता का स्नान '' चाहते हों, तो वे आ सकते हैं, इसमें कोई हर्ज नहीं । वे उधर पीछे बैठ सकते हैं ।
में यह व्यवस्था तुम्हारे ऊपर छोड़ते हूं ।
फिर मिलेंगे ।
१४ अप्रैल, १९७०
'जी'. ('ओ' के बारे में ) मधुर मां यह जर्मन हो यही कल्लों द रिबो-पिऐर की तरह कमीकी चित्र बनाता हो यही बनाता है माताजी।
('पी' के बारे मे) यह नया ही आया है माताजी यह राज है।
ओ!
'जी '. यह फांस से आया है ! यह राज है ! यह अभी कुछ दिनों के जायेगा और अपनी पत्नी को लेकर वापिस आ जायेगा।
(लंबा मैंने)
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मैं तुममें से हर एक को, संपर्क बनाये रखने के लिए, एक पैकेट देती हूं । तुम इन पैकेट से परिचित हो । तुम्हें पैकेट रखना चाहिये ।
ये सब फ्रेंच समझते हैं क्या ?
'जी' :'ओ' नहीं।
(अंग्रेजी मे) तुम चाहो तो मैं अंग्रेजी मे बोल सकती हूं ।
'जी ' : मधुर मां 'ओ ' नहीं समझता वह जर्मन ने वह अंग्रेजी समझता है ।
(अंग्रेजी में) इसके अंदर कुछ पंखुड़िया, फूलों की पंखुड़िया हैं, जिनमें शक्ति भरी गयी हैं । और अगर तुम इन्हें अपने साथ रखो, तो मेरे साथ संपर्क बना रहता है । तो, जब तुम अंतर्मुखी होओ, अंदर की ओर देखो... अंतर्मुखी होओ, तो संपर्क फिर से स्थापित कर सकते हो और अपने प्रश्न का उत्तर भी पा सकते हो ।
लो, यह लो ।
किसी को कुछ नहीं पूछना? (अंग्रेजी मे) कोई प्रश्न नहीं है?
२१ अप्रैल, १९७०
'जी '. ( ' एला ' के बारे में, जिसने माताजी को पत्र लिखकर पूछा था कि यहां के ग्रामीणों के साथ ओरोवीलवासियो का कैसा संबंध होना चाहिये) यह ' यत्न ' है। इसी ने प्रश्न पूछे है।
ओह! तुम्हारे प्रश्नों के बारे में, देखो, सबसे अच्छा उपाय है शिक्षा । उन्हें
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शब्दों और भाषणों के दुरा नहीं, उदाहरण द्वारा शिक्षा देना । अगर तुम उन्हें अपने जीवन और अपने काम के साथ घुलने-मिलने दो, और वे तुम्हारे ज़ीने, तुम्हारे समझने के ढंग से प्रभावित हों, तो फिर, थोडा-थोडा करके वे बदलेंगे । और जब वे उत्सुक हों और प्रश्न पूछे, तब उन्हें उत्तर देने का और तुम जो जानते हो वह समझाने का समय होगा ।
'जी' : यह ग्रामीणों की ओर से कुछ भेंट-पूजा है !
ओह!
'जी ' : माताजी 'एल ' इन्हें गांववालों के यहां से लाया है ?
'एल'. दो व्यक्तता !
उन्हें मेरे अस्तित्व के बारे मै पता हैं?
'एल' : जी हां माताजी? ( हंसी )
दो ?
'एल ': जी दो ।
तो तुम उन्हें यह देना । (माताजी आशीर्वाद के दो पैकेट देती हैं ।) उनसे कहना : माताजी ने तुम्हारे लिए भेजे हैं । और उनसे कहना : इन्हें अपने साथ रखो, इनसे तुम्हें मदद मिलेगी ।
और कोई है?
' जी '. जी हां ' सूक ' एक जर्मन लड़की यह धी औषधालय मे काम करती है माताजी।
तुम अंग्रेजी बोलती हो? तुम डॉक्टर ' आर ' के साथ काम करती हो?
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'जी'. जी हां माताजी डॉक्टर 'आर' के साथ।
('ए ' से) तुम अंग्रेजी समझते हो ?
'ए ': जी हां।
तो फिर मैं अंग्रेजी मे बोलती हूं । मैंने सुना हे कि 'ऐस्पिरेशन ' में कुत्ते- बिल्लियां बडी संख्या मे हैं । यह सच है? देखो, मेरा कुत्ते-बिल्लियां से कोई विरोध नहीं है । एक समय मैंने भी इन्हें पाला है । लेकिन जलवायु अच्छा नहीं है इन्हें... पागल होने से बचाना असंभव है । और तब, मामला खतरनाक हो जाता है, समझे, तुम्हें उन्हें मार डालना पड़ता है जो बहुत सुखद नहीं है । जहां तक संभव हो इनकी संख्या को कम करना अच्छा होगा । मुझे बाधित होकर कहना पड़ा कि कुत्ते मत रखो; कुछ लोग फिर भी रखते हैं । तुम्हारा उनके साथ सुखद संपर्क नहीं हो सकता । वे बीमारी के घर होते हैं, कुछ बीमारियों काफी गंभीर होती हैं, और कुत्ते, बिल्ली उनसे ग्रस्त रहते हैं । में घिनौना वर्णन करना नहीं चाहती, लेकिन... । यह सुरक्षित नहीं है और यह शांतिप्रद नहीं हो सकता । क्या तुम्हें पता है कि उनमें कौन-सी बीमारियों घर किये होती हैं ? दो हैं : एक है प्ले, दूसरी है कोढ़ ।
क्या वे निजी पशु हैं या कम्यूनिटी के हैं ?
'ए'. कुछ कम्यूनिटी के हैं पर कुछ व्यक्तिगत धी हैं,
वे उनके झोंपड़ों में रहते हैं ?
' ए ' : कुछ (असम्मति की फुसफुसाहट; ' ए ' स्वयं अपनी गलती ठीक करता हैं ) जी नहीं अब बे झोंपड़ों में नहीं रहते !
