The Mother's brief statements on Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India and and nations other than India.
This volume consists primarily of brief written statements by the Mother about Sri Aurobindo, Herself, the Sri Aurobindo Ashram, Auroville, India, and nations other than India. Written over a period of nearly sixty years (1914-1973), the statements have been compiled from her public messages, private notes, and correspondence with disciples. The majority (about sixty per cent) were written in English; the rest were written in French and appear here in translation. The volume also contains a number of conversations, most of them in the part on Auroville. All but one were spoken in French and appear here in translation.
प्रकीर्ण
भगवान् क्या है?
तुम श्रीअरविन्द के अन्दर जिनकी आराधना करते हो वे हीं भगवान् हैं ।
२८ मार्च १९३२
*
कैसा सुन्दर होता हे वह दिन जब हम अपनी भक्ति श्रीअरविन्द को अर्पित कर सकें ।
तुम्हें यह अनुभव करना चाहिये कि श्रीअरविन्द तुम्हें देख रहे हैं ।
यह आज्ञाका का प्रश्न नहीं है । तुमने ' लाइफ स्केच ' में क्या बढ़ाया है और वह कहां से लिया है इसके बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम । मेरा दृष्टिकोण यह हैं कि श्रीअरविन्द के बारे में किसी साधक की लिखी हुई ऐसी चीज जो उन्हें सामान्य स्तर पर उतार लाती हे और पाठक को उनके साथ गपशप लगाने योग्य अति परिचय के स्तर पर लाती है, वह उनके और उनके कार्य के प्रति निष्ठाहीनता है । अच्छे इरादे ही काफी नहीं हैं, यह जरूरी कि हर एक इस बात को समझ ले ।
३ जून, १९३९
श्रीअरविन्द कहते हैं कि उनके लिए राजनीतिक कार्य को हाथ में लेना और राजनीतिक क्षेत्र में उतरना असम्भव हैं । इसके लिए उन्हें अपने आध्यात्मिक कार्य की बलि चढ़ानी होगी ।
वे देश को और व्यक्तिगत रूप से सभी अभीन्तुओं को आध्यात्मिक सहायता देते हैं । वे इस सहायता को जारी रखने के लिए और जरूरी हो तो बढ़ाने के लिए भी तैयार हैं । लेकिन उन्हें विश्वास हैं कि केवल लिखित
सन्देश स्थायी प्रभाव के लिए या काफी विस्मृत प्रभाव के लिए भी पर्याप्त नहीं है ।
( १९५७ की दुर्गा पूजा के लिए सन्देश)
श्रीअरविन्द के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उनकी शिक्षा के जीवित-जाग्रत् उदाहरण बनने से बढ़कर और कुछ नहीं हैं ।
३० सितम्बर १९५७
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नीचे उतरता हुआ त्रिकोण सत् चित् आनन्द का प्रतीक है ।
ऊपर उठता हुआ त्रिकोण जीवन, ज्योति और प्रेम के रूप में अभीप्सा करते जडू-द्रव्य के उत्तर का प्रतीक है ।
दोनों का संयोजन-बीच का समचतुष्कोण-है पूर्ण अभिव्यक्ति जिसके बीच में परम पुरुष का अवतार-कमल-है ।
समचतुष्कोण के अन्दर जल बहुलता का, सृष्टि का प्रतीक है ।
४ अप्रैल, १९५८
उनकी ' कृपा ' हमेशा उन लोगों के साथ रहती है जो प्रगति करना और आगामी कल के ' सत्य ' को उपलब्ध करना चाहते हैं ।
१० जनवरी, १९५९
कोई फिर से श्रीअरविन्द के कमरे मे जाना और वहां बैठकर कुछ समय के लिए ध्यान करना चाहता है ।
इस महान् सौभाग्य के लिए उसके पास क्या योग्यताएं और उपाध्याय हैं?
फिर सें जाना ठीक है। लोग श्रीअरविन्द के कमरे में आ सकते हैं । लेकिन वहां बैठकर ध्यान करने की अनुमति पाने के लिए यह जरूरी हे कि तुमने श्रीअरविन्द के लिए बहुत कुछ किया हो ।
११ जून, १९६०
मधुर मां आपने कहा ने कि श्रीअरविन्द के कमरे में बैठकर ध्यान करने की अनुमति पाने के लिए ''यह जरूरी ने कि तुमने श्रीअरविन्द के लिए बहुत कुछ किया हो '' इससे आपका क्या मतलब ने? हम प्रभु के लिए क्या कर सकते हैं जो ''बहुत कुछ '' हो?
