CWM (Hin) Set of 17 volumes
माताजी के वचन - I 418 pages 2009 Edition
Hindi Translation

ABOUT

The Mother's brief statements on Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India and and nations other than India.

माताजी के वचन - I

The Mother symbol
The Mother

This volume consists primarily of brief written statements by the Mother about Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India, and nations other than India. Written over a period of nearly sixty years (1914-1973), the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. The majority (about sixty per cent) were written in English; the rest were written in French and appear here in translation. The volume also contains a number of conversations, most of them in the part on Auroville. All but one were spoken in French and appear here in translation.

Collected Works of The Mother (CWM) Words of the Mother - I Vol. 13 385 pages 2004 Edition
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The Mother symbol
The Mother

This volume consists primarily of brief written statements by the Mother about Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India, and nations other than India. Written over a period of nearly sixty years (1914-1973), the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. The majority (about sixty per cent) were written in English; the rest were written in French and appear here in translation. The volume also contains a number of conversations, most of them in the part on Auroville. All but one were spoken in French and appear here in translation.

Hindi translation of Collected Works of 'The Mother' माताजी के वचन - I 418 pages 2009 Edition
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मातृमंदिर के बारे में

 

 ३१ दिसंबर, १९६

 

 यह पहला विचार था : वहां 'सेंटर' था और नगर उसके चारों तरफ संगठित था । अब वे ठीक इससे उलटा कर रहे हैं । वे नगर बना लेना चाहते हैं ओर फिर बाद में ' सेंटर ' बनाना चाहते हैं ।

 

    और '' वस्तु '' आने के लिए तैयार है ! मैं यह बहुत पहले से जानती थी, वह मौजूद है (ऊपर की ओर संकेत), वह प्रतीक्षा कर रही है ।

 

 (मौन)

 

 ' ए ' का विचार है कि बीच में एक दीप हो जिसके चारों तरफ पानी रहे, बहता पानी, जो पूरे कार को पानी देगा; और पूरे फरा में से गुजरने के बाद उसे पप्प-हाऊस में भेज दिया जाये, और वहां से वह आसपास के सभी उर्वर खेतों मे सिंचाई के लिए भेजा जाये । तो यह ' सेंटर ' एक छोटा दीप-सा हुआ जिसके ऊपर वह होगा जिसे हमने पहले '' मातृमंदिर '' कहा -जिसे मैं हमेशा एक विशाल कमरे के रूप में देखती हूं, एकदम खाली, जो ऊपर से आते हुए प्रकाश को ग्रहण करेगा, इस तरह से व्यवस्था की जायेगी कि ऊपर से आने वाला प्रकाश एक हो स्थान पर केंद्रित हो जहां ... वह हो जिसे हम नगर के केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहें । पहले, हमने श्रीअरविन्द के प्रतीक के बारे में सोचा था, लेकिन हम जो कुछ रखना चाहें रख सकते हैं । यूं हर समय प्रकाश की किरण उस पर पड़े जो ... सूर्य के साथ घूमती रहे, घूमती रहे, घूमती रहे, तुम समझ रहे हों न? अगर इसे अच्छी तरह किया जाये, तो बहुत अच्छा होगा । और फिर नीचे, ताकि लोग बैठकर ध्यान कर सकें, या केवल आराम कर सकें, कुछ नहीं, कुछ नहीं, केवल नीचे कुछ आरामदेह चीज रखी जायेगी ताकि वे बिना थके बैठ सकें, शायद कुछ खंभों के साथ जो टेक लगाने का काम भी देंगे । कुछ-कुछ ऐसा ही । और इसे ही मैं हमेशा देखती हूं । कमरा ऊंचा होना चाहिये, ताकि सूरज, दिन के समय के अनुसार, किरण के रूप में

 

३०१


 प्रवेश कर सके और उस केंद्र पर पड जो वहां होगा । अगर इतना हो जाये, तो बहुत अच्छा होगा ।

 

   और बाकी के लिए वे जैसा करना चाहें कर सकते हैं, मेरे लिए सब समान है । पहले उन्होंने मेरे रहने के लिए स्थान बनाने का सोचा था, लेकिन मैं वहां कभी नहीं जाऊंगी, इसलिए यह कष्ट उठाने की जरूरत नहीं, वह पूरी तरह से अनुपयोगी होगा । और इस द्वीप की देखभाल करने के लिए यह तय हुआ था कि 'बी ' के लिए वहां एक छोटा-सा घर होगा जो वहां बस एक अभिभावक के रूप में रहेगी । और फिर 'ए ' ने उसे दूसरे किनारे से जोड़ने के लिए पुलों की पूरी व्यवस्था की थी । और दूसरे किनारे पर चारों तरफ केवल बगीचे-ही-बगीचे होंगे । ये बग़ीचे... हमने बारह बग़ीचों का सोचा था-जगह को बारह भागों में बांटकर बारह बग़ीचे, इनमें से हर एक चेतना की किसी स्थिति पर केंद्रित होगा, और वहां वे फूल होंगे जो उस स्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं । और बारहवां बगीचा पानी में होगा, चारों तरफ-नहीं, '' मंदिर '' के चारों तरफ नहीं, उसके करीब होगा, उस वटवृक्ष के साथ जो वहां है । वही नगर का केंद्र है । और वहां, चारों तरफ के बाहरी बारह बग़ीचे फूलों की उसी व्यवस्था के साथ दोहराये जायेंगे ।

 

(मौन)

 

इस तरह के मंदिर के बाहर के लिए, ' ए ' ने एक बड़ा कमल बनाने के बारे में सोचा है । लेकिन फिर, यह अंदर का, प्रकाश का यह खेल, मुझे पता नहीं कमल के आकार के साथ यह होना संभव होगा या नहीं ?

 

    अगर ' ए ' और ' सी ' दोनों सहयोग दे सकें... अगर वे दोनों मिल सकें और अगर उनमें से एक हमेशा यहां रह सके, कभी एक तो कभी दूसरा, दोनों मे से एक यहां रह सके और एक ही योजना हो जिसे वे मिलकर बनाये-तो काम ज्यादा तेजी से होगा, सौ गुना तेजी से ।

 

    सूरज की किरण का यह विचार... जब मैं दृष्टि डालती हूं तो तुरंत यही देखती हूं । सूरज की किरण जो हर समय आ सके-ऐसा व्यवस्था करनी होगी कि वह सारे समय आ सके (सूरज की गति का अनुसरण करने का संकेत) । और फिर, वहां कुछ होगा, एक प्रतीक, जो सीधा खड़ा

 

३०२


होगा ताकि उसे चारों तरफ से देखा जा सके, और साथ-हीं-साथ प्रकाश को पूरी तरह से लेने के लिए यह सपाट भी होगा । क्या ?... भगवान् के लिए, इसे कोई धर्म न बनाओ !

 

(मौन)

 

इसे चरितार्थ करने का उपाय कौन ढूंढ सकता है ? क्योंकि यहां सूर्य के प्रकाश की कमी नहीं है... । निश्चय हो, कुछ दिन ऐसे होते हैं जब सूरज बिलकुल नहीं दिखता, लेकिन फिर भी, अधिक दिन ऐसे हैं जब वह होता है-ताकि हर तरफ से, किसी भी कोण से किरणें पड़े । इसे इस तरह व्यवस्थित करना चाहिये । यह ज्यामिति का प्रश्न है । तुम इसके बारे मै ' सौ ' से बातचीत कर सकते हो, क्योंकि उसके पास अगर कोई विचार हो

 

    इसी की जरूरत है, कोई ऐसी चीज, एक प्रतीक-जिस चीज की जरूरत हो हम पा लेंगे, हम देखेंगे- निश्चय हीं, वेदी की तरह, लेकिन... । क्या ? जो एक ही साथ प्रकाश को सीधा ऊपर से और हर तरफ से ग्रहण कर सके ।

 

    और फिर, और कोई खिड़की नहीं, समझे ? बाकी सब अर्ध-प्रकाश मे होगा । और वह, एक प्रकाश की तरह... यह अच्छा रहेगा, यह बहुत अच्छा हो सकता है । मैं चाहती हू कि कोई ऐसा हो जो इसे अनुभव कर सके ।

 

    और अगर यह अच्छी तरह चरितार्थ हो गया, तो लोगों के लिए यह पहले से ही बहुत रोमांचक होगा । यह किसी वस्तु की ठोस सिद्धि होगी... । लोग कहना शुरू कर देंगे कि यह सौर धर्म हे ! (माताजी हंसती हैं) ओह, तुम्हें पता है, मैं हर मूर्खता, हर एक मूर्खता की आदी हो गयी हूं ।

 

(मौन)

 

निश्चय ही, तर्कसंगत बल्कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से, यह एक फ हैं कि चारों तरफ निर्माण पहले कर लो और फिर ' केंद्र ' बनाओ ।

 

   ' ए ' और उसके दल का विचार उन उधेगों को लगाने का है जो

 

३०३


ओरोवील के लिए धन ला सकें, फिर... । यानी जल्दी कर सकने के बजाय, यह शताब्दियों में होगा ।

 

   मैं कल ' ए ' के साथ इसके बारे में बातचीत करूंगी । मेरा मतलब है मैं उससे कहूंगी कि वह ' सी ' से मिले, जिसके पास कई उत्तम विचार हैं -कि वह उसके साथ किसी सहमति पर आये । देखो, यह बहुत सरल है : हम 'ए ' को समझाने की और सहयोग स्थापित करने की कोशिश करेंगे ।

 

    अब मेरे लिए चीजें ऐकांतिक नहीं रहीं, बिलकुल नहीं । मैं एक ही साथ एकदम विपरीत वृत्तियों के उपयोग की संभावनाएं भली- भांति देखती हूं... । यह ऐकांतिक नहीं है । मैं यह नहीं कहती : '' ओह ! नहीं, यह नहीं! '' नहीं, नहीं, नहीं । सब, सब कुछ एक साथ । मैं यही चाहती हूं : एक ऐसी जगह का निर्माण करना जहां सभी विपरीत चीजें एक हो सकें ।

 

    जब तक यह न किया जा सके (गोल- गोल घूमने का संकेत ) यह चलता ही चला जाता है।

 

*

 

 ३ जनवरी १९७०

 

      मधुर मां, मैंने 'सी' से आने के लिए कहा है । वह बाहर प्रतीक्षा कर रहा है।

 

 हां । एक मजेदार बात हैं । बहुत समय सें मुझे कुछ लग रहा था, तब हमने उस दिन उसके बारे मे बात की और मैंने उसे देखा । मैंने इसके बारे में ' ए ' से बात की और उसे कहा कि वह ' सी ' से बातचीत कर ले और मैंने यह भी कहा कि जो करना चाहिये उसे मैंने देख लिया है । निश्चय ही, उसने ' ना ' नहीं की, उसने हर बात पर ' हां ' ही कही, लेकिन मुझे लगा कि सचमुच उसका इरादा न था... । लेकिन जो हुआ वह यही था । मैंने स्पष्ट रूप से देखा-बहुत, बहुत स्पष्टता से... यानी वह ऐसा था और वह अभी तक ऐसा हैं, वह वहां है (एक शाश्वत स्तर का संकेत)... इस जगह का आंतरिक भाग...

