The Mother's brief statements on Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India and and nations other than India.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother about Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India, and nations other than India. Written over a period of nearly sixty years (1914-1973), the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. The majority (about sixty per cent) were written in English; the rest were written in French and appear here in translation. The volume also contains a number of conversations, most of them in the part on Auroville. All but one were spoken in French and appear here in translation.
भाग ४
ओरोवील
लक्ष्य और नियम-सिद्धान्त
ओरोवील को आशीर्वाद ।
ओरोवील एक वैश्व नगरी बनना चाहता है जहां सभी देशों के नर- नारी शांति और बढ़ते हुए सामंजस्य में, सभी मातों, समस्त राजनीति और सब राष्ट्रीयताओं से ऊपर रह सकें ।
ओरोवील का उद्देश्य है मानव एकता को चरितार्थ करना ।
८ सितम्बर, १९६५
*
१. ओरोवील-निर्माण के लिए पहल किसने की ?
परम प्रभु ने ।
२. ओरोवील की आर्थिक व्यवस्था में कौन भाग लेता है?
३. अगर ओरोवील में रहना चाहे तो उसके इसका क्या ?
'परम पूर्णता' पाने के लिए कोशिश करना ।
४. क्या ओरोवील में रहने के व्यक्ति को योग का बिधार्थी होना चाहिये?
सारा जीवन हीं योग है । अत: तुम परम योग किये बिना जी ही नहीं सकते ।
५. ओरोवील में आश्रम की क्या होगी?
जो कुछ परम प्रभु चाहेंगे ।
२०२
६. क्या ओरोवील में पड़ाव डालने की व्यवस्था होगी?
सभी चीजें जैसी होनी चाहिये होगी, जब होनी चाहिये होगी।
७. क्या ओरोवील में पारिवारिक जीवन होगा?
अगर आदमी उससे ऊपर न उठ गया हो तो ।
८. क्या आदमी ओरोवील में अपना धर्म बनाये रख सकता ने ?
अगर वह उससे ऊपर न उठ गया हो तो ।
९. क्या ओरोवील ये आदमी नास्तिक धी हो सकता है ?
१०. क्या ओरोवील में सामाजिक जीवन होगा ?
११. क्या ओरोवील में क्रिया-कलाप अनिवार्य होंगे ?
कुछ भी अनिवार्य न होगा ।
१२. क्या ओरोवील में धन का उपयोग होगा ?
नहीं, ओरोवील केवल बाह्य जगत् के साथ धन का सम्बन्ध रखेगा ।
१३. ओरोवील में काम कैसे बांटा जायेगा व्यवस्था कैसे ?
२०३
'' धन ही सवेसर्वा नहीं होगा; भौतिक समाप्ति और सामाजिक स्तर की अपेक्षा व्यक्ति के मूल्य का कहीं अधिक महत्त्व होगा । वहां कार्य निजी आजीविका का साधन न होकर अपने- आपको अभिव्यक्त करने, अपनी क्षमताओं और संभावनाओं को विकसित करने, साथ ही समूचे संगठन की सेवा करने के लिए होगा, और संगठन हर व्यक्ति के भरण-पोषण और कार्यक्षेत्र की भी व्यवस्था करेगा । '' '
१४. -ओरोवील -निवासियों जगत् वालों में क्या सम्बन्ध होगा ?
हर व्यक्ति को पूरी आजादी है । ओरोवीलवासियो के बाहरी सम्बन्ध हर एक की अपनी अभीप्सा ओर उसके ओरोवील के काम पर निर्भर हुतौ।
१५. की और भवनों का स्वामी कौन होगा ?
परम प्रभु ।
१६. पढ़ाने के कौन- भाषा का उपयोग ?
धरती- भर पर बोली जाने वाली हर भाषा का ।
१७. में परिवहन क्या व्यवस्था ?
हमें पता नहीं ।
१९६५२
१माताजी के एक लेख ''स्वप्न'' से उद्भृत ।
२माताजी ने १९६५ में इन प्रश्नों के मौखिक उत्तर दिये थे । उन्होंने इनके लिखित रूप को ८ अक्तूबर, १९६९ में देखा, तो प्रश्न १२ और १७ के उत्तर बदल दिये । यहां बदले हुए उत्तर दिये गये हैं ।
२०४
ओरोवील ठीक चल रहा है और अधिकाधिक वास्तविक होता जा रहा है, लेकिन उसकी चरितार्थता साधारण मानव ढंग से नहीं हो रहीं । वह बाहर की आंखों की अपेक्षा भीतरी चेतना को ज्यादा अच्छी तरह दिखायी देती है ।
जनवरी १९३३
तुम कहते हो कि ओरोवील एक स्वप्न है । हां, यह प्रभु का ''स्वप्न'' है और प्रायः ये ''सव्य'' सत्य निकलते हैं-तथाकथित मानव वास्तविकताओं की अपेक्षा बहुत अधिक वास्तविक !
२० मई, १९३३
पार्थिव सृष्टि में मानवजाति ही अनंतिम सीढ़ी नहीं है । विकास जारी हैं और मनुष्य का अतिक्रमण होगा । यह तो हर व्यक्ति को जानना है कि वह इस नयी जाति के आगमन में भाग लेना चाहता है या नहीं ।
जो वर्तमान जगत् से संतुष्ट है उनके लिए ओरोवील के होने का कोई मतलब नहीं ।
अगस्त, १९६६
हम ओरोवील को ' अतिमानव ' का पालना बनाना चाहेंगे ।
१९६६
सभी सामाजिक, राजनीतिक ओर धार्मिक विश्वासों से ऊपर उठकर ओरोवील को ' सत्य ' की सेवा में होना चाहिये ।
ओरोवील सचाई और ' सत्य ' के साथ शांति की ओर प्रयास हैं ।
२० सितम्बर, १९८८
२०५
ओरोवील वैश्व शांति, मैत्री, भ्रातृभाव और एकता के लिए प्रयास है ।
२० सितम्बर, १९६६
जब तक तुम किसी के पक्ष में और किसी के विपक्ष में हो, तुम निश्चित रूप से ' सत्य ' के बाहर हो ।
तुम्हें अपने हृदय में निरंतर सद्भावना और प्रेम रखना चाहिये और उन्हें सभी के ऊपर शांति और समता के साथ उड़ेलना चाहिये ।
१६ दिसम्बर, १९६६
ओरोवील : अन्ततः: एक ऐसा स्थान जहां मनुष्य केवल भविष्य के बारे में सोच सकेगा ।
जनवरी, १९६७
(ओरोवील के एक भाग ''प्रेमसे '' के कमल- सरोवर के पास पत्थर में खोदकर लगाने के संदेश)
ओरोवील उन सब लोगों के लिए एक आश्रय है जो 'ज्ञान', 'शांति' और 'एकता' के भविष्य की ओर तेजी से जाना चाहते हैं ।