उनको अंदर आना मना नहीं है क्या ?
' ए ' : जी नहीं झोंपड़ों मै आना मना नहीं है, वैसे भी वे कैम्प में
३५६
आते हो बहुधा के रेस्तोरां में होते दें जहां हम खाना खाते है।
ओर फिर, वे जनते रहते हैं । (हंसी) इसका कोई अंत नहीं । और जनाने के बारे में हम क्या कर सकते हैं ? सबको डूबा दें ? यह सुखद नहीं है । स्वभावत:, तुम मुझसे आसानी से कह सकते हो : अगर हम उन्हें यहां से भगा दें तो वे कही ओर चले जायेंगे । जो हो, मैं यह चाहूंगी कि इस चीज को बढ़ावा न मिले । जानते हो, मनुष्यों सें ज्यादा कुत्ते-बिल्ली हो जायेंगे । ऐसा ही होता है । फिर-एक मजेदार चीज तुम कर सकते हो । दूर, बहुत दूर, किसी निर्जन स्थान मे जहां कोई नहीं रहता, तुम उन सबको एक साथ किसी सुरक्षित स्थान मे रख सकते हो, ताकि वहां से निकल न सकें । फिर वे खाने के लिए भी कुछ ढूंढ निकलेगी । उदाहरण के लिए, अछूते वन मे -ऐसे वन अब भी भारत मे हैं । बिल्लियां के साथ यह बहुत आसान है । जब बिल्ली के बच्चे होते हैं, अगर तुम बच्चों को कहीं दूर रख आओ, तो मां बिल्ली कभी वापिस न आयेगी, वह बच्चों के साथ ही रहती है । कुछ ढूंढ निकालना होगा, कोई एकांत स्थान । ऐसे स्थान अब भी भारत मे हैं । लेकिन ओरोवील-क्षेत्र मे नहीं ।
वस्तुत:, थे तुमसे जो करने के लिए कह रही हू वह यह है कि, किसी भी हालत मे, संख्या को बढ़ने न दो । एक दिन तुम आंखों मे आस भरे यह कहते हुए मेरे पास आओगे : जीवन दुः सह हो गया है! (हंसी) तो, मैं तुम्हें चेतावनी दे रही हू ।
गांव मे क्या कुत्ते और बिल्लियां हैं?
'एल'. जी हां हैं-बहुत-से लोइकन बिल्लियां बहुत नहीं है।
क्या तुम कुछ क्षण मौन रहना चाहोगे?
तो, विदा ।
सब : जी विदा
३५७
२८ अप्रैल, १९७०
कौन-कौन नये हैं?
' जी ' : नये है: 'डी : आप उसके जन्मदिन पर उसे एक बार पहले ही देख चुके है 'ऐसा : उसे आप जानती हैं आपने उसे कई बार देखा हे 'टिन ' ने आपको बहुल बार लिखा है उसने कई पत्र लिखे थे और अपने जन्मदिन पर भी आया था? ' यूं: 'यूं' को आप नहीं जानती' यह एक मेकैनिक है यह 'जी' के साध कार का काम करता है? 'न्यून ' के पिता 'एन '। 'रबी ' जो हर हफ़्ते आत हे और 'ए ' (माताजी हंसती हैं) ।
तो हम चुप रहेंगे । मैं तुमसे किसी और दिन बातें करूंगी
एक... । क्या तुम आश्रम के छोटे-छोटे ब्रोचों को जानते हो? हां तो, ओरोवील के लिए भी एक होगा । क्योंकि ऐसे लोग हैं जो ओरोवील मे आकर वहां की भूमि पर जम जाते हैं और वे 'कमेटी ' के पास जाने और मिलने से इन्कार करते हैं । वे कहते हैं : '' ओरोवील स्वतंत्र है! '' और वे वहां जम जाते हैं । लेकिन फिर भी, हमें मान्यताप्राप्त ओरोवीलवासियो मे और जो अधिक मनमौजी हैं उनमें भेद कर सकना चाहिये । इसलिए कोई चीज तैयार हो रही है-निश्चय ही, अभी तक वह तैयार नहीं है । मैं तुम्हें केवल दिखाना चाहती थीं । (माताजी अपनी मेज़ ले एक कागज निकालती है)
यह करीब इस आकार का एक छोटा-सा ब्रोचों होगा । यह यूं है । घेरा चांदी का होगा; और ये रहे चार रूप, और कमल के साथ श्रीअरविन्द का समचतुष्कोण । और उसके चारों तरफ '' ओरोवील '' लिखा होगा । तो तुम अपने बटन के छेद मे उसे रहोगे-मान्यता-प्राप्त ओरोवीलवासी! (माताजी मुस्कराती हैं ।)
आज बस । तो सप्ताह अच्छी तरह बीते ।
३५८
२६ मई, १९७०
कोई प्रश्न है?
' ए '. जी हां । धर्म के बारे मे आपने जो हमें छोटी दी है उसके बारे मे कुछ प्रतीतियों हुई है उस वाक्य के बारे मे जिसमें कह है : खोज साधनों द्वारा खोज नहीं होगी।"१
क्या वे यह नहीं जानते कि रहस्यवादी साधन क्या हैं?
'ए '. शायद वे नहीं जानते लोइकन शायद जिस चीज को हम नहीं जानते वह यह हे : रहस्यवादी साधनों द्वारा क्यों नहीं? मुझसे यह प्रश्न पूछा गया है !