 

३०४


    यह एक स्तंभ के अंदर के हिस्से के जैसा हॉल होगा । खिड़कियां न होंगी । वायु-संचार कृत्रिम होगा, उन मशीनों के साथ (वातानुकृलन के यंत्र का संकेत ) और बस एक छत । और सूरज केंद्र पर पड़ेगा । या जब सूरज नहीं देखेगी-रात को या बदली के दिनों में-एक स्पॉटलाइट रहेगी ।

 

     और विचार यह है कि अभी से एक तरह का नमूना या मॉडल बनाया जाये जिसमें करीब सौ लोग बैठ सकें । जब फरा बन जाये और हमें अनुभव हो जाये, तो हम उसे कोई बड़ा रूप दे सकते हैं । लेकिन फिर वह बहुत बड़ा होगा, जिसमें हजार से दो हजार तक आदमी समा सकें । और दूसरे को पहले के चारों तरफ ही बनाया जाये : यानी, दूसरा खतम होने से पहले, पहले को न हटाया जाये । यहीं विचार है ।

 

    केवल ' सी ' से उसके बारे में बातचीत करने के लिए (अगर संभव हो, अगर मुझे लगे कि 'ए ' के साथ इस बारे में बातें करना संभव है) मुझे एक नक़्शे की आवश्यकता थी । मैं अपने- आप इसे नहीं बना सकती, क्योंकि अब मैं नहीं बना सकती; एक समय था जब मैं यह कर सकती थी, लेकिन अब भली- भांति नहीं देख पाती । मैं उसे आज तीसरे पहर अपने सामने बनाव लुंगी, फिर इस नक्शे के साथ मैं सचमुच अच्छी तरह समझा जाऊंगी । लेकिन तुमसे मैं केवल वही कहना चाहती थी जो मैंने देखा है ।

 

    यह बारह पहलुओं की मीनार होगी, हर पहलू साल के एकएक महीने का प्रतिनिधि होगा; और ऊपर, मीनार की छत ऐसी होगी (चारों ओर की दीवार से छपर उठती हुई छठ का सकेत) ।

 

    और फिर, अंदर, बारह स्तंभ होंगे । दीवारें और फिर बारह स्तंभ और ठीक केंद्र मे, फ़र्श पर, मेरा प्रतीक होगा, और उसके ऊपर श्रीअरविन्द के चार प्रतीक, जो मिलकर समचतुष्कोण बनायेंगे, और उसके ऊपर... एक ग्लोब होगा । संभव हो तो, प्रकाश के साथ या प्रकाश के बिना, पारदर्शक वस्तु का बना गल्लों, लेकिन सूर्य के प्रकाश को उस गल्लों पर पड़ना चाहिये; महीने और समय के अनुसार वह यहां से, वहां सें, उधर से ( सूरज की गति का संकेत) पड़ेगा । समझ रहे हो न ? एक छिद्र होगा जिसमें से किरण आ सकेगी । कोई विकीर्ण प्रकाश नहीं : एक किरण जो सीधी पड़े, जिसे सीधा पड़ना चाहिये । इसे कर सकने के लिए कुछ तकनीकी

 

३०५


ज्ञान की आवश्यकता होगी, इसीलिए मैं किसी इजीनियर के साथ डिज़ाइन बनाना चाहती हूं।

 

     और फिर, अंदर कोई खिड़की या रोशनी नहीं होगी । वह हमेशा, रात-दिन अर्ध- आलोकित होगा-दिन मे सूरज से, रात मे कृत्रिम रोशनी द्वारा । और फ़र्श पर, कुछ नहीं, केवल इस तरह का फ़र्श होगा (माताजी के कमरे वैसा) । यानी, पहले लकड़ी (लकड़ी या कुछ ओर), फिर एक तरह का मोटा, बहुत मुलायम रबर फोन, और फिर एक कालीन । कालीन सब जगह, केंद्र को छोड़ कर सब जगह होगा । और लोग हर जगह बैठ सकेंगे । १२ स्तंभ उन लोगों के लिए होंगे जिन्हें पीठ का सहारा लेने की जरूरत हो!

 

    और फिर, लोग नियमित ध्यान या उस तरह की चीज के लिए नहीं आयेंगे (आंतरिक व्यवस्था बाद में होगी) : वह एकाग्रता का स्थान होगा । हर एक वहां न जा पायेगा; हफ़्ते में या दिन में (मुझे पता नहीं) एक समय होगा जब दर्शनार्थियों को अंदर आने की स्वीकृति मिलेगी, लेकिन बहरहाल, कोई मेल-जोल नहीं । लोगों को पूरा स्थान दिखाने का एक निश्चित समय या निश्चित दिन होगा, और बाकी समय केवल उनके लिए होगा जो... गंभीर हैं-गंभीर और सच्चे, जो एकाग्र होना सीखना चाहते हैं ।

 

   तो मैं सोचती हूं कि यह अच्छा है । यह वहां मौजूद था (ऊपर का संकेत ) । उसके बारे में बोलते समय, मैं अब भी उसे देख रही हूं-मैं देख रही हूं । जैसा कि मैं देख रही हूं, वह बहता सुंदर है, सचमुच वह बहुत सुंदर है... एक तरह से अर्ध- आलोकित प्रकाश दिखता है, लेकिन वह बहुत शांत है । और फिर, बहुत स्पष्ट और उज्ज्वल रोशनी की किरणें प्रतीक पर पड़ेगी (स्पॉटलाइट, कृत्रिम रोशनी, सुनहरी-सी होनी चाहिये, ठण्डे नहीं होनी चाहिये-यह स्पॉटलाइट पर निर्भर होगा) । प्लास्टिक द्रव्य या... मुझे पता नहीं किस वस्तु से बना गोला होगा ।

 

     बिल्लौर ?

 

 अगर संभव हो तो हां । छोटे मंदिर के लिए गोले का बहुत बड़ा होना आवश्यक नहीं है : अगर वह इतना बड़ा भी हो (करीब तीस सेंटीमीटर

 

३०६


का संकेत) तो अच्छा होगा । लेकिन बड़े मंदिर के लिए बड़ा हीं होना चाहिये ।

 

    लेकिन बड़ा मंदिरा कैसे बनेगा? छोटे के ऊपर ?

 

 हीं, नहीं, छोटा हट जायेगा । लेकिन बड़ा बाद में हो बनेगा और बहुत बड़े पैमाने पर... बड़े के बनने के बाद ही छोटा हटेगी । लेकिन स्वाभाविक रूप से, कार को पूरा होने में बोसा साल लगेंगे (हर एक चीज को सुव्यवस्थित होने, अपने स्थान पर होने में) । यह बग़ीचे की तरह है; ये सभी बग़ीचे जो बनाये जा रहे हैं अभी के लिए हैं, लेकिन बोसा साल मैं वह सब कुछ दूसरे पैमाने पर होगा; तब, वह सचमुच... सचमुच कोई सुंदर चीज होगी ।

 

     मैं सोच रही हूं कि इस बड़े गल्लों को बनाने के लिए किस वस्तु का उपयोग किया जा सकता है ?... छोटा शायद बिल्लौर का हों : इतना बड़ा गल्लों (तीस सेटीमीटर का संकेत) । मेरा ख्याल है इतना काफी होगा । कमरे के हर एक कोने से आदमी उसे देख सके ।

 

      वह फशॅ से बहुत ऊपर उठा हुआ भी न होना चाहिये ?

 

 नहीं, श्रीअरविन्द के प्रतीक को बड़े होने की आवश्यकता नहीं । वह इतना बड़ा होना चाहिये (संकेत) .

 

      पच्चीस, तीस सेंटीमीटर ?

 

 अधिक-से- अधिक, हां, अधिक-से- अधिक ।

 

    यानी वह करीब आंख की सतह पर होगा ?

 

 आंख की सतह पर, हां, यह ठीक है ।

 

    और बहुत ही शांत वातावरण । और कुछ नहीं समझे-बड़े खंभे... । अब तक यह देखना बाकी है कि खंभे किस शैली के हों... वे गोल होंगे,

 

३०७


या फिर उनमें भी बारह पहलू होंगे... । और बारह स्तंभ ।

 

     और दो मांगें में एक छत ?