१६ मार्च, १९६७
ओरोवील में रहने की शर्तें
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, आवश्यक शर्तें ये हैं :
(१) मानवजाति की मौलिक एकता के बारे में विश्वास होना और उस एकता को मूर्त रूप से चरितार्थ करने के लिए सहयोग देने की इच्छा;
(२) उस सबमें सहयोग देने की इच्छा जो भावी उपलब्धियों को आगे बढ़ा सके ।
२०६
जैसे-जैसे उपलब्धि आगे बढ़ेगी भौतिक शर्तों को रूप दिया जायेगा ।
११ जून, १९६७
ओरोवील के लक्ष्य-
प्रभावशाली मानव एकता
धरती पर शांति
'सत्य' की सेवा में लगीं नगरी
२८ फरवरी, १९६८
(ओरोवीलकी कि उद्घाटन के लिए संदेश)
२०७
सभी शुभेच्छुओं को ओरोवील की ओर से अभिनंदन ।
निमंत्रण है उन सबको जो प्रगति के प्यासे हैं और उच्चतर और सत्यतर जीवन के लिए अभीप्सा करते हैं ।
२८ फरवरी,१९६८
ओरोवील का घोषणा-पत्र
१) ओरोवील किसी व्यक्ति-विशेष का नगर नहीं है । ओरोवील पूरी मानवजाति का है ।
किन्तु इसमें रहने के लिए व्यक्ति को ' भागवत चेतना ' का सहर्ष सेवक बनना होगा ।
२) ओरोवील अंतहीन शिक्षा का, सतत विकास एवं एक ऐसे यौवन का स्थल होगा जिसे कभी बुढ़ापा नहीं व्यापेगा ।
३) ओरोवील भूतकाल एवं भविष्य के मध्य एक सेतु बनना चाहता है । अंतर और बाहर की सभी खोजों से लाभान्वित होता हुआ, ओरोवील साहसपूर्वक भविष्य की उपलब्धियों की ओर छलांग लगायेगा ।
४) ओरोवील एक वास्तविक मानव एकता को सजीव रूप में मूर्तिमन्त करने के लिए भौतिक एवं आध्यात्मिक खोजों का स्थान होगा ।
२०८
२०९
२१०
आखिर एक ऐसा स्थान जहां आदमी केवल प्रगति करने और अपने से ऊपर उठने के बारे में ही सोच सकेगा ।
आखिर एक ऐसा स्थान जहां आदमी शांति में, राष्ट्रों, धर्मों और महत्त्वाकांक्षा के संघर्ष और स्पर्धा के बिना रह सकेगा ।
आखिर एक ऐसा स्थान जहां किसी चीज को यह अधिकार न होगा कि अपने- आपको अनन्य सत्य के रूप में आरोपित करे ।
फरवरी १९६८
आश्रम में और ओरोवील में क्या फर्क है ?
आश्रम प्रणेता, प्रेरक और पथप्रदर्शक के रूप में अपनी भूमिका निभायेगा । ओरोवील सामूहिक सिद्धि के लिए प्रयास है ।
जून, १९६८
यह सच है कि ओरोवील में रहने के लिए चेतना को बहुत समुन्नति करना चाहिये ।
लेकिन वह घड़ी आ गयी है जब यह उन्नति संभव है ।
मेरे समस्त प्रेम के साथ ।
(ओरोवील-प्रॉस्पेरिटी ओरोवील- वासियों को आवश्यक वस्तुएं देती है वहां से चीजें पाने बालों के नाम संदेश)
ओरोवील कामनाओं की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि सच्ची चेतना की वृद्धि के लिए है ।
१६ जून, १९६८
२११
मनुष्यों मे शांति और एकता लाने वाले किसी भी सच्चे प्रयास का ओरोवील में स्वागत है ।
२० जुलाई, १९६८
भविष्य की ओर अभियान का अर्थ है भविष्य हमें जो दे सकता है उसे पाने के लिए सभी भौतिक और नैतिक लाभों को छोड़ने के लिए तैयार रहना ।
ऐसे बहुत कम हैं; यधापि ऐसे बहुत-से हैं जो उसे पाना चाहेंगे जिसे ' भविष्य ' ला रहा है, लेकिन वे नयी संपदा पाने के लिए उनके पास जो कुछ हे उसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं ।
५ अगस्त, १९६८
आदमी आराम और कामनाओं की तुष्टि के लिए ओरोवील नहीं आता वह आता है चेतना के विकास के लिए और जिस 'सत्य ' को चरितार्थ करना हैं उसके प्रति एकनिष्ठ होने के लिए।
ओरोवील के सृजन में भाग लेने के लिए नि:स्वार्थता पहली आवश्यकता है !
५ नवम्बर, १९६८
भगवती मां
ओरोवील का निर्माण मनुष्य दुरा आध्यात्मिकता को स्वीकार करने पर कहां तक निर्भर है ?
मेरे लिए आध्यात्मिकता ओर भौतिक जीवन के बीच विरोध का, इन दोनों के विभाजन का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि सच तो यह है कि जीवन और आत्मा एक हैं और भौतिक कर्म में व उसके द्वारा उच्चतम ' आत्मा ' को अभिव्यक्त करना होगा ।
१९ अप्रैल, १९६८
२१२
दिव्य मां,
क्या ऐसा कारण ने कि जिससे हम ओरोवील मे काम पूरा करने के भाव से या भौतिक लाभ की ले सत्य के साध समझौता कर लें ?
जीना और काम करना ही अपने- आपमें एक समझौता है, क्योंकि अभी तक संसार ' सत्य ' के विधान के अधीन नहीं रह रहा है ।
७ जून, १९६८
अनुशासन के बिना कोई बड़ा सृजन संभव नहीं है-
व्यक्तिगत अनुशासन
सामुदायिक अनुशासन
भगवान् को पाने के लिए अनुशासन ।
१६ सितम्बर, १९६८
(कार्य की व्यवस्था के बारे मे )
मुख्य चीज है कार्य-संपादन, और यह हम जिस आदर्श को चरितार्थ करना चाहते हैं उसके आंख से ओझल हुए बिना होना चाहिये ।
दिसम्बर, १९६८
मधुर मां
कल एक आम सभा होगी जिसमें यह देखने की कोशिश की जायेगी कि क्या हम सबके लिए किसी कार्य-पद्धति पर सहमत होना
२१३
कोई भी एक भाषा ' बोलता; व्यक्ति बहुत मित्र है और कार्य के अनुशासन के आगे नहीं झुकते ! मैं आपसे कुछ लिखित उत्तर पाना चाहूंगा ताकि मैं जान सकूं कि वहां क्या कहना चाहिये-कोई ऐसी चीज जो ' सत्य ' हो और यहां की अव्यवस्था को दूर कर सके !
क्या ओरोवील के निर्माण के एक कार्य-, व्यवस्था की जरूरत है ?
अनुशासन जीवन के लिए जरूरी है । ज़ीने के लिए, स्वयं शरीर अपने सारे कामों के लिए एक कड़े अनुशासन के अधीन है । इस अनुशासन में कोई भी ढील बीमारी पैदा करती है ।
यह व्यवस्था किस प्रकार की होनी चाहिये आजकल और भविष्य में भी !