रहस्यवादी साधन से मेरा मतलब उन तरीकों से है जिनमें लोग जीवन से दूर चले जाते हैं १ मठधारियों की तरह, जो मीठों मे चले जाते हैं, या यहां के संन्यासियों की तरह, जो आध्यात्मिक जीवन की खोज के लिए जीवन का त्याग कर देते हैं, जो दोनों मे भेद करके कहते हैं : '' या तो यह या वह । '' हम कहते हैं : '' यह सच नहीं है । '' जीवन मे और जीवन को पूरी तरह जीकर ही मनुष्य आध्यात्मिक जीवन जी सकता है, कि उसे आध्यात्मिक जीवन मे जीना चाहिये । परम चेतना को यहां लाना होगा । शुद्ध भौतिक और जड़- भौतिक दृष्टिकोण से, मनुष्य ही अंतिम जाति नहीं है । जिस तरह मनुष्य पशु के बाद आया, उसी तरह मनुष्य के बाद दूसरी सत्ता को आना चाहिये । और चूंकि 'चेतना ' एक ही है, अतः यह वही ' चेतना ' होगी जो मनुष्य के अनुभव पारक अतिमानव सत्ता के अनुभव प्राप्त करेगी । इसलिए अगर हम चले जायें, अगर हम जीवन को छोड़ दें, जीवन का त्याग कर दें, तो हम यह करने के लिए कभी तैयार न होंगे ।
१''हमारी खोज रहस्यवादी साधनों सें प्रभर्ग़वेत खोज न होगी । हम जीवन मे ही भगवान् को पाना चाहते हैं । और इस खोज के द्वारा ही जीवन सचमुच रूपांतरित हो सकता है । '
३५९
लेकिन अगर तुमने श्रीअरविन्द की पुस्तकें पढ़ी होती, तो तुम समझ पाते, तुम यह प्रश्न न करते । यह प्रश्न इसलिए उठा कि बौद्धिक दृष्टिकोण से तैयारी की कमी है । बिना अध्ययन किये तुम सब कुछ जानना चाहते हो ।
( ' ए ' से) अब, तुम्हें और क्या कहना है?
ठीक
'ए'. जी बस इतना ही।जी हां अगर आपको आपत्ति न हो तो कुछ और धी नोक यह 'टी' का पत्र है जो यहां ने और उसी ने
पढ़ने के लिए कहा।
ठीक है ।
'ए '. (पढ़ता है) आपने धर्मा के बारे में जो लिखा ने उसके सिलसिले में आपके प्रति एक प्रार्थना उठती हे । हम प्रार्थना करते है कि भगवान् का ' सत्य ' हमारी सत्ता के 'सत्य ' मे भर जाये हमारे कार्य उस ' सत्य ' को अभिव्यक्त करें, हमारे मन और हृदय ऐकांतिक रूप ले भगवान् के ' सत्य ' द्वारा परिचालित हों! अभी तक जो कुछ अचेतन है हम उस पर भगवान् के 'सत्य ' के 'प्रकाश ' के लिए याचना करते हैं हम उन्हीं के 'सत्य ' द्वारा जानना उन्हीं के 'सत्य ' द्वारा कार्य करना और उन्हीं के 'सत्य ' मे रहना चाहते मई परम प्रभु के आगे ओरोवील की यही प्रार्थना है आप हमारी चेतना की विजयी मां हों । ''
यह सूचना-पट्ट पर लगायी जा सकती है । यह बहुत अच्छी है, बहुत अच्छी । ( ' आर ' इशारा करता हे कि उसे एक प्रश्न पूछना हे ।) तुम्हें क्या कहना है?
' आर '. एक प्रश्न पूछना, माताजी एक व्यावहारिक प्रश्न ।
व्यावहारिक?
'आर ' : किसी विशिष्ट लक्ष्य को पाने की चाह करना और साध ही
३६०
हर एक से प्यार करना बहुत कठिन मालूम होता हे जब हम कोई चीज प्रान्त करना चाहने लगते हैं और किसी विशेष परिणाम को मन मे रखकर चलते हैं तो हम तुरंत अपने-आपको उन सबसे अलग कर लेते हैं जो उसके साध सहमत न हों व्यावहारिक रूप से हम ये दोनों चीजें एक साथ कैसे कर सकते हैं?
तुम अपने- आपको उन सबसे अलग कर लेते हो जो तुम्हारी तरह नहीं सोचते ?
' आर ' : सचमुच... सारे समय..
लेकिन कोई भी व्यक्ति तुम्हारी तरह नहीं सोचता!
'आर ' : सचमुच
तो फिर तुम किसी से भी प्यार कैसे कर सकते हो?
' आर ' : जब तक कि मैं कुछ चाहता नहीं तब तक ठीक रहता हे ?
'आर' : जी!
(माताजी दो-तीन मिनट के लिए ध्यानस्थ हो जाती हैं ।)
यह इसलिए हैं क्योंकि जब तुम कुछ चाहते हो, तो वह अहंकार चाहता है । तो, अहंकार... की उपेक्षा करनी चाहिये । करने लायक पहली चीज यह है कि अपने लिए कार्य न करो, भगवान् की आज्ञा के अनुसार काम करो, भगवान् की ' इच्छा ' व्यक्त करने के लिए काम करो । जहां तक तुम्हारा सवाल हैं, तुम कोई आज्ञा नहीं देते । जब तक निजी इच्छा, निजी कामना हो तब तक वह सच्ची चीज नहीं होती, और तुम... । इतना हो नहीं कि वह
३६१
सच्ची चीज नहीं होती, बल्कि तुम सच्ची चीज को जान भी नहीं सकते!