 

हां, एक ऐसी छत होगी जो दो भागों मे हो ताकि सूरज आ सके । उसकी कुछ इस तरह व्यवस्था करनी होगी कि बारिश अंदर न आ पाये । हम ऐसा नहीं सोच सकते कि जब कभी बारिश हो तो किसी चीज को खोला ओर बंद किया जाये, यह संभव नहीं है । उसकी कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये कि बारिश अंदर न आ सके । लेकिन सूरज को किरणों के रूप में अन्दर आना चाहिये, विकिरण होकर नहीं । इसलिए छिद्र छोटा होना चाहिये । इसके लिए किसी ऐसे इजीनियर की आवश्यकता हैं जो अपना काम सचमुच अच्छी तरह जानता हो ।

 

      और वे काम कब शुरू करेंगे ?

 

 मैं तुरंत, जैसे हीं नक़्शे हमारे हाथ में आयें, काम शुरू करवाना चाहती हूं । केवल, दो प्रश्न हैं : पहला हैं नक़्शे (हमें कार्यकर्ता मिल सकते हैं) और फिर धन... । मेरा ख्याल हैं कि इस, छोटे मँडल के विचार के साहा टोह संभव हैं (निश्चय ही '' छोटा '' कहने का एक ढंग है, क्योंकि सौ आदमियों को बीठा पाने के लिए भी काफी बडी जगह की जरूरत होती हैं), शुरू करने के लिए छोटा-सा मॉडल, और फिर छोटा मॉडल बनाते समय वे सीखेगे, और कार के निर्माण के बाद ही विशाल बनेगा- अभी नहीं !

 

     मैंने ' ए ' से इसके बारे में बातचीत की, उसने मुझसे अगले दिन कहा : '' जी हां, लेकिन इसे तैयार होने में समय लगेगा । '' मैंने उससे वह सब नहीं कहा जो अभी- अभी तुमसे कहा है, मैंने केवल कुछ करने की बात कही । उसके बाद मुझे इस कमरे का अंतर्दर्शन हुआ-इसलिए अब मुझे किसी की जरूरत नहीं जो यह सोच सके कि क्या होना चाहिये : मैं जानती हूं । वास्तुकार के स्थान पर इसके लिए किसी इजीनियर की जरूरत है, क्योंकि वास्तुकार... यह यथासंभव सीधा-सादा होना चाहिये ।

 

३०८


मैंने ' सी ' को बताया कि आपने यह विशाल शान्त कमरा देखा है ; इस बात से वह बहुत अधिक द्रवित हो उठा !उसने भी ठीक यह विशाल शून्य कमरा देखा था वह काफी अच्छी तरह समझ रहा ने हां तो जन्य-यानी केवल एक आकार

 

 लेकिन मीनार की तरह का आकार, लेकिन... (इसीलिए मैं दिखाने के लिए खाका बनाना चाहती थी) समान अन्तराल के बारह पहलू, फिर एक दीवार होनी चाहिये, एकदम सीधी खड़ी दीवार नहीं लेकिन कुछ इस तरह की (कुछ झुकी हुई-सी का सकेत) । मुझे मालूम नहीं यह संभव है या नहीं और अंदर बारह स्तंभ । फिर सूरज को ग्रहण करने का कोई प्रबंध ढूंढ निकालना होगा । बारह पहलू कुछ इस तरह के हों कि सारे साल सूरज अंदर आ सके । इसके लिए ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो काम अच्छी तरह जानता हो ।

 

   बाहर... मैंने बाहर की चीज नहीं देखी, लेने वह बिलकुल नहीं देखी, मैंने केवल अंदर का भाग देखा था ।

 

   मैं ' सौ ' को कागज आने के बाद सब समझाना चाहती थी । इससे ज्यादा आसान होता, लेकिन जब तुमने उसे बुला लिया है...

 

    ' डी ' जाकर 'सी ' को कमरे मे बुला लाता है । माताजी उससे कहती हैं:

 

 जब हमने इस मंदिर के निर्माण का निश्चय कर लिया, तो मैंने इसे देखा, मैंने इसे अंदर से देखा । मैंने अभी- अभी 'ई ' के आगे उसका वर्णन करने की कोशिश की । लेकिन कुछ ही दिनों में मेरे पास कुछ नक़्शे और ड्रॉइंग आ जायेंगी, तब मैं ज्यादा स्पष्टता से समझा पाऊंगी । क्योंकि मुझे एकदम मालूम नहीं कि बाहर सें वह कैसा है, लेकिन अंदर के बारे में मैं जानती हूं ।

 

   'सी '. बाल अंतर से ही विकसित होता है।

 

 वह बारह समान अंतराल के पहलुओं की एक तरह की मीनार है जो साल

 

३०९


के बारह महीनों का प्रतिनिधित्व करती है, और वह एकदम रिक्त है... उसमें सौ से लेकर दो सौ व्यक्तियों तक के बैठने का स्थान होगा । और फिर, छत को सहारा देने के लिए अंदर बारह स्तंभ होंगे (बाहर नहीं, अंदर) , और ठीक केंद्र मै, एकाग्रता की वस'... । सूरज के सहयोग से पूरे साल सूरज को किरणों के रूप में अंदर आना चाहिये : विकल्पी होकर नहीं, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि वह किरणों के रूप में अंदर आ सके । फिर दिन के समय और साल के महीने के अनुसार किरण घूमेगी (ऊपर ऐसी व्यवस्था होगी) और किरण केंद्र पर पहुंचेगी । केंद्र में श्रीअरविन्द का प्रतीक होगा जो एक गल्लों को सहारा देगा । ग्लोब हम किसी पारदर्शक वस्तु, जैसे बिल्लौर से बनाने की कोशिश करेंगे या... । एक बड़ा ग्लोब । और फिर, लोगों को एकता के लिए अंदर आने की स्वीकृति होगी- (माताजी हंसती हैं) एकाग्र होना सीखने की! कोई नियमबद्ध ध्यान नहीं, वह सब कुछ न होगा, लेकिन वहां उन्हें मौन रहना होगा, नीरवता और एकाग्रता में रहना होगा ।

 

   'सी ' : यह बहुत सुन्दर है ।

 

लेकिन स्थान एकदम... यथासंभव सादा होगा । ओर फ़र्श ऐसा होगा कि आदमी आराम से बैठ सको ताकि उन्हें यह न सोचना पड़े कि यह उन्हें यहां चूभ रहा है या वहां चूभ रहा है !

 

     'सी'  यह बहुत सुन्दर है ।

 

और बीच में, फ़र्श पर, मेरा प्रतीक होगा । मेरे प्रतीक के केंद्र में चार भागों में, समचतुष्कोण की तरह, श्रीअरविन्द के चार प्रतीक होंगे, सीधे, जो एक पारदर्शक ग्लोब को सहारा देंगे । यूं देखा गया है ।

 

   तो मैं किसी इजीनियर से छोटे-छोटे नक़्शे बनवाने वाली हूं, सरल-से, जो दिखाने के लिए होंगे, और फिर जब वह तैयार हो जायेंगे तो मैं तुम्हें दिखलाऊंगी । यूं । और तब हम देखेंगे । दीवारें शायद कंक्रीट की बनानी होंगी ।

 

३१०


   ' सी ' : सारे ढांचे को कंक्रीट से बना सकते हैं

 

 छत शायद ढालू होनी चाहिये ओर फिर बीच मे सूरज के लिए विशेष व्यवस्था होनी चाहिये।

 

      आपने कहा कि दीवारें कुछ ढालू होंगी ।

 

 दीवारें या फिर छत ढालू होगी-जो बनाने में अधिक आसान हो । दीवारें सीधी बनायी जा सकती हैं और छत ढालू । और छत का ऊपरी हिस्सा बारह स्तंभों के सहारे होगा, और एकदम ऊपर, सूरज के लिए व्यवस्था होगी ।

 

    और अंदर, कुछ नहीं; स्तंभों के सिवाय और कुछ नहीं । स्तंभ, मुझे मालूम नहीं, हमें यह देखना होगा कि वे बारह पहलुओं के होंगे (छत की तरह, बारह पहलुओं के) या बस गोल होंगे।

 

    'सी'. गोला।

 

 या फिर केवल समचतुष्कोण-यह देखना बाकी है ।

 

   और फिर, फ़र्श पर, हम कुछ मोटी और मुलायम चीज बिछायेंगे । यहां-तुम जैसे बैठे हो आराम सें बैठे हो न ? हां ? पहले लकड़ी दु, और फिर इस तरह का रबर है, और उसके ऊपर ऊनी कालीन है ।

 

    आपके प्रतीक के साथ ?

 

 कालीन नहीं । प्रतीक के लिए, मैंने सोचा था कि उसे किसी मजबूत चीज से बनाया जाये तो ज्यादा अच्छा रहेगा ।

 

    'सी' : पत्थर मे होना चाहिये ।

 

 प्रतीक... निस्संदेह, सब कुछ उसके चारों ओर होगा । प्रतीक उसे पूरा

 

३११


नहीं ढकेगा, वह स्थान के केवल बीचोबीच होगा-(माताजी हंसती हैं) उन्हें बीच के प्रतीक पर नहीं बैठना चाहिये । सारी चीज के साथ, ऊंचाई के साथ प्रतीक का अनुपात बहुत सावधानी से देखना पड़ेगा ।

 

    'सी' : और कमरा काफी बड़ा होगा ?