प्रभु के लिए कुछ करने का मतलब हे तुम्हारे पास जो हैं, या तुम जो करते हो, या तुम जो हो उसमें से कुछ उन्हें देना, यानी, उन्हें अपनी
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भस्मपत्ती में से एक भाग देना या तुम्हारे पास जो कुछ है वह सब उन्हें अर्पित करना, अपने कार्य का एक भाग या अपने सभी कर्म उन्हें अर्पित करना, या अपने- आपको बिना कुछ बचाये पूरी तरह दे देना ताकि वे हमारी प्रकृति पर अधिकार कर लें और उसे रूपान्तरित करके दिव्य बना सकें । लेकिन बहुत-से लोग ऐसे हैं जो बिना कुछ दिये हमेशा लेना और पाना चाहते हैं । ये लोग स्वार्थी हैं और श्रीअरविन्द के कमरे में बैठकर ध्यान करने के लिए अयोग्य हैं ।
१७ अगस्त, १९६०
मैं आशा करती हूं कि एक दिन आयेगा जब हम सच्चे और खुले दिल से कह सकेंगे कि पॉण्डिचेरी कार के लिए श्रीअरविन्द की 'उपस्थिति ' क्या मायने रखती थी.. ।
१२ जनवरी, १९६१
कुछ समय पहले आपने मुझे सलाह दौ धी : '' सभी मानव निरूपणों के परे जाओ और सीधे परम प्रभु से आवेदन करो? ''
मैं श्रीअरविन्द की ओर मुंडा करता था। मैं अपनी कठिनाइयां उनके आगे रखकर उनसे प्रार्थना करता था और प्राय' सदा ही उनका उत्तर मिलता था । अब मैं उनके बारे में नहीं सोचता मैं उनकी ओर नहीं मुड़ते मैं सीधा प्रभु की ओर मुड़ते हूं लोकनी वह मेरा अरण्यरोदन होता ने
क्या मेरा श्रीअरविन्द से सम्बन्ध काट लेना ठीक हे?
श्रीअरविन्द के साथ सम्बन्ध तोड़ने का न कोई प्रश्न है, न ही कभी कोई प्रश्न उठ सकता हैं । अगर तुम्हें उनके उत्तरों के बारे में सचेतन होने का सौभाग्य प्राप्त है, तो उसे कीमती खजाने की तरह रखो, और उसका अच्छे-से- अच्छा उपयोग करो । श्रीअरविन्द के दुरा तुम परम पुरुष के सम्पर्क में आगे और बिलकुल निश्चित रहोगे कि तुम भटक नहीं सकते ।
२१ मई, १९७०
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मैं अपने दैनिक कार्य- कलाप में श्रीअरविन्द के प्रभाव को जीवित- जाग्रत् और सक्रिय कैसे बना सकता हूं ?
पूरी तरह सच्चे और निष्कपट बनो, और वे तुम्हारी पुकार का उत्तर देंगे ।
जुलाई, १९७०
हमें श्रीअरविन्द के जन्मदिन पर कैसा होना चाहिये?
सच्चे और प्रगतिशील ।
(ई क्रेंकल की बनायी हुई श्रीअरविन्द की कांसे की आवक्ष-प्रतिमा के बारे में )
कलात्मक दृष्टि से, यह निश्चय ही एक उत्कृष्ट कलाकृति है । यह अन्तःप्रेरणा का कार्य भी है । यह श्रीअरविन्द के, बल्कि उनके कुछ पहलुओं के साथ आन्तरिक समर्पक से प्रेरित है, उनकी सत्ता के एक पक्ष, बौद्धिक पक्ष, ज्ञान के पक्ष, उनके द्रष्टा-रूप से प्रेरित हे ।
(ऐन आर. किंग दुरा १९६४ में बनायी श्रीअरविन्द की कांसे की आवक्ष-प्रतिमा के बारे में )
उनके ललाट की प्रशस्तता, स्थिरता और सरलता संपूर्ण प्रज्ञा की पूर्ण शान्ति को प्रतिबिम्यित कर रही हैं ।
श्रीअरविन्द का स्मरण : जीवन के उस आदर्श को चरितार्थ करने के लिए हम प्रयास करें जो उन्होंने हमारे लिए निर्धारित किया है ।
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