व्यवस्था कार्य का अनुशासन हे, लेकिन ओरोवील के लिए हम मनमानी और कृत्रिम व्यवस्था के परे जाने की अभीप्सा करते हैं ।
हम एक ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जो भावी सत्य को अभिव्यक्त करने के लिए कार्यरत उच्चतर चेतना की अभिव्यक्ति हो ।
लोइकन जब तक यह चेतना प्रकट न, जब तक हम सच्चे उचित ढंग से सम्मिलित कार्य न कर पाये तब तक क्या कारों !
सबसे अधिक प्रकाशमान केंद्र के इर्द-गिर्द एक श्रेणीबद्ध संगठन और सम्मिलित अनुशासन के आगे झुकना ।
क्या ' व्यवस्था के तरीकों का उपयोग करना जो सफल हुए है , पर है मानव- झुक और मशीन के उपयोग पर आधारित ?
२१४
यह काम-चलाऊ व्यवस्था है और इसे बिलकुल अस्थायी रूप से स्वीकारना चाहिये ।
क्या हमें व्यक्तिगत पहलू को खुलकर प्रकट होने देना और प्रेरणा और अंतर्मास को व्यक्तिगत कार्य की परिचारिका शक्ति मानना चाहिये? क्या हमें उन सब बातों को रद्द कर देना चाहिये जिन्हें उनमें दिलचस्पी रखने वाले पसंद न करें ?
इस तरह काम करना हो तो ओरोवील के सभी कार्यकर्ताओं को ' भागवत सत्य ' के बारे में सचेतन योगी होना चाहिये ।
क्या समय आ गया ने कि हम एक व्यापक संगठन की कामना करें, उसे खड़ा करने की कोशिश करें, या हमें उचित मनोभाव और मनुष्यों के लिए प्रतीक्षा करनी चाहिये?
काम करने के लिए एक संगठन की जरूरत है-लेकिन स्वयं वह संगठन नमनीय और प्रगतिशील होना चाहिये ।
अगर प्रतीक्षा करना हो समाधान
तो भी व्यवस्था के नियमों की व्याख्या करना और उचंखल अव्यवस्था से बचना जरूरी है?
उन सबमें जो ओरोवील मे रहना और काम करना चाहते हैं पूर्ण सद्भावना, ' सत्य ' को जानने और उसके आगे झुकने के लिए सतत अभीप्सा होनी चाहिये, उनमें काफी नमनीयता होनी चाहिये जो काम मे आने वाले संकटों का सामना कर सके और इस प्रकार की प्रगति करने के लिए अनंत संकल्प हो जो परम 'सत्य ' की ओर अपने- आप बढ़ता चला जाये ।
और, अंतत: सलाह का एक शब्द : औरों के दोषों की अपेक्षा अपने दोषों की अधिक चिंता करो । अगर हर एक गंभीरता के साथ आत्म- परिपूर्णता के लिए काम करे, तो अपने- आप ही बाकी सबकी पूर्णता आती जायेगी ।
६ फरवरी, १९६९
२१५
ऐसी नगरी जिसकी धरती को
जरूरत है ।
२२ फरवरी, १९३९
(ओरोवील की पहली वर्षगांठ पर दो संदेश )
' प्रकाश ', शांति और आनन्द उनके साथ रहें जो ओरोवील में रहते हैं और उसके चरितार्थ होने के लिए काम करते हैं ।
आशीर्वाद ।
२८ फरवरी, १९६९
स्वाधीनता भगवान् के साथ ऐक्य में ही संभव है ।
भगवान् के साथ एक होने के लिए तुम्हें अपने में कामना की संभावना तक पर विजय पा लेनी चाहिये ।
हम ओरोवील में जो स्वाधीनता प्राप्त करना चाहते हैं वह स्वच्छन्दता नहीं हैं जिसमें हर एक अपनी मरज़ी के मुताबिक, समस्त संगठन की भलाई के बारे में सोचे बिना, करता है ।
१९६९
क्या यह ' भगवान् इच्छा ' कि उत्पत्र या भगवान् ओरोवील-निर्माण की कोशिश को एक के रूप देखते ?
ओरोवील की अवधारणा शुद्ध रूप से भगवान् की है और यह साकार किये जाने से बहुत वर्ष पहले की है
२१६
स्वभावतः, उसके कार्य के ब्योरे में मानवीय चेतना हस्तक्षेप करती है ।
१७ अप्रैल ,१९६९
विभित्र मूल्य रखने वाले लोग एक साध सामंजस्य में कैसे रह सकते और काम कर सकते हैं?
इसका समाधान यह है कि अपने अंदर गहराइयों में जाओ और उस जगह को पा लो जहां सभी भेद मिलकर सारभूत और शाश्वत 'ऐक्य' का निर्माण करते हैं ।
४ मई, १९६१
ओरोवीलवासियो के नाम
ओरोवील में वह सामंजस्यपूर्ण वातावरण स्थापित करने के लिए जिसका, परिभाषा के अनुसार, वहां राज होना चाहिये, पहला कदम यह है कि हर व्यक्ति रगड़ और ग़लतफ़हमी का कारण ढूंढने के लिए अपने अन्दर देखे ।
क्योंकि ये कारण हमेशा दोनों ओर होते हैं, और औरों से किसी भी चीज की मांग करने से पूर्व, हर एक को पहले यह प्रयास करना चाहिये कि वह अपने अन्दर से उन्हें निकाल बाहर करे ।
४ जुलाई, १९६१
हर अच्छे ओरोवीलवासियो को अपने- आपको समस्त कामनाओं, अभिरुचियों और घृणाओं से मुक्त करने का प्रयास करना चाहिये ।
ओरोवील में रहने के लिए सभी परिस्थितियों में समता प्राप्त करना मुख्य उद्देश्य है ।
२१७
लड़ाई-झगड़े ओरोवील की आत्मा के एकदम विपरीत हैं ।
धरती को आवश्यकता हैं
एक ऐसे स्थान की जहां मनुष्य समस्त राष्ट्रीय स्पर्धाओं से, सामाजिक प्रथाओं से, आत्म-विरोधी नैतिकताओं से और संघर्षरत धर्मों से दूर रह सके;
एक ऐसे स्थान की जहां मनुष्य अतीत की सारी दासता से मुक्त होकर, अपने- आपको उस ' दिव्य चेतना ' की खोज में पूरी तरह लगा सके जो वहां अभिव्यक्त होने की कोशिश कर रही है ।
ओरोवील ऐसा हीं स्थान होना चाहता हैं और अपने- आपको उन लोगों को अर्पण करना चाहता है जो आगामी कल के 'सत्य ' को ज़ीने की अभीप्सा करते हैं ।
२० सितम्बर, १९६९
ओरोवील उन लोगों के लिए आदर्श स्थान है जो अपने पास निजी संपत्ति न होने के आनन्द और आजादी का अनुभव करना चाहते हैं ।
१८ सितम्बर, १९६९
मानव एकता द्वारा शांति :
एकरूपता दुरा एकता एक बेतुकी बात है ।
एकता को ' बहु ' के मिलन दुरा चरितार्थ करना चाहिये ।
हर एक एकता का अंग है; हर एक समग्र के लिए अनिवार्य है ।
अक्तूबर, १९६९
क्या आयेगा जब संसार में न गरीब लोग होंगी दूःख- कसता रहेगा ?