 

ओह हां, उसे होना पड़ेगा... वह सूरज की इन किरणों के साथ अर्ध- आलोकित-सा होगा, ताकि किरण दिखायी पड़े । सूरज की एक किरण । फिर दिन के समय के अनुसार, सूरज घूमेगी (दिन के समय और साल के महीने के साथ) । और फिर रात को, जैसे ही सूरज अस्त हो जाये, स्पॉट- लाइटें जला दी जायेंगी जो उसी रंग और उसी कास प्रभाव डालेंगे । और वहां दिन-रात रोशनी रहेगी । लेकिन कोई खिड़कियां, लैम्प या इस तरह की कोई चीज नहीं होगी-कुछ नहीं । वातानुकूलन के यंत्रों के दुरा वायु- संचार होगा (उन्हें दीवारों के अंदर बनाया जा सकता है, यह बहुत आसान हैं) । और होगी नीरवता । अंदर कोई नहीं बोलेगा । (माताजी हंसती हैं) यह अच्छा रहेगा । तो, जैसे ही मेरे कागज तैयार हो जायेंगे, मैं तुम्हें बुलाकर दिखा दूंगी ।

 

   'सौ' : जी बहुत अच्छा।

 

   ' सी ' बाहर चला जाता है । माताजी ' ई ' के साथ बातचीत जारी रखती हैं ।

 

 मैंने ' सी ' से इसलिए यह नहीं पूछा कि उसकी ' ए ' से मुलाकात हुई या नहीं, क्योंकि... 'ए ' पूरी तरह आज के '' व्यावहारिक '' वातावरण में है । यह अच्छा है-काम शुरू हो जाना चाहिये !

 

     देखो, यही मैंने सीखा है : धर्मों की असफलता । यह इसलिए है क्योंकि वे विभक्त थे । वे चाहते थे कि लोग दूसरे धर्मों से काटकर ऐकांतिक रूप से अमुक धर्म के हों; और ज्ञान का हर क्षेत्र असफल रहा हैं, क्योंकि वे ऐकांतिक थे; और मनुष्य असफल रहा हैं, क्योंकि वह ऐकांतिक था । यह नयी चेतना अब और विभाजन नहीं चाहती (यह इसी पर जोर देती है)।

 

३१२


आध्यात्मिक छोर, भौतिक छोर, और... दोनों के मिलन-स्थल को समझना चाहती है, उस स्थल को... जहां वह सच्ची शक्ति बन जाये ।

 

    व्यावहारिक दृष्टि सें मैं ' क ' को समझाने की कोशिश करूंगी; लेकिन मैंने देखा है, मुझे ऐसा लगता हैं कि आवश्यकता इस बात की हैं... जब ' ए ' यहां हो, तो वह ' ओरोमॉडल ' के क्रियात्मक पहलू और बाकी चीजों को देखे । यह बहुत आवश्यक हैं, यह बहुत अच्छा है और ' सेंटर ' के निर्माण के लिए, मैं चाहती हूं कि ' सी ' यह काम करे । तो मैं चाहूंगी कि ' ए ' के जाने पर ' सी ' यहां रहे; जब ' ए ' चला जाये तब ' सी ' को यहां रहना चाहिये, और हम 'सी ' के साथ यह काम करेंगे । केवल मैं यह नहीं चाहती कि उनमें से किसी को ऐसा लगे कि यह एकदूसरे के विरुद्ध है । उन्हें यह समझना चाहिये कि वे एकदूसरे के पूरक हैं । मेरे ख्याल से ' सी ' समझ जायेगा ।

 

    लोइकन ' ए ' इसे अपने दायित्व ये हस्तक्षेप की भाति ले सकता है ?

 

शायद नहीं । मैं कोशिश करूंगी, मैं कोशिश करूंगी ।

 

     नहीं, जब मैंने उससे कहा कि ' सेंटर ' बनाना अनिवार्य है, मैंने उसे देखा है और उसे बनाना चाहिये, तो उसने आपत्ति नहीं की । उसने बस मुझसे यह कहा : लेकिन इसमें समय लगेगा । '' मैंने कहा : '' नहीं, इसे तुरंत करना चाहिये । '' और इसीलिए मैं उसे दिखाने के लिए एक इंजीनियर से ये ख़ाके तैयार करवा रही हू, क्योंकि यह किसी वास्तुकार का काम नहीं, इंजीनियर का काम है, जिसमें सूरज की रोशनी के लिए बहुत ही यथार्थ गणना की जरूरत है, बहुत ही यथार्थ । इसके लिए किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो सचमुच जानता हो । वास्तुकार को यह देखना होगा कि स्तंभ सुंदर हैं, दीवारें सुंदर हैं, अनुपात ठीक है-यह सब बिलकुल ठीक है- और यह कि प्रतीक केंद्र में है । सौंदर्यपक्ष के बारे में निश्चय ही वास्तुकार को देखना होगा, लेकिन गणना के पूरे पक्ष को... । और महत्त्वपूणं चीज यह है, केंद्र मे सूरज की क्रीड़ा । क्योंकि वह प्रतीक बन जाता है- भावी सिद्धि का प्रतीक ।

 

३१३


१० जनवरी,१९७०

 

    मेरे पास 'सौ' का एक पत्र है....

 

 मैं उससे आज तीसरे पहर मिलने वाली हूं ।

 

   मैंने तुमसे कहा था कि मैंने ओरोवील की केंद्रीय इमारत देखी थी.. मेरे पास एक नक्शा हैं, क्या तुम्हें उसे देखने मे दिलचस्पी है ? यहां कुछ प्रलेख हैं ।

 

   (माताजी समझाते हुए नक्श के कागज खोलती है) बारह पहलू होंगे । ओर, केंद्र से एक समान दूरी पर, बारह स्तम्भन होंगे । केंद्र में, फ़र्श पर, मेरा प्रतीक है, और मेरे प्रतीक के केंद्र में श्रीअरविन्द के चार प्रतीक हैं, सीधे खड़े, जो एक समचतुष्कोण बनाते हैं, और समचतुष्कोण के ऊपर एक पारभासक ग्लोब (अभी तक हमें यह नहीं मालूम कि वह किस चीज से बनेगा) । और फिर, जब सूरज चमकेगा, तो छत से उसकी रोशनी किरण के रूप में आयेगी (केवल वहीं, और कही नहीं) । जब सूरज छीप जायेगा, तो बिजली की स्पॉटलाइटें होगी जो किरण ही भेजेंगी (केवल किरण, विकीर्ण रोशनी नहीं), ठीक इसके ऊपर, इस ग्लोब के ऊपर ।

 

     और फिर दरवाजे नहीं हैं, लेकिन... बहुत नीचे जाने पर व्यक्ति फिर से मंदिर के अंदर आ जायेगा । व्यक्ति दीवार के नीचे जाकर फिर अंदर निकल आयेगा । फिर सें यह एक प्रतीक है । सब कुछ प्रतीकात्मक है ।

 

      और फिर वहां कोई फर्नीचर नहीं है, बल्कि फ़र्श पर, यहां की तरह, पहले, शायद, लकड़ी होगी, फिर लकड़ी के ऊपर एक मोटा '' डनलप '' होगा और उसके ऊपर, यहां की तरह, कालीन होगा । रंग का चुनाव अभी बाकी है । सारा स्थान सफेद होगा । मुझे ठीक नहीं मालूम कि श्रीअरविन्द के प्रतीक भी सफेद होंगे या नहीं... मेरे खयाल से नहीं । मैंने उन्हें सफेद नहीं देखा, मैंने उन्हें किसी ऐसे रंग में देखा जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, -सुनहरे और नारंगी के बीच का कोई रंग, कुछ-कुछ इस तरह का । वे सीधे होंगे । उन्हें पत्थर में बनाया जायेगा । और एक पारदर्शक नहीं बल्कि पारभासक ग्लोब होगा । और फिर एकदम नीचे (ग्लोब के नीचे का संकेत) एक रोशनी होगी जो ऊपर जायेगी, विकीर्ण होकर ग्लोब को प्रकाशित करेगी । और फिर, बाहर से रोशनी की किरणें केंद्र पर पड़ेगी ।

 

३१४


इसके सिवाय और कोई रोशनी नहीं, कोई खिड़कियां नहीं, यांत्रिक वायु- संचार होगा । सज्जा का एक भी सामान नहीं, कुछ भी नहीं । एक ऐसा स्थान... अपनी चेतना को पाने की कोशिश करने का स्थान ।

 

   बाहर, कुछ ऐसा होगा (माताजी दूसरा नक्शा खोलती हैं) । हमें मालूम नहीं कि छत एकदम नुकीली होगी या... बहुत सदी, बहुत सादी होगी । उसमें करीब २०० आदमी समा सकेंगे ।

 

    तो, 'सी' की चिट्ठी?

 

 '' बहुत प्यारी मां

 

     में 'ए' से इतवार को मिला वह मेरे कमरे में आया था हमने दोपहर का भोजन साध- साध किया ! प्रेम के साथ मैंने आपके और ' ए ' के कुछ बहुत सुन्दर कुल सजाये आप हमारे साध थीं ! हमने बहुत बातें की मैंने ' ए ' को के रूप में अनुभव किया ।

 

    'मैंने उससे कहा कि ओतेवील किसी और नगरी की तरह शुरू नहीं हो सकता- नगरी की योजना की ?सामाजिक आर्थिक कठिनाइयां वह सब बाद में शुरुआत ' 'कुछ ओर '' होनी चाहिये हमें ' सेंटर ' से शुरू करना चाहिये ! यही ' सेंटर ' हमारा उत्तोलक हमारा निश्चित होना चाहिये चीज का जिसका हम ओर छलांग लगाने की काएइशश में सहारा ले सकें- क्योंकि ओर से हम यह समझना शुरू कर सकते ' कि ओरोवील को क्या होना चाहिये ! सभी स्तरों पर (गुह्य स्तर पर धी) हमारे अंदर आप जो कुछ तत्व भेज सकती ! जो 'जड़- भौतिक ' में उतरता हे, यह 'सेंटर ' उसी का रूप होगा हमारी तरफ से बस इतना ही होना चाहिये कि हम ' और सच्चे माध्यम बनें जिसके द्वारा आप उसे भौतिक रूप दे सकें।

 

