The Mother's brief statements on Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India and and nations other than India.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother about Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India, and nations other than India. Written over a period of nearly sixty years (1914-1973), the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. The majority (about sixty per cent) were written in English; the rest were written in French and appear here in translation. The volume also contains a number of conversations, most of them in the part on Auroville. All but one were spoken in French and appear here in translation.
चिरन्तन उपस्थिति
आपने श्रीअरविन्द के जन्म को विश्व- इतिहास में शाश्वत बतलाया है ? '' शाश्वत '' का ठीक अर्थ क्या है ?
इसे चेतना के चार आरोही स्तरों पर चार भिन्न तरीकों से समझा जा सकता हैं :
१. भौतिक रूप में, जन्म के परिणाम जगत् के लिए शाश्वत महत्व के होंगे ।
२. मानसिक रूप में, यह एक ऐसा जन्म है जिसे विश्व इतिहास शाश्वत काल तक याद रखेगा।
३. चैत्य रूप से, एक ऐसा जन्म जो धरती पर युग-युग मे हमेशा होता रहता है ।
४. आध्यात्मिक रूप से, ' शाश्वत ' का धरती पर जन्म ।
१९५७
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पृथ्वी के इतिहास में आरम्भ से ही श्रीअरविन्द ने किसी-न-किसी रूप में, किसी-न-किसी नाम से हमेशा पृथ्वी के महान् रूपान्तरों का संचालन किया हैं ।
कहा जाता है कि श्रीअरविन्द ने अपने एक पिछले जन्म मे फ़रासीसी क्रान्ति मे सक्रिय भाग लिया था ! क्या यह सच हे?
तुम कह सकते हो कि सारे इतिहास में ही श्रीअरविन्द ने सक्रिय भाग लिया था । विशेष रूप से इतिहास की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटनाओं के समय वे उपस्थित थे- और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और प्रमुख भूमिका निभा रहे थे । पर हां, वे हमेशा सामने न होते थे ।
२३ जनवरी १९६०
श्रीअरविन्द निरन्तर हमारे साथ हैं और जो लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए तैयार हैं उनके आगे अपने- आपको प्रकट करते हैं ।
आशीर्वाद ।
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श्रीअरविन्द बहुत विशाल और मूर्त रूप में (सूक्ष्म शरीर में) ध्यान के समय सारे अहाते पर आसीन थे ।
२८ अगस्त, १९६२
पिछली रात, हम (तुम, में ओर कुछ अन्य लोग) काफी देर तक श्रीअरविन्द के स्थायी निवास-स्थान में एक साथ थे, वह स्थान जिसका अस्तित्व सूक्ष्म भौतिक में हे (जिसे श्रीअरविन्द ने वास्तविक भौतिक जगत् कहा है) ।
१ फरवरी १९६३
श्रीअरविन्द सूक्ष्म भौतिक जगत् में हैं, अगर तुम यह जानते हो कि वहां कैसे जाया जाये, तो तुम उनसे नींद में मिल सकते हो ।
१३ अगस्त १९६४
(एक साधक ने सोते हुए सूक्ष्म भौतिक जगत् में विराजमान सूक्ष्म भौतिक शरीरधारी श्रीअरविन्द का अन्तर्दर्शन किया उठने इसके बारे मे माताजी को लिखा माताजी का उत्तर:)
श्रीअरविन्द हर एक की आवश्यकता के अनुसार उसे दर्शन देते हैं और सूक्ष्म भौतिक में चीजें यहां के जैसी नियत नहीं हैं ।
तुमने जो देखा है उसके विवरण की अपेक्षा अन्तर्दर्शन से उत्पन्न भावना को ज्यादा महत्त्व दो।
सारा दिन तड़के से ही श्रीअरविन्द सदा की तरह विद्यमान थे बहुत जीवित- जाग्रत्; कभी-कभी चुप रहना मेरे हो जाता था मैं अपने अन्दर-ही- अन्दर बुदबुदाता रहा आनत होना शायद ठीक नहीं था ठीक था क्या माताजी? लेकिन श्रीअरविन्द इत्रने
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नजदीक और इतने सजीव थे ।
इसके विपरीत, यह बिलकुल ठीक हैं, वे अब जितने सजीव हैं उतने कभी नहीं रहे!
५ दिसम्बर, १९६७
श्रीअरविन्द सूक्ष्म भौतिक में निरन्तर रहते हैं और वहां बृहत कार्यरत हैं । मैं प्रायः प्रतिदिन उनसे मिलती हूं । कल रात मैंने उनके साध कई घंटे बिताये ।
अगर तुम सूक्ष्म भौतिक में सचेतन हो जाओ तो तुम निश्चय ही उनसे मिलोगे । यह वही है जिसे श्रीअरविन्द सच्चा भौतिक कहते हैं- इसका चैत्य से कोई सम्बन्ध नहीं ।
२१ दिसम्बर, १९६९
श्रीअरविन्द की सहायता चिरन्तन है : हमें उसे ग्रहण करना सीखना चाहिये ।
श्रीअरविन्द हमेशा हमारे साथ हैं, हमें प्रकाश देते हैं, रास्ता दिखाते हैं ओर हमारी रक्षा करते हैं । हम पूर्णनिष्ठ बनकर ही उनकी कृपा के पात्र बन सकेंगे ।
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