२१८
जो लोग श्रीअरविन्द की शिक्षा के समझते और उन पर श्रद्धा रखते हैं उनके लिए यह बात बिलकुल निश्चित हैं ।
हम एक ऐसा स्थान बनाने की दृष्टि से हीं ओरोवील की स्थापना कर रहे हैं जहां यह हो सके ।
लेकिन इस सिद्धि के संभव होने के लिए, हममें से हर एक को अपने- आपको रूपांतरित करने के लिए प्रयास करना चाहिये; क्योंकि मनुष्यों के बहुत-से दुःख-कष्ट उनकी अपनी भौतिक और नैतिक भूलो के परिणाम होते हैं ।
८ नवम्बर, १९६९
आप यह कैसे मान ' कि ओरोवील में दुख- कष्ट न ', जब तक कि वहां के आने वाले लोग उसी दुनिया के, उन्हीं दोषों और दुर्बलताओं में पैदा हुए लोग डोंगा ?
मैंने यह कभी नहीं सोचा कि ओरोवील मे दुःख-दर्द न होंगे, क्योंकि मनुष्य -जैसे कि वे हैं-दु :ख-दाद, से प्रेम करते हैं और उसे बुरा- भला कहते हुए भी अपने पास बुलाते हैं ।
लेकिन हम कोशिश करेंगे कि उन्हें सचमुच शांति से प्रेम करना और समानता को जीवन में उतारना सिखाये ।
मेरा तात्पर्य अनैच्छिक गरीबी और भीख मांगने से था ।
ओरोवील का जीवन इस तरह संगठित किया जायेगा कि ये चीजें न रहने पायें- और अगर बाहर से भिखारी आ भी जायें, तो या तो उन्हें चले जाना पड़ेगा या उन्हें आश्रय दिया जायेगा और कर्म का आनन्द सिखाया जायेगा ।
१ नवम्बर, १९६९
आश्रम ' क्या ओरोवील के आदर्श में भौतिक भेद क्या है ?
२१९
भविष्य के बारे में सोचने के भाव में और भगवान् की सेवा करने के बारे में कोई मौलिक भेद नहीं है ।
लेकिन यह माना जाता हैं कि आश्रम के लोगों ने अपना जीवन योग के लिए अर्पित कर दिया है ( निश्चय ही, विद्यार्थी अपवाद हैं जो यहां केवल अध्ययन के लिए आये हैं और उनसे यह आशा नहीं की जाती कि उन्होंने अपने जीवन का चुनाव कर लिया है) ।
जब कि ओरोवील में प्रवेश पाने हेतु मानवजाति की प्रगति के लिए सामूहिक परीक्षण करने की सद्भावना काफी है ।
१० नवम्बर, १९६१
( यूनेस्को-समिति के लिए लिखा नया)
श्रीअरविन्द के अंतर्दर्शन को मूर्त रूप देने का काम माताजी को सौंपा गया था । उन्होंने नये जगत् एक नयी मानवजाति, नवीन चेतना को मूर्त रूप देने और उसे अभिव्यक्त करने के लिए एक नये समाज के सृजन के कार्य का बीड़ा उठाया हैं । वस्तुओं के स्वभाव के अनुसार, यह एक सामूहिक आदर्श है जिसे चरितार्थ करने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है ताकि वह समग्र मानवीय पूर्णता के रूप में उपलब्ध हो सके ।
माताजी के दुरा स्थापित और निर्मित आश्रम इस लक्ष्य को चरितार्थ करने के लिए पहला कदम था । ओरोवीलयोजना दूसरा, अधिक बाहरी कदम है, जो अंतरात्मा और शरीर, आत्मा और प्रकृति, रूर्हा और धरती मे, मानवजाति के सामुदायिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने के लिए इस प्रयास के आधार को प्रशस्त करता है । '
' माताजी ने १९७२ में इसे दोहराने के बाद आखिरी वाक्य में '' अधिक बाहरी'' शब्द बढ़ा दिये थे ।
२२०
मैंने हमेशा आश्रम और ओरोवील को समग्र पूर्णता के भाग समझा मै? मैं उन्है पृथक सत्ताओं के रूप मे नहीं देख सकता तो माताजी आपने इनमें भेद कैसे किया है ? या मेरी हो कहीं पर भूल है ? मुझे लगता हे कि हमारे दृष्टिकोण को मिलाने और पूर्ण बनाने की सख्त जरूरत है !
आश्रम केंद्रीय चेतना है, ओरोवील बाह्य अभिव्यक्तियां में से एक है । दोनों स्थानों पर समान रूप से भगवान् के लिए काम किया जाता है ।
आश्रम में रहने वालों के पास अपने काम हैं और उनमें से अधिकतर इतने व्यस्त हैं कि ओरोवील को समय नहीं दे सकते ।
हर एक को अपने- अपने काम में व्यस्त रहना चाहिये; समुचित व्यवस्था के लिए यह जरूरी है ।
ओरोवील एकता के लिए अभीप्सा करता है ।
१९७०
उन सबके नाम जो भविष्य के लिए जीना चाहते हैं :
शरीर के संतुलन के लिए शारीरिक काम उतना ही जरूरी है जितना भोजन ।
काम किये बिना खाने से गंभीर असंतुलन पैदा होता है ।
फरवरी, १९७०
तुम सबको सहमत होना चाहिये ।
अच्छा काम करने के लिए यही एक तरीका है ।
२ अप्रैल, १९७०
सबके सहमत होने के लिए हर एक को अपनी चेतना के शिखर तक
२२१
उठना चाहिये; ऊंचाइयों पर ही सामंजस्य पैदा किया जाता है ।
अप्रैल, १९७०
ओरोवील और धर्म
हम ' सत्य ' चाहते हैं ।
अधिकतर लोग, अपने- आप जो चाहते हैं उसी पर सत्य का लेबल लगा देते हैं ।
ओरोवीलवासियो को ' सत्य ' की चाह होनी चाहिये, चाहे वह कुछ भी क्यों न हो ।
ओरोवील उनके लिए है जो मूलत: दिव्य जीवन जीना चाहते हैं और जो पुराने, नये, नूतन या भावी सभी धर्मों को त्याग देंगे ।
' सत्य ' का शान केवल अनुभूति में ही हो सकता है ।
जब तक भगवान् की अनुभूति न हो जाये तब तक किसी को भगवान् के बारे में बोलना नहीं चाहिये ।
भगवान् की अनुभूति प्राप्त करो, उसके बाद ही तुम्हें भगवान् के बारे में बोलने का अधिकार होगा ।
धामों का वस्तुपरक, तटस्थ अध्ययन मानवजाति और मानव चेतना के विकास के अध्ययन का एक भाग होगा ।
धर्म मानवजाति के इतिहास का एक भाग हैं और ओरोवील में उनका अध्ययन इसी रूप में होगा-ऐसी मान्यताओं के रूप मैं नहीं जिन्हें आदमी को मानना या न मानना चाहिये, बल्कि मानव चेतना के विकास की उस प्रक्रिया के अंग के रूप में जो मनुष्य को उसकी अगली उपलब्धि की ओर ले जाये ।
कार्यक्रम
' परम सत्य ' की अनुभूति दुरा
भगवान जीवन की खोज
लेकिन
कोई धर्म नहीं
२२२
हमारा शोध किन्हीं रहस्यवादी उपायों से प्रभावित शोध न होगा । हम स्वयं जीवन में ही भगवान् को पाने की इच्छा रखते हैं । और इसी शोध के दुरा जीवन सचमुच रूपान्तरित हो सकता है ।
२ मई, १९७०
अकसर धारणा भगवान् साथ संबद्ध होती है ! क्या धर्म को केवल इसी सन्दर्भ चाहिये?बरतुत:, क्या आजकाल धर्म के और रूप नहीं है ?