   '' और मैंने उससे कहा कि अपने अंदर अनुभव को जीवत् बनाकर इन सब चीजों के पास ' की जरूरत महसूस - और सभी पूरब और पश्चिम के लोग प्रेम की एक विशाल धारा में एकजुट हों क्योंकि 'किसी और ' चीज का निर्माण करने के यही संभव कंकरीट है ।''

 

३१५


वह जो कह रहा है अच्छा हैं ।

 

 '' और ' सेंटर ' ' यह प्रेम तुरंत सकता क्योंकि यह आपके प्रेम  मैंने उससे कह? कि सचमुच हम सब मौन के ' के साथ काम शुरू कर सकते ', अपने अंदर तरह ले शून्य की काशिल कर सकते है। और हर एक की अभीप्सा द्वारा उस शून्य मे आरंभ करने के ' उतार ला ' लोइकन मिले एक खास पर के जो आध्यात्मिक रूप में अधिक आगे बड़े हुए है (भारतीय )।

 

     ''' ए ' ने पूरी तरह से  बात कर ली। कहा कि सचमुच यही होना चाहिये ! ''

 

      (माताजी अनुमोदन में सेर हिलती है )

 

 आज तीसरे पहर मैं ' सौ ' को यह नक्शा देने के लिए मिलूंगी। क्योंकि । जानते हो, मैंने यही देखा । हम उसे सफेद संगमरमर में बनायेगा । ' एक ' ने कहा हैं कि वह सफेद संगमरमर ले आयेगा, उसे जगह मालूम है ।

 

    सारी इमारत संगमरमर मे ?

 

 हां, हां!

 

 लोइकन '' ने जो कहा वह बहुत ठीक लग रहा उसने कहा. हम इस ' सेंटर ' को बनाये ने हम इस ' लेटर ' में अपना सारा हृदय और उंडेल देंगे '...

 

 हा, हा ।

 

       और बीतते वर्षा के साध यह अधिकाधिक '' शक्ति से भरपूर '' हो जायेगा...

 

हां !

३१६


    तो यह 'सेंटर ' सच्ची वस्तु होगा बाद में बड़े मदिरा को बनाने के लिए नहीं हटाना होगा ?

 

 मैंने यह बात उन लोगों को आश्वासन देने के लिए कही थी जो यह सोचते हैं कि किसी विशाल वस्तु की आवश्यकता है । मैंने कहा था : '' हम इससे शुरू करेंगे, फिर देखेंगे । '' समझ रहे हो न ? मैंने कहा था : '' नगर जब तक पूरी तरह न बन जाये, इस ' सेंटर ' को रहना चाहिये, फिर बाद में देखेंगे । '' बाद में कोई इसे हटाना न चाहेगा!

 

 लोइकन कहा कि स्थापत्यकला के से यह बिलकुल संभव कि जो कुछ बन गया उसे छुए बिना बाहर से इमारत को बढ़ाया जाये !

 

 ओह, हां । यह बिलकुल संभव है । ' ए ' ने मुझसे कहा : '' बाद मे हम क्या करेंगे ?'' मैंने कहा : '' हम उसके बारे में बाद में बोलेंगे!'' तो बात यह है ! वे नहीं जानते... वे यह नहीं जानते कि सोचना नहीं चाहिये ! मैंने इसके बारे में बिलकुल, बिलकुल नहीं सोचा, बिलकुल नहीं । एक दिन, मैंने उसे यूं देखा, जैसे मैं तुम्हें देख रही हूं । और अब भी, वह इतना जीवंत है कि बस मुझे निगाह डालने- भर की जरूरत हैं और मैं उसे देख लेती हूं । मैंने जो देखा वह ' सेंटर ' था और उस पर पडूने वाला प्रकाश और तब, एकदम स्वाभाविक रूप से, उसे देखते समय मैंने गौर किया, मैंने कहा : ''तो यह ऐसा है । '' लेकिन यह कोई विचार न था, मैंने '' बारह खंभों और बारह पहलुओं और फिर... '' की बात नहीं सचि; मैंने यह बिलकुल नहीं सोचा । मैंने ऐसा देखा ।

 

     यह श्रीअरविन्द के इन प्रतीकों की तरह है... । जब मैं ' सेंटर ' के बारे मे कहती हू तो मैं अब भी श्रीअरविन्द के चार प्रतीक देखती हूं जिनके कोण एकदूसरे को सहारा दे रहे हैं, इस तरह, और यह रंग... अजीब- सा रंग... मुझे मालूम नहीं यह कहां से मिल सकेगा । यह नारंगी-सुनहरा हैं, बहुत हो ऊष्मा से भरा । और उस स्थान पर बस यही एक रंग हैं; बाकी सब सफेद है, और एक पारभासक ग्लोब ।

 

३१७


सी ' ने कहा है कि अभी तुरंत जाकर में स्थित में पूछताछ करेगा जहां बड़े बिल्लौर बनाये जाते है वह यह पता लगायेगा कि बिल्लौर में उदाहरण के लिए, तीस सेंटीमीटर का ग्लोब बनाना संभव क्या ?

 

 ठीक-ठीक नाप नक़्शे में है, उसे लिख लेना चाहिये ।

 

     वहां बहुत बड़ा शीशे का कारखाना है !

 

ओह ! वहां के लोग विलक्षण वस्तुएं बनाते हैं... ग्लोब का नाप नहीं लिखा है क्या ?

 

   सत्तर सेंटीमीटर!

 

 वह खोखला हो सकता है । उसके ठोस होने की आवश्यकता नहीं, ताकि वह बहुत भारी न हो जाये ।

 

(मौन)

 

यह भूमिगत प्रवेशमार्ग... दीवार से लगभग बारह मीटर की दूरी से कलश के नीचे से शुरू होगा । कलश उतराई का सूचक होगा । मुझे यह चुनाव करना होगा कि ठीक किस दिशा से... । और फिर । यह संभव है कि बाद मे कलश बाहर होने की जगह, अहाते के भीतर हो । तो शायद हम चारों ओर केवल एक बडी-सी दीवार खड़ी कर सकते हैं, और फिर बग़ीचे । अहाते की दीवार और इमारत के बीच, जिसे हम अभी बनाने वाले हैं , हम बग़ीचे और कलश ले सकते हैं । और उस दीवार में एक प्रवेशद्वार होगा... एक या कई सामान्य द्वार । लोग बग़ीचे में टहल सकेंगे । और फिर भूमिगत प्रवेशमार्ग में प्रवेश करने और मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार पाने के लिए कुछ शर्तों को पूरा करना आवश्यक होगा... । वह एक प्रकार की दीक्षा होनी चाहिये, बस ' यूं हो ' नहीं, जैसे तैसे...

 

(मौन)

 

३१८


मैंने ' ए ' से कहा : '' बीस साल में देखेंगे '' -तो इसने उसे ठंडा कर दिया । लेकिन पहला विचार तो यह था कि उसके चारों ओर पानी हो, उसे एक दीप बना दिया जाये ताकि मंदिर तक पहुंचने के लिए पानी को पार करना पड़े । दीप बनाना बिलकुल संभव है... ।

 

*

 

 १७ जनवरी, १९७०

 

 तुम मुझसे क्या कहना चाहते थे ?

 

 मेरे पास 'सी ' और 'जी ' आये थे !दो बातें हैं ! लेकिन पहले 'सेंटर ' का नक्शा-ठीक-ठीक कहें तो 'सेंटर ' के बाहर का नक्शा !

 

 बाहर का-मैंने कुछ भी नहीं देखा । यहां एक सामान्य खाका है, यह 'एक ' का बनाया हुआ है... । मैंने बिलकुल कुछ नहीं देखा और मैं सभी सुलझावों के लिए तैयार हूं । और फिर ?

 

 ' सौ ' ने कुछ समझाया जो बहुत सुंदर लगा जिसे मे आपके सामने रखना चाहूंगा... जब आपने इस ' लेटर ' के बारे में कहार वास्तव में बाहर के बारे में आपने कह? था : '' मालूम नहीं दीवारें घातन होगी या छठ ढालू होगी ! '' आपको कुछ - सी धी तो 'सी ' ने कहा कि उसे एक तरह की प्रेरणा-सी आयी उसने एक बहुत - सी चीज, बडी सीपी की तरह जिसका एक भाग सतह से ऊपर रहेगा और दूसरा जमीन के अंदर रहेगा और उसने एक तरह की बनायी जिसे मैं आपको दिखाना चाहूंगा !

 

 वे 'ए ' से भी मिले क्या? क्योंकि ' ए ' के दो विचार हैं; वह मेरे पास दो विचारों को लेकर आया था, और मैंने उसे बता दिया कि दोनों में से कौन-सा मुझे ज्यादा पसंद आया, लेकिन अभी तक कोई निश्चय नहीं

 

३१९


हुआ है । और 'ए' को उसके विचारों की रूप-रेखा बनानी है । तो मैं देखूंगी कि 'सौ' क्या कहता हैं, फिर मैं तुम्हें 'ए' के विचारों के बारे में बताऊंगी ।

 

 ( 'ई' नक्शा खोलता ), यह बाहरी हिरसा है जो बस एक  बस एक की तरह अंदर ठीक वैसा जैसा आपने. यह विशाल, फिर ' ये एक गोला '' की इस प्रेरणा का कारण यह कि आपने कहा था कि व्यक्ति नीचे वकार वापिस ऊपर आ जायेगा तो उसका यह नीचे जाने का था यहां एक. जा सके जो फिर ले ऊपर आ जायेगी और यहां .' की एक क्लास वों हर में ' ( के निचले में ) जो ' मे तो सारा निचला काले संगमरमर में ऊपर का सारा संगमरमर में और चीज विशाल कली की तरह, मानों वह से निकल रही है !