इसे (बलपूर्वक किसी वस्तु को त्यागने की मुद्रा)... इसे निकाल बाहर करना चाहिये ।
इसीलिए अपने- आपमें, हम बिलकुल कुछ नहीं हैं । यह जीवन है । हम अपने लिए कार्य नहीं करते । हम अपनी निजी इच्छा और अपने निजी परिणाम के लिए कार्य नहीं करते । हम केवल भागवत 'संकल्प ' के द्वारा और भागवत 'संकल्प ' के लिए कार्य करते हैं । यहां तक कि अपने शत्रु के लिए भी बिना प्रयास, सहज रूप से हम अत्यधिक कोमलता का अनुभव कर सकते हैं । जब तुम इसका अनुभव कर लोग तभी तुम समझो । यही सारी सीमितता है, सारी सीमितता ।
जब संघर्ष उठते हैं, जो हर समय उठते हैं, हम सबके लिए-तो ऐसा होता है मानों व्यक्ति तुरंत सिकुड़ जाता है । क्योंकि यही होता है : प्रत्येक व्यक्ति अपने अंदर सिमट जाता है । लेकिन कठिनाई यह है कि जब अनुपात मे तुम्हारे अंदर निजी इच्छा कम हो, अगर तुम्हारे पास का आदमी तुमसे अपनी निजी इच्छा कहे, तो वह बिलकुल... । सबसे पहले वह जरा-सी प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है और फिर, अगर तुम न्यूनाधिक रूप मे उसके साथ सहमत होओ, तो तुम उस इच्छा को ले लेते हो, और अपने चारों ओर उसे फैलने लगते हो । तो देखो क्या होता हैं । और यह सारे समय चलता रहता है । पहले एक आदमी की कोई इच्छा होती हे, फिर दूसरे की, और इस तरह, बिना रुके यह चलती चली जाती है । यही सब जगह हों रहा है; सबसे मजबूत इच्छा जीत जाती है । यह व्यर्थ है, व्यर्थ ।
जब हम कहते हैं : '' हम भगवान् की सेवा के लिए हैं '', तो ये कोरे शब्द नहीं होते । हमें अपने- आप नहीं, बल्कि ' उन्हें ' हमारे द्वारा कार्य करना चाहिये । सबसे बडी आपत्ति यह होती है : हम भागवत ' संकल्प ' के बारे मे कैसे जान सकते हैं? लेकिन वस्तुत:, मैं तुमसे कहती हू : अगर तुम सच्चाई के साथ अपनी निजी इच्छा का त्याग कर दो, तो तुम जान लोग ।
'आर '. जी हां यह रिष्ट
हां तो, यह बात है ।
३६२
(माताज़ी चुप रहती है करीब पंद्रह मिनट के लिए हर एक उपस्थित व्यक्ति पर एकाग्र होती हैं फिर ' ए ' से . तो, तुम उन्हें यह समझा दोगे । हम जीवन को बदलना चाहते हैं-हम उससे दूर भागना नहीं चाहते... । अब तक जिन लोगों ने, जिसे वे भगवान् कहते हैं उसे जानने की कोशिश की, भगवान् के साथ संपर्क बनाने की कोशिश की तो उन्होंने जीवन को छोड़ दिया । उन्होंने कहा : '' जीवन एक बाधा हैं । इसलिए हम जीवन का त्याग करेंगे । '' तो, भारत मे, संन्यासी हैं जिन्होने सब कुछ त्याग दिया; यूरोप मे मठवासी या साधु हैं । हां, वे भाग सकते हैं, फिर भी जब उनका पुनर्जन्म होगा तो उन्हें सारी चीज को फिर से शुरू करना होगा । लेकिन जीवन जैसा-का-वैसा बना रहेगा ।
२ जून, १९७०
मुझसे ओरोवील की अभीप्सा को सूत्रबद्ध करने के लिए कहा गया है । क्योंकि सद्भावना तो बहुत है, पर वह... वह व्यवस्थित नहीं मालूम होती । इसलिए मैंने कहा : सबसे अच्छी चीज यह होगी कि ओरोवील जो चाहता है उसे सूत्रबद्ध कर दिया जाये । इससे कुछ सहयोग आ सकेगा । लेकिन यह एक बड़ा काम है ।
हर बार हम अभीप्साएं मे से एक को सूत्रबद्ध कर सकते हैं, या फिर हर बार तुम एक प्रश्न ला सकते हो । और ऐसे बहुत-से हो सकते हैं । तो, एक प्रश्न । या तो मैं उसी समय उत्तर दे दूंगी या अगली बार उत्तर दूंगी । या फिर 1 हम मिलकर ओरोवील की अभीप्सा को व्यक्त करने की कोशिश कर सकते हैं ।
'ए' : यह अभीप्सा क्या ने इसका आपको कुछ अंतर्दर्शन हुआ है क्या ?
निस्संदेह! निस्संदेह! मैं जानती हू कि मैं क्या चाहती हू । मुझे मालूम है
३६३
कि मैं ओरोवील को क्या बनाना चाहती हू । लेकिन काफी अंतराल है... । वह कुछ वर्षों बाद का, बहुत वर्षों बाद का ओरोवील है ।
'ए '. लोइकन क्या आपका ख्याल ने कि हम इस भावी ओरोवील को या सकेंगे ?
हम इस तरह चलेंगे : हर बार जब तुम आओगे, तो मैं तुम्हें ओरोवील की अभीप्साएं मे से एक दूंगी और फिर हम उन्हें एकके-बाद एक रखेंगे, और पिछली बार मैंने जो कहा हो उसके बारे मे तुम अगली बार प्रश्न कर सकते हो । लेकिन एक असुविधा है; हर बार वही आदमी नहीं आते । तुममें से तीन हमेशा आते हैं । तुम्हें सिलसिला जारी रखना चाहिये ।
सच्चा ओरोवीलवासी होने के लिए आदमी को क्या होना चाहिये? तुमने ऐसा प्रश्न किया था । सच्चा ओरोवीलवासी होने के लिए आदमी को क्या होना चाहिये? ( 'ए ' से7 तुम्हारे क्या विचार हैं?