हम संसार या विश्व की ऐसी किसी भी धारणा को धर्म का नाम दे देते हैं जिसे ऐकांतिक ' सत्य ' के रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं जिसमें मनुष्य को पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिये, साधारणत: इसलिए कि इस 'सत्य ' को किसी अंत: प्रकाश का परिणाम घोषित किया जाता है।
अधिकतर धर्म भगवान् के अस्तित्व को और उनकी आज्ञा-पालन के लिए नियमों को करते हैं, लेकिन कुछ सामाजिक-राजनीतिक संगठनों की तरह, नास्तिक धर्म भी हैं जो, किसी ' आदर्श ' या ' प्रशासन ' के नाम पर, अपनी आज्ञा बनवाने के उसी अधिकार का दावा करते हैं।
स्वाधीनता के साथ 'सत्य ' की खोज करना और अपने निजी पथ दुरा स्वतंत्र रूप से ' सत्य ' के निकट जाना मनुष्य का अधिकार है । लेकिन हर एक को यह जानना चाहिये कि उसकी खोज सीप उसी के लिए अच्छी है और उसे दूसरों पर नहीं लादना चाहिये ।
१३ मई, १९७०
ओरोवील में कोई भी चीज विशेष रूप से किसी व्यक्ति की नहीं है । सब कुछ सामूहिक संपत्ति है जो मेरे आशीर्वाद के साथ सभी के कल्याण के लिए उपयोग में लायी जानी चाहिये ।
१४ मई, १९७०
२२३
सच्चा ओरोवीलवासी बनने के लिए
१. पहली आवश्यकता है आंतरिक शोध की ताकि मनुष्य यह जान सके कि सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, जातीय और आनुवंशिक आभासों के पीछे सचमुच वह है क्या ।
केंद्र में एक स्वतंत्र, विशाल और सजग सत्ता है जो हमारी खोज की प्रतीक्षा कर रही हे और जिसे हमारी सत्ता और ओरोवील में हमारे जीवन का सक्रिय केंद्र बनना चाहिये ।
२. व्यक्ति ओरोवील में नैतिक और सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त होने के लिए रहता है; लेकिन यह मुक्ति अहं, उसकी कामनाओं ओर महत्त्व- कक्षाओं की नयी दासता नहीं होनी चाहिये ।
व्यक्ति की कामनाओं की पूर्ति आंतरिक खोज के मार्ग को रोक देती है जिसे केवल शांति और पूर्ण अनासक्ति की पारदर्शकता में ही पाया जा सकता है ।
३. ओरोवीलवासी को व्यक्तिगत स्वामित्व- भाव को बिलकुल फ जाना चाहिये । क्योंकि हमारी भौतिक जगत् की यात्रा में, हमें जो स्थान लेना है उसके अनुसार, हमारे जीवन ओर हमारे काय के लिए जो कुछ अनिवार्य है वह हमारे लिए जुटा दिया जाता है ।
हम अपनी आंतरिक सत्ता के साथ जितने अधिक सचेतन रूप से संपर्क रखते हैं उतने हीं अधिक ठीक-ठीक उपाय हमें दिये जाते हैं ।
४. काम, हाथ का काम भी, आंतरिक शोध के लिए अनिवार्य वस्तु है । अगर व्यक्ति काम न करे, अगर अपनी चेतना को जड़- भौतिक मे न डाले, तो जड़ कभी विकसित न होगा । चेतना को अपने शरीर द्वारा कुछ भौतिक तत्त्व को संगठित करने देना बहुत अच्छा है । अपने चारों तरफ व्यवस्था करना अपने अंदर व्यवस्था लाने में सहायता देता है ।
व्यक्ति को अपना जीवन बाहरी और कृत्रिम नियमों के अनुसार नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित आंतरिक चेतना दुरा संगठित करना चाहिये, क्योंकि अगर व्यक्ति जीवन को उच्चतर चेतना के संयम के अधीन न रखकर यूं हो चलने दे, तो वह अस्थिर और अर्थशून्य हों जाता है । यह इस अर्थ में अपने समय का अपव्यय होगा कि जड़- भौतिक बिना किसी सचेतन उपयोग
२२४
के जैसे-का-तैसा ही बना रहेगा ।
५. सारी पृथ्वी को नयी जाति के आविर्भाव के लिए तैयार होना होगा, और ओरोवील इस आविर्भाव को शीघ्र लाने के लिए सचेतन रूप से काम करना चाहता है ।
६. थोड़ा-थोड़ा करके हमारे सामने यह व्यक्त किया जायेगा कि यह नयी जाति केसी होगी, ओर तब तक के लिए सबसे अच्छा रास्ता यही है कि अपने-आपको पूरी तरह से भगवान् को अर्पण किया जाये ।
१३ जून, १९७०
ओरोवील में '' सब कुछ सामूहिक संपत्ति है ''! क्या इसका यह अर्थ है कि सभी चीजों का सभी मनुष्य उपयोग कर सकते हैं या फिर चीजें केवल उर्न्ही को देनी चाहिये जो उनका भलीभाति उपयोग करते है ?
मैंने देखा है कि नाजुक उपकरणों को किसी व्यक्ति से लगाव हो जाता हे और वह दूसरों को दिये जाने पर अच्छी तरह काम नहीं करते !