 

 क्या तुम्हें विश्वास हैं कि वह ' ए ' से नहीं मिला ? क्योंकि ' ए ' ने मुझसे कहा : '' मैं एक विशाल गोला बनाना चाहता हूं ; अंदर का ठीक अर्धगोलाकार होगा और दूसरा अर्धगोल जमीन के अंदर होगा । '' उसने करीब-करीब ऐसे ही शब्दों का उपयोग किया ।

 

    क्योंकि '' ने अपने विचार के बारे ये उससे कहा था ।

 

 ओह ! 'सी' ने उससे कहा था! यही बात है ।

 

       यह जमीन से कली के समान

 

 हां, हां, यहीं पहला विचार था जो ' ए ' ने मुझे बताया था, करीब-करीब इन्हीं शब्दों मे कहा था । और फिर, उसका दूसरा विचार था पिरामिड का । मंदिर को जैसा हमने सोचा था उसी तरह छोड्कर फिर पिरामिड बनाना ।

 

३२०


लेकिन मैंने भी पिरामिड के बारे में सोचा था, और मैंने उससे कहा : '' मैंने पिरामिड के बारे में सोचा था । '' पर उसने कहा कि वह दोनों के नक़्शे बनायेगा, फिर हम लोग देखेंगे । अगर वह ' सी ' के विचार से मेल खाता हो तो बहुत अच्छा है ।

 

   लेकिन वस्तुतः, 'ए' का विचार 'सी' का ही विचार है !

 

 हां, यहीं बात है ।

 

 तो जब व्यक्ति '' नाल '' के एकदम छपर पहुंच जायेगा तो स्त्री दिशाओं में पीढ़ियों की एक पूरी शृंखला होगी ताकि मनुष्य किसी भी तरफ से ऊपर मंदिर तक पहुंच सके...! और बीच में बिलकुल रिक्त होगा और उसके चारों तरफ एक तरह की गैलरी होगी जहां लोग नीचे से ऊपर आ सकेंगे; वहीं पर ये सारी सीढ़ियां होगी और सब कुछ एकदम खाली होगा ! इन गैलरियों के चारों कोनों से लगा हुआ बस एक बड़ा कालीन होगा लगेगा मानों वह हवा मै लटका हो सफेद सादा ।

 

    और बारह स्तंभों का प्रश्न था... । 'सी ' कह रहा था कि उसे लगा कि स्तंभ फिर धी पुरातन प्रतीक हैं और उनका सीपी के साध मेल ' बेचेगा और उसने कहा. ''बारह स्तंभों के स्थान पर, प्रतीकात्मक रूप से बारह टेक बनाये जा सकते हैं स्तंभों के बारह आधार, जो पीठ टिकाने के काम आ सकते है । ''

 

ओह ! लेकिन स्तंभ उपयोगी होंगे, क्योके स्तंभों के ऊपर हम स्पॉटलाइर्टे लगायेंगे जो प्रकाश को केंद्र मे भुजंगी । रात-दिन प्रकाश होगा; दिन के लिए, छिद्रों की व्यवस्था होगी, लेकिन सूरज के अस्त होते ही स्पॉटलाइटें जला दी जायेगी और वे स्पॉटलाइटें बारह स्तंभों के ऊपर होगी और केंद्र पर पड़ेगी ।

 

       लेकिन, मधुर मां अगर स्तंभ केवल '' के उपयोगी

 

३२१


   होने तो उन्हें दीवारों पर धी लगाया जा सकता है ?

 

 स्तंभ दीवार के पास नहीं हैं । स्तंभ यहां हैं, दीवार और केंद्र के बीचोबीच ।

 

 क्योंकि '' ने यह का स्थान खाली, बस प्रतीक ' ये था कालीन समतल था बीच-बीच मे स्तंभ उसे काटते न थे । लोइकन उनके स्थान पर बड़े लोक तरह कुछ ', बारह बड़े लोक जो स्तंभों की जगह ' साध ही सहरे का काम देंगे !

 

 उसका कोई अर्थ नहीं है ।

 

 प्रतीकात्मक अर्थ ? क्योंकि आपने तो स्तंभों के बारे ये बहुत कुछ कहा था जो वहां बैठने वालों को सहारा देने के धी काम आयेंगे  !

 

 ओह, उनकी पीठ को ।

 

    इशिलिए उसने कहा था कि ये बारह लॉकू उदाहरण के, प्रतीक की तरह होने, हर एक मित्र पदार्थ से बना होगा : बारह अलग- अलग पदार्थ ।

 

 स्वयं मैंने स्तंभ देखे थे ।

 

     बाहरी दीवारों पर आम वायु-संचार की व्यवस्था होगी, जो बिजली से होगा (खिड़कियां न होगी) और फिर स्तंभों पर प्रकाश था... मैंने स्तंभ देखे थे, मैंने स्पष्ट रूप सै स्तंभ देखे थे ।

 

    जी अच्छा. में उससे कह दूंगा !

 

रही बात चारों ओर की गैलरी की, पता नहीं मुझे वह बहुत पसंद आयेगी या नहीं... मैंने उसे नहीं देखा था, मैंने दीवारें बिलकुल खाली देखी थीं,

 

३२२


खिर्डाकेयां न थी, और फिर स्तंभ, और फिर केंद्र । इस बारे में निश्चित हूं, क्योंकि मैंने यह देखा था, और बहुत देर तक देखा था ।

 

       आपको सीप का आकार कैसा लगा ?

 

 यानी वह पूरा वृत बनाता है : आधा ऊपर, आधा नीचे... । यह चलेगा । केवल सूर्य के लिए व्यवस्था करनी होगी ।

 

 जी हां 'जी ' प्रिज्म के दुरा रोशनी करने की समस्या के बारे मे बहुत अच्छी तरह जानता - क्योंकि अगर हम की एक किरण को पकड़ना चाहे तो हमें प्रिज्म का उपयोग करना होगा उसका कहना कि वह समस्या को आसानी से हल कर देगा वह उस पर काम कर रहा है की एक ही किरण पकड़ने के बे प्रतिज्ञों को कुछ अमुक स्थानों पर रख देते दें।

 

 वह केवल एक किरण होनी चाहिये । मैंने जो देखा था, उसमें किरण दिखायी देती धी ।

 

 जी हां यही बात ने प्रिज्म से किरण दिखायी देती ने तो की गति के अनुसार अमुक संख्या में ज्यामितिके छिद्र होने... लोइकन अंदर भीतरी दीवारों पर बारह पहलू होगे ।

 

 हां, हां ।

 

 और यह सिद्धांत रूप में ( '' गोल गैलरी की ओर इशारा करता है) ये दरवाजे थे जिनके दुरा आदमी रास्ते से ऊपर आ सकेगा !

 

 पता नहीं इस तरह के बहुत-से दरवाजे बनाना ठीक है या नहीं... । इसमें एक व्यावहारिक समस्या को हल करना होगा; अगर केवल एक हो दुरा हो

 

३२३


और उस पर बडी निगरानी रखी जाये, तो ठीक है, परंतु यदि कई दरवाजे हों और काफी रोशनी न हो, तो यह विपत्तिजनक होगा ।

 

 जी नहीं मधुर मां बाहर से तो केवल एक ही दरवाजा होगा लोइकन जब आदमी सीपी की तली तक पहुंच जायेगा तब ये अनेक दुरा होंगे ! नहीं, बाहर के, केवल एक ही उतार होगा वों यहां आता हे इस सर्पिल सीढ़ी के नीचे !

 

 (मौन)

 

 ' सी ' ने चारों तरफ की इस गैलरी के बारे में सोचा था क्योंकि उसका कहना हे कि इससे यह सफेद कालीन ज्यादा चमक उठेगा; वह ऐसा लगेगा मानों अधर में तेरे रहा ने अलग-थलग दीवारों में धंसा हुआ नहीं है ?

 

 मैंने '' दीवार से लगे या धंस '' होने की बात नहो सोच-क्योंकि दीवारों के चारों ओर हमेशा रास्ता था ।

 

 

   तो यह रास्ता ने और कुछ लरियां है ? और खालीपन क्वे इस विचार से भी उसने स्तंभ हटाने की बात सचि धी।

 

 जो चीज मुझे पसंद नहीं आ रही वह हैं गैलरी का विचार, क्योंकि दीवारें ऊपर से नीचे तक, एकदम सीधी, सफेद संगमरमर की थीं ।

 

 हां, तब ठीक है ।

 

    और अतिरिक्त उसने यह धी कहा कि इस गैलरी पर, या यूं

 

३२४


     कहें इस किनारे पर जो चारों तरफ के रास्ते को कम करता हे कालीन कोण तक आयेगा कोण को हक देगा !

 

 हां, यह ठीक है ।

 

(मोन)

 

 अच्छा है, यह ठीक है । तो उन्हें एक सहमति बनानी होगी । लेकिन शायद आधा काम हो चुका हो, क्योंकि 'ए ' ने मुझसे इस विचार के बारे मे कहा था । अगर मुझे यह पता होता कि यह 'सी ' का विचार है, तो मैं तुरंत ' हां ' कह देती । लेकिन यह हो जायेगा । ठीक है ।

 

 तो दें उससे कह दूंगी कि इस आधार पर काम करे... अब जिस प्रश्न का निश्चय करना बाकी ने वह हे बाहर का : क्या सीपी के चारों तरफ कुछ स्थान छोड़ना चाहिये ताकि सीपी की निचले गोलाई दिखायी पड़े? वरना अगर सब कुछ भर दिया जायेगा तो बस यही लगेगा मानों एक अर्धगोलक जमीन पर टिका ने व्यक्ति यह अच्छी तरह समझ सके कि यह सीपी हे इसके लिए बह उसे चारों तरफ से खुला रखने की सोच रहा था।

 

 मुझे मालूम नहीं । मैं कह रही हूं, मैंने बाहर का कुछ नहीं देखा, इसलिए मुझे नहीं मालूम । लेकिन वह खतरनाक होगा, लोग इसमें गिर सकते हैं ।

 

 या शायद किसी तरह की खाई बनायी ना सके जिसमें चारों तरफ पानी हो स्वच्छ पानी जिससे उदाहरण के लिए सीपी की निचले गोलाई दिख सके ?