'ए ' : मेरे, वास्तव मे ओरोवीलवासी होने के पहली चीज हे भगवान् के प्रति अपने- आपको तरह अर्पण करने का संकल्प।
यह अच्छा है, अच्छा है यह; लेकिन ऐसे बहुत नहीं होते । ( ' जी ' मे) जस कागज का एक पुरजा देना । मैं इसे पहले नंबर पर लिखूंगी ।
(माताजी लिखती है) '' सच्चा ओरोवीलवासी होने के लिए । '' मैंने इसे जानबूझकर नंबर १ देकर लिखा है ।
तो, हम दूसरे नंबर के बारे मै देखें ।
आचरण की दृष्टि से, स्थूल व्यावहारिक दृष्टि से, उदाहरण के लिए : हम सभी नैतिक और सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त होना चाहते हैं । लेकिन इस मामले मे हमें बहुत सावधान होना चाहिये! हमें अपने- आपको इन चीजों से मुक्त करके कामनाओं की अंधी तुष्टि मे डूब कर स्वच्छन्द नहीं हो जाना चाहिये; बल्कि इनसे ऊपर उठकर, कामनाओं का निष्कासन करके और नैतिक नियमों के स्थान पर भगवान् की आज्ञाकारिता को स्थापित करके अपने- आपको मुक्त करना चाहिये ।
३६४
('जी' माताजी को एक देता ने जिसमें बे यह सब लिख दें जो उन्होने अभी कहा है)
यह उस रूप मे नहीं है जिसे लिखा जा सके ।
'जी' : जी हां मधुर मां।
अब हम मौन रहेंगे ।
क्या ?
'जी': एक प्रश्न है मधुर मां।
'जी' : एक प्रश्न है ।
एक प्रश्न? क्या प्रश्न? किसे पूछना है?
'जी ' : ' बी ' को जो ' ऐस्पिरेशन ' मै सिखाता ने वह यहीं हे वह पूछता ने: '' मधुर मां ओरोवील मे विशेष रूप से '' मे खेल- कूद या शारीरिक व्यायामों को जारी रखना इतना कठिन क्यों है ?"
कठिन? कठिन क्यों है?
' बी ' : मधुर मां नियमित होना कठिन हे खेल-कूद श अन्य कोई कार्यक्रम जिसे हमने शुरू किया हो उसे जारी रखना मुश्किल होता हे ? इसीलिए मैं आपसे पुछता हू क्यों ।
क्या तुम्हारे पास सीखने वाले नहीं हैं?
' बी '. हमने की कक्षाएं शुरू की ' दो पहले आऊ सीखने वाले थे और अब हम दो- तीन हैं कार्यक्रमों का यही हाल है ।
३६५
वे क्या कारण बताते हैं? आलस्य, अकर्मण्यता, या फिर यह कि वे अपने- आपको श्रेष्ठतर समझते हैं ?
'बी' : पता ' मधुर मां!
अगर आलस्य है, तो तुम्है धीरे- धीरे शुरू करना चाहिये और जैसे-जैसे शरीर उसका अभ्यस्त होता जाये उसे आगे बढ़ाना चाहिये । अगर यह श्रेष्ठता के भाव के कारण हैं, तो रोग गंभीर है ! (माताजी हंसती हैं) रोग का उपचार करना चाहिये ।
हमें शरीर त्याग देने के लिए नहीं, ज्यादा अच्छा बनाने के लिए दिया गया है । और ठीक यही चीज ओरोवील के लक्ष्यों में से एक है । मानव शरीर को सुधारना, पूर्ण बनाना है, और उसे अतिमानव शरीर बनाना है जो मनुष्य से उच्चतर सत्ता को अभिव्यक्त करने योग्य हो सके । और निश्चय ही अगर हम उसकी अवहेलना करें तो यह नहीं हो सकता । यह हों सकता है सम्यक् शारीरिक प्रशिक्षण, शारीरिक क्रियाकलाप दुरा- शरीर के व्यायामों द्वारा-जो छोटी-मोटी निजी ज़रूरतों या तुष्टियों के लिए नहीं, शरीर को उच्चतर सौंदर्य और चेतना को अभिव्यक्त करने में सक्षम बनाने के लिए किया जाये । इसी कारण, शारीरिक प्रशिक्षण का ऊंचा स्थान हैं, और वह उसे देना चाहिये ।
यह प्रश्न कि ' लोग ऐसे क्यों हैं ?-हर एक मुझसे कहता है : ''लोग ऐसे हैं । लोग वैसे हैं । वे वैसे क्यों हैं ? '' और यह बात हर क्षेत्र में है । ठीक इसीलिए मैंने वह करने का निश्चय किया था जो मैंने अभी कहा : ओरोवील की सच्ची अभीप्सा को रूप देना ।
और यह शारीरिक प्रशिक्षण पूरी जानकारी के साथ करना चाहिये, असाधारण, अद्भुत चीजें करने के लिए नहीं, बल्कि शरीर को उच्चतर चेतना को अभिव्यक्त करने योग्य काफी मजबूत और लचीला बनाने की संभावना देने के लिए ।
यह लंबी सूची का एक भाग होगा ।
उनसे कुछ कहने की जरूरत है... । हर एक किसी अभीप्सा के साथ, इस विचार के साहा आया है कि उसे कुछ नया मिलेगा, लेकिन वह बहुत
३६६
स्पष्ट नहीं है । अतः उन्हें एक स्पष्ट चित्र देना चाहिये जो इतना व्यापक हो कि उसमें सभी अभीप्साएं को अपना स्थान और अपनी अभिव्यक्ति मिल जाये । हम यह करेंगे । हम आपस में सप्ताह में एक बार मिलते हैं । हम थोडा-थोडा करके इसे करेंगे ।
( 'बी' से ) तुम्हें उनसे कहना होगा जो मैंने अभी कहा हैं । उनसे कहा जा सकता है, तुम उनसे कह सकते हो : शरीर को अपना कार्य करने के लिए तैयार करने में शारीरिक प्रशिक्षण का महत्त्वपूणं, स्थान है । तो बस ! (माताजी हंसती हैं)
(इसके बाद पश्च मिनट का ध्यान हुआ । फिर माताजी ने वह कापी वापिस ले ली जिसमें उन्होने '' एक सच्चा ओरोवीलवासी होने के लिए '' और फिर '' लबी सूची '' का नंबर एक लिखा था और फिर कहा :)
लो ! मैंने नंबर दो लिख दिया : '' ओरोवीलवासी कामनाओं का दास नहीं बनना चाहता । '' यह एक बहुत बड़ा संकल्प है ।
९ जून, १९७०
( ' ए ' से ) मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ काम है । (माताजी उसे '' सच्चा ओरोवीलवासी होने के लिए '' का मूल पाठ पढ़ने के लिए कहती हैं ।)
हां तो, तुम क्या पसंद करोगे : पहले मौन और फिर यह, या यह पहले और बाद में मौन ? यह लिखा हुआ हैं : ओरोवीलवासियो को क्या होना चाहिये । आसान नहीं है ।
'ए'. मौन बाद मो ।
( मूल पाठ 'ए ' को देते हुए) यह देखो । रोशनी काफी है ?