यह सब ऐसी चेतना में समाविष्ट है जो पृथ्वी पर बहुत केली हुई नहीं है ।
इसका यह अर्थ नहीं है कि चीजें उन लोगों को दौ जानी चाहिये जिन्हें उनका उपयोग करना नहीं आता ।
ओरोवील के प्रशासन के लिए जिस चीज की जरूरत है वह है ऐसी चेतना जो सभी रूढ़ियों से मुक्त हो और अतिमानसिक 'सत्य ' के प्रति सचेतन हो । मैं अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति की प्रतीक्षा में हूं । हर एक को उसे पाने के लिए अच्छे-से- अच्छा प्रयास करना चाहिये ।
१५ जुलाई, १९७०
(कुछ अस्थायी अतिथियों ने ओरोवील की व्यवस्था में हस्तक्षेप करने का अधिकार जताया इस बारे में माताजी ने लिखा :)
२२५
ओरोवीलवासियों से
ओरोवील की व्यवस्था में हस्तक्षेप करनेका अधिकार उन्हीं लोगों को है जिन्होने हमेशा के लिए यहां रहने का निश्चय कर लिया है ।
२२ जनवरी,१९७१
अब से मुझे ओरोवील के बारे में जो कुछ कहना होगा उसे लिख लिया जायेगा ओर उस पर मेरे हस्ताक्षर होंगे ।
१५ फरवरी, १९७१
'' क्या ओरोवील में कोई और कमेटियां होनी चाहिये ? '' माताजी ओरोवील के किसी ओर नयी कमेटी को स्वीकार नहीं करती ! बे कहती हैं : '' अधिक कमेटियां अधिक फालतू बातें। ''
१७ फरवरी, १९७१
हममें से कई मानसिक असंतुलन और अव्यवस्था से गुजर चुके है या गुजर रहे है।जो इस अरबरा में है उनके प्राप्ति हमें कैसी ब्रुती अपनानी चाहिये ? इन संकटों से बचने के लिए हमें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिये ?
हमेशा अचंचलता, शांति और स्थिरता होनी चाहिये, और हमेशा कमसे- कम बोलना चाहिये और केवल तभी क्रिया करनी चाहिये जब जरूरी हो । अचेतना सें जितना अधिक हो सके बचना चाहिये ।
१२६
सच्ची आध्यात्मिकता भागवत कार्य की सेवा में है ।
सबके लिए कार्य करने से इन्कार करना स्वार्थ को दिखाता है, और उसका कोई आध्यात्मिक मूल्य नहीं है ।
ओरोवील में रहने के योग्य होने के लिए सबसे पहली चीज हैं अपने- आपको अहं से मुक्त करने के लिए रानी होना ।
२४ फरवरी, १९७१
(ओरोवील की तीसरी वर्षगांठ के लिए संदेश )
सभी ओरोवीलवासियों के नाम
सामूहिक और व्यक्तिगत चेतना की प्रगति और विकास के लिए मेरे आशीर्वाद ।
२८ फरवरी, १९७१
ओरोवीलवासी होने के लिए व्यक्ति को कमसेकम मानवता के प्रबुद्ध भाग का सदस्य होना चाहिये और उच्चतर चेतना की अभीप्सा करनी चाहिये जो भावी जाति का संचालन करेगी ।
हमेशा अधिक ऊंचा और हमेशा अधिक अच्छा, - अहं की सीमाओं के परे ।
फरवरी, १९७१
ओरोवील कोई धर्मार्थ काम नहीं हैं । '' ऐस्पिरेशन '' में बतायी एक रात एक दिन के काम के बराबर है ।
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व्यक्ति ओरोवील में आराम के लिए नहीं बल्कि चेतना में वृद्धि और भगवान् की सेवा के लिए रहता है ।
१ मार्च, १९७१
क्या तुम ओरोवील में अपनी छोटी-मोटी निजी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने आये हो ?
यह सचमुच आवश्यक नहीं था । इसके लिए तो बाकी सारी दुनिया पड़ी है ।
आदमी ओरोवील में भागवत जीवन चरितार्थ करने के लिए आता है जो पृथ्वी पर अभिव्यक्त होना चाहता हैं ।
हर एक को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये और तथाकथित '' आवश्यकताओं '' के सम्मोहन में न रहना चाहिये जो व्यक्तिगत सनको के सिवाय ओर कुछ नहीं होती ।
ऊपर और सामने देखो, पाशविक मानवीय प्रकृति से ऊपर उठने की कोशिश करो । दृढ़ निश्चय करो और तुम देखोगे कि पथ पर चलने में तुम्हारी सहायता की जा रही है ।
३ मार्च, १९७१
ओरोवील के लिए काम करना अधिक सामंजस्यपूर्ण 'भविष्य' के आगमन को जल्दी लाना है।
२७ मार्च, १९७१
अगर उचित मनोभाव हो तो हम अपनी छोटेसे-छोटी क्रिया में भी भगवान् की सेवा कर सकते हैं ।
१५ अप्रैल, १९७१
भगवान् के प्रति समर्पण-भाव से किये गये काम में ही चेतना का सर्वोत्तम
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विकास होता है ।
आलस्य और निष्कियता का परिणाम है तम जो निश्चेतना में गिरना है और प्रगति तथा प्रकाश के एकदम विपरीत है ।
अपने अहं पर विजय पाना और केवल भगवान् की सेवा में जीना सच्ची 'चेतना ' पाने का आदर्श ओर सबसे छोटा रास्ता है ।
२७ अप्रैल, १९७१
मैं हिंसा को एकदम अस्वीकार करती हूं । हम जिस लक्ष्य के लिए अभीप्सा करते हैं उसकी ओर ले जाने वाले मार्ग पर हिंसा की हर एक क्रिया हमें एक कदम पीछे ले जाती है।
भगवान् सर्वत्र हैं और हमेशा अत्यधिक सचेतन । ऐसी कोई चीज कभी नहीं करनी चाहिये जो भगवान् के सामने नहीं की जा सकती ।
६ मई, १९७१
ओरोवील का प्रतीक
केंद्र में जो बिंदु है वह 'एकत्व' का, 'परम पुरुष' का प्रतिनिधित्व करता है अन्दर का वृत्त सृष्टि का प्रतीक है, शहर की अवधारणा है; पंखुड़िया अभिव्यक्त करने, चरितार्थ करने की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं ।
१६ अगस्त, १९७१
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हर एक वस्तु अपनी जगह पर हो, तो हर एक वस्तु के लिए स्थान होगा ।
२६ अगस्त, १९७१
यह कहने का कि ''इस चीज का समावेश असंभव है'' बस यही अथ है कि उसका सच्चा स्थान खोजा ही नहीं गया ।
सभी सनकें प्राणिक गतिविधियों हैं और सबसे अधिक अवांछनीय वस्तुएं ।
स्वतंत्रता का अर्थ अपनी कामनाओं का अनुसरण करना नहीं बल्कि इसके विपरीत, उनसे मुक्त होना हैं ।
२७ अगस्त, १९७१
हर एक समस्या का एक ऐसा समाधान होता है जो सभी को संतोष दे सकता है; लेकिन इस आदर्श समाधान को पाने के लिए दूसरों पर अपनी अभिरुचि का दबाव डालने की बजाय हर एक को उसकी कामना करनी चाहिये ।
अपनी चेतना का विस्तार करो और सबके संतोष की अभीप्सा करो ।
२८ अगस्त, १९७१
ओरोवीलवासी को झूठ नहीं बोलना चाहिये । हर एक को जो ओरोवीलवासी बनने की अभीप्सा करता है, कभी झूठ न बोलने का दृढ़ निश्चय करना चाहिये ।
तुम प्रश्न का केवल अपना पहलू देखते हो, लेकिन अगर तुम अपनी
२३०
चेतना का विस्तार करना चाहते हो तो निष्पक्ष भाव से हर तरफ देखना ज्यादा अच्छा होगा । बाद में तुम्हें पता चलेगा कि इस वृत्ति से बहुत लाभ होता है ।
१७ सितम्बर, १९७१
अपनी चेतना को धरती के आयाम तक विस्मृत करो और तुम्हें हर वस्तु के लिए स्थान मिल जायेगा ।
२० सितम्बर, १९७१
ओरोवीलवासियों का आदर्श होना चाहिये अहंकार-शून्य होना- अपने अहंकार को संतुष्ट करना हर्गिज नहीं ।
अगर वे स्वार्थ- भरे अधिकार के पुराने मानवीय ढर्रा का अनुसरण करें, तो वे दुनिया को बदलने की आशा कैसे कर सकते हैं?