 

 हां, हां, हो सकता है यह अच्छा लगे ।

 

      नाप का धी प्रश्न हे नक़्शे के अनुसार आपने चौबीस मीटर रखा हे- गोले के हर तरफ १२ मीटर स्थान छोड़ है लोइकन क्या हम

 

३२५


रास्ते के वरन् सा ज्यादा स्थान छोड़ सकते हैं ?  नक्श में व्यास ने चौबीस मीटर का और ' पंद्रह मीटर और बीस सेंटीमीटर।

 

 आह ?

 

 ' सौ ' पूछ रहा है अगर अनुपात को बदला ना सके तो ? कालीन के नीचे चौबीस मीटर रखें पर साध में यह समावना हो उदाहरण के , अंतराल के दो श तीन मीटर छोड़ दें।

 

 फिर दीवार कहां आयेगी ?

 

    वह यहां  होगी ( 'ई' घुमावदार के बाहर सकेत करता है )।

 

 दीवार चौबीस मीटर रू होनी चाहिये ।

 

   ' सी ' कह रहा था कि अगर ये रास्ते रखने हों तो चौबीस मीटर स्थान कुछ छोटा पड़ेगा !

 

 (मौन)

 

   और ऊंचाई का भी प्रश्न है !

 

 प्रश्न ठीक-ठीक यह था कि वह पूर्ण वृत्त बने ।

 

     अगर वह वृत्त बने तो ऊंचाई दोनों दीवारों के बीच की का अर्धव्यास होगी।

 

हां !

 

 (मौन)

 

३२६


जो चीज मुझे सचमुच प्रसन्नता देगी वह यह होगी कि वे दोनों किसी समझते पर आ सकें और मुझे उन दोनों की ओर से एक ही योजना मिले । इस तरह, काम करना सरल होगा... । क्या ' ए ' ने ' सौ ' के विचार को नहीं अपनाया? वे दोनों एक साथ मिलकर उसे कार्यान्वित क्यों नहीं करते ?

 

    हां यह बात चीजों को सरल बना देगी ?

 

 हां, बहुत अधिक ।

 

 (मौन)

 

 वहां नीचे क्या होगा ? ( माताजी सीपी के भूमिगत भाग की ओर इशारा करती हैं ) । यह सब मानसिक है, लेकिन जब एक बड़ा-सा, एकदम अंधेरे से घिरा तहखाना होगा, तो वहां नीचे क्या होगा? क्या होगा वहां ? बहुत- सी न कहने लायक बातें । आदमी को यह न भूल जाना चाहिये कि मानवता बदली नहीं है । और सब तरह के लोग आयेंगे... । प्रवेशद्वार पर नियंत्रण रखने पर भी तुम लोगों को देखने के लिए मना नहीं कर सकते, तो वहां नीचे क्या होगा ? यह मेरी पहली आपत्ति थी जब 'क ' ने मुझसे कहा : '' हम विलक्षण भूमिगत रास्ते बना सकते हैं! '' मैंने उसे कहा : ''यह सब तो बहुत अच्छा है, लेकिन वहां, नीचे क्या होगा इस पर नियंत्रण कौन रखेगा ?"

 

  मैंने सोचा था ढलान का यह आपका था !

 

 मेरा विचार काफी छोटे ढलान का था, जो यहां बाहर निकल आता था (माताजी घुल नक़्शे में एकमात्र प्रवेश की ओर इशारा करती हैं) । काफी छोटा ढलान, इस तरह की विशाल सुरंग नहीं । लेकिन यह संभव है, यह बस नियंत्रण का प्रश्न है । केवल एक बहुत बड़ा अंतर है, एक ऐसा रास्ता हो जो कमरे के साथ हो और लोगों की दो पंक्तियों के लिए हो (एक ऊपर

 

३२७


जाने वाली और दूसरी नीचे आने वाली) और वे लोग यहां से बाहर निकल आयें, उसमें और इस तरह की विशाल सुरंग में बहुत बड़ा अंतर है-बहुत बड़ा अंतर हैं ! और अब, उसके अतिरिक्त वह पूरी तरह अंधेरी होगी ।

 

    काले पत्थर में नौ हां !

 

हां तो फिर ? इसका मतलब आदमी वहां, नीचे बहुत स्पष्ट रूप से न देख पायगो । फिर वहां, नीचे क्या होगा ?

 

 ये भूमिगत हिस्से सुरंगों के रूप में न होने ; यह सर्पिल जीना होगा और जब हम ज़ीने के एकदम ऊपर पहुंच जायेने तो वह बहुत- से खुले ज़ीनों की शाखाओं में बट जायेगा जो अधर मे पुलों के समान लटके होने यह बंद न होगा यह सब अधर ये उतराता होगा।

 

कोई दुघटनाएं नहीं होगी ? ओह ! ऐसे लोग हैं जिनके सिर बादलों में रहते हैं और जो फ़र्श पर अपना सर फोड़ते के लिए तैयार रहते हैं । देखो, मेरी रुचि के लिए यह थोड़ा ज्यादा ही मानसिक है-मेरा मतलब है कि मानसिक रूप से यह बहुत आकर्षक होगा, लेकिन अंतर्दर्शन में...

 

    मुख्य बिचार था निचले हिस्से को सामूहिक रूप में प्रतीक का रूप देना।

 

(लंबा मौन)

 

देखेंगे! (माताजी हंसती हैं )

 

(मौन)

 

जो हो । उन्हें मिलना चाहिये । और फिर मैं देखूंगी । मैं चाहूंगी कि दोनों अपने कागज लेकर एक साथ आयें । तब ठीक रहेगा ।

 

(माताजी लंबी एकाग्रता मे डूब जाती हैं)

 

३२८


एकमत होने तक प्रतीक्षा करेंगे ।

 

 और ऊपर के लिए क्या हम सीपी का यह विचार छोड़ दें या इसके बारे मे और घी अध्ययन करें ?

 

    सीपी... विचार गोले का था । सीपी क्यों?

 

    सीपी... गोले आकार गोले का आकार?

 

 अंड लंबोतरा होता है, वह गोलाकार नहीं होता । सच्चा अंड तो लट्ट की तरह होता हे-तो ऊपर का हिस्सा ज्यादा फैला हुआ होगा और नीचे का कम चौड़ा होगा जहां केवल सीढ़ियां होगी... । यह बिलकुल संभव है ।

 

    मुझे कागज का पुरजा दो । (माताजी समझाती हुई अण्डे का चित्र बनाती है ) और फिर, यहां, एकदम नीचे, केवल सीढ़ियां होंगी, ऐसे, हां ।

 

 उसका विचार ब्रह्मण्य को बनाना था, है न, मूल अण्डा !मंदिर को मूल अंड का प्रतिनिधित्व करना चाहिये !

 

 लेकिन ब्रह्मण्य किस तरह का होता है?

 

      ' मुझे नहि मालूम... !मेरे ख्याल से अण्डे की तरह ?

 

 अण्डे का निचला हिस्सा ऊपर के हिस्से से हमेशा कम चौड़ा होता है । तो अगर हम यूं अण्डा लें (माताजी चित्र बनाती हैं), और नीचे ये सीढ़ियां हों, और सर्पिल सीढ़ी ऊपर मंदिर तक आये । उदाहरण के लिए, सीढ़ी मे सात दरवाजे हों ।

 

     बारह के स्थान पर सात !

 

 और यहां (माताजी अण्डे के बीच का हिस्सा बनाती हैं), यह चौबीस

 

३२९


मीटर होगा और ऊंचाई में बस साढ़े पंद्रह मीटर । तो इस तरह यह ठीक है।

 

   चौबीस मीटर. या कालीन के लिए ?

 

 नहीं, सीधी दीवारें होनी चाहियें, दीवारें तिरछे नहीं हो सकतीं, मैंने उन्हें सीधा देखा हैं ।

 

    सीधी, और फिर ऊपर जाकर घुमावदार।

 

 मैंने जो देखा उसके अनुसार खंभे दीवार से ज्यादा ऊंचे थे, इसीलिए छत ढालू धी । और बिजली की रोशनी खंभों पर थी । ओर अण्डे का सबसे चौड़ा हिस्सा यहां होगा (माताजी कालीन की सतह पर एक लकीर खींचती है)

 

       फ़र्श की सतह पर

 

हां !

 

 और आपने कहा सात दरवाजे ?

 

सात ज़ीने । और एक तहखाने का रास्ता जो अण्डे के तल में ले जायेगा जहां से सात ज़ीने शुरू होते हैं । यह संभव है ।

 

     तो वस्तुत. ' के अंदर की ' सीधी 'होनी चाहिये ।

 

 यानी बाहर से, देखने के लिए हम उसे गोल-सी बना सकते हैं । लेकिन अंदर दीवारें सीधी होनी चाहिये ।

 

    और सीधी ' के ऊपर गुम्बद?

 

३३०


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      यानी चौबीस मीटर के अतिरिक्त ?

 

  हां, यह सीधी-सी बात है । चौबीस मीटर दीवार तक खतम हो जाते हैं ।

 

       और संतों ज़ीनों के लिए दरवाजे?

 

 मैं ज्यादा पसंद करूंगी कि वे दीवार के बाहर हों ।

 

    हां यह ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि केंद्र ये अधिक स्थान मिलेगा।

 

ओह! हां, और अंदर अधिक स्पष्ट होगा । मुझे इन सब ज़ीनों के दृश्य पसंद नहीं आये । मैं एक भी जीना देखना न चाहती थी, और सात देखना... । लेकिन बाहर, यह ठीक है।

 

    तो रास्ता बाहर होगा...