'ए'.. जी हां ('ए' ''सच्चा ओरोवीलवासी होने के लिए'' का स्व पाठ पढ़ता है । )
३६७
यह जारी रहेगा । तुम चाहो तो नकल कर लो, जितनी प्रतियां चाहो कर लो, लेकिन इस शर्त पर कि प्रतिलिपि ठीक-ठीक हों, उनमें हेर -फेर न हों ।
' ए '. नकल के बारे में ' पी ' ने कहा है कि आपने हमारी पहली बातचीत पीड़ लोइकन आप उसे वर्तमान रूप मे प्रकाशित करना नहीं चाहतीं।
ऐसी चीजें लिखनी होती हैं । वह जैसी है, केवल बातचीत है । जब हम यूं ही बातचीत करते हैं, तो उसका ऐसा रूप नहीं होता जिसे सुरक्षित रखा जाये । देखो, तुम्हारे बोलने का तरीका होता है, तुम्हारी आवाज का लहजा होता है, तुम उसमें जो बल भरते हो, और फिर वह व्यक्तीकरण जो उस चीज की पूति करता है जो स्पष्ट नहीं की गयी । फिर जब वह छापा जाता है, तो ये सब चीजें नहीं होती, और वह केवल बातचीत रह जाती है । उसमें सारतत्त्व की कमी रहती है : उस चेतना की कमी जो तुम बोलते समय उसमें भरते हों । शब्द काफी नहीं होते ।
अगर मेरे पास समय होता तो मैं ठीकठाक कर देती और तब तुम उसे प्रकाशित कर सकते थे; लेकिन अभी जो हाल है, उसमें संभव नहीं है । जब तुम पढ़ते हो, तो तुम शब्दों के साथ अकेले होते हों, और बहुत ही कम लोग पढ़ते समय शक्ति को खींच सकते है । शब्द, जहां तक हो सकें, सटीक होने चाहिये । इसीलिए मैंने यह मूल पाठ लिख दिया है । जब यह पूरा हो जायेगा तो मैं इसे अंजोरी में लिख दूंगी, तब फ्रेंच न जानने वाले भी इसे समझ सकेंगे ।
३६८
२३ जून, १९७०
'सी' : आजकल 'एसोसिएशन' में बहुत बीमारी हेली है।
अच्छा!
'सी '. पेट की बीमारियां है, जैसे अतिसार पोइचश जठर- आन्त्रशोथ (गेस्ट्रो-एट्राइटिस )।
ओ! क्या यह भोजन के कारण है ?
'सी' : डॉक्टर का कहना है कि यह पानी के कारण है ! लेकिन हमने पानी की टंकी को रोगाणुओं से मुक्त कर लिया है।
क्या यह ऊपरी सतह का पानी है?
'सी ' : यह काफी गहरे कुकर्म से आने वाला पानी है !
उसकी सूक्ष्म छानबीन करवा लेनी अच्छी रहेगी । क्या तुम्हारे यहां फिल्टर नहीं है ?
'सी' : जी नहीं।
होना चाहिये । केवल पानी के लिए । या फिर पानी को उबालकर ठंडा कर लिया जाये । नहीं तो, यह तकलीफदेह होगा । सबसे अच्छा तो यह है कि पहले उसे उबाल लो, फिर छान ।
'जी ' : वह इस बारे में कह सकता हे क्योंकि वह पिछले सप्ताह बीमारी था !
'सी' मै अब धी बीमार हूं।
३६९
'जी'. वह अब भी बीमारी है । वह अपने-आप कहता नहीं, पर है बीमार ।
आन्त्र-शोथ ?
' सी '. जी हां जठर- आन्त्रशोथ ?
' जी '. इसे यह बहुत समय से है कोई पन्द्रह दिन से।
अगर पानी खराब हो, तो यह रोग आता ही रहता है । तुम्हें उसका विश्लेषण करवाना चाहिये । (माताजी 'ई ' द्वारा विश्लेषण करवाने की सलाह देती हैं । ) उसे थोड़ा-सा पानी देकर जांचने के लिए कहो । तब हम जो जरूरी होगा कर लेंगे । सबसे अच्छी, सबसे सुरक्षित चीज तो यही है कि उसे उबाल लो और फिर छान । और फिर तुम्हें बरतनों के बारे में सावधान रहना चाहिये; ठीक से देख लो कि वे साफ हैं । अगर तुम लापरवाह हो तो... । उबालना आसान हैं । छानना-कोई फिल्टर बना सकता है । क्या तुम इसकी व्यवस्था कर सकते हो?
' सी ' : शायद हम मद्रास से खरीद सकते हैं ?
' जी '. माताजी 'हारपागों '' में कोई फिल्टर बनाना जानता है । अगर यह वहां जाये तो बे समझा सकेंगे सिर्फ ''कंडाल '' मद्रास से खरीदने होगे।
और फिर, जहां-तहां पानी न पीना! इस देश मे यही एक चीज है, तुम्हें पानी के बारे मे सावधान रहना चाहिये । पानी से तुम्हें सब तरह के रोग हों जाते हैं । मेरा ख्याल था कि यह बात तुम्हें पहले ही समझा दी गयी होगी । तुम एक फिल्टर बना सकते हो; लेकिन बड़ा-सा बनाना !
१आश्रम का एक विभाग ।
३७०
७ जुलाई, १९७०
'ए'. यह '' का पत्र है। वह चाहता हे कि मैं आपको पढ़कर सुना दूं। मैं पड क्या ?
हां
' ए ' : (पढ़ता है) ''दिव्य मां ओरोवील की आंतरिक ओर बाह्य व्यवस्था के बारे में बड़ा घपला ने हम उच्चतर चेतना प्राप्त करने के मिलकर केले काम करें ? ऐसा लगता कि ओरोवील को अधिक एकरूप समाज होना चाहिये जिसमें एकता का भाव अधिक हो यह पाने के क्या यह संभव होगा कि ( 'प्रेमसे : 'होप : ' : 'पीस ' (ओरोवील की विविध , आदि के लोग सप्ताह मे एक दिन मिलकर किसी बग़ीचे मे शायद ' सत्य ' के बग़ीचे में काम कर सकें ? या हर व्यक्ति सप्ताह मे एक दिन किसी फार्म में ओरोवील के अन पैदा करने का काम करे इससे हमें एक- को ज्यादा अच्छी तरह जानने में सहायता मिलेगी ओर हम उचित भाव के साध अपने- आपको संगठित करने की ज्यादा योग्यता प्राक्क करेंगे और शायद ओरोवील के अलग- अलग योजनाओं पर काम करने वाले लोग भी ज्यादा नजदीक आकर काम कर सकेंगे ताकि ओरोवील के पथप्रदर्शक दल बन सकें हर एक का काम ज्यादा प्रभावशाली रूप से प्रगति कर सकेगा ? क्या ओरोवील में इस तरह मिल- जुलकर किया गया काम हमें आपका काम करने में मदद देगा ?
'' पूर्णता के लिए प्रार्थना के साध। ''
अभीप्सा अच्छी है, लेकिन... मुझे पता नहीं कि समय आ गया है या नहीं ।
'ए '. वह अकेला नहीं है । ओतेवील में अलग- अलग स्थानों पर काम करने वाले कई लोग यह अनुभव करते दें कि हमें मिलकर
३७१
एक हीं काम करने की जरूरत है ।
हां, विचार अच्छा है, लेकिन मैं उसे इस तरह देखती हूं । हम मातृमंदिर बनाना चाहते हैं; तो विचार यही था कि जब हम मातृमंदिर बनाना शुरू करें, तो जो भी वहां काम करना चाहे कर सके । और वह सचमुच केंद्रीय विचार पर काम करना होगा ।
और यह जल्दी ही होना चाहिये । यह अभी तक शुरू हो जाना चाहिये था । तो वहां, वहां हर एक के लिए काम होगा । हम बहुत समय सें मातृमंदिर शुरू करने की सोच रहे हैं । वस्तुत:, जो अन्य स्थानों पर काम कर रहे हैं उनके सिवा, सभी को, आकर यहां काम करना चाहिये । वहां हर एक के लिए काम होगा । यह ज्यादा अच्छा होगा... । यह नगर का केंद्र हे ।
तुम उससे यह कह सकते हो : सिद्धांत रूप में विचार अच्छा है । लेकिन व्यावहारिक रूप मे, हम बहुत समय से, साल- भर से अधिक से मातृमंदिर शुरू करना चाह रहे हैं ताकि हर एक वहां हर काम कर सके । आदमी को आकर कहना होगा : '' नहीं, में नहीं करना चाहता '' और उसके कारण होंगे ।
यह ' शक्ति ' की तरह है, ओरोवील की केंद्रीय ' शक्ति ', ओरोवील को संबद्ध करने वाली 'शक्ति ' ।
वहां बग़ीचे होंगे । वहां सब कुछ होगा, सभी संभावनाएं : इंजीनियर, वास्तुकार, सभी तरह के शारीरिक काम । तो तुम उससे कह सकते हो कि यह विचार हवा में था और उसने पकडू लिया है, लेकिन हम चाहते हैं कि उसका उपयोग सच्चे प्रतीकात्मक रूप में हो । और जब हम मातृमंदिर बनाना शुरू करेंगे, तो हम वहां पर हर एक को काम मे लगा देंगे । हर रोज, सारे समय नहीं, लेकिन उसे व्यवस्थित किया जायेगा।
तुम बस यही कहना चाहते थे ?
मैंने जो लिखा था उसके बारे में क्या किया गया है ?
'ए ' : इसे सूचना-द्वै पर लगा दिया गया हैं! इसे लोगों ने पड़ा है...
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लगता तो नहीं कि इसका बहुत असर हुआ हो ।
' ए ' : निश्चय ही इसका असर हुआ हे लोइकन किसी ने इस बारे में कुछ कहा नहीं है ।
अच्छा । तो अब, क्या तुम ध्यान चाहते हो? ध्यान नहीं : नीरवता । हो सके तो मानसिक नीरवता । सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए तुम्हें मानसिक नीरवता प्राप्त करनी चाहिये । तुम अभी... तुममें से कौन मानसिक तौर पर नीरव हो सकता है ?
तुममें से हर एक फ्रेंच समझता है ?
'ए' : जी नहीं सब नहीं।
(अंग्रेजी में) मैं पूछ रही हूं, तुममें से कौन मानसिक रूप में पूर्णत: नीरव होना जानता है? नहीं? कोई नहीं? ( हंसी ) यहां हम इसी की कोशिश कर रहे हैं ।
('ए' से) कोशिश करें ?
'ए' : जी हां ! ( हंसी )
कौन सफल हुआ ? अभी तक नहीं । तो अब मौन ।
३७३
२८ जुलाई, १९७०
कोई प्रश्न नहीं है ? है ? तुम क्या कहना चाहते हो ?
' ए '. पहली बात तो यह कि ' बाई ' '' के गायें खरीदने वाला है वह कल मद्रास जायेगा और आपके आशीर्वाद चाहता है वह तीन चाहता है गायों के एकएक और एक अपने लिए।
(माताजी हंसती हैं? वे आशीर्वाद लेकर क्या करेगी ?
वह कहां से खरीदने वाला है?