२३ अक्तूबर, १९७१
ओरोवील मे उनके लिए जो सच्चे सवेक बनना चाहते हैं क्या इतवार छुट्टी का दिन होगा?
शुरू में सप्ताह की व्यवस्था इस प्रकार सचि गयी थी : व्यक्ति छह दिन उस समुदाय के लिए काम करे जिसका वह अंग है सप्ताह का सातवां दिन भगवान् के लिए आंतरिक खोज करने का और अपनी सत्ता को भगवत इच्छा के प्रति समर्पण के लिए था । तथाकथित इतवार के विश्राम का केवल यही अर्थ और केवल यही सच्चा कारण है ।
यह कहने की जरूरत नहीं हैं कि सिद्धि के लिए निष्कपटता अनिवार्य शर्त है; किसी भी तरह का कपट अवनति है ।
२ अक्तूबर, १९७१
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अपनी राय का समर्थन करने के लिए हर एक के पास अच्छे कारण होते हैं, और उनके बीच निर्णय करने में मैं पटु नहीं हूं ।
लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मैं जानती हूं कि सच्ची सद्भावना के साथ सभी राजों का अधिक विस्मृत और सच्चे समाधान में सामंजस्य किया ना सकता है । ओरोवील में काम करने वालों से मैं इसकी आशा रखती हूं । ऐसा नहीं कि कुछ लोग औरों के आगे दब जायें, बल्कि इसके विपरीत अधिक विस्मृत ओर पूर्ण परिणाम पाने के लिए सभी को सम्मिलित प्रयास करना चाहिये ।
ओरोवील का आदेश इस प्रगति की मांग करता है-क्या तुम इसे नहीं करना चाहते ?
१४ नवम्बर, १९७१
भगवान् के साथ ऐक्य से प्राप्त हुई स्वाधीनता ही सच्ची स्वाधीनता है । अपने अहं पर प्रभुत्व पाने के बाद ही तुम भगवान् के साथ एक हो सकते हो ।
१९७१
ओरोवील श्रीअरविन्द की शिक्षा पर आधारित मानव एकता की पहली उपलब्धि होना चाहता हैं, जहां सभी देशों के लोग अपनापन अनुभव करेंगे ।
जनवरी, १९७२
यूनेस्को के लिए संदेश
ओरोवील पृथ्वी पर अतिमानसिक 'सद्वस्तु ' के आगमन की गति को तेज करने के लिए है ।
२३२
उन सब लोगों के सहयोग का स्वागत है जिन्हें लगता है कि जगत् जैसा होना चाहिये वैसा नहीं है ।
हर एक को जानना चाहिये कि वह मृत्यु के लिए तैयार पुराने जगत् के साथ मेल-जोल रखना चाहता है, या नये और अधिक अच्छे जगत् के साथ जो जन्म लेने की तैयारी कर रहा है ।
१ फरवरी, १९७२
ओरोवील में बहुत-से लोग कहती है कि ओरोवील मई नियोजित कार्य अभीप्सित नहीं है; बे सहज-स्पुकृत कार्य के पक्ष में है !
सहज-स्फुरित कार्य केवल कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति ही कर सकता है ।
क्या कोई प्रतिभाशाली होने का दावा करता है ?...
३ जुलाई, १९७२
निम्न प्रकृति के सभी आवेगों का अनुसरण करना निश्चय ही अतिमानसिक तरीका नहीं है और उसका यहां कोई स्थान नहीं हैं ।
हम जो चाहते हैं वह है अतिमानस के आगमन की गति को तेज करना, आवेगों और कामनाओं से भरी मानवता की कुरूप अवस्था में पतन बिलकुल नहीं ।
१० जुलाई, १९७२
जब तक हम झूठ बोलते जायेंगे, तब तक हम सुखद ' भविष्य ' को अपने से बहुत दूर धकेलते रहेंगे ।
१३ जुलाई, १९७२
२३३
ओरोवील उन व्यक्तियों को आश्रय देना चाहता है जो ओरोवील मैं रहकर खुश होते हैं । जो इससे असंतुष्ट हैं उन्हें दुनिया में वापस चले जाना चाहिये जहां वे जो चाहें कर सकते हैं और जहां हर एक के लिए जगह है ।
२ अक्तूबर, १९७२
ओरोवील में जिन लोगों को उनके गलत वक्तव्य के आधार पर लिया गया है, उनके लिए केवल एक ही समाधान है : वह हैं अपने अंदर से सारे मिथ्यात्व को, यानी, उस सब को दूर करना जो उनकी चेतना में भागवत उपस्थिति का विरोध करता हैं ।
२२ अक्तूबर, १९७२
ओरोवील का सच्चा भाव है सहयोग ओर यह अधिकाधिक होना चाहिये । सच्चा सहयोग देवत्व तक जाने का रास्ता तैयार करता है ।
(उन ओरोवीलवासियो के जो अभिनंदन के इन तीन संभव ' का उपयोग करना चाहते हैं)
''ओ सैविस द ला वेरिते''
परम 'सत्य' की सेवा में
'सत्य'
३० अक्तूबर, १९७२
सामंजरय
सद्भाबना
अनुशासन
सत्य
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मैं तुम्हारे साथ तभी काम कर सकती हूं जब तुम बिलकुल झूठ न बोलों और 'सत्य' की सेवा में लगे रहो ।
३१ अक्तूबर, १९७२
मरने से पहले, मिथ्यात्व अपनी पूरी पेंग में उठता है ।
अभी तक मनुष्य केवल विध्वंस के पाठ को समझता है । क्या मनुष्य के ' सत्य ' की ओर आंखें खोलने से पहले उसे आना हीं पड़ेगा ?