 

 रास्ता बाहर होगा ।
 

३३१


        हां जैसा भारत में जब आदमी मंदिर की परिक्रमा करता है ।

 

 हां । ठीक है ।

 

 इस ''नाल '' के नीचे से निकले बगैर क्या सात ज़ीने सीपी के एकदम आधार से शुरू हो जायेने ?

 

 वे यही चाहते हैं । नीचे के लिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है । चाहे वह ऐसा जीना हो या... जब तक कि वह बहुत खड़ा न हो ।

 

 (मौन)

 तुम्हारे पास और क्या है ?

 

    समस्या का दूसरा पहलू है ?

 

 ओह ? वह क्या है ?

 

 'जी ' और  ' सी ' ने यह समझ लिया ने कि अगर ओरोवील या इस 'लेटर ' के निर्माण को आश्रम से एकदम स्वतंत्रों केवल ओरोवीलवासियो पर छोड़ दिया गया तो काम कभी न होगा वहां सच्चा बल कभी न होगा; जो लोग वहां हैं बे काम करने पर्याप्त' हैं अगर आश्रम और ओरोवील में यह भेद रहेगा तो यह कभी सफल न होगा वे और एक '' रचना '' कर गौ लेकिन सच्ची वस्तु नहीं बना पायेने उनके अनुसार एकमात्र आशा यही ने कि सचमुच इस ' सेंटर ' का निर्माण केवल ओरोवीलवासियों के द्वारा नहीं होना चाहिये बल्कि आश्रम के सभी लोगों के द्वारा होना चाहिये जिसमे ओरोवीलवासी और  गैर- ओरोवीलवासी का कोई भेद न हो : इस ' सेंटर ' के निर्माण के लिए

 

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 सभी शक्तियों को एक करना चाहिये- ओरोवीलवासियो को बाहरी अलगाव के द्वारा छेक नहीं देना चाहिये...? जिस तरह सभी शिष्यों ने ''' बनाया था उसी तरह बाहर के श्रमिकों के बिना सभी शिष्यों को ओरोवील के 'सेंटर ' को बनाना चाहिये !

 

 गोलकुण्ड में बाहर के श्रमिक थे ।

 

 फिर धी बाहरी तत्व को अधिक-से- अधिक सीमित रखना ताकि यह समर्पण का कार्य हो नहीं तो ' छ ' कहता हे ओरोवील के लोग दंभ नासमझी से भरे हैं बे चीज का बाहरी रूप देखते हैं।यह के लोगों की शक्ति को उसके साध मिलना चाहिये? और अगर आश्रम के लोग अपनी शक्ति भरने न आयें तो कुछ भी प्राप्त न हो सकेगा...' ग ' ने कहा कि इस समय बाहर से ओरोवील कब्रिस्तान- सा दिखता हे (माताजी हस्ती हैं) यह अहं का जीता- जानता परिणाम हे एकमात्र चीज जो इसे बचा सकती ने वह हे आश्रम के लोग वहां जाकर काम करें और उसमें समाविष्ट हों - नहीं तो...

 

(लम्बा मौन)

 

 लेकिन आश्रम में, तीन केंद्र हैं जो निर्माण का काम करते हैं । ' एक ' है जो मकानों की देखभाल करता है, ' आई ' और ' एक ' हैं ।

 

 लेकिन '' का यह मतलब ' था । वह निर्माण समस्या के बारे ये ' कह रहा था वह इस बात के बारे में कह रहा था कि शिष्य ' के साध काम ''' के रूप में धन के लाख निर्माण का काम करेगा लेकिन श्रम के आश्रम के लोगों को आना और ' के साध मिलना. यह विचार है।

 

 ' पॉण्डिचेरी में आश्रम का एक रेस्ट-हाऊस ।
 

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 यह संभव नहीं है । आश्रम के सभी लोग जिनकी काम करने की उम्र हे, सब काम कर रहे हैं । उन सभी के अपने- अपने काम हैं ।

 

 'जी ' का एक तरह की कार्यक्रम- तालिका का विचार हे उदाहरण के , हर व्यक्ति दिन मे एक घंटा या हफ़्ते मे एक दिन दे क्योंकि नेही तो....

 

 वे इससे बहुत ही खुश होंगे! उनके लिए यह असाधारण तमाशा होगा । मुझे उनसे कुछ करवाने की अपेक्षा उन्हें छितरते से रोकने में ज्यादा कठिनाई होती है । उनके लिए तो यह एक मनोरंजन होगा ।

 

 क्योंकि उसका कहना कि आश्रम के लोगों की आंतरिक शक्ति के ओरोवील के लोगों के साथ न मिलने ओरोवीलवासी वही रहेंगे जो वे हैं... उसका कहना ने कि इसके बिना आशा नहीं है ।

 

 ओह नहीं ! उसे मालूम नहीं है । यह सब मन में है, यह सब मानसिक है । वे नहीं जानते । कौन जानता है ? केवल तभी जब व्यक्ति देखता है । उनमें से एक भी नहीं देखता । सभी विचार, विचार, विचार... । विचार निर्माण नहीं करते ।

 

    क्या ओरोवील के लोग निर्माण कर सकते है ?

 

 मैं काम कर रही हूं (गूंजने की मुद्दा), उन ऊजा,ओं को एक साथ लाने के लिए काम कर रही हूं जो यह कर सकती हैं । और वहां छपाई होनी चाहिये ।

 

(मौन)

 

लेकिन, तुम समझ रहे हो, ने शारीरिक काम की बात कर रहे हैं, और शारीरिक काम के लिए बस जवान लड़के हैं जो स्कूल में हैं-सारे आश्रम- वासी बूढ़े हो गये हैं, मेरे बालक, वे सब बूढ़े हो गये हैं । केवल विधालय

 

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में युवक हैं । और जो विधालय में हैं वे आश्रमवासी बनने के लिए नहीं आये हैं, वे यहां शिक्षा पाने के लिए हैं-यह चुनाव उन्हें करना है । उनमें से बहुत-से, बहुत-से ओरोवील जाना चाहते हैं । तो आश्रम का शिक्षा पक्ष ओरोवील जायेगा... । उनमें बहुत-से हैं । लेकिन मुझे उनके नाम दो- कौन वहां जाकर अपने हाथों से काम कर सकता है ?

 

 लकिन, मधुर मां एकमात्र संभावना यह कि आप कहें और तब में कल ही ओरोवील जाकर दो घटों तक ''टिकियाँ '' करुंगा ।

 

 (माताजी हंसती है ) मेरे बालक, तुम सबसे छोटों में से हो.. । क्या तुम यह सोच सकते हो कि थे 'जे' से कहूं : ''जाओ और काम करो''?

 

   आह तो इससे और सब भी आकर्षित होगे !

 

    ( माताजी हंसती हैं) बेचारा ' जे '!

 

(लंबा मौन)

 

अगर तुम्हें पता होता कि हर रोज मेरे पास कितने तथाकथित ओरोवील- वासियों के पत्र आते हैं जो कहते हैं : '' ओह, अंतत: मैं चुपचाप रहना चाहता हूं । मैं आश्रम में आना चाहता हूं, मैं अब ओरोवीलवासी नहीं रहना चाहता । '' तो यह है, यह एकदम विपरीत है : '' मैं चुपचाप रहना चाहता हूं । '' लो ।

 

(मौन)

 

तुम जानते हो, मैं बाहरी निर्णयों पर विकास नहीं करती । मैं केवल एक बात पर विश्वास करती हूं : ' चेतना ' की शक्ति में जो इस तरह से दबाव डाल रही है ?कुचलना की मुद्रा । और दबाव बढ़ता चला जा रहा है... जिसका मतलब है कि वह लोगों की छंटाई कर देगा । मैं केवल इसी पर विकास करती हूं -' चेतना ' के दबाव पर । बाकी सब चीजें आदमी करते हैं । वे न्यूनाधिक रूप मे अच्छी तरह करते हैं, और फिर यह काम जीता

 

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है, और फिर वह मर जाता है, ओर फिर वह बदलता है, ओर फिर वह विकृत हो जाता है, और फिर... उन्होंने जो कुछ भी किया है वह सब । यह इतना कष्ट उठाने लायक नहीं है । कार्य पूरा करने की शक्ति ऊपर से आनी चाहिये, इस तरह से, अनिवार्य (अवतरण का संकेत)! और उसके लिए, यह (माताजी अपने माथे की ओर इशारा करती है), इसे चुप रहना चाहिये । उसे यह न कहना चाहिये : '' ओह, यह न होना चाहिये, ओह, यह होना चाहिये, ओह, हमें यह करना चाहिये... । '' शांति, शांति, शांति । वह तुम्हारी अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह जानता है कि किस चीज की जरूरत है । तो, ऐसा हैं ।

 

    चूंकि ऐसे लोग ज्यादा नहीं हैं जो समझ सकें, इसलिए मैं कुछ बोलती नहीं । मैं केवल देखती और प्रतीक्षा करती हूं ।

 

 (मौन)

 

अगर उनमें समझौता हो जाये, तो काम ज्यादा तेजी सें होगा । बस । ब्योरे के बारे में आपत्तियों का कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि आदमी एक विचार लेकर चलता है और जा पहुंचता है कहीं और... आदमी इस बीच बहुत- सी प्रगति कर लेता है । इसलिए उसके बारे में बातचीत करने की जरूरत नहीं, यह केवल... । केवल अपनी ऊर्जाओं को एक करने की कोशिश करो ताकि काम तेजी से शुरू हो सके । बस ।

 

 ( माताजी हंसती हैं !)

 

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