'ए' : मद्रास सो।
मद्रास शहर हैं । गायें शहरों मे नहीं पैदा होती ।
' ए ' : लोइकन वह एक जानकार के साध जा रहा है।
ओह! मैं उसके लिए आशीर्वाद का पैकेट देने को तैयार हू, लेकिन गायों के लिए नहीं! बस?
' ए ' : एक और बात ! हम यह जानना चाहेंगे कि हम '' वालों को 'क्रीड़ांगण ' में न देने के पीछे क्या कारण है पिछले बुधवार को वहां 'ज़ेड ' ने 'श्रीअरविन्द की कर्मधारा ' विषय पर भाषण दिया था ओर हमें अन्दर न जान दिया गया ।
यह मेरी फ है कि मैंने पहले सें इस बारे में नहीं सोचा । अन्यथा मैं कह सकतीं थी कि तुम लोगों को इस अवसर पर जाने दें । मैंने पहले सें नहीं सोचा । मैं ' जेह ' से पूछ सकती हूं, शायद वह तुम्हारे यहां भाषण देने को तैयार हो जाये ।
'ए' : वह भाषण दे चुका !
ओह, तो फिर..
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' ए '. जी नहीं, यह सब तो ठीक गया । परंतु हम कारण जानना चाहते है।
कारण बिलकुल भिन्न है । उसका इसके साथ कोई संबद न था । इसका कारण सिर्फ यह है कि ऐसा नियम बनाना बहुत मुश्किल है जो एक आदमी पर लागू हो और दूसरे पर न हो-बहुत जटिल है । दुर्भाग्यवश, ओरोवील में रहने वालों में कुछ लोग ऐसे हैं जो पीते हैं । और अन्य चीजें भी हैं... । जो हो, एक आदमी ' प्लेग्राउण्ड ' में नशे में धुत पाया गया । तो, स्वभावतया, यहां आश्रम मे पीने की, मदिरा पीने की मनाही है । इसके कारण बड़ा शोर मचा । यह कारण है । यह कोई आंतरिक कारण नहीं है, एक बहुत व्यावहारिक कारण है । यह कहना असंभव है : '' यह आ सकता है, वह नहीं आ सकता । '' द्वार पर क्या किया जा सकता है ? और इसके कार्पास एक फ़साद-सा हों गया । अगर वे मेरी सलाह मांगें, तो मैं कहूंगी, मैं तुम्हें न पीने की सलाह देती हूं, क्योंकि यह तुम्हारी चेतना को गिराता है और स्वास्थ्य को बरबाद करता है । लेकिन कुछ लोग मेरी सलाह नहीं मांगते । और मैंने जैसे आश्रम के लिए नियम बनाये थे उस तरह मैं ओरोवील के लिए नियम नहीं बनाना चाहती । यह एक ही चीज नहीं है ।
जो लोग ओरोवील में रहते हैं और अपनी पुरानी आदतों के अनुसार चलने का आग्रह करते हैं-पुरानी ओर नयी भी-जो चेतना को नुकसान पहुंचाती हैं, जो चेतना को नीचा करती हैं । जैसे धूम्रपान, मदिरापान, और स्वभावत:, नशीली औषधियां... यह सब, ऐसा है मानों तुम अपनी सत्ता के टुकड़े -टुकड़े कर रहे हो । आश्रम मे, स्वभावत:, मैंने कह दिया ' नहीं ' । हम चेतना मे विकसित होना चाहते हैं, हम कामनाओं के गाढ़े में उतरना नहीं चाहते । जो समझने से इन्कार करते हैं उनसे मैं कहती हूं : ओरोवील का लक्ष्य है एक नये, अधिक गभीर, अधिक जटिल, अधिक पूर्ण जीवन की खोज करना और दुनिया को यह दिखाना कि आगामी कल आज सें ज्यादा अच्छा होगा ।
कुछ लोग मानते हैं कि धूम्रपान, मदिरापान आदि, आगामी कल के जीवन के भाग होंगे । यह उनका अपना मामला है । अगर वे इस अनुभव में से गुजरना चाहते हैं, तो उन्हें करने दो । वे देखेंगे कि वे अपने- आपको
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अपनी ही कामनाओं के बंदी बना रहे है । बहरहाल, में नैतिकतावादी नहीं हूं, बिलकुल नहीं, बिलकुल नहीं, बिलकुल नहीं । यह उनका अपना मामला है । अगर वे इस अनुभव में से गुजरना चाहते हैं, तो भले कर लें । लेकिन आश्रम इसका स्थान नहीं है । भगवान् की कृपा से आश्रम में हमने सीख लिया है कि जीवन कुछ और चीज हे । सच्चा जीवन कामनाओं की तृप्ति नहीं है । मैं अनुभव से यह प्रमाणित कर सकती हूं कि स्वापक औषधियों के दुरा लायी गयी सभी अनुभूतियां, अदृश्य जगत् के साथ यह सारा संपर्क, स्वापक औषधियों के बिना ज्यादा अच्छी तरह, ज्यादा सचेतन और संयत ढंग से मिल सकता है । सिर्फ आदमी को अपने ऊपर संयम रखना होगा । यह जहर निगलने से ज्यादा कठिन है । लेकिन मैं उपदेश देने नहीं बैठूंगी ।
जब ओरोवील उच्चतर जीवन का उदाहरण बन जायेगा, जब कामनाओं पर विजय पा चुकेगा और अपने- आपको उच्चतर शक्तियों की ओर खोल देगा, तब हम हर जगह जा सकेंगे । जब ओरोवीलवासी जगत् में घूमती- फिरती ज्योतियां बन जायेंगे, तो उनका स्वागत होगा । तो, यह बात है !
लेकिन मेरा ख्याल है कि मैंने ऐसी कुछ चीज लिखी है । नहीं ? मैंने तुम्हें जो दिये थे ? वे कोरे शब्द न थे; ये ठोस चीजें हैं ।
तो बस? या कुछ और पूछना है ?
'ए': जी नहीं।
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