मैं सबसे प्रयास की मांग करती हूं ताकि उसे न आना पड़े ।
केवल ' सत्य ' ही हमारी रक्षा कर सकता है, वाणी में सत्य, क्रिया में सत्य, संकल्प में सत्य, भावों में सत्य । यह ' सत्य ' की सेवा करने या नष्ट हो जाने के बीच एक चुनाव है ।
२६ नवम्बर, १९७२
ओरोवील का निर्माण एक प्रगतिशील अतिमानवजाति के लिए हुआ है, अध: मानवजाति के लिए नहीं जिसका संचालन उसकी सहजवृत्तियां करती हैं और जिस पर उसकी कामनाओं का आधिपत्य रहता है । जो अधःमानव- जाति, पाशविक मानवजाति के अंग हैं, उनके लिए यहां कोई स्थान नहीं है । ओरोवील उन लोगों के लिए है जो अतिमानस की अभीप्सा करते हैं और उस तक पहुंचने का प्रयास करते हैं ।
१ दिसम्बर, १९७२
(५ दिसम्बर, १९७२ की रात के तूफान के बारे मे)
यह प्रकृति दुरा दी गयी एक चेतावनी हो कि जिनके अंदर ओरोवील का सच्चा भाव नहीं है उन्हें या तो बदलना होगा या अगर वे बदलना न चाहें तो उन्हें यहां से चले जाना होगा ।
७ दिसम्बर, १९७२
२३५
हर एक को प्रगति करनी है और अधिक सच्चा तथा निष्कपट बनना है ।
ओरोवील का निर्माण अहंकारों और उनके लालचों की संतुष्टि के लिए नहीं, बल्कि एक नये जगत् अतिमानसिक जगत् के लिए हुआ है जो भागवत पूर्णता को अभिव्यक्त करता है।
१२ दिसम्बर, १९७२
ओरोवील का निर्माण अतिमानवजाति के लिए हुआ दूर, उनके लिए जो अपने अहं पर विजय पाना और सभी कामनाओं को त्यागना चाहते हैं, जो अतिमानस को प्राप्त करने के लिए अपने- आपको तैयार करना चाहते हैं । केवल वे ही सच्चे ओरोवीलवासी हैं ।
जो लोग अपने अहं की आज्ञा का पालन करना चाहते हैं और अपनी सभी कामनाओं को संतुष्ट करना चाहते हैं वे अवमानवजाति के सदस्य हैं और उनके लिए यहां कोई स्थान नहीं है । उन्हें जगत् में वापस चले जाना चाहिये जो उनका सच्चा स्थान है ।
१८ दिसम्बर, १९७२
उन सबके लिए जो झूठ बोलते हैं
इस एक साधारण-सी हकीकत सें कि तुम झूठ बोलते हो, तुम यह प्रमाणित कर देते हो कि तुम सच्चे ओरोवीलवासी नहीं बनना चाहते ।
अगर तुम ओरोवील में रहना चाहते हो तो तुम्हें झूठ बोलना बंद करना होगा ।
१९ दिसम्बर, १९७२
सच्चा ओरोवीलवासी बनने के लिए व्यक्ति को कभी झूठ नहीं बोलना चाहिये ।
२८ दिसम्बर, १९७२
२३६
क्या मानवजाति के दुःख- दैन्य और समाज की अव्यवस्थाओं का एकमात्र हल ओरोवील ही है ?
एकमात्र हल नहीं । यह रूपांतरण का केंद्र है, ऐसे मनुष्यों का एक छोटा- सा केंद्र-बिंदु जो अपने- आपको रूपांतरित कर रहे हैं और जगत् के सामने एक उदाहरण रख रहे हैं । ओरोवील यहीं होने की आशा करता है । जगत् में जब तक अहंभावना और दुर्भावना का अस्तित्व है, व्यापक रूपांतर असंभव हैं ।
२८ दिसम्बर १९७२
ओरोवील के लिए आप केसी राजनीतिक व्यवस्था चाहती हैं ?
एक मजेदार परिभाषा मेरे दिमाग में है : भागवत अराजकता । लेकिन जगत् इसे नहीं समझेगा । मनुष्यों को अपने चैत्य के प्रति सचेतन होना चाहिये और सहज रूप से, निश्चित नियमों और विधानों के बिना, अपने- आपको व्यवस्थित करना चाहिये-यह आदर्श है ।
इसके लिए, व्यक्ति को अपनी चैत्य चेतना के संपर्क में होना चाहिये, व्यक्ति को उसके पथप्रदर्शन में रहना चाहिये और अहंकार के अधिकार और प्रभाव को अदृश्य हो जाना चाहिये ।
ओरोवील का निर्माण उन लोगों के लिए हुआ है जो प्रगति करना चाहते हैं, अपनी निजी प्रगति ।
यह हर एक के लिए लिखा गया है; हर एक व्यक्ति का सबसे पहले अपने-आपसे सरोकार हैं।
जब तक उनमें कामनाएं हैं, वे सच्चे ओरोवीलवासी नहीं हैं ।
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उन्हें शब्दों से खेलना न चाहिये : कामनाओं ओर अभीप्सा मे जमीन- आसमान का अन्तर है । हर सच्चा आदमी यह जानता है । ओर सबसे पहली चीज यह है कि उन्हें अपने अहं और अपनी कामनाओं को भगवान् मान लेने की फ नहीं करनी चाहिये । चूंकि वे अपने- आपको धोखा देते हैं इसलिए यह घपला होता है ।
उन्हें अपने अंदर भागवत उपस्थिति के प्रति सचेतन होना चाहिये, और उसके लिए, अहं को चुप करवाना होगा और कामनाओं को अदृश्य होना होगा ।
ईसा उन बहुत-से रूपों में से एक है जिन्हें भगवान् ने धरती के साथ नाता जोड़ने के लिए धारण किया हैं । लेकिन और भी बहुत-से हैं और होंगे; और ओरोवील के बच्चों को एक ही धर्म की ऐकातिकता के स्थान पर शान की उदार श्रद्धा को लाना चाहिये ।
१९७२
मिथ्यात्व के लिए केवल एक ही समाधान है : वह है अपने अंदर से उन सभी चीजों को दूर करना जो हमारी चेतना में भागवत उपस्थिति का विरोध करती हैं ।
३१ दिसम्बर, १९७२
तुम क्या करते हो इससे नहीं बल्कि किस भाव से करते हो इससे कर्मयोग होता है ।
५ फरवरी, १९७३
ओरोवील राजनीति का स्थान नहीं है । ओरोवील में और ओरोवील के
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कार्यालयों में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिये ।
१५ फरवरी, १९७३
ओरोवील को जो बनना चाहिये वह बन जायेगा :
केवल तभी जब ओरोवील में रहने वाले लोग झूठ बोलना बद कर देंगे ।
१८ मार्च १९७३
जब तुम कहते हो ''मैं भगवान् की सेवा करना चाहता हूं '', तो क्या तुम यह मानते हो कि 'सर्वज्ञ' यह नहीं जानते कि यह झूठ है ?
१८ मार्च, १९७३
ओरोवील श्रीअरविन्द के आदर्श को चरितार्थ करने के लिए बनाया गया है, जिन्होने हमें कर्मयोग सिखलाया है । ओरोवील उन लोगों के लिए है जो कर्मयोग करना चाहते हैं ।
ओरोवील में रहने का अर्थ है कर्मयोग करना । इसलिए सभी ओरोवील- वासियों को कोई-न-कोई काम लेना चाहिये और उसे योग के रूप में करना चाहिये ।
२७ मार्च, १९